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सिविल एविएशन : टाटा की एयर इंडिया की बदौलत जो 90 साल में हुआ, वो अब सिर्फ छह साल में होगा! लेकिन कैसे?

भारत का विमानन क्षेत्र वित्त वर्ष 2030 तक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की तादाद और विमान फ्लीट, दोनों को दोगुना कर बड़ी ग्रोथ के लिए तैयार है

इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
अपडेटेड 30 अगस्त , 2024

भारतीय विमानन क्षेत्र एक ऐसे बड़े अनुभव से गुजरने वाला है जो जिंदगी में एकाध बार ही होता है. इसके तहत अगले 5-6 साल में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों का आकार दोगुने से भी ज्यादा हो जाएगा. घरेलू हवाईअड्डों पर यात्रियों की संख्या वित्त वर्ष 2024 में 30.7 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2030 तक 60-70 करोड़ हो सकती है. इसी अवधि में अंतरराष्ट्रीय यातायात 7 करोड़ यात्रियों से बढ़कर 14-16 करोड़ हो सकता है.

इस बीच, भारतीय विमान सेवाओं की फ्लीट का आकार भी वित्त वर्ष 30 तक दोगुना होकर लगभग 1,400 विमानों तक पहुंचने की उम्मीद है. लब्बोलुआब यह कि जे.आर.डी. टाटा के एयर इंडिया की पहली उड़ान के संचालन के बाद से करीब 90 साल में भारतीय विमानन ने जो ग्रोथ देखी है, वह अगले 5-6 साल में ही दोहराई जाएगी. ग्रोथ की यह दर वैश्विक विमानन में शायद ही कभी देखी गई है. शायद चीन इकलौती मिसाल है जिससे इसकी तुलना की जा सकती है. इसमें भारतीय विमानन—और भारतीय अर्थव्यवस्था—को बदलने की क्षमता है, बशर्ते हम इसके लिए माकूल तैयारी करें. संस्थागत बुनियादी ढांचे, नीति, विनियमन और हुनर के मामले में एक सक्षम इकोसिस्टम तैयार करने पर ध्यान देने की जरूरत है. एविएशन वैल्यू चेन में प्रशिक्षित संसाधनों की एक पाइपलाइन विकसित करना भारत की विकास गाथा का एक अहम हिस्सा होगा.

जहाजों का ग्लोबल हब बनने का स्कोप: मौजूदा प्रमुख अवसरों में से एक है भारतीय हवाई अड्डों को वैश्विक हब के रूप में विकसित करना. किसी कामयाब हब के लिए न केवल विश्वस्तरीय हवाई अड्डे के बुनियादी ढांचे की बल्कि कनेक्टिंग ट्रैफिक को संभालने के लिए नेटवर्क, फ्लीट, प्रोडक्ट और दूरदृ‌ष्टि वाली एयरलाइनों की भी जरूरत होती है. भारत के पास बीस साल पहले इनमें से कुछ भी नहीं था. और फिर हवाई अड्डे के आधुनिकीकरण कार्यक्रम के नतीजतन देश के बुनियादी ढांचे में असाधारण सुधार हुआ. लेकिन दुनिया का सबसे अच्छा हवाई अड्डा तब तक कामयाब हब नहीं हो सकता जब तक कि कोई घरेलू वाहक हब संचालित करने का इरादा न रखे.

पहेली का दूसरा टुकड़ा पिछले कुछ साल से जुड़ना शुरू हो गया है. नेशनल कैरियर के निजीकरण ने एयर इंडिया को जन्म दिया है, जिसके पास लंबी और बहुत लंबी दूरी के संचालन के लिए आधुनिक वाइडबॉडी बेड़ा है. ऐसे में यह एक व्यापक इंटरनेशनल नेटवर्क के साथ एक अग्रणी वैश्विक एयरलाइन बनना चाहती है.

दूसरी ओर, इंडिगो अपने छोटी और मध्यम दूरी के इंटरनेशनल नेटवर्क का तेजी से विस्तार कर रही है. नतीजतन यह डिफॉल्ट रूप से भी ट्रांसफर ट्रैफिक को आकर्षित कर रही है. लंबी दूरी के लिए नैरोबॉडी को शामिल करने के साथ ही इं‌डिगो ने वाइडबॉडी के जहाजों के लिए ऑर्डर दे दिया है जिनकी बदौलत यह अंतरमहाद्वीपीय ट्रैफिक में अपनी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ाने की ‌स्थिति में होगी. सीएपीए एडवाइजरी को उम्मीद है कि भारतीय वाहक वित्त वर्ष 35 तक अतिरिक्त 150 वाइडबॉडी का संचालन करेंगे. मध्यम दूरी के मार्गों पर ए321एक्सएलआर परवाज भरेंगे.

एयर इंडिया और इंडिगो के पूरक व्यवसाय मॉडल के तहत वे देश के अनुकूल भूगोल का लाभ उठाकर भारतीय हवाई अड्डों के माध्यम से यात्रियों को जोड़ने के लिए प्रीमियम और मितव्ययी यात्रियों दोनों को आकर्षित करने में सक्षम होंगे.

