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रूसी हथियारों से बढ़ती दूरी के बावजूद भारत के लिए क्यों जरूरी है मॉस्को का साथ?

पश्चिमी देशों से हथियार की खरीद में बढ़ोतरी और स्वदेशी साजो-सामान पर जोर के चलते रूस के साथ सैन्य व्यापार में आई कमी. लेकिन देश के ज्यादातर हथियारों के रूसी होने की वजह से भारत को मॉस्को के साथ भी रणनीतिक डिफेंस रिश्ते बनाए रखने पड़ेंगे

पीएम मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 9 जुलाई को मॉस्को के एक एग्जिबिशन सेंटर के एटम पैवेलियन में
पीएम मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 9 जुलाई को मॉस्को के एक एग्जिबिशन सेंटर के एटम पैवेलियन में
अपडेटेड 19 अगस्त , 2024

भारत-रूस रिश्तों में दशकों के करीबी रणनीतिक गठजोड़ से उपजी गर्मजोशी और सद्भावना 8 और 9 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मॉस्को यात्रा में भी दिखाई दी. प्रधानमंत्री दोनों देशों के बीच 22वीं सालाना शिखर बैठक के लिए गए थे. अपने तीसरे कार्यकाल की इस पहली द्विपक्षीय यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत में भाग लिया और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अकेले सीधे बात भी की.

यात्रा का मुख्य जोर आर्थिक पहलुओं पर था, खासकर जब भारत की तरफ से रूसी तेल की खरीद की बदौलत दोतरफा व्यापार 2023-24 में 65.70 अरब डॉलर के अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया. लिहाजा ऊर्जा, व्यापार, मैन्युफैक्चरिंग, टेक्नोलॉजी और उर्वरक से जुड़े मामलों पर चर्चा हुई. हालांकि, भारत और रूस के बीच 'विशेष और विशेषाधिकार-प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' के स्तंभों में से एक—रक्षा बिक्री और सैन्य-तकनीकी सहयोग—नेपथ्य में चला गया.

यहां इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हाल के बरसों में भारत रूसी हथियारों पर निर्भरता कम करता रहा है और अपनी बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए लगातार ज्यादा से ज्यादा अमेरिका और फ्रांस सरीखे पश्चिमी सहयोगी देशों और साथ ही अपने घरेलू हथियार उद्योग की ओर रुख कर रहा है.

भारत की रक्षा खरीद में विविधता लाने के पीछे बहुत-सी वजहें हैं. एक फिक्र तो यह है कि मॉस्को भारत के पास मौजूद रूसी मूल के सैन्य प्लेटफॉर्मों के लिए कलपुर्जों और गोला-बारूद की आपूर्ति जारी रख पाएगा या नहीं, खासकर जब उसका हथियार उद्योग यूक्रेन युद्ध के लिए साजो-सामान की आपूर्ति में व्यस्त है. दूसरे, सरकार की मेक इन इंडिया पहल के तहत भारत के स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देते रहना है. फिर हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र के साथ अपनी उत्तरी सरहदों पर खम ठोकते आक्रामक चीन का मुकाबला करने के लिए पश्चिम के साथ साझेदारी जरूरी है.

दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक भारत कुछ रूसी उपकरणों की गुणवत्ता को लेकर भी फिक्रमंद बताया जाता है. दरअसल, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई या सिपरी) के मुताबिक, भारत के हथियार आयात में रूस का हिस्सा 2009-13 की अवधि के 76 फीसद से घटकर 2019-23 में 36 फीसद पर आ गया. हालांकि अगले दशक में भारत करीब 100 अरब डॉलर की रक्षा सामग्री खरीदने वाला है, लेकिन वह रूस को कोई नया और बड़ा ऑर्डर देने पर विचार नहीं कर रहा.

फिर भी रूस के साथ अपने दशकों लंबे घनिष्ठ रक्षा/सैन्य रिश्तों में भारत कोई भारी-भरकम कटौती नहीं कर सकता. टैंक, पैदल सेना के लड़ाकू वाहन और बहुत-से रॉकेट लॉन्चर से लेकर हेलिकॉप्टर और लड़ाकू विमानों तक भारत के करीब 65 प्रतिशत हार्डवेयर रूसी मूल के हैं. ऐसे लगातार उपयोग किए जा रहे उपकरणों के कलपुर्जे खरीदने होंगे.

