- अरुण पुरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने खास अंदाज में 72 सदस्यीय नए मंत्रिमंडल के साथ काम शुरू कर दिया है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 24 में से नौ सहयोगी दलों को इसमें जगह मिली है. भले ही उन्हें अपेक्षित जनादेश नहीं मिला, लेकिन मोदी ने अपनी पार्टी के लिए सभी महत्वपूर्ण विभाग रखकर अपनी राजनैतिक ताकत दिखाई.
संदेश स्पष्ट था: बहुमत हो या न हो, वे सरकार अपने तरीके से चलाएंगे. प्रमुख मंत्रियों के चयन ने निरंतरता का संकेत दिया. 16 मार्च को आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद से नीति निर्माण में एक अंतराल रहा है, इसलिए इसमें जल्दबाजी की भावना है. आम चुनाव से पहले मोदी ने 125 दिन का एजेंडा तैयार किया था, जिसे शायद कम हुए जनादेश से सबक लेते हुए संशोधित करना होगा.
बेशक, अपने पिछले दो कार्यकालों में मोदी ने बहुसंख्यक भारतीयों की बुनियादी जरूरतों—भोजन, पेयजल, स्वच्छता, आवास, रसोई गैस—को आक्रामक तरीके से पूरा करने की कोशिश की. और, अगर आप कोविड के वर्षों को छोड़ दें, तो अर्थव्यवस्था उचित दर से बढ़ी.
उनके नाम अन्य शानदार उपलब्धियां भी हैं, जैसे राजकोषीय विवेक, बैंकिंग प्रणाली की सफाई, डिजिटल भुगतान को लोकप्रिय बनाना और बुनियादी ढांचे में भारी निवेश. लेकिन नई सरकार को उन प्रमुख बिंदुओं पर आत्मनिरीक्षण करना होगा, जिन्होंने इसे पूर्ण बहुमत से वंचित कर दिया. इसके साथ ही ज्यादा ताकतवर विपक्ष का ध्यान रखना होगा.
जल्द ही सभी की निगाहें जुलाई में पूर्ण केंद्रीय बजट पर होंगी. निर्मला सीतारमण फिर से वित्त मंत्री के रूप में कमान संभाल रही हैं. उन्हें चुनाव अभियान के दो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए: नौकरियां और महंगाई. गंभीर ग्रामीण संकट इसी से जुड़ा है. ऐसे में ताज्जुब नहीं कि भाजपा की ग्रामीण सीटें 25 फीसद कम हो गईं. यह व्यवस्थागत समस्या है.
कृषि सकल घरेलू उत्पाद में 15 फीसद से कम का योगदान करती है, लेकिन अनुमान है कि यह कार्यशील आबादी के 44 फीसद लोगों को रोजगार देती है और लगभग 70 फीसद ग्रामीण परिवारों का भरण-पोषण करती है. मैन्युफैक्चरिंग, जहां से भविष्य में कई नौकरियां आनी चाहिए,
अभी भी सकल घरेलू उत्पाद का केवल 17 फीसद है और आबादी के 12 फीसद को रोजगार देता है. कोई भी सरकार दशकों से खेतिहर मजदूरों, जिनकी उत्पादक क्षमताओं का कम ही इस्तेमाल किया जाता है, को अन्य लाभकारी रोजगार में स्थानांतरित नहीं कर पाई है. बेरोजगारी दर पर आंकड़ेबाजी होती रही है, लेकिन आंकड़ों का जादू नौकरी चाहने वाले युवाओं की मायूसी को नहीं छिपा सकता.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का सह-लिखित एक हालिया अध्ययन, एक मार्कर के रूप में काम कर सकता है: यह स्नातकों के बीच 29.1 फीसद बेरोजगारी की बात करता है और इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि एक-तिहाई युवा भारतीय न तो नौकरी में हैं, न ही शिक्षा या प्रशिक्षण में हैं!
हाल ही में वित्त आयोग के अध्यक्ष नियुक्त किए गए प्रोफेसर अरविंद पानगड़िया ने अपने एक लेक्चर में भारत की समस्या को बहुत अच्छे से बयान किया. उनका कहना है कि समस्या छोटेपन की है. हमारी कृषि जोत बहुत छोटी है. 2 हेक्टेयर से छोटी जोत सभी जोतों का 86 फीसद है. ये मशीनीकरण के जरिए खुद को बढ़ाने के लिए माकूल नहीं हैं और बेहद अनुत्पादक हैं. यहीं पर कृषि कानून जो पटरी से उतर गए थे, मदद कर सकते थे.
