scorecardresearch

महिला लोको पायलटों के उन मुद्दों की सुध कौन लेगा जिन्हें वे वर्षों से उठा रही हैं?

मासिक धर्म के दौरान, या गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिला लोको पायलटों के लिए स्थिति और भी खराब होती है

वंदे भारत एक्सप्रेस चलातीं सुरेखा यादव
वंदे भारत एक्सप्रेस चलातीं सुरेखा यादव
अपडेटेड 22 अगस्त , 2024

दरअसल, कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पिछले महीने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर लोकोमोटिव पायलटों के एक रनिंग रूम, या रेस्टरूम का दौरा किया और उनके कामकाज के हालात की पड़ताल की. उसके बाद कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर सवाल पूछा, "क्या लोको पायलट इंसान नहीं हैं?" राहुल गांधी ने खुद भी उनके "क्या 16-घंटे" के कार्यदिवस और "बेहद गर्म" केबिनों के बारे में बात की.

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने 1 अगस्त को संसद में बजट चर्चा के दौरान आंकड़ों के साथ पलटवार किया. मंत्री ने कहा कि देशभर में 558 रनिंग रूम वातानुकूलित किए गए हैं और 7,000 ट्रेन इंजन कैब में अब एसी हैं. विडंबना ही है कि न तो मंत्री, न ही विपक्ष ने महिला लोको पायलटों की उन शिकायतों के बारे में कोई चर्चा की जिनको वे वर्षों से उठा रही हैं.

और वे मसले हैं, लोकोमोटिव में शौचालय और रनिंग रूम में महिलाओं के लिए अलग चेंजिंग रूम और वॉशरूम सरीखी बुनियादी सुविधाओं की कमी. फिलहाल राजस्थान में कार्यरत और 18 साल से नौकरी कर रहीं एक महिला लोको पायलट बताती हैं, "हमें अक्सर स्टेशनों पर कपड़े बदलने के लिए भी सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करना पड़ता है."

एक 26 वर्षीया महिला सहायक लोको पायलट ने इंडिया टुडे को बताया कि वे ड्यूटी के दौरान घंटों पानी नहीं पीतीं और उन्हें वयस्कों का डायपर पहनना पड़ता है. यह इतना तनाव भरा है कि उन्हें चार वर्ष पूर्व यह "अच्छी तनख्वाह वाली सरकारी नौकरी" स्वीकार करने पर पछतावा है. 

दिल्ली में रहने वाली इस सहायक लोको पायलट को 35,000 रुपए का मासिक वेतन मिलता है और उसमें लोकोमोटिव में बिताए गए घंटों की संख्या के आधार पर उनके मूल वेतन का 30 फीसद 'रनिंग भत्ता' भी शामिल होता है. नौकरी में आगे बढ़ने और साल बीतने के साथ-साथ पैसा भी बढ़ता है. यह लोको पायलट जोर देकर कहती हैं, "मगर, अगर मुझे पता होता कि उनके पास (रेलवे) महिला कर्मचारियों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं तो मैं यह नौकरी नहीं करती."

मासिक धर्म के दौरान, या गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिला लोको पायलटों के लिए स्थिति और भी खराब होती है. दक्षिण मध्य रेलवे में एक सहायक लोको पायलट याद करते हुए बताती हैं कि एक बार तो मासिक धर्म के दौरान "उन्हें दूसरे लोको में अपने सैनिटरी नैपकिन बदलने पड़े थे." वे बताती हैं कि उस घटना के बाद, उनके माता-पिता ने उन्हें काम पर जाने से रोकने की कोशिश की थी, मगर "सरकारी नौकरी छोड़ना इतना आसान नहीं है."

रेलवे की ओर से हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अपनी महिला लोको पायलटों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करना आम बात है. एशिया की पहली लोको पायलट और अब मध्य रेलवे में नियुक्त 58 वर्षीया सुरेखा यादव पिछले साल उसी दिन सेमी-हाई-स्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस चलाने वाली पहली महिला बनीं. जानकार लोगों का कहना है कि वंदे भारत के काम के लिए रेलवे यादव को रनिंग रूम में अलग शौचालय और रेस्टरूम की सुविधा देती है. मगर इंडिया टुडे ने जिन महिला लोको पायलटों से बात की, उन्होंने दावा किया कि वह महज एक अपवाद है.

उन्होंने आरोप लगाया कि वे उस नौकरी में फंसी हुई हैं जो एक सदी पहले पुरुषों के हिसाब से बनाया गया है. उनके मुताबिक, कामकाज में उनसे अपने पुरुष समकक्षों के बराबर प्रदर्शन करने की उम्मीद की जाती है, मगर उन्हें कार्यस्थलों पर बुनियादी सुविधाओं की कमी से लगातार जूझना पड़ता है. महिलाएं गर्भावस्था के दौरान कार्यालय में कामकाज दिए जाने की भी मांग कर रही हैं. उनका आरोप है कि काम के मुश्किल हालात की वजह से महिला लोको पायलटों के गर्भपात के मामले सामने आए हैं. वे काम के घंटों के बाद घर छोड़ने की सुविधा की मांग भी कर रही हैं.