तब तो और भी जब भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना के साथ गतिरोध में उलझी है. भारत की नजर सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली एस400 ट्राइम्फ सरीखे परिष्कृत उपकरण की डिलिवरी पर भी होगी. मोदी की यात्रा के अंत में जारी भारत-रूस संयुक्त बयान में भारत की इस चिंता का उल्लेख किया गया.

साझा बयान में कहा गया कि रक्षा साझेदारी को उन्नत रक्षा प्लेटफॉर्म के संयुक्त अनुसंधान, सह-विकास और उत्पादन की तरफ मोड़ा जा रहा है और कलपुर्जों की आपूर्ति में तेजी लाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण के जरिए मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत भारत में "कलपुर्जों और घटकों" के संयुक्त निर्माण का जिक्र भी था. मोदी की यात्रा के एक दिन पहले रूस की सरकारी निर्यात कंपनी रोसटेक ने भारत के मुख्य युद्धक टैंकों में से एक रूस-निर्मित टी-90 टैंक के लिए उन्नत कवच-भेदी टैंक गोलों 'मैंगो’ के निर्माण के समझौते पर दस्तखत किए. 

भारतीय सेना के रूस निर्मित टी90 भीष्म टैंक राजस्थान में एक सैन्य अभ्यास के दौरान

फिर हिमालय के पार हमारे मुख्य शत्रु को लेकर भी खासी चिंताएं हैं. अमेरिका और फ्रांस सरीखे देशों के साथ भारत के लगातार घनिष्ठ होते सैन्य संबंधों की तरह ही रूस के साथ भी भारत के निरंतर रणनीतिक और रक्षा संबंधों की एक मुख्य वजह चीन की तरफ से बढ़ते खतरे की धारणा है. इस तरह भारत दोनों खेमों के बीच बंधी रस्सी पर कूटनीतिक संतुलन साधते हुए चल रहा है.

उसे ऐसा बीजिंग के साथ मॉस्को के लगातार बढ़ते गठजोड़ से निबटने की तत्काल जरूरत की वजह से भी करना पड़ रहा है. पाकिस्तानी हथियारों का 80 फीसद से ज्यादा आयात चीन से होने के साथ चीन-पाकिस्तान की रक्षा भागीदारी इन पेचीदगियों को और बढ़ा देती है. पूरी यात्रा के दौरान मोदी का लक्ष्य खासकर मई में पुतिन की बीजिंग यात्रा के बाद भारत-रूस रिश्तों में देखी जा रही कथित ढिलाई का जवाब देना था. भारत को यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि मॉस्को संवेदनशील सैन्य टेक्नोलॉजी बीजिंग के साथ साझा न करे. 

स्टिमसन सेंटर के साउथ एशिया प्रोग्राम के नॉन-रेजिडेंट फेलो फ्रैंक ओ'डोनेल का कहना है कि मोदी की रूस यात्रा से भारत की रूस को यह समझाने की लगातार कोशिश की झलक मिलती है कि मॉस्को भारत के साथ ज्यादा घनिष्ठ साझेदारी के जरिए बीजिंग से ज्यादा रणनीतिक स्वायत्तता हासिल कर सकता है और उस तंग चीनी-रूसी साझेदारी से भी बच सकता है जो रूस को चीन पर निर्भरता के जाल में बांध देती है. वे कहते हैं, "लगातार गहरी होती चीन-रूस साझेदारी के पैमाने और रफ्तार को देखते हुए भारत के इस रणनीतिक लक्ष्य ने नया तकाजा और अहमियत अख्तियार कर ली है."

