
शिक्षा अवसरों के कई दरवाजे खोलने की चाबी है. यह एक ऐसा ताकतवर औजार भी है जो हमें हालात के अनुरूप ढलना, विकसित होना और गहराई के साथ आलोचनात्मक नजरिए से सोचना सिखाता है. अज्ञानी और मूढ़मति ही होते हैं जो सीखने को हीन भावना से देखते हैं. इसलिए शिक्षा की अहमियत को कम करके नहीं आंका जा सकता. सत्यभामा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी की तरफ से प्रस्तुत इंडिया टुडे एजुकेशन कॉन्क्लेव 2024 दिलचस्प और गहरी अंतर्दृष्टियों से संपन्न एक जीवंत आयोजन था.
इसमें भारतीय अकादमिक जगत की अग्रणी हस्तियों की मौजूदगी में भारत के शिक्षा क्षेत्र के बदलते परिदृश्य, 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दर्ज दूरगामी सुधारों और प्रवेश परीक्षाओं में नई जान फूंकने से जुड़े मसलों पर चर्चा की गई. आने वाले वक्त में शिक्षा क्षेत्र को बदलने की ताकत रखने वाले कुछ अहम मुद्दों पर विस्तार और गहराई से विचार किया गया. ग्रेजुएट युवाओं को रोजगार के योग्य बनाने और तमाम पेशेवर कोर्स को गुणवत्ता की धार देने से लेकर शैक्षणिक संस्थाओं की पाठ्यक्रम और बुनियादी ढांचे से जुड़ी चुनौतियों और हमारे स्कूलों को भविष्य के लिए तैयार और सुरक्षित बनाने तक ऐसे ही कई मुद्दों पर कॉन्क्लेव में विचार-विमर्श किया गया.
कॉन्क्लेव का मुख्य आयोजन केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ हुआ बातचीत का सत्र था, जिसमें दूसरे मुद्दों के अलावा 'विकसित भारत' के लिए शिक्षा के नए मॉडल पर बात हुई. प्रधान ने जोर देकर बताया कि 2014 से शिक्षा क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है.
इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर (पब्लिशिंग) राज चेंगप्पा के साथ बातचीत में प्रधान ने कहा, "2014 और 2024 के बीच उच्च शिक्षा के बजट में 78 फीसद की बढ़ोतरी हुई, तो स्कूली शिक्षा का 40 फीसद बढ़ा." शिक्षा मंत्री ने स्कूलों को अपग्रेड करने के लिए 2022 में प्रधानमंत्री के हाथों लॉन्च पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम एसएचआरआई या पीएम श्री) की चर्चा की. पीएम श्री योजना का उद्देश्य 14,500 मौजूदा स्कूलों को एनईपी की मूल कल्पना को साकार करने वाले 'मॉडल स्कूलों' में नए सिरे से विकसित करना है.
एनईपी को "सारी दुनिया के लिए दार्शनिक दस्तावेज" बताने के साथ ही उसमें प्राथमिकता वाले तीन क्षेत्रों—योग्यता, भाषा और टेक्नोलॉजी—पर प्रकाश डालते हुए प्रधान ने कहा, "नई शिक्षा प्रणाली डिग्री-केंद्रित प्रणाली से अब योग्यता पर जोर देने वाली प्रणाली की तरफ बढ़ रही है. भारत नवोन्मेष की कुदरती प्रतिभा से संपन्न लोगों का देश है पर प्रतिभा के पूल को केवल डिग्रियों के आधार पर नहीं आंकना चाहिए. कौशल-आधारित शिक्षा, अनुसंधान और उद्यमिता को बढ़ावा देने की जरूरत है. हमें डिग्री से योग्यता की तरफ ले जाने वाली संस्कृति का निर्माण करना होगा."
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) की ओर से आयोजित राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा अंडरग्रेजुएट (एनईईटी-यूजी) के प्रश्नपत्र लीक होने और दूसरी विसंगतियों का जिक्र करते हुए प्रधान ने भरोसा दिलाया कि केंद्र सरकार 'शून्य त्रुटि' प्रतियोगिता परीक्षा प्रणाली स्थापित करने के लिए अगले साल तक नया और सुधरा हुआ एनटीए लेकर आएगी.
कॉन्क्लेव में 14 विषयों में इंडिया टुडे बेस्ट कॉलेज अवार्ड 2024 और इंडिया टुडे बेस्ट यूनिवर्सिटीज अवार्ड 2024 की घोषणा भी की गई.
भविष्य के स्कूल

"बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने की जरूरत है. X पर 280 शब्द लिखना और अपने विचार रखना बहुत अच्छी बात है. पर यह आपकी कल्पनाशीलता को भी सीमित कर देता है. आपको कल्पनाशक्ति का दायरा बढ़ाने की जरूरत है; प्रिंट माध्यम आपको वह मौका देता है"
—संजय कुमार, सचिव, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग
कैसे करें प्रवेश परीक्षाओं का कायाकल्प

"आज के इम्तिहानों के टेस्ट रट्टामार होते हैं. रिसर्च वगैरह के लिए आपके पास कम से कम मौलिकता का हुनर होना चाहिए, थोड़ा हटकर कैसे लिखें, कैसे सोचें. और इन सबकी परख इम्तिहानों के जरिए होती नहीं. हमें इनके बीच से कोई राह निकालनी होगी"
—प्रो. शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित, कुलपति, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

