निकहत जरीन, 28 वर्ष
खेल: मुक्केबाजी 50 किलो
उपलब्धि: इस्तांबुल 2022 और नई दिल्ली 2023 में दो बार की विश्व चैंपियन, बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेल 2022 में स्वर्ण
कैसे क्वालिफाई किया: हांगजू एशियाई खेलों में सेमीफाइनल में पहुंचने के बाद कांस्य पदक जीतकर ओलंपिक कोटा हासिल किया
टोक्यो ओलंपिक के फौरन बाद मोहम्मद जमील अहमद ने अपनी बेटी निकहत जरीन को ओलंपिक के पांच छल्लों वाली चांदी की अंगूठी का तोहफा दिया. यह उन्हें उनके अगले लक्ष्य—पेरिस में पदक—की याद दिलाने के लिए था. अहमद की व्हाट्सऐप प्रोफाइल में वह खास तोहफा पहने और बंधी मुट्ठी दिखाकर मुस्कराती निकहत की तस्वीर लगी है.
अहमद खुद राष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल खिलाड़ी रहे हैं. उन्होंने अपने तीसरे 'शरारती' बच्चे की ऊर्जा को खेलों की तरफ मोड़ने का फैसला किया और उसे निजामाबाद के कलेक्टर ग्राउंड ले गए. अकेला छोड़ दिए जाने पर निकहत ने बास्केटबॉल कोर्ट और ट्रैक का चक्कर लगाया और जल्द ही बॉक्सिंग जिम में होने वाली गतिविधियों में रम गईं. बाकी तो खैर किंवदंती है.
पेरिस तभी से निकहत के दिमाग में है जब वे 2019 में मैरी सी. कॉम से हारकर टोक्यो का टिकट पाने से चूक गई थीं. वह मुकाबला उन्हीं के कहने पर रखा गया था और वे जोर देकर कहती हैं कि बात दरअसर 'फेयर प्ले' की थी. पिछले साल के आखिर में निकहत ने इंडिया टुडे से एक बातचीत में कहा था, "मैं रोज रोती. मगर मेरी जिंदगी से जुड़े लोगों—सीनियर, स्पॉन्सर, दोस्त और परिवार—ने कभी मुझे निराश नहीं किया और हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया. लक्ष्य के बारे में सोच-सोचकर भूख बढ़ती गई."
महिलाओं की बहुतायत वाले भारत के मुक्केबाजी जत्थे से उम्मीदें बहुत हैं. कई विशेषज्ञ एक और पदक लाने के लिए निकहत को ठोस दांव के रूप में देख रहे हैं. पेरिस ओलंपिक से कुछेक हफ्ते पहले मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, "कभी सोचा नहीं था कि चैलेंजर रही एक लड़की एक दिन भारतीय मुक्केबाजी का चेहरा बन जाएगी...मैं धन्य और कृतज्ञ महसूस करती हूं."
निकहत से उम्मीदों का आलम यह है कि पिछले साल एशियाई खेलों में उनके जीते कांस्य पदक को 'कमतर प्रदर्शन' की तरह देखा गया. वे कहती हैं, "मैं भी कांस्य से संतुष्ट नहीं थी. मैंने तय किया कि मैं इसे सबक की तरह लूंगी, अपनी कमजोरियों पर काम करूंगी और ज्यादा मजबूत होकर वापसी करूंगी."
छोटे-से विराम के बाद उन्होंने पटियाला के राष्ट्रीय शिविर में फिर से प्रशिक्षण लेना शुरू किया. स्ट्रैंडजा मेमोरियल टूर्नामेंट में रजत जीता. फिर मई में अस्ताना में हुए एलोर्डा कप में सोना.
पेरिस में उन्हें इस सबकी जरूरत होगी. उन्होंने माना कि घबराहट है, यह उनका पहला ओलंपिक जो है. मगर यह अपना फोकस पाने और प्रदर्शन करने का जरिया भी है. हैरान करने वाला कदम उठाते हुए पेरिस ओलंपिक की मुक्केबाजी इकाई ने निकहत को सीड नहीं दी. इससे सोने की चाहत के अपने अभियान में उन्हें कठिन मुकाबलों से गुजरना होगा.
मगर यह न तो उन्हें विश्व चैंपियनशिप जीतने से रोक सका, न ही पेरिस में परेशान कर सकेगा. वे कहती हैं, "जब भी मुझे कठिन मुकाबला मिलता है, मैं बेहतर प्रदर्शन करती हूं. ओलंपिक में आसान मुकाबले की गुंजाइश नहीं है. हरेक बाउट में मुझे 100 फीसद देना होगा." चार बेटियों के पिता और अब तक खूब ताने सुनते आए अहमद भी तो आखिर यही चाहते हैं.