दो कदम पीछे

कवच भेदी गोले 'मैंगो' बनाने की संयुक्त रक्षा परियोजना की घोषणा सबसे कामयाब भारत-रूस सह-विकास परियोजना—ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल—की तर्ज पर है. भारत के साथ दूसरे संयुक्त रूसी उपक्रमों में भारतीय सेना के लिए कलाश्निकोव एके203 असॉल्ट राइफलों का निर्माण, उन्नत टी-90 टैंक और चौथी पीढ़ी के सुखोई एसयू-30-एमकेआइ लड़ाकू विमानों का लाइसेंसशुदा उत्पादन, तथा भारत के मिग-29 लड़ाकू विमानों के रखरखाव की सुविधाएं शामिल हैं. वे ऐंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल कोंकर्स-एम बनाने के लिए भी मिलकर काम कर रहे हैं.

मगर रूस के साथ भारत के सभी हालिया सौदे वांछित दिशा में नहीं बढ़ रहे हैं. रूस को पांच एस-400 वायु प्रतिरक्षा प्रणालियां 2024 तक देनी थीं, पर उनमें से दो अभी आनी हैं, और कई आश्वासनों के बाद रूस ने उन्हें 2026 तक देने का वादा किया है. यूक्रेन युद्ध के बीच हथियारों की आपूर्ति में अनिश्चितता के बाद पिछले साल नई दिल्ली ने 52 करोड़ डॉलर (4,354 करोड़ रुपए) में 10 कामोव केए-31 एयरबोर्न अर्ली वार्निंग हेलिकॉप्टर खरीदने के सौदे पर बातचीत रोक दी.

भारत और रूस 2016 में 200 कामोव केए-226टी लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टरों के संयुक्त उत्पादन के लिए सहमत हुए थे, पर रूसी मैन्युफैक्चरर कामोव और प्रमुख भारतीय एरोस्पेस कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण, स्वदेशी साजो-सामान, और परियोजना की कुल लागत को लेकर मतभेद नहीं सुलझा पाए, जिससे परियोजना अंतत: धराशायी हो गई. फिर भारत ने 2025 तक परमाणु पनडुब्बी रूस से पट्टे पर लेने का मंसूबा बनाया, लेकिन इस पर भी बातचीत ठप पड़ गई लगती है.

तलवार वर्ग (कृवाक-III/IV वर्ग) के चार स्टील्थ फ्रिगेट का हश्र खास तौर पर चौंकाने वाला है. अक्तूबर 2016 में भारत और रूस ने चार फ्रिगेट की खरीद के लिए अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए. इनमें से दो रूस से बने-बनाए आने थे और दो का संयुक्त निर्माण गोवा शिपयार्ड लिमिटेड में होना था. मगर नई दिल्ली के लिए मॉस्को में बनाए जा रहे दो फ्रिगेट डिलिवरी की समय सीमा बार-बार चूक गए. अगस्त 2022 की समय सीमा वे छह महीनों से चूक गए. इससे पहले नौ महीने की देरी की वजह कोविड-19 महामारी को बताया गया. प्रत्याशित डिलिवरी के लिए नवंबर 2023 और अप्रैल 2024 की समय सीमाओं को भी आगे बढ़ा दिया गया.

इसी तरह भारत ने संयुक्त उद्यम इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड के जरिए एके-203 असॉल्ट राइफलों के सह-उत्पादन में तेजी आने की उम्मीद की थी. 2019 में स्थापित इस संयुक्त उद्यम ने दशक के आखिर तक 6,00,000 राइफलों के कुल ऑर्डर में से जुलाई 2024 तक भारतीय सेना को महज 35,000 राइफलें डिलिवर कीं. रूसी मूल के उपकरणों के लिए कलपुर्जों की सुलभता लंबे वक्त से नई दिल्ली की चिंता का विषय रही है. यह चिंता यूक्रेन में इन कलपुर्जों के लिए रूसी सेना की प्रतिस्पर्धी मांग से अब और बढ़ गई है.

