
पटना के इर्तजा जावेद को मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए ली जाने वाली परीक्षा नीट में 720 में से 700 अंक मिले हैं. अगर ये अंक पिछले साल आए होते तो उनकी रैंक कम से कम 350 होती. इर्तजा को दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में आसानी से एडमिशन मिल जाता, जिसे देश का तीसरे नंबर का मेडिकल कॉलेज माना जाता है.
मगर इस साल उनकी रैंकिंग 1973 है और इस रैंकिंग से उन्हें ज्यादा से ज्यादा पटना एम्स में एडमिशन मिल पाएगा. इर्तजा कहते हैं, "मैं और मेरे जैसे अच्छे नंबर लाने वाले ज्यादातर लोग नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) की ग्रेस मार्किंग पॉलिसी का शिकार हुए हैं. अगर ग्रेस नंबर की मदद से एक साथ 67 छात्रों को 720 में से 720 नंबर आ जाएं तो हमारी रैंकिंग तो गिरेगी ही."
इर्तजा बिहार के उन छात्रों में हैं जो नीट परीक्षा में हुई धांधली के खिलाफ नौ जून को पटना में प्रदर्शन कर रहे थे. उनका विरोध एनटीए की उस नीति के खिलाफ था, जिसके तहत 1,563 परीक्षार्थियों को ग्रेस मार्क मिले. इसके पीछे दलील है कि परीक्षार्थियों को परीक्षा के दौरान कॉपी लिखने का कम समय मिला. हालांकि इसी हवाले से नीट पर आरोप है कि ग्रेस मार्क इस हद तक दिए गए कि औसत छात्र भी परीक्षा में टॉप कर गए.
यही वजह थी कि कुल 67 छात्रों को 720 में से सौ फीसद नंबर मिल गए. जबकि 2023 में 720 अंक हासिल करने वाले परीक्षार्थियों की संख्या सिर्फ दो थी. हैरानी की बात तो यह भी है कि इस बार 720 अंक हासिल करने वालों में छह हरियाणा के झज्जर के एक ही परीक्षा केंद्र से हैं.
पटना के प्रदर्शन में शामिल रिया रानी कहती हैं, "अगर एनटीए की यह पॉलिसी थी तो हम सबको इसके बारे में बताया जाना चाहिए था. इसे पिछले साल भी लागू किया जाना चाहिए था. 2023 में नीट की परीक्षा में मैं जिस कमरे में थी, वहां 40 मिनट बाद क्वेश्चन पेपर बंटा. मेरे 17 क्वेश्चन छूट गए. हमें न एक्सट्रा टाइम मिला, न ग्रेस मार्क."
रिया नीट की इस नीति को घोटाला भी करार देती हैं. वे बताती हैं, "एक लड़की जिसे ग्रेस मार्क्स मिले हैं, उसने 180 में से 179 सवाल हल किए. उसके कुछ सवाल गलत हुए और उसे 626 नंबर मिले. उसे ग्रेस मार्क्स देकर 720 पर पहुंचा दिया गया. मेरा सवाल है कि अगर उसे कम समय मिला तो उसने 180 में से 179 सवाल कैसे सॉल्व कर लिए."
दरअसल, ग्रेस मार्किंग के लिए एनटीए ने सुप्रीम कोर्ट के 2018 के एक फैसले का हवाला दिया था. उस समय अदालत ने यह फैसला कानून के पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए आयोजित क्लैट परीक्षा को लेकर दिया था. लेकिन क्लैट कंप्यूटर बेस्ड परीक्षा है, जबकि नीट ऐसी परीक्षा नहीं है. नीट के कुछ परीक्षार्थी यह कहते हुए एनटीए की नीयत पर सवाल उठाते हैं कि अदालत ने 2018 के उस फैसले में कहा था कि उसके ये दिशानिर्देश मेडिकल और इंजीनियरिंग को छोड़कर दूसरी परीक्षाओं पर लागू होंगे. इसके बावजूद एनटीए ने नीट में ग्रेस मार्किंग की सुविधा दी.
इस मसले पर नजर रखने वाले पटना साइंस कॉलेज के व्याख्याता डॉ. अखिलेश कहते हैं, "ग्रेस मार्किंग की इजाजत सुप्रीम कोर्ट ने क्लैट परीक्षा के सिलसिले में दी थी. वह सिर्फ ऑनलाइन परीक्षा के लिए थी, क्योंकि समय बीतने पर ऑनलाइन का विंडो बंद हो जाता है. इसे गलत तरीके से मेडिकल की परीक्षा में लागू कराया गया है." वहीं मेडिकल की तैयारी कराने वाले एक कोचिंग संस्थान के मालिक विपिन कुमार सिंह कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में साफ लिखा है कि मेडिकल और इंजीनियरिंग में इस नियम को लागू नहीं कर सकते."