इन भारी दिक्कतों से परेशान होकर भारतीय रेलवे में काम करने वाली महिला लोको पायलटों ने जनवरी में मुख्य श्रम आयुक्त (मध्य) को पत्र लिखकर ड्यूटी के घंटों और कार्यस्थल की परिस्थितियों को लेकर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के समझौतों के उल्लंघन का आरोप लगाया. इंडियन रेलवे लोको रनिंगमैन ऑर्गेनाइजेशन (आईआरएलआरओ) नामक यूनियन के जरिए दायर याचिका में महिलाओं के कामकाज की खातिर अनुकूल नियम बनाने के लिए रेलवे अधिनियम, 1989 में आवश्यक संशोधन करने की भी मांग की गई है.

इंडिया टुडे को मिली जानकारी के मुताबिक, मुख्य श्रम आयुक्त कार्यालय ने 16 जनवरी को यूनियन के सदस्यों और रेलवे बोर्ड के अधिकारियों के साथ एक बैठक की. उस बैठक में रेलवे उन मसलों पर चर्चा करने के लिए सहमत हो गया. मुख्य श्रम आयुक्त की अगुआई में बहुपक्षीय समिति बनाई गई है जिसमें रेलवे, यूनियन, एक महिला को पायलट और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रतिनिधि बतौर सदस्य शामिल हैं.

रेलवे के शीर्ष अधिकारी इस बात से इनकार नहीं करते कि महिलाओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, मगर उनका यह भी कहना है कि पिछले कुछ साल में हालात में काफी सुधार हुआ है. इंडिया टुडे की ओर से भेजे गए सवालों के जवाब में रेलवे ने कहा कि हालांकि कोई लिखित निर्देश नहीं हैं, मगर महिलाओं को ड्यूटी पर तैनात करते वक्त कई कदम उठाए जाते हैं.

मंत्रालय ने बताया, "महिला रनिंग स्टाफ को उन सेक्शनों में बुक किया जा रहा है (ड्यूटी पर रखा गया है) जहां महिला स्टाफ के लिए अलग रेस्टरूम और टॉयलेट की सुविधा वाले रनिंग रूम हैं. उन्हें ऐसी रनिंग ड्यूटी के लिए भी बुक किया जाता है, जहां वे शाम तक अपने मुख्यालय (घर) लौट सकती हैं. गर्भवती महिला कर्मचारियों का इस्तेमाल क्रू लॉबी या उन जगहों पर किया जाता है जहां बहुत कठिन ड्यूटी नहीं होती."

लोको पायलटों के कामकाज के हालात में सुधारों को सुझाने के लिए वैष्णव ने इस महीने रेलवे बोर्ड में तीन सदस्यीय समिति गठित की है. उस समिति को 30 दिनों में अपनी सिफारिशें जमा करनी हैं. ऐसे में महिला लोको पायलटों को अपने लिए भी खुशियों की उम्मीद है.

कामकाज की कठिनाई

> अगस्त 2013 में भारत सरकार के सेवानिवृत्त सचिव डी.पी. त्रिपाठी की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने ड्राइवरों के कामकाज की स्थितियों और ड्यूटी के घंटों में सुधार को लेकर एक रिपोर्ट पेश किया. रिपोर्ट में रेलवे के एक मनोवैज्ञानिक अध्ययन का हवाला दिया गया है, जिसके निष्कर्षों से पता चला कि एक जगह ड्यूटी वाले लोगों की तुलना में लोको पायलटों में नौकरी से पैदा हुआ तनाव काफी अधिक है 

> 2016 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इंजनों में शौचालय और एयरकंडीशनिंग की सुविधा मुहैया कराने का निर्देश दिया

>  महिला लोको पायलट दावा करती हैं कि इंजनों में कोई शौचालय नहीं होता और न ही रनिंग रूम में उनके लिए कोई अलग शौचालय या चेंजिंग रूम रहता है

> रेलवे की महिला लोको पायलटों को ये बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की खातिर रेलवे कर्मचारियों की यूनियनों ने पहले भी अधिकारियों को पत्र लिखा है

> जनवरी में महिला लोको पायलटों ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के समझौतों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए मुख्य श्रम आयुक्त (मध्य) को पत्र लिखा

> फरवरी में उन महिलाओं ने रेलवे बोर्ड की चेयरपर्सन और सीईओ जया वर्मा सिन्हा को भी अपनी शिकायतों से अवगत कराया

- अभिषेक जी. दस्तीदार

Advertisement
Advertisement