रक्षा मामलों को नेपथ्य में रखने के अनुरूप दोनों देशों ने उस रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स (आरईएलओएस) समझौते पर दस्तखत नहीं किए जिसका लंबे समय से इंतजार था. समझौते से सैन्य अभियानों के लिए परस्पर लॉजिस्टिक्स सहायता सुनिश्चित होती. इसमें सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण, पोर्ट कॉल, मानवीय सहायता और आपदा राहत कोशिशें भी शामिल हैं. माना जाता है कि अमेरिकी प्रतिक्रिया से चौकन्ना भारत इस पर दस्तखत करने से हिचकिचा रहा है. भारत ने 2016 में अमेरिका के साथ और बाद में ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ—यानी क्वाड के अपने तीन साझेदारों के साथ—ऐसे ही समझौते पर दस्तखत किए थे. ऐसा ही सैन्य लॉजिस्टिक्स समझौता फ्रांस, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया के साथ भी है.

ओडोनेल कहते हैं, "भारत-रूस के बीच अच्छे-खासे नए रक्षा सौदों पर अमेरिकी पाबंदियों के जोखिम और रूस के उपकरणों की गुणवत्ता और समय से डिलिवरी को लेकर भारत की सदाबहार चिंताओं को देखते हुए पर्यवेक्षकों को मोदी की यात्रा से उभरे रक्षा टेक्नोलॉजी सहयोग को विरासती परियोजनाओं (जैसे एस-400 और फ्रिगेट) को समेटने और बेहद जरूरी कमियों के त्वरित समाधान के रूप में देखना चाहिए."

अलबत्ता वे इस हकीकत की तरफ भी इशारा करते हैं कि भारतीय सैन्य उपकरणों का बड़ा हिस्सा रूसी/सोवियत मूल का है, और भारत को टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण के लिए रूस का ऐतिहासिक समर्थन भारत में रूसी उपकरण बनाने के लिए तैयार औद्योगिक आधार से और मजबूत हुआ है.

भारत की निगाहें कहीं और

भारत के अमेरिका, इज्राएल, फ्रांस और जर्मनी सरीखे देशों का रुख करने के पीछ मकसद एक ही देश पर निर्भरता कम करना और अपने शस्त्रागार की गुणवत्ता बढ़ाना है. रूसी उपकरणों की कमियों-खामियों और यूक्रेन युद्ध में उनके कमतर प्रदर्शन से उपजी चिंताओं के चलते अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी की भारत की मांग पश्चिमी आपूर्तिकर्ता बेहतर पूरी कर सकते हैं.

आज भारतीय सेना के पास अमेरिकी और फ्रेंच इंजनों के साथ लड़ाकू विमान, जर्मन तथा स्पैनिश टेक्नोलॉजी से पनडुब्बी बनाने और अपने विमानवाहकों के लिए फ्रांस से जेट खरीदने की उन्नत योजनाएं हैं. रूसी मूल के एएन 32 और आईएल 76 सरीखे परिवहन विमानों को बदलने के लिए यूरोपीय और अमेरिकी विमानों पर भी विचार हो रहा है. यही नहीं, रूस निर्मित एमआइ35 अटैक हेलिकॉप्टर के बेड़े को बोइंग अपाचे की नियमित आपूर्ति से बदला जा रहा है.

विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत को रूस के बेभरोसेमंद रक्षा उद्योग पर निर्भर बने रहने के बजाय सिद्ध प्रणालियों की तत्काल जरूरत है. पश्चिमी रक्षा टेक्नोलॉजी के आयात में ज्यादा सुभीते के लिए—खासकर अमेरिका निर्मित एमक्यू-9बी ड्रोन की खरीद पर बातचीत की प्रमुख पेशकश के साथ—रक्षा खरीद प्रक्रियाओं में सुधार की प्रतिबद्धता दिखाकर इन प्रणालियों को ज्यादा तेजी से हासिल किया जा सकता है.

इन सौदों में सह उत्पादन की शर्त लगाकर घरेलू उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है. परंपरागत युद्ध के लिए उन्नत सिस्टम हासिल करने पर जोर देने के साथ भारत की खुफिया, निगरानी, टोही और समुद्री सजगता से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने की भी है. माना जा रहा है कि उन्नत टेक्नोलॉजी सिस्टम के मामले में पश्चिमी देश बेहतर हैं.

