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प्रधान संपादक की कलम से

विश्व कप की 13 साल की बदकिस्मती का सिलसिला तोड़ना खुशगवार ख्याल है, लेकिन हम फिर इतना लंबा सूखा नहीं होने दे सकते. खास तौर पर इसलिए भी कि इसका यह मतलब कतई नहीं था कि हम पर्याप्त अच्छे नहीं थे

इंडिया टुडे कवर : जांबाज (टी20 विश्व कप 2024 विजेता भारतीय क्रिकेट टीम)
इंडिया टुडे कवर : जांबाज (टी20 विश्व कप 2024 विजेता भारतीय क्रिकेट टीम)
अपडेटेड 17 जुलाई , 2024

- अरुण पुरी

क्रिकेट की फतह से बढ़कर भला क्या है जो पूरे देश को खुशी से झुमा दे! टीम इंडिया ने 29 जून को जो फतह हासिल की, वह टी20 के रोमांचकारी मुकाबले से कहीं ज्यादा थी. विश्व कप का गौरव रोज-रोज नहीं आता. चार दशकों में यह भारत का केवल चौथा विश्व कप है, तीनों फॉर्मेट में, जिनमें इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) अब गोल्ड मेडल देती है.

यह कप अब बिल्कुल शिखर पर लहरा रहा है और उस फेहरिस्त में शामिल हो गया है जो 1983 में लॉर्ड्स के उस जादुई दिन शुरू हुई थी. इसे और भी खास बनाने वाली बात कि यह 20 ओवर के जोशोखरोश से भरे फॉर्मेट में आया है, जिसमें पहला ही कप जीतने के बाद यह शिखर सम्मान 17 लंबे साल तक भारत के साथ आंख-मिचौली खेलता रहा.

शुद्धतावादियों के लिए टेस्ट क्रिकेट का अपना खास आकर्षण बरकरार है, लेकिन टी20 इंटरनेशनल (टी20आई) ने आधुनिक क्रिकेट के सबसे लाडले बेटे की तरह 50 ओवर के अपने बड़े भाई की जगह ले ली है. यह इसकी व्यापक लोकप्रियता की वजह से ही नहीं है: बिजली की रफ्तार से खेला जाता है, गलतियों को माफ नहीं करता, खेलने वाली एकादश से अपने हुनर और रणनीति को एकाग्रचित्त होकर जमीन पर उतारने की मांग करता है.

ठीक यहीं रोहित शर्मा की कप्तानी परवान चढ़ी, जिसे पीछे से कोच राहुल द्रविड़ के शांत दिमाग ने सहारा दिया. इसने उस मानसिक कैद को तोड़ दिया जो आईसीसी विश्व कप के बड़े मौकों पर हमारे जज्बे को बेबस और लाचार कर देती जान पड़ती थी. कपिल देव के यह दिखाने के बाद कि हम कप जीत सकते हैं, हमने केवल दो और बार ऐसा किया. वे दो बार 2007 और 2011 में आए, जिनमें आखिरी वनडे का कप था.

कई चीजों ने इस मौके को ऐतिहासिक गहराई दी. बारबाडोस के फाइनल में आधुनिक क्रिकेट के दो दिग्गज आखिरी बार टी20 मैच खेल रहे थे. शीर्ष क्रम से विराट कोहली सरीखे बल्लेबाजी के सार्वकालिक महान और बेहद प्रतिभावान रोहित की विदाई पेचीदा बदलाव की शुरुआत है.

रोहित उन मात्र तीन भारतीय कप्तानों में से एक के तौर भी रंगमंच से विदा हो रहे हैं जो निराशावादी सोच को परास्त करके क्रिकेट के एवरेस्ट की ऊंचाई पर पहुंचे, और इस तरह 2023 के वनडे विश्व कप के फाइनल के प्रेत को शांत कर दिया. उनकी कप्तानी ने विरोधी मालूम देते मसालों को इस तरह मिलाया कि शानदार कॉकटेल बन गया.

जोश और जुनून से भरे, फिर भी शांत. अपनी तमाम खूबियों के बूते वे 62 टी20 मैचों में कप्तानी कर पाए. इनमें आईपीएल के 158 मैचों में मुंबई इंडियंस की कप्तानी भी जोड़ लीजिए, जो एम.एस. धोनी के 226 के बाद दूसरे सबसे ज्यादा हैं.

यह क्रिकेट का वह टिक-टिक करता दिमाग है जिसने बेहद अहम रणनीतिक बदलाव के बीच भारत की राह बनाई. हमारी आवरण कथा में इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर, स्पोर्ट्स, निखिल नाज बता रहे हैं कि यही बदलाव कैसे कदम-दर-कदम विश्व कप तक ले गया. इनमें से हरेक कदम मुश्किल था क्योंकि धोनी के साथ 'रो-को' (रोहित-कोहली) परसेंटेज क्रिकेट के पुराने तरीके की साक्षात् मूरत थे.

