
भारत 2023-24 में 130 करोड़ टन से अधिक कृषि पैदावार के साथ अब खाद्यान्न में सुरक्षित है. हालांकि अनाज में पोषक तत्वों की कमी, किसानों की कम आय और पारिस्थितिकी की नाजुक हालत अभी भी हमारी दुखती रग हैं. यह देश ऐतिहासिक रूप से विविध कृषि उत्पादों का कटोरा रहा है. यहां के कृषि प्रबंधन में विविध किस्म की फसलें लेने के मुकाबले फसल विशेष को प्राथमिकता दी जाती रही है.
फसल विविधीकरण में समाज की मांग पूरी करने के लिए विभिन्न कृषि/फसल प्रणालियों का चलन शामिल है जो स्थान विशेष की कृषि-पारिस्थितिकी और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप होता है. 2018 में किसानों की आय दोगुनी करने पर बनी समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी. उसमें सिफारिश की गई कि वे ज्यादा कीमत देने वाली खेती अपनाएं जिसमें बागवानी, पशुपालन और मछलीपालन शामिल हैं.
2015-16 में बागवानी का शुद्ध उपज क्षेत्र महज 7 फीसद था लेकिन उसने कृषि जीवीए (सकल मूल्य संवर्धन) में 25 फीसद का योगदान दिया.

देश की 'विकसित भारत' रणनीति के लिए कृषि पर नियमित रूप से जोर देने की जरूरत है. हरित क्रांति ने बुनियादी खाद्य की सुरक्षा उपलब्ध कराई, अब बागबानी फसलों के जरिए पोषण और आय की सुरक्षा को निशाना बनाया जा सकता है जो ग्रीन रिवॉल्यूशन-प्लस बन सकती है.
यह रणनीति आवश्यक सूक्ष्म पोषकों की पेशकश करती है, खेतों और प्रोसेसिंग कारखानों पर अधिक लोगों को लगाने पर जोर देती है, कृषक परिवार की क्रयशक्ति बढ़ाती है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती है और जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने में मदद करती है. बागबानी या हॉर्टीकल्चर में फल, सब्जियां, फूल, बागान, मसाले और औषधीय पौधे शामिल हैं. यह 1980 के दशक से ही महत्वपूर्ण विविधीकरण क्षेत्र रहा है.
2023-24 में करीब 2.8 करोड़ हेक्टेयर में 35.9 करोड़ टन बागबानी पैदावार हुई जो 32.9 करोड़ टन की खाद्यान्न पैदावार से ज्यादा है. अनुसंधानों से पता चलता है कि लघु और सीमांत किसानों को फल और सब्जियां, खास तौर पर सब्जियों की फसल की तरफ मुड़ने से ज्यादा लाभ होता है.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के एक सर्वे में बताया गया कि बागवानी में रकबा शिफ्ट करने से 2012-13 में प्रति हेक्टेयर 69,129 रुपए तक की अतिरिक्त आमदनी हुई. इससे पता चलता है कि बागवानी अपनाने से किसानों को ज्यादा आमदनी हो सकती है.
बागवानी में संभावनाएं
बागवानी फसलों में आनुवंशिक रूप से अनाज वाली फसलों के मुकाबले अधिक संभावनाएं होती हैं और वे प्रति हेक्टेयर 30 टन से अधिक की उपज दे सकती हैं. मौजूदा उत्पादकता औसत कम है जिससे संकेत मिलता है कि इनमें जेनेटिक सुधार और बेहतर उपज पद्धतियों से बढ़ोतरी की संभावनाएं हैं.
- पानी का उपयोग: फल, सब्जी, फूल और कुछ मसाले ज्यादा पानी में उगने वाली फसलें हैं. लघु सिंचाई जैसी पद्धतियों से उपज (25 से 50 फीसद) बढ़ाई और पानी बचाया जा सकता है.
- फल-सब्जी का नुक्सान और बर्बादी: खाद्यान्न नुक्सान (4.5-15.9 फीसद) को मजबूत कृषि लॉजिस्टिक और प्रोसेसिंग के जरिए कम से कम करना महत्वपूर्ण है. इससे किसानों के हिस्से की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी.
- बाजार तक पहुंच और व्यापार: सक्षम मार्केटिंग और बेहतर मूल्य तलाशने की पारदर्शी प्रणालियों की जरूरत है. कृषि लॉजिस्टिक्स और कोल्ड स्टोरेज बुनियादी ढांचा बढ़ाना महत्वपूर्ण है.