नई दिल्ली के अबुल फजल इन्क्लेव में रहने वाले अब्दुल अहद पिछले तीन साल से नीट की परीक्षा दे रहे हैं. इस साल उनके 655 नंबर आए हैं. अहद कहते हैं, "पिछले साल इतने नंबर के साथ रैंक पांच से छह हजार के बीच थी. इस साल सवाल अपेक्षाकृत आसान थे तो यह माना जा रहा था कि 655 नंबर पर रैंकिंग सात से आठ हजार के बीच रहेगी. कुछ लोग अधिकतम 9,000 तक मान रहे थे. लेकिन मैं अपना रिजल्ट देखकर हैरान रह गया कि 655 अंक आने के बावजूद मेरी रैंक आई 25,900! अगर आठ से नौ हजार तक भी रैकिंग होती तो कोई न कोई अच्छा कॉलेज मिलता लेकिन इस साल तो बिल्कुल नीचे का भी सरकारी कॉलेज मिल जाए तो बड़ी बात होगी."
एनटीए की ग्रेस मार्किंग की पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए वे कहते हैं, "एनटीए ने ग्रेस मार्किंग के लिए मार्किंग इफीशिएंसी को आधार बनाया है. लेकिन यह आधार गलत है क्योंकि आम तौर पर सभी बच्चे पहले बायोलॉजी के सवाल हल करते हैं. इसके 90 सवाल होते हैं और नीट की तैयारी करने वाले बच्चे मुख्य तौर पर बायोलॉजी की पढ़ाई करते हैं, इसलिए इनमें से ज्यादातर सवालों के जवाब सही होते हैं. ऐसे में अगर जिसे कम वक्त मिला और जिसने पहले इस सेक्शन के सवाल हल किए हैं तो उस आधार पर उसकी मार्किंग इफीशिएंसी अच्छी निकलेगी लेकिन यह वास्तविक नहीं होगी, क्योंकि अलग-अलग खंड के सवालों में मार्किंग इफीशिएंसी भी अलग होगी. इसलिए कम समय में बायोलॉजी के सवालों के हल के आधार पर मार्किंग इफीशिएंसी निकालकर ग्रेस मार्क देने का एनटीए का पूरा पैमाना गलत है."
हालांकि नीट का यह विवाद सिर्फ 1,563 परीक्षार्थियों को ग्रेस मार्क्स देकर टॉप रैंकिंग में पहुंचाने का विवाद नहीं है. बहुत सारे छात्रों का आरोप है कि इस बार पेपर लीक भी हुए हैं, जिसे एनटीए मानने के लिए तैयार नहीं है.
नीट में शामिल हुए एक परीक्षार्थी ऋत्विक कहते हैं, "दरअसल, इस साल नीट की सबसे बड़ी समस्या रैंक इन्फ्लेशन की है. पिछले साल जिस नंबर पर लोगों को तीन या चार हजार की रैंकिंग आ रही थी, इस साल वह 18,000 से 20,000 तक पहुंच गई है. 14,000-15,000 तक की रैंकिंग का नुक्सान छात्रों को हुआ है. वजह है पेपर लीक."
इस पूरे मामले को विपिन कुमार ठीक से समझाते हैं. वे कहते हैं, "बिहार पुलिस ने पेपर लीक मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया है. जांच में पता चला है कि 5 मई की परीक्षा से एक दिन पहले 4 मई को ही पेपर लीक हो गया था. इस क्वेश्चन पेपर को बच्चों को रटाया गया. ऐसे में सिर्फ पढ़ाई करने वाले बच्चे इनका मुकाबला कैसे करेंगे. दिक्कत की बात यह है कि एनटीए इस पेपर लीक की बात को भी नहीं मान रही. उसकी दलील है कि 4.30 बजे क्वेश्चन पेपर सोशल मीडिया पर शेयर हुआ इसलिए यह पेपर लीक नहीं है."
विपिन की बात इसलिए सच लगती है क्योंकि बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई ने 5 मई से ही नीट में पेपर लीक के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी थी. 6 मई तक 13 लोग गिरफ्तार किए जा चुके थे, इनमें कई परीक्षार्थी, उनके अभिभावक और सॉल्वर शामिल थे, जो दूसरे मेडिकल कॉलेजों के छात्र थे. बाद में 11 अन्य परीक्षार्थियों के नाम सामने आए. एक जला हुआ पर्चा भी बरामद हुआ, जिसमें नीट के 74 सवाल थे.