आक्रामकता और जोखिम से बचने का मेल, जिसमें मुख्य बल्लेबाजों में से एक 'डेथ' ओवर तक जमा रहता और उसके बाद ही खुलकर खेलता. भारत अपने को उस मानसिकता से बाहर लाने की कोशिश कर रहा है. लक्ष्य था 'टोटल क्रिकेट': हर कोई हर वक्त मैक्सिमम खेले; इस टोटल को जांबाज नायकों की बड़ी पारियों के इर्द-गिर्द बुनने के बजाए 'बहुमुखी प्रतिभा' के धनी खिलाड़ियों की शृंखला इस जिम्मेदारी को बांटे.

मगर सच यही है कि भारत पहले कभी ऐसा नहीं कर सका. जब भी बड़ा मौका आया, वे फिर पुरानी आदत के शिकार हो गए. अब आखिरकार उन्होंने उस रणनीति में नई जान फूंक दी है.

बेशक गेंदबाजी के क्रम में एक खास मौजूदगी की वजह से भारत बल्लेबाजी में इन सारे प्रयोगों की छूट ले सका. जसप्रीत बुमराह उस किस्म का तोहफा हैं जो बहुत विरले मिलता है, जिनके पास अनंत कोणों से और हमेशा निंजा की तलवार की सटीकता के साथ विकेट चटकाने की शानदार क्षमता है.

उन्हें बाएं हाथ के दो खब्बू गेंदबाजों से कवर फायर मिला: अर्शदीप सिंह, जिनकी एंगल्ड स्विंग और पेस ने उन्हें इस कप का संयुक्त सबसे ज्यादा विकेट लेने वाला गेंदबाज बना दिया, और कुलदीप यादव की चकमेबाजी. मगर बुमराह 'गन बॉलर' थे जिन्होंने जंग जीती.

यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका को जब 30 गेंदों पर 30 रनों की जरूरत थी, भारत के ही जीतने की संभावना देखी जा रही थी क्योंकि उन 30 में से 12 गेंद उनकी थीं! मगर टीम इंडिया ने उस अव्वल दर्जे की गेंदबाजी इकाई के बूते कप की राह खोज ही ली. द्रविड़ भी कुछ ऐसा लेकर आए जो वे अपने खेलने के शानदार करियर में कभी नहीं ला सके: अपने कपबोर्ड के लिए विश्व कप.

विश्व कप की 13 साल की बदकिस्मती का सिलसिला तोड़ना खुशगवार ख्याल है, लेकिन हम फिर इतना लंबा सूखा नहीं होने दे सकते. खास तौर पर इसलिए भी कि इसका यह मतलब कतई नहीं था कि हम पर्याप्त अच्छे नहीं थे—बल्कि हम कीर्ति की देहरी पर पहुंचकर ठिठक जाते थे.

दक्षिण अफ्रीका को रौंदने से कहीं ज्यादा यह खुद अपने खिलाफ माइंड गेम था जो इस बार हमने जीत लिया. हमें यह हर बार जीतना होगा. रोमांचकारी भविष्य अब बुला रहा है, और इसका निर्माण पीढ़ीगत बदलाव के इर्द-गिर्द किया जाएगा.

इसकी अगुआई के लिए सबसे आगे ऐसा शख्स है जो टी20 के युग में परिपक्व हो गया है: हार्दिक पंड्या. 37 वर्षीय रोहित से कमान संभालने वाले इस 30 बरस के क्रिकेटर के बारे में डिप्टी एडिटर सुहानी सिंह ने लिखा है, ''बिगड़ैल बच्चा, मदमस्त प्रदर्शनकारी, बुरा लड़का, उन्हें चाहे जिस नाम से पुकारिए, पर उनकी गेम चेंजर की पहचान कोई नहीं छीन सकता.''

उनके साथ निजी तौर पर और सामूहिक रूप से, रवैये और प्रतिभा दोनों में दुनिया के छक्के छुड़ा देने वाले खिलाड़ियों का दस्ता होगा. 26 वर्षीय ऋषभ पंत को लीजिए, जिनकी टिके रहने की इच्छाशक्ति उस जानलेवा कार दुर्घटना से उनकी वापसी के परे किसी परिचय की मोहताज नहीं है; शुभमन गिल, जो 24 बरस की उम्र में जेन जी के पोस्टर बॉय हैं; या सूर्यकुमार यादव, 33 की पकी उम्र में देर से खिलने वाले जो अपने 360 डिग्री के शॉट्स के लिए कुछ नए शब्द गढ़ने को मजबूर कर देंगे.

यही नहीं, फाइनल में कलाबाजी खाते हुए पकड़ा गया कैच, जिसने मैच को भारत के पक्ष में मोड़ दिया, हमें भरोसा दिलाता है कि वे भविष्य के खिलाड़ी हैं. इस अंक में हम आने वाले यंगिस्तान के सभी संभावित सुपरस्टारों की प्रोफाइल लेकर आए हैं.

बुमराह अब 30 बरस के हैं, इसलिए भविष्य की किसी भी योजना में उनके कंधों के भार का विशेष ख्याल रखा जाना चाहिए ताकि वे तमाम फॉर्मेट में लंबे अर्से तक खेल सकें. उम्मीद गौतम गंभीर के भी आने की है, जिनके कोच के रूप में भी वैसे ही फौलादी होने की संभावना है जो वे हाथ में बल्ले के साथ हुआ करते थे. तो अब दुनिया देखे जरा.

- अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)

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