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एम्स क्यों छोड़ रहे सीनियर डॉक्टर? देश के सबसे बड़े अस्पताल के सामने अब नेतृत्व का संकट

पिछले डेढ़ साल में नई दिल्ली के एम्स से तकरीबन तीन दर्जन वरिष्ठ डॉक्टरों ने रिटायरमेंट ले ली है

एम्स दिल्ली इन दिनों अच्छे तजुर्बेकार डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है
एम्स दिल्ली इन दिनों अच्छे तजुर्बेकार डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है
अपडेटेड 16 सितंबर , 2024

पिछले एक से डेढ़ साल में नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से तकरीबन तीन दर्जन वरिष्ठ डॉक्टर या तो सेवानिवृत्त हुए हैं या फिर उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस ले लिया है. इससे एम्स के कई विभागों और केंद्रों का शीर्ष नेतृत्व एकदम से बदल गया है और अपेक्षाकृत कम अनुभव वाले डॉक्टरों के हाथ में कमान आ गई है. देश के इस शीर्ष मेडिकल शोध संस्थान में ऐसी स्थिति से बचने के लिए डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति उम्र 65 साल से बढ़ाकर 70 साल करने की मांग उठ रही थी.

मांग इसलिए भी उठी क्योंकि यहां फैकल्टी की कमी लगातार बनी हुई है. केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने 6 अगस्त, 2024 को संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि एम्स दिल्ली में फैकल्टी के कुल 1,232 पद स्वीकृत हैं. इनमें से कुल 816 पद ही भरे हुए हैं. मतलब 416 यानी करीब 34 प्रतिशत पद खाली हैं. एम्स दिल्ली में शीर्ष स्तर पर जो नेतृत्व का संकट आज दिख रहा है, उसकी पृष्ठभूमि को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा.

इस संस्थान में पहले दो स्तर पर फैकल्टी की नियुक्ति होती थी. कुछ विशेषज्ञ ऐसे थे, जिन्हें सीधे प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त किया जाता था. आम तौर पर ये ऐसे डॉक्टर होते थे, जो कई वर्षों से देश के दूसरे प्रमुख अस्पतालों और शोध संस्थानों में काम कर रहे होते थे. वहीं एम्स दिल्ली में फैकल्टी के तौर पर आने का दूसरा रास्ता यह था कि असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति होती थी. पहले जो व्यवस्था थी, उसमें चार साल तक असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम करने वाले डॉक्टर को एसोसिएट प्रोफेसर बनाया जाता था. इसके चार साल बाद एडिशनल प्रोफेसर के तौर पर प्रमोशन मिलता था. जो डॉक्टर आठ साल तक एडिशनल प्रोफेसर के तौर पर काम कर लेते थे, उन्हें प्रोफेसर बनाया जाता था.

यानी असिस्टेंट प्रोफेसर से प्रोफेसर के पद तक पहुंचने वाले डॉक्टर के पास 16 साल तक काम करने का अनुभव हो जाता था. इस व्यवस्था को नाम दिया गया असेसमेंट प्रमोशन स्कीम यानी एपीएस. लेकिन 2005-06 में इन नियमों में बदलाव कर दिया गया और ऐसी व्यवस्था बना दी गई कि असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त होने वाले डॉक्टर 16 की जगह दस वर्षों के अनुभव के बाद ही प्रोफेसर के पद तक पहुंच जाएं. पिछले एक से डेढ़ साल में जो भी विभाग और केंद्र खाली हुए हैं, उनमें से अधिकांश का नेतृत्व इसी प्रक्रिया के तहत प्रोफेसर बने डॉक्टरों के हाथों में है. हाल ही सेवानिवृत्त हुए एक डॉक्टर बताते हैं कि अधिकांश विभाग और केंद्रों की कमान जिन डॉक्टरों के हाथों में है, वे पूर्ववर्ती प्रमुखों से औसतन दस साल जूनियर हैं.

अब सवाल यह उठता है कि आखिर नेतृत्व का यह संकट क्यों पैदा हुआ? मुख्य तौर पर इसकी चार वजहें हैं. पहली तो यह कि 2005 के बाद सीधे प्रोफेसर के तौर पर नियुक्ति बंद कर दी गई. दूसरे, 1993 से 2003 के बीच एम्स दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति ही नहीं हुई. तीसरी वजह यह रही कि कई प्रमुख डॉक्टरों ने पिछले कुछ महीनों में वीआरएस ले लिया. चौथी वजह: पिछले कुछेक सालों से फैकल्टी की सेवानिवृत्ति की उम्र 65 से बढ़ाकर 70 करने की मांग को केंद्र सरकार की मंजूरी नहीं मिली.

नेतृत्व के संकट की प्रमुख वजह कई डॉक्टरों का सेवानिवृत्ति के पहले ही वीआरएस लेना भी है. पिछले डेढ़ेक साल में तकरीबन डेढ़ दर्जन वरिष्ठ डॉक्टरों ने एम्स दिल्ली से वीआरएस लिया है. इसकी वजह बताते हुए हाल ही में वीआरएस लेने वाले एक डॉक्टर बताते हैं, "पिछले कुछ समय से एम्स दिल्ली को शीर्ष मेडिकल शोध संस्थान से अस्पताल में बदलने की कोशिश हो रही है. ऐसे में टीचिंग और रिसर्च की जगह इलाज पर अधिक जोर दिया जा रहा है. रिसर्च के लिए जरूरी उपकरण खरीदने और दूसरी प्रक्रियाओं को इतना जटिल बना दिया गया है कि मेरे जैसे कई डॉक्टरों को यह लगने लगा कि हम कुछ कर नहीं पा रहे. ऐसे में वीआरएस लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता."

जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. शिव चौधरी की नौकरी अभी तकरीबन आठ साल बची थी लेकिन बीते दिनों उन्होंने वीआरएस ले लिया. यही कहानी न्यूरोलॉजी की विभागाध्यक्ष रही डॉ. पद्मा श्रीवास्तव की भी है. मशहूर न्यूरोसर्जन डॉ. मनमोहन सिंह की तकरीबन 10 वर्षों की नौकरी बची थी लेकिन उन्होंने भी वीआरएस ले लिया.

सामान्य तौर पर एम्स में राज्य सरकारों के मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों के मुकाबले रिटायरमेंट उम्र दो-तीन साल अधिक होती है. पहले भी इसे बढ़ाया गया है. जब दूसरे मेडिकल कॉलेजों ने रिटायरमेंट उम्र बढ़ाकर 65 कर दी तो एम्स की गवर्निंग बॉडी ने इसे 67 वर्ष करने की सिफारिश की लेकिन यह निर्णय लागू नहीं हो पाया है. जो डॉक्टर रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने की मांग कर रहे थे, उनका दावा है कि इस निर्णय से सरकार पर एक रुपए का भी वित्तीय बोझ नहीं आएगा. 

समाधान की राह सुझाते हुए हाल ही रिटायर हुए एक विभागाध्यक्ष कहते हैं, ''सबसे पहला काम तो यह करना चाहिए कि सीधे प्रोफेसर पद पर नियुक्ति फिर से शुरू करनी चाहिए. ताकि दूसरे प्रमुख मेडिकल शोध संस्थानों और अस्पतालों में काम कर रहे अनुभवी लोग एम्स दिल्ली में आ सकें.'' बहरहाल, तरीके तो और भी हो सकते हैं. अब देखते हैं कि सरकार एम्स में तजुर्बेकार डॉक्टरों की कमी से किस तरह से निबटती है.

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