रक्षा मंत्रालय में पूर्व वित्तीय सलाहकार (अधिग्रहण) अमित कौशिश का मानना है कि आरऐंडडी में घटते निवेश और रक्षा उत्पादन में व्यवधान की वजह से, जिसका असर कलपुर्जों और दूसरी तकनीकी सहायता की डिलिवरी पर पड़ा, रूसी रक्षा उद्योग अपनी कुछ बढ़त गंवा बैठा है.

वे कहते हैं, "अमेरिका, फ्रांस और इज्राएल वगैरह की तरफ से आक्रामक प्रतिस्पर्धा ने भारत के लिए नए रास्ते खोल दिए हैं. यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की बेतहाशा खोज के अनुरूप भी है." हालांकि उनका यह भी कहना है कि खासकर भारत-चीन रिश्तों के संदर्भ में रूस की अहमियत को देखते हुए यह भारत और उसके भरोसेमंद सहयोगी रूस के बीच सहयोग का अंत नहीं है.

खुले दिल से टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण के मामले में रूस पश्चिमी देशों के मुकाबले ज्यादा उदार और सह-विकास व सह-उत्पादन के उद्यमों में सहयोग के लिए ज्यादा तत्पर रहा है. इससे भारत के लिए रूस जितना ही फायदेमंद है, भले ही उन्हें यूक्रेन युद्ध और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से कुछ वक्त थोड़ा दबकर रहना पड़े.

इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के पूर्व डिप्टी चीफ लेफ्टि. जनरल अनिल आहूजा (सेवानिवृत्त), जो इंडिया-यूएस डिफेंस टेक्नोलॉजी ऐंड ट्रेड इनिशिएटिव (डीटीटीआई) के संस्थापक सह-अध्यक्ष भी थे, बताते हैं कि सोवियत संघ/रूस के साथ भारत के विरासती रिश्ते तब शुरू हुए जब अमेरिका डिफेंस हार्डवेयर बेचने को तैयार नहीं था. इसने हमें रूस पर लगभग 'संपूर्ण निर्भरता' में धकेल दिया.

वे कहते हैं, "हालांकि रूस से रक्षा निर्यात मौद्रिक मूल्य के हिसाब से कम हुआ है, लेकिन साझा की (या बेची) गई टेक्नोलॉजी की गहराई के मामले में रूस अब भी किसी दूसरे साझेदार से ऊपर है. ब्रह्मोस मिसाइल, परमाणु पनडुब्बी का प्रस्तावित पट्टा, एस-400 की बिक्री, सभी से आपसी भरोसे के ज्यादा ऊंचे स्तर का पता चलता है."

वे यह भी कहते हैं कि स्वदेशीकरण को सहारा देने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में मदद के लिए अब रूस को भारतीय निजी क्षेत्र के साथ काम करना सीखना होगा.

भारत का लक्ष्य अपनी रक्षा जरूरतों के लिए किसी एक देश पर बहुत ज्यादा निर्भर न रहकर रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करना है. इसमें पश्चिमी देशों के साथ साझेदारियां बनाना और घरेलू क्षमताएं बढ़ाना शामिल है. मगर यह उसे रूस के साथ रणनीतिक संतुलन कायम रखते हुए करना होगा, क्योंकि सैन्य व्यापार में हालिया गिरावट के बावजूद मॉस्को अहम रक्षा साझेदार है. अलबत्ता रक्षा खरीद में विविधता और आत्मनिर्भरता के जारी रहने की उम्मीद के बीच पुराने प्लेटफॉर्म को बदलने के साथ भारत के रक्षा आयात में रूस की हिस्सेदारी समय के साथ और कम हो सकती है.

रूसी रक्षा उपकरणों  की घटती आवक

सेना के तीनों अंगों में भारत के पास रूसी मूल के कुछ शीर्ष रक्षा प्लेटफॉर्म हैं जो लगातार मजबूत होते जा रहे हैं. पर इनके अलावा कुछ ऐसे हथियार हैं जिनकी डिलिवरी होनी है या किसी वजह से उनकी बात नहीं बन पा रही.