"हिंदुस्तान की ताकत दरअसल इसकी विविधता में है. पर हमारे एंट्रेंस एग्जाम सोच की प्रक्रिया को एकरस बना देते हैं, रचनात्मकता और मौलिकता का गला घोंटते हैं. हमारे फंडिंग मॉडलों में भी खामी है. ये आकार-प्रकार बढ़ाने के लिए संस्थाओं की हौसलाअफजाई नहीं करते"
—प्रो. वी. रामगोपाल राव, ग्रुप वाइस-चांसलर, बिट्स पिलानी

"आवेदन करने वालों और उपलब्ध सीटों में भारी फासले का आकलन किए जाने की जरूरत है. हमें अपने मौजूदा तौर-तरीकों पर पुनर्विचार करना चाहिए और पारदर्शिता तथा गुणवत्ता लाने के लिए निर्णय प्रक्रिया में शिक्षाविदों को शामिल करना चाहिए"
—आर. के. वर्मा, संस्थापक, रेजोनेंस, कोटा
प्रोफेशनल कोर्स: क्वालिटी का कोई मोल नहीं

"नई शिक्षा नीति का जोर बहुआयामी सीख पर है. और रिसर्च की बिना पर हमारे छात्रों और फैकल्टी में तीन गुना इजाफा हुआ है. नीतियों और हमारे संस्थाओं के लक्ष्य की दिशा एक हैं"
—प्रो. सुधीर कृष्णस्वामी, नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, सीआइडी-क्राइम, रेलवे

"नई शिक्षा नीति में सरकार और इंडस्ट्री के बीच प्रैक्टिकल एंगेजमेंट पर फोकस से शोधवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा और छात्रों को असल जिंदगी की चुनौतियों के लिए तैयार करेगा"
—प्रो. अंबुज सागर, डिप्टी डायरेक्टर, स्ट्रैटजी ऐंड प्लानिंग, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली

"देखिए, क्वालिटी स्टैंडर्ड तो खैर निर्णायक हैं ही, पर मेडिकल के पाठ्यक्रम में नैतिक मूल्यों और व्यावहारिक अनुभव को भी शामिल किया जाना चाहिए"
—डॉ. सुनीता गुप्ता, लिंक ऑफिसर टु डायरेक्टर-प्रिंसिपल; हेड ऑफ ओरल मेडिसिन ऐंड रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट, एमएआइडीएस
स्नातकों को नौकरी के लायक कैसे बनाएं

"आज के छात्र कॉर्पोरेट जॉब ही नहीं चाहते, उनमें से बहुत-से बदलाव लाने को सामाजिक विकास में काम करना और ट्रैवल करना चाहते हैं. नए प्रोफेशनल विकल्पों के लिए हमें उनको तैयार करना होगा"
- प्रो. अंजु श्रीवास्तव, प्रिसिपल, हिंदू कॉलेज, दिल्ली
"छात्रों को यह अच्छी तरह से समझाए जाने की जरूरत है कि एकेडमिक्स और काम के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को कब, कितना और किस अंदाज में इस्तेमाल किया जाए"
- प्रो. सिमरत कौर, प्रिंसिपल, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली
"ज्ञान के गुर तो खैर मायने रखते हैं पर आपको छात्रों को सामाजिक रूप से संवेदनशील, करुणावान तथा इस योग्य बनाना होगा कि अलग-अलग तरह की सचाइयों से तालमेल बिठा सकें"
- प्रो. बिपिन जोजो, डीन, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई
"उभरते उद्यमियों को हम आंतरिक दृढ़ता सिखाते हैं. हम उन्हें हमेशा यही बताते हैं कि नाकामी दरअसल फिर से वापसी और ग्रो करने का एक मौका ही है"
- प्रो. पूनम वर्मा, प्रिंसिपल, शहीद सुखदेव कॉलेज ऑफ बिजनेस स्टडीज, दिल्ली
चुनौती उन्नयन की

"विषय एक-दूसरे से जोड़कर पढ़ाने से मुश्किल वक्त में शिक्षा जारी रखने में मदद मिलती है"
—प्रभुल नायर, कोऑर्डिनेटर फॉर रिसर्च ऐंड प्रोग्राम्स, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, दिल्ली-एनसीआर
"सैद्धांतिक पाठ्यक्रमों को प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों से जोड़ने की जरूरत है जिससे कि स्नातक नौकरी के काबिल बन सकें"
—आदित्य मलिक, सीईओ, हायर एजुकेशन, वरांडा लर्निंग सोल्यूशंस लिमिटेड
"छात्र बाहर की दुनिया में हो रहे बदलावों से वाकिफ हों, इसके लिए पाठ्यक्रम की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए"
—प्रो. अनुपम जैन, कैंपस डायरेक्टर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, दिल्ली
"प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट्स को यह देखने की जरूरत है कि छात्र एकेडमिक्स के बाद बिना दिक्कत के संबंधित क्षेत्र के अपने उद्योग में शिक्रट हो जाएं"
—कमलकांत पंत, प्रिंसिपल, इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, केटरिंग ऐंड न्यूट्रिशन, पूसा.