इन गिरफ्तार लोगों में एक परीक्षार्थी आयुष भी था. उसने पुलिस को बताया था कि 4 मई की रात उसे पटना के लर्न प्ले स्कूल में ले जाया गया. वहां 24 और परीक्षार्थी थे. सभी को सवाल और उसके उत्तर रटाए गए और यही सवाल नीट की परीक्षा में आए थे.
हालांकि इन आरोपों पर एनटीए की वरिष्ठ निदेशक डॉ. साधना पाराशर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि पेपर लीक की बात पूरी तरह निराधार है. बिहार पुलिस ने एनटीए को तमाम सबूत भी भेजे, मगर उसका जवाब अभी तक नहीं आया है. इस मामले को लेकर पटना हाइकोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की गई है.
इसी तरह से एक शिकायत गुजरात के गोधरा से भी आई. यहां दूसरे राज्यों के कुल 16 अभ्यर्थियों को लाया गया. इन सभी ने अपने परीक्षा केंद्र के तौर पर गोधरा को चुना था. आरोप है कि जिस केंद्र पर ये सभी परीक्षार्थी परीक्षा देने पहुंचे, वहां इन्होंने अपनी ओएमआर शीट को नहीं भरा और यहां जो लोग परीक्षा ले रहे थे, उन पर आरोप है कि उन्होंने शीट भरी. इस बारे में कई खबरें स्थानीय अखबारों में प्रकाशित हुईं लेकिन इस मामले की अब तक कोई जांच शुरू नहीं हो पाई है.
नीट की परीक्षा में धांधली के आरोपों के बीच परेशान छात्रों का कहना है कि सबसे अच्छा तरीका तो यह होता कि सारी ओएमआर शीट्स को एनटीए सार्वजनिक कर देती. इर्तजा कहते हैं, "अगर प्राइवेसी के नाम पर एनटीए ऐसा नहीं करना चाहती तो कम से कम सीबीआइ या किसी और जांच एजेंसी के लिए इन्हें ओपन कर दे."
इस पूरे मसले पर डॉक्टरों के बीच भी काफी नाराजगी है. आइएमए बिहार ऐक्शन कमिटी के संयोजक डॉ. अजय कुमार कहते हैं, "देश में संदेह का माहौल है और इसमें संदेह का पूरा आधार है. जो सबूत मिल रहे हैं, उसके आधार पर यही लगता है कि नीट की परीक्षा रद्द की जाए तो ठीक होगा."
नीट परीक्षा रद्द करने की मांग के साथ एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में भी लगाई गई है. अदालत ने 11 जून को इस पर केंद्र सरकार और एनटीए से जवाब मांगा था. सुनवाई के दौरान अदालत ने यह तो माना कि नीट की विश्वसनीयता को नुक्सान पहुंचा है लेकिन उसने परीक्षा रद्द करने से मना कर दिया. अदालत ने इस मामले में एनटीए को नोटिस जारी करके इस बात का जवाब मांगा है कि क्या नीट की परीक्षा में कोई गड़बड़ी हुई है? हालांकि उसने काउंसलिंग पर भी रोक लगाने से इनकार कर दिया.
वहीं 1,563 परीक्षार्थियों को ग्रेस मार्क दिए जाने के मामले पर 13 जून को एनटीए ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इनको दिए गए अंक अब रद्द किए जाएंगे और इनके बिना परीक्षार्थियों का जो स्कोर है, उसके साथ रिजल्ट जारी किया जाएगा. सरकार का यह भी कहना है कि ये परीक्षार्थी चाहें तो 23 जून को दोबारा आयोजित होने वाली नीट परीक्षा में बैठ सकते हैं या फिर इन्हें ग्रेस मार्क के बिना मिले अंकों को स्वीकार करना होगा.
केंद्र सरकार के इस फैसले के साथ यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है. इस मामले के एक याचिकाकर्ता और कोचिंग संस्थान फिजिक्स वाला के सीईओ अलख पाण्डेय ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "एनटीए ने सुप्रीम कोर्ट के सामने माना है कि ग्रेस मार्क देना गलत था. अब सवाल है कि क्या एजेंसी ने ऐसी और भी अनियमितताएं की हैं, जिनके बारे में हमें पता नहीं है...पेपर लीक का मामला अभी बंद नहीं हुआ है और इस पर सुनवाई जारी रहेगी." अब तक सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ के पास यह मामला था लेकिन 8 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश डी.वाइ. चंद्रचूड़ की पीठ इस पर सुनवाई करेगी.
नीट यूजी-2024 को लेकर यह कोई इकलौता मामला नहीं है, जो अदालत में है. देश के अलग-अलग हाइकोर्टों में ऐसे कई मामले दर्ज कराए गए हैं. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट के अलावा दिल्ली हाइकोर्ट और पटना हाइकोर्ट में भी याचिकाएं दायर की गई हैं. इनके जरिए तकरीबन 20,000 परीक्षार्थियों ने न्यायपालिका से न्याय की गुहार लगाई है.
