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प्रधान संपादक की कलम से

मतदाताओं का बहुमत चाहता है कि मोदी प्रधानमंत्री बने रहें लेकिन कुछ शर्तें भी लागू हैं. इसी के अनुरूप 37 फीसद लोग मानते हैं कि लोकसभा के नतीजे निरंतरता का जनादेश थे और 55 फीसद मानते हैं कि यह गठबंधन सरकार पांच साल चलेगी

इंडिया टुडे कवर : मोदी की बढ़त बरकरार राहुल का उभार
इंडिया टुडे कवर : मोदी की बढ़त बरकरार राहुल का उभार
अपडेटेड 9 सितंबर , 2024

—अरुण पुरी

जनमत सर्वेक्षण जनता के मन में झांकने का दिलचस्प झरोखा होते हैं. अगस्त 2024 के इंडिया टुडे-सी-वोटर देश का मिज़ाज सर्वे के निष्कर्षों की तुलना करने के लिए दो खिड़कियां हैं. हमारे इस छमाही सर्वे के फरवरी के आंकड़ों के अलावा मई में हुए हालिया लोकसभा चुनाव के बाद यह पहला देश का मिज़ाज सर्वे भी है.

इसके निष्कर्ष मोटे तौर पर सशर्त स्थायित्व के उस जनादेश से मेल खाते हैं, लेकिन निरंतरता और बदलाव की धाराओं के बीच रास्ता बनाती जनता की दशा-दिशा के बारे में बेशकीमती जानकारियां भी देते हैं. ये देश के खेवनहार के तौर पर नरेंद्र मोदी की तस्दीक करते हैं, जिसे राहुल गांधी की बढ़ती हैसियत से चुनौती मिल रही है.

चुनाव आज हों तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को 299 सीटें मिलेंगी, जो गर्मियों में उसे मिली 293 सीटों से छह ज्यादा हैं. उसकी वोट हिस्सेदारी भी 42.5 फीसद से बढ़कर 43.7 फीसद हो जाएगी. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भी 240 के बजाए 244 सीटें मिलेंगी, और उसकी वोट हिस्सेदारी भी 36.5 फीसद से थोड़ी बढ़कर 38 फीसद पर पहुंच जाएगी. मगर फिर भी पार्टी 543 सदस्यों की लोकसभा में साधारण बहुमत के लिए जरूरी 272 से 29 सीट पीछे रहेगी. ये निष्कर्ष आम चुनाव के व्यापक संदेश पर बल देते हैं. 

मतदाताओं का बहुमत चाहता है कि मोदी प्रधानमंत्री बने रहें लेकिन कुछ शर्तें भी लागू हैं. इसी के अनुरूप 37 फीसद लोग मानते हैं कि लोकसभा के नतीजे निरंतरता का जनादेश थे और 55 फीसद मानते हैं कि यह गठबंधन सरकार पांच साल चलेगी. वहीं करीब 14 फीसद का कहना है कि यह जनादेश भाजपा के अहंकार के खिलाफ था, तो अन्य 12 फीसद का कहना है कि वे मजबूत विपक्ष चाहते थे.

प्रधानमंत्री की भारी लोकप्रियता कामकाज की शर्त पर सवार होकर आती है. खासे-अच्छे 59 फीसद को मोदी का कामकाज अच्छा या असाधारण लगा, जो फरवरी के 61 फीसद से कुछ कम है.

मगर ब्योरों में बांटकर देखें तो आप पाएंगे कि उनके कामकाज को असाधारण आंकने वाले लोगों का प्रतिशत फरवरी के 42 फीसद से घटकर 34 पर आ गया है. यही नहीं, जहां 58 फीसद उत्तरदाता एनडीए सरकार के कामकाज से संतुष्ट या बहुत संतुष्ट हैं, जो फरवरी के मुकाबले 2 फीसद ज्यादा हैं, वहीं बहुत संतुष्ट लोगों का प्रतिशत 39 से घटकर 29 पर आ गया है. इस तरह ये निष्कर्ष गद्दीनशीन निजाम के लिए आश्वस्तकारी होते हुए भी उन्हें आगाह करने के लिए काफी हैं.

विपक्षी खेमे के लिए एक खुलासा इस शक्ल में आया है कि जनता सामूहिक और एकाकी में कैसे फर्क करती है. इंडिया गठबंधन के लिए कांटा बहुत मामूली-सा नीचे आया है—234 से 233 सीट और 40.6 फीसद से 40.3 फीसद वोट हिस्सेदारी—लेकिन कांग्रेस ने बढ़त दर्ज की है.

