यह डर 30 अगस्त को सच साबित हो गया कि देश की अर्थव्यवस्था 7 फीसद से अधिक की वृद्धि दर को बरकरार रख पाने में असमर्थ हो सकती है. उस दिन वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही के वृद्धि के आंकड़े घोषित किए गए. वास्तविक जीडीपी वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही में सिर्फ 6.7 फीसद की दर से बढ़ी, जो साल भर पहले इसी तिमाही में 8.2 फीसद की दर से बढ़ी थी.
मौजूदा दर पांच तिमाहियों में सबसे धीमी वृद्धि दर थी (इससे पिछली चार तिमाहियों में अर्थव्यवस्था 7 फीसद से अधिक की दर से बढ़ी थी) और भारतीय रिजर्व बैंक समेत कई एजेंसियों की उम्मीदों से कम थी. रिजर्व बैंक ने पहली तिमाही में वृद्धि दर 7.1 फीसद रहने का अनुमान लगाया था.
कृषि सबसे ज्यादा फिसड्डी रही है और मौजूदा तिमाही में सिर्फ 2 फीसद की दर से बढ़ी जबकि इससे पिछली तिमाही में यह दर 3.7 फीसद रही थी. विशेषज्ञ इसके लिए मौसम की गड़बड़ी को जिम्मेदार ठहराते हैं, वे खास तौर पर देश के कई हिस्सों में भीषण गर्मी के असर को मारक बता रहे हैं. लेकिन फिर भी यात्रा और मेजबानी समेत जो सेवा क्षेत्र साल भर पहले 10.7 फीसद की दर से बढ़ा था, इस बार धीमा होकर 7.2 फीसद रह गया. दरअसल, कोविड बाद अर्थव्यवस्था में सुधार के ऊंचे आंकड़ों से इसकी आसानी से तुलना की जा सकती है. यानी अब वह तेजी घटने लगी है.
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन का मानना था कि जीडीपी की धीमी वृद्धि दर "आम सहमत अनुमान के भीतर ही" थी. उन्होंने कहा, "चुनाव प्रक्रिया (अप्रैल से जून के दौरान हुए आम चुनावों) की वजह से पूंजीगत खर्च में कमी आ गई थी. यह सरकार के अंतिम उपभोग खर्च (जो सरकार के पूंजीगत खर्च को बताता है) में साफ झलकता है."
सकारात्मक पहलू यह है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का प्रदर्शन अनुमान की तुलना में बेहतर रहा. उसकी वृद्धि दर 7 फीसद रही, जो साल भर पहले की इसी तिमाही में 5 फीसद थी. इसकी वजह इस तिमाही में देखी गई बेहतर मांग हो सकती है. निजी उपभोग भी बढ़ा और साल भर पहले की इसी अवधि के 5.5 फीसद की तुलना में वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही में 7.4 फीसद रहा.
ऊंची उपभोग दर अच्छी खबर है क्योंकि इससे निजी लोगों की ओर से अधिक निवेश में मदद मिल सकती है. पूंजी निर्माण (या निवेश) में वृद्धि भी 7.5 फीसद के ऊंचे स्तर पर थी जिसे मुख्य रूप से उद्योग और हाउसिंग ने सहारा दिया. इस बीच बिजली वृद्धि 10.4 फीसद उम्मीद के मुताबिक थी क्योंकि मांग बढ़ गई थी. निर्माण वृद्धि 10.5 फीसद रही, जिसे हाउसिंग क्षेत्र में तेजी का फायदा मिला क्योंकि सरकारी खर्च कमजोर रहा. आने वाली तिमाहियों में इसमें और इजाफे की उम्मीद की जा सकती है.
पहली तिमाही के गिरावट के आंकड़ों से आगे की तिमाहियों में वृद्धि के लिए मनोबल कमजोर नहीं किया है क्योंकि विशेषज्ञ 7 फीसद से अधिक की वृद्धि दर की संभावनाओं का अनुमान लगा रहे हैं. खपत में बढ़ोतरी और आवास तथा निजी निवेश के कारण पूंजी निर्माण में स्थिर वृद्धि बेशक उत्साहजनक संकेत हैं. बैंक ऑफ बड़ौदा का एक रिसर्च नोट कहता है, "आम चुनाव के बाद सरकार का खर्च बड़े पैमाने पर आने से इसकी रफ्तार तेज होगी." अच्छे मॉनसून से भी मांग में उछाल को बरकरार रखने में मदद मिलनी चाहिए.
भारतीय स्टेट बैंक में समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष एक रिसर्च नोट में कहते हैं, "खर्च वाला पहलू या आम मांग से मोटे तौर पर सकारात्मक तस्वीर उभरती है, अगर वैल्युएबल को छोड़ दें तो बाकी सभी मदों में वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही में सकारात्मक वृद्धि दिखाई दी है." उपभोग या खपत में इजाफे से आने वाले समय में उम्मीदों को बल मिलना चाहिए. उत्पादन क्षेत्र समेत सभी क्षेत्रों में इसका असर देखने को मिल सकता है. इसके साथ ही आगामी त्योहारी सीजन की बिक्री भी आने वाले महीनों में अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी रहनी चीहिए. सिर्फ बाहरी कारक हैं जो स्थिति को गड़बड़ा सकते हैं जैसे पश्चिम एशिया में युद्ध के फैलने से कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा हो सकता है और भारत का चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है. यानी निर्यात के मुकाबले आयात का बिल बहुत ज्यादा हो सकता है. इन आशंकाओं के बावजूद घरेलू मोर्चे पर स्थितियां में सुधार और अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने पर सरकार को ध्यान देना चाहिए.
क्षेत्रवार रफ्तार
> देश के कई हिस्सों में इस साल लंबे समय तक लू चलने से कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर में गिरावट देखी गई
> मांग में कुछ बढ़ोतरी की वजह से मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में अनुमान से बेहतर वृद्धि देखी गई
> सेवा क्षेत्र में काफी गिरावट देखी गई, जिसकी वजह कोविड के बाद बहाली के दौर में वृद्धि के ऊंचे आंकड़े हो सकते हैं