नए कृषि मंत्री, शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश को पिछले दशक में राष्ट्रीय औसत से दोगुनी कृषि विकास दर दिलाई. वे एक नई नीति तैयार कर सकते हैं. प्रो. पानगड़िया यह भी बताते हैं कि 76 फीसद से ज्यादा लोग 5,000 से कम आबादी वाली बस्तियों में रहते हैं. इससे बुनियादी सुविधाओं की डिलिवरी कहीं अधिक जटिल हो जाती है. भारत को और अधिक शहरीकरण करना चाहिए, लेकिन बेहतर शहरी नियोजन से ढहते शहरों को भी ठीक करना चाहिए.
छोटेपन का एक अन्य क्षेत्र व्यावसायिक उद्यम है. उद्योग और सेवाओं में लगभग 72 फीसद कार्यबल ऐसे उद्यमों में कार्यरत हैं जिनमें 10 से कम कर्मचारी हैं, जबकि केवल 18 फीसद ऐसे उद्यमों में कार्यरत हैं जिनमें 20 या अधिक कर्मचारी हैं. चीन में मध्यम और बड़े उद्यमों में 75 फीसद मैन्युफैक्चरिंग कार्यबल है, जबकि भारत में केवल 16 फीसद है.
हमारे 6.3 करोड़ एमएसएमई के लिए एक बचाव योजना होनी चाहिए ताकि वे उत्पादक नौकरियां प्रदान कर सकें. एक क्षेत्र-विशिष्ट जोर कई मोर्चों पर चीजों को आगे बढ़ा सकता है: जैसे कपड़ा, फार्मा और खाद्य प्रसंस्करण में काफी लोगों को रोजगार मिल सकता है.
सेवा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे अच्छी खबर है. महामारी के बाद सबसे तेजी से उबरने वाला यह क्षेत्र 8 फीसद से ज्यादा की दर से बढ़ रहा है, इसका निर्यात वित्त वर्ष 23 में 325.3 अरब डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 24 में 339.6 अरब डॉलर हो गया है.
सेवाओं में सबसे बड़ी विफलता इनबाउंड विदेशी पर्यटन है. तुलना के लिए, महामारी से पहले के पिछले साल भारत में 1.8 करोड़ से कम अंतरराष्ट्रीय पर्यटक आए, जबकि थाईलैंड (हमारे आकार का छठा हिस्सा से भी कम) में लगभग चार करोड़ पर्यटक आए. हमने विदेशी पर्यटकों से 30.06 अरब डॉलर कमाए, थाईलैंड ने 64.37 अरब डॉलर. हमारी कुदरती विरासत के साथ संभावनाएं अपार हैं. इस क्षेत्र पर जोर देना चाहिए.
लेकिन मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना जरूरी होगा. यहां, व्यापार करने में आसानी के मोर्चे पर सरकार के प्रयासों के बावजूद, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीचे की ओर रहा है. 2022-23 में, एफडीआई प्रवाह पिछले वर्ष के 84.8 अरब डॉलर से गिरकर 71.4 अरब डॉलर हो गया, जो 16 फीसद कम है. 2023-24 में, यह 70.9 अरब डॉलर पर स्थिर रहा. माल निर्यात में गिरावट—वित्त वर्ष 23 में 451 अरब डॉलर से घटकर वित्त वर्ष 24 में 437 अरब डॉलर—संकट को दर्शाती है.
इस हफ्ते हमने मोदी 3.0 के लिए पूरा एजेंडा पेश किया, जिसमें मंत्रालयों के बीच बॉक्स टिक किए गए, श्रम सुधार जैसे क्षेत्रों में कठोर निर्णयों से लेकर विदेश नीति और व्यापार समझौतों में अपनी स्थिति बनाए रखने की आवश्यकता, शिक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करना ताकि युवा 'भविष्य के लिए तैयार' किए जा सकें, अग्निवीर पर फिर से विचार किया जा सके. मोदी 3.0 को अपने सुधार एजेंडे को भी जारी रखना होगा, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में सफेद हाथियों से विनिवेश करना और बुनियादी ढांचे का निर्माण जारी रखना होगा.
भारत जैसे लोकतंत्र पर शासन करना दुनिया का सबसे चुनौतीपूर्ण काम है, इसे सुधारना और भी अधिक चुनौतीपूर्ण है. पीएम मोदी को चुनौतियां पसंद हैं. खैर, उन्होंने खुद को एक शक्तिशाली चुनौती दी है.
- अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)