- कृषि प्रसंस्करण: इस समय यह बहुत कम है (संगठित क्षेत्र में 12 फीसद), खासतौर पर फल और सब्जियों में (2.5 फीसद). बाजार एकीकरण के लिए क्षमताओं को उन्नत बनाना जरूरी है.
अन्य चुनौतियां और जोर दिए जाने वाले क्षेत्र
बागवानी में पूंजी और पैदावार का अनुपात अपेक्षाकृत ज्यादा है लेकिन भूमि का प्रति इकाई उत्पादन और इससे प्राप्त मौद्रिक मूल्य अधिक है. मांग वृद्धि से निबटने के लिए आपूर्ति पक्ष की दिक्कतों को दूर करना जरूरी है. कुछ फोकस एरिया हैं:
- एफपीओ आदि के जरिए ढांचागत चुनौतियों से निबटते हुए छोटे खेतों की परिचालन दक्षता सुधारने की जरूरत.
- कॉन्ट्रैक्ट खेती, रियल टाइम सलाहों और फसल बीमा के जरिए जोखिम प्रबंधन.
- हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स जैसी वैकल्पिक तकनीकों को बढ़ावा देने के अलावा बाग में तार्किक ढंग से फसलें लगाकर अधिकतम उत्पादन.
- प्रीसिजन खेती के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी, प्रमाणित बीज उत्पादन और नर्सरी बैंक.
- वैकल्पिक मार्केटिंग चैनल, निर्यात प्रशस्त करने और एमएसपी जैसी योजनाएं.
- प्रोसेसिंग और अन्य गतिविधियों जैसे मधुमक्खी पालन और मशरूम की खेती के जरिए रोजगार सृजन और पूरक आय.
ग्रीन रिवॉल्यूशन-प्लस
भारत में फल और सब्जियों की प्रति व्यक्ति रोज की खपत आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन की सिफारिशों से बहुत कम है जो क्रमश: 92 ग्राम और 300 ग्राम होनी चाहिए. 2050 तक हमारी अनुमानित आबादी 165 करोड़ के लिहाज से देश को 2030 तक बागवानी उत्पादन का 60 करोड़ टन और 2047/50 तक 100 करोड़ टन का लक्ष्य रखना होगा.
इस मिशन में विज्ञान, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन और एकीकृत बागवानी वैल्यू चेन प्रणालियों की अहम भूमिका होनी जरूरी है. चूंकि वैल्यू चैन आरऐंडडी के नतीजों से आगे बढ़ती है इसलिए बागवानी क्रांति के लिए यह महत्वपूर्ण है.
आरऐंडडी में जो शामिल हैं, वे हैं, जर्मप्लाज्मा वृद्धि के जरिए उत्पादकता में सुधार और पौध आनुवंशिकी सामग्री के डॉक्यूमेंटेशन, कैरक्टराइजेशन और संरक्षण के जरिए इसका उपयोग, जलवायु परिवर्तन, कीटों और बीमारियों के खिलाफ प्रतिरोध के लिए संकरण में जीन का उपयोग और पहचान.
इसके अलावा विविध लक्षणों के दोहन के लिए बायोटेक्नोलॉजी का प्रयोग, पोषकों की जैव-उपलब्धता को समृद्ध बनाना, बायोमास का बड़ी मात्रा में उत्पादन जो जैव-संसाधन आधारित उद्यमों को मजबूती दे सके. बागवानी के साथ अनाज पैदावार बढ़ाते हुए 'ग्रीन रिवॉल्यूशन-प्लस' हासिल करना भारत के कृषि भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है.
- अशोक दलवई
(लेखक कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय में नेशनल रेनफेड एरिया अथॉरिटी के सीईओ हैं)
लंबी छलांग
- वित्त वर्ष 24 में करीब 2.8 करोड़ हेक्टेयर में 35.9 करोड़ टन बागवानी पैदावार हुई जो 32.9 करोड़ टन के खाद्यान्न पैदावार से ज्यादा है.
- भारत की फल और सब्जी की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खपत आइसीएमआर की क्रमश: 92 ग्राम और 300 ग्राम की सलाह से बहुत कम है.
- 2050 तक हमारी अनुमानित जनसंख्या 165 करोड़ होने के साथ भारत को 2047/50 तक 100 करोड़ टन बागवानी उत्पादों का लक्ष्य रखना होगा.