इस बार का नीट का मामला 2015 में आयोजित ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट से मिलता-जुलता है. उस परीक्षा को अदालत ने रद्द कर दिया था. परीक्षा का आयोजन सीबीएसई कराती थी. लेकिन अदालत ने सीबीएसई के उस तर्क को नहीं माना था जिसमें उसने कहा कि सिर्फ 44 छात्र ही पेपर लीक में शामिल थे. इसी आधार पर इस बार भी अभ्यर्थी नीट यूजी परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं.
हालांकि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पेपर लीक की किसी भी संभावना से इनकार किया है. 13 जून को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद उनका कहना था, "हम छात्रों और उनके अभिभावकों को आश्वस्त करना चाहते हैं कि भारत सरकार और एनटीए उनके साथ न्याय करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. कोई पेपर लीक नहीं हुआ है. हमें अभी तक इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं."
विपक्ष भी इस मामले पर काफी मुखर है. जब यह मामला सामने आया तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा, "नरेंद्र मोदी ने अभी शपथ भी नहीं ली है और नीट परीक्षा में हुई धांधली ने 24 लाख से अधिक स्टुडेंट्स और उनके परिवारों को तोड़ दिया है...सरकार लगातार पेपर लीक की संभावना को नकार रही है. आज मैं देश के सभी स्टुडेंट्स को विश्वास दिलाता हूं कि मैं संसद में आपकी आवाज बन कर आपके भविष्य से जुड़े मुद्दों को मजबूती से उठाऊंगा."
राहुल की इन बातों से इस बात का संकेत मिलता है कि 24 जून से आयोजित संसद सत्र में नीट यूजी में कथित धांधली का मुद्दा विपक्षी दलों की तरफ से उठाया जाने वाला है. जब इंडिया टुडे ने सारे आरोपों पर एनटीए का पक्ष जानने के लिए एजेंसी के चेयरपर्सन प्रदीप कुमार जोशी से संपर्क करना चाहा तो उनके कार्यालय ने चेयरपर्सन से बात कराने से इनकार करते हुए कहा कि सभी सवालों का जवाब एनटीए ने 6 जून को जारी एक प्रेस रिलीज में दे दिया है.
इस प्रेस रिलीज के मुताबिक, एनटीए का साफ तौर पर मानना है कि कोई गड़बड़ी नहीं हुई. हालांकि जैसा 13 जून को हुआ, सुप्रीम कोर्ट में आगे की सुनवाइयों में एनटीए को अपना यह रुख पलटने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.

ध्यान भटकाने का आरोप
नीट यूजी-2024 की परीक्षा में बैठने वाले कई परीक्षार्थियों का दावा है कि जिस 4 जून को लोकसभा चुनाव के परिणाम आ रहे थे, उसी दिन नीट का परिणाम जारी करके एनटीए ने इस परीक्षा में हुई धांधलियों पर पर्दा डालने की पूरी कोशिश की थी लेकिन बात नहीं बन पाई. दरअसल, नीट का रिजल्ट 14 जून को जारी होना था लेकिन एनटीए ने 10 दिन पहले ही रिजल्ट जारी कर दिया. इन परीक्षार्थियों का दावा है कि ध्यान भटकाने की अब ऐसी ही एक कोशिश विदेशों से मेडिकल की पढ़ाई करके आने वाले छात्रों के लिए दो से तीन साल की इंटर्नशिप अनिवार्य करने का आदेश देकर की जा रही है.
दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यहां और दूसरे देशों से मेडिकल की पढ़ाई करके भारत आने वाले छात्रों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में जिन छात्रों ने अपने कोर्स का कुछ हिस्सा ऑनलाइन किया है, उनके लिए राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (एनमएमसी) ने 7 जून, 2024 को दो से तीन साल की इंटर्नशिप अनिवार्य करने की घोषणा की है. एनएमसी ने कहा है कि ऑनलाइन क्लास के छात्र अपने-अपने संस्थानों से गलत ढंग से सर्टिफिकेट हासिल कर रहे हैं और ऐसे में एनएमसी ऐसे सर्टिफिकेट को स्वीकार नहीं करेगा.
पहले भी अपनी समस्याओं को लेकर ऐसे छात्र विरोध प्रदर्शन करने के अलावा सरकार के सामने अपनी बात रखने और अदालत का दरवाजा खटखटाने को मजबूर हुए हैं. ऐसे में इस बार भी अंदेशा है कि ये छात्र विरोध प्रदर्शन करने उतर सकते हैं. कहीं ऐसा न हो कि नीट यूजी में धांधली का मामला पीछे छूट जाए.