सर्वे के उत्तरदाता आज वोट देते तो पार्टी को मौजूदा 99 के बजाए 106 सीटें मिलतीं. उसकी वोट हिस्सेदारी तो और ज्यादा बढ़ती: 21.1 फीसद से 25.4 फीसद. रुझानों को नेता के स्तर पर अलग करके देखें तो जब प्रधानमंत्री बनने के लिए सबसे उपयुक्त नेता के बारे में पूछा गया, 49 फीसद मोदी के पक्ष में थे, हालांकि ये फरवरी के मुकाबले 6 फीसद अंक कम थे.

मगर फर्क तब और पैना हो जाता है जब आप इसे राहुल को मिले वोटों के सामने रखते हैं—22 फीसद, जो फरवरी के 14 फीसद से 8 फीसद अंकों की बढ़ोतरी है, और जनवरी 2019 के बाद दूसरा सबसे अच्छा स्कोर है जब 34 फीसद ने उनका समर्थन किया था. अलबत्ता यह ध्यान रखना जरूरी है कि मोदी और राहुल के बीच अब भी 27 फीसद अंकों का फासला है और नेता विपक्ष को अभी काफी कसर पूरी करनी है.

हालांकि राहुल के कद को बढ़ाने वाली बात यह है कि 32 फीसद मानते हैं कि विपक्षी दलों की अगुआई करने के लिए वे सबसे उपयुक्त हैं, जो फरवरी के 21 फीसद से जोरदार छलांग है. अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के समर्थन में इसी के बराबर क्रमश: 17 और 16 फीसद से 6 और 7 फीसद की अच्छी-खासी गिरावट आई है.

मोदी 3.0 की प्राथमिकताओं के मामले में सर्वे से पता चलता है कि ज्यादा नौकरियां जुटाना और कीमतें कम करना देश के लिए सबसे अव्वल दो मुद्दे बने हुए हैं. सर्वे में शामिल 78 फीसद लोगों ने कहा कि भारत में बेरोजगारी की समस्या भीषण है, जो फरवरी के 71 फीसद से ज्यादा हैं. अहम बात यह कि देश का मिज़ाज सर्वे के 63 फीसद उत्तरदाताओं का कहना है कि उनके लिए मौजूदा खर्चे चलाना मुश्किल हो गया है.

फरवरी के 50 फीसद के मुकाबले 52 फीसद मोदी सरकार के हाथों अर्थव्यवस्था की साज-संभाल को अच्छा या असाधारण आंकते हैं, तो इसका मतलब यह है कि नतीजे देने के मामले में प्रधानमंत्री को अब भी सबसे अच्छे दांव के रूप में देखा जाता है.

यहां भी निष्कर्षों में एक बारीक फर्क है: 32 फीसद के मुकाबले अब महज 20 फीसद इसे असाधारण आंकते हैं, जबकि इसे अच्छा मानने वालों की तादाद 17 फीसद से बढ़कर 32 फीसद हो गई है. नए बजट से रोजगार पैदा होने की क्षमता को लेकर लोग ढुलमुल हैं—45 फीसद इससे आश्वस्त हैं, जबकि 44 फीसद का मानना है कि बजट ऐसा नहीं कर पाएगा. यह धारणा कायम है कि मोदी की आर्थिक नीतियों से बड़े कारोबारों को फायदा हुआ है; 58 फीसद लोगों ने इसका जवाब हां में दिया, जबकि जनवरी में ऐसा कहने वाले महज 52 फीसद थे.  

देश का मिज़ाज सर्वे कई सामयिक मुद्दों पर दिलचस्प समझ-बूझ देता है. योगी आदित्यनाथ देश भर में सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री बने हुए हैं, जबकि उनके बाद केजरीवाल, ममता और स्टालिन हैं. दूसरे मुद्दों में 87 फीसद कृषि उपज की एमएसपी पर कानूनी गारंटी चाहते हैं; 65 फीसद भले अग्निपथ योजना का समर्थन करते हों लेकिन 38 फीसद इसमें सुधार चाहते हैं; 53 फीसद नए आपराधिक कानूनों का अनुमोदन करते हैं लेकिन 31 फीसद इनमें नियंत्रण के ज्यादा उपाय चाहते हैं.

इसके अलावा पाकिस्तान से निबटने के मामले में 51 फीसद कूटनीतिक विकल्पों को तरजीह देते हैं तो 33 फीसद युद्ध या सर्जिकल स्ट्राइक चाहते हैं; और समान नागरिक संहिता तथा एक राष्ट्र एक चुनाव के साथ जाति जनगणना भी उन मुद्दों में जुड़ गई है जिन्हें 70 फीसद से ज्यादा का समर्थन हासिल है. गौरतलब है कि 50 फीसद उत्तरदाता अब मानते हैं कि लोकतंत्र खतरे में नहीं है, जो फरवरी के 38 फीसद से कहीं ज्यादा हैं.

राजनैतिक फलक पर मोदी और भाजपा का जलवा कायम है. कुल मिलाकर भारत बेहतरी चाहता है लेकिन उथल-पुथल के ऊपर स्थिरता को अहमियत देता है.

- अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)

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