टी-90 मुख्य युद्धक टैंक

शामिल किया गया 2009 से

अभी हैं: 1,200

रूस और फ्रांस की सहायता से भारतीय भूभाग के लिए तैयार किए गए टी-90एस 'भीष्म' टैंकों का निर्माण रूस से लाइसेंस के तहत तमिलनाडु के अवाडी में हैवी व्हीकल्स फैक्ट्री (एचवीएफ) कर रही है.

स्मर्च मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम्स (बीएम-21 और बीएम-30)

स्मर्च मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम्स (बीएम-21 और बीएम-30)

शामिल: 2006 से

अभी हैं: 150 बीएम-21 और 42 बीएम-30

सतह से सतह पर मार करने वाले ये मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट को कवच और सैनिकों के बड़े पैमाने पर जमावड़े को निशाना बनाने की शक्ति देते हैं.

मिग-29 फाइटर जेट

मिग-29 फाइटर जेट

शामिल: 1987 से

अभी हैं: 60 जेट

भारतीय वायु सेना लंबी दूरी की मिसाइलों के साथ अपने मिग-29 जेट का आधुनिकीकरण कर रही है और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने मार्च में अपने मिग-29 के लिए महत्वपूर्ण स्वदेशीकरण के साथ आरडी-33 एयरो इंजन बनाने के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं.

एसयू-30 एमकेआई

शामिल: 2002 से

अभी हैं: 260 जेट

मल्टीरोल फाइटर भारतीय वायु सेना का फ्रंटलाइन फाइटर जेट है. एचएएल इन्हें लाइसेंस के तहत बना रहा है.

सिंधुघोष-क्लास अटैक सबमरीन

शामिल: 1989 से

अभी हैं: 7

सोवियत किलो-क्लास डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को 2014 से भारतीय भागीदारी के साथ अपग्रेड और रिफिट किया गया है.

आईएनएस विक्रमादित्य

आईएनएस विक्रमादित्य

शामिल: 2013

रूस से हासिल किया गया कीव-क्लास विमानवाहक पोत (मूल रूप से बाकू नाम) को रिफिट किया गया है. अपने ही देश में तैयार आईएनएस विक्रांत के साथ ही आईएनएस विक्रमादित्य भारतीय नौसेना की दो वाहक युद्ध समूहों को संचालित करने की योजना के लिए महत्वपूर्ण है.

एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम

एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम

शामिल: 2021-23

अभी हैं: 5 स्क्वाड्रन

भारत को अब तक तीन स्क्वाड्रन मिले हैं. सभी पांचों को 2024 की शुरुआत तक डिलिवर किया जाना था, लेकिन इसमें देरी हुई. बाकी दो 2026 के अंत तक आने की उम्मीद है.

कामोव 226टी हेलिकॉप्टर

प्रस्तावित संख्या:200

भारत ने 2015 में रूस के साथ मिलकर कामोव यूटिलिटी हेलिकॉप्टर बनाने के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है.

केए-31 हेलिकॉप्टर
शामिल: 2003 
प्रस्तावित संख्या:24

रूस 2022 में 10 केए-31 एयरबोर्न अर्ली वार्निंग हेलीकॉप्टर की डिलिवरी करने वाला था. भारत के पास ऐसे 14 हेलिकॉप्टर हैं. आइएनएस विक्रांत के लिए 10 और की जरूरत है.

एके-203 एसॉल्ट राइफल

एके-203 एसॉल्ट राइफल
शामिल: 2024
अभी है: 6,00,000

इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड (आआरआरपीएल) की ओर से एके-203 के संयुक्त निर्माण के लिए जुलाई 2021 में भारत-रूस के बीच 5,000 करोड़ रुपए से अधिक का अनुबंध हुआ. अब तक केवल 35,000 राइफल मिली हैं

न्यूक्लियर सबमरीन

भारत ने 2019 में मॉस्को के साथ एक अकुला-क्लास परमाणु ऊर्जा से चलने वाली हमलावर पनडुब्बी ब्रैटस्क  (जिसे चक्र-3 नाम दिया जाएगा) के लिए 3 अरब डॉलर (25,119 करोड़ रुपए) को पट्टे पर लेने का करार किया था, लेकिन इस पर कोई प्रगति नहीं हुई है.

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