कपिल कौल

भौगोलिक स्थिति का फायदा: भारत का लोकेशन गल्फ या एशिया के हब के बराबर या कुछ मामलों में उससे भी बेहतर है, जो एक ओर यूरोप, प‌श्चिम एशिया और अफ्रीका तथा दूसरी ओर एशिया प्रशांत के बीच प्रतिस्पर्धी मार्ग मुहैया करने में सक्षम है. एयर इंडिया और इंडिगो के सहयोग से 2-3 भारतीय हवाई अड्डों के लिए अग्रणी वैश्विक हब के रूप में उभरने का सही मौका है. ये दुबई, अबू धाबी, दोहा, सिंगापुर या हांगकांग जैसे आकर्षक और प्रतिस्पर्धी हैं.

भारतीय हब का प्रस्ताव उन अनूठे स्टॉपओवर अनुभवों से और मजबूत होता है जो भारत पर्यटकों को पेश कर सकता है. छोटे स्टॉपओवर यात्रियों को लंबे समय के लिए वापस आने को प्रोत्साहित कर सकते हैं. वे इनबाउंड पर्यटन के दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा देंगे. भारत सरकार इस अवसर को पहचानती है और उसने हब विकसित करने का रणनीतिक इरादा जाहिर कर ‌दिया है. अगर वह जरूरी मदद कर दे तो हम सफलता की एक कहानी लिख सकते हैं.

हालांकि हमारे सामने मजबूत बुनियादी पहलुओं की जमीन पर एक जबरदस्त मौका है, लेकिन इस बारे में यथार्थवादी होना भी जरूरी है कि क्या हासिल किया जा सकता है और कब तक. एयरपोर्ट हब रातोरात नहीं बनते, इसके लिए दशकों तक निवेश और को‌शिश करनी होती है. दुबई की कामयाबी पिछले 20-30 साल से विमानन और पर्यटन के प्रति अटूट राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का नतीजा है.

खास स्टेकहोल्डर्स की अहम भूमिका: भारत यह मानकर नहीं चल सकता कि उसके हब सफल होंगे. और इसे केवल एयरलाइंस और एयरपोर्ट के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता. केंद्र और राज्य सरकारों को पर्यटन के बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान देने की जरूरत है, यह पक्का करना है कि लागत आधार या कॉस्ट बेस प्रतिस्पर्धी हो, वीजा और फैसिलिटेशन की सुविधा प्रक्रियाएं आसान हों. इसके लिए मल्टी-मॉडल बुनियादी ढांचा विकसित करना, डेस्टिनेशन को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देना, एयरलाइंस को कार्गो ट्रांस-शिप करने में सक्षम बनाना, हवाई क्षेत्र की दक्षता में निवेश करना और सुरक्षा को सर्वोपरि बनाना होगा.

इसी तरह, हवाई अड्डों को ऐसे बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में निवेश करने की आवश्यकता होगी जो अपेक्षाकृत लंबे समय तक रहने वाले यात्रियों के लिए आकर्षक हों. इस तरह के या‌त्रियों की जरूरतें अलग होती हैं. भारतीय हवाई अड्डे आज ज्यादातर ओरिजिन-डेस्टिनेशन यानी एक जगह से दूसरी जगह जाने वाले यात्रियों को संभालते हैं. इसके लिए एक सोची-समझी हब विकास नीति की जरूरत होगी. और इसे उन हवाई अड्डों को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित कोष से मदद देने की जरूरत हो सकती है जो ज्यादा राजस्व हिस्सेदारी व्यवस्था की वजह से विश्व स्तरीय हब और स्थानांतरण क्षमताओं में निवेश करने की स्थिति में नहीं हैं. भारत के पास अगले 5-7 साल में खुद को वैश्विक विमानन केंद्र के रूप में स्थापित करने का एक जबरदस्त मौका है, बशर्ते वह सभी प्रमुख हितधारकों के बीच समन्वय के साथ योजनाबद्ध ढंग से काम करे.

कपिल कौल

लेखक एक विशिष्ट विमानन, एयरोस्पेस और रिसर्च संस्थान सीएपीए इंडिया के सीईओ और निदेशक हैं

लंबी छलांग

> जे.आर.डी. टाटा के एयर इंडिया की पहली उड़ान का संचालन करने के बाद से 90+ वर्षों में भारतीय विमानन ने जो विकास देखा है, वह अगले 5-6 वर्षों में दोहराया जाएगा

> मौजूदा प्रमुख अवसरों में से एक वैश्विक हब के रूप में भारतीय हवाई अड्डों का विकास है. एक सफल हब के लिए न केवल विश्व स्तरीय हवाई अड्डे के बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है, बल्कि कनेक्टिंग ट्रैफिक को संभालने के लिए नेटवर्क, फ्लीट, प्रोडक्ट और विजन वाली एयरलाइनों की भी जरूरत होती है

> भारत की लोकेशन खाड़ी या एशिया के अन्य हब जितनी अच्छी है, कुछ मामलों में उससे भी बेहतर. इसलिए हम एक तरफ यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीका और दूसरी तरफ एशिया प्रशांत के बीच प्रतिस्पर्धी रूटिंग प्रदान कर सकते हैं

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