सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में जो वादा किया था—राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) द्वारा परिकल्पित सार्वभौमिक, गुणवत्तापूर्ण और भविष्य के लिए तैयार शिक्षा—उसे ध्यान में रखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने अपने काम तय कर लिए हैं.
फौरी प्राथमिकताओं में स्कूलों में असमानता की खाई को पाटना, उच्च शिक्षा को उद्योग-प्रासंगिक बनाना और प्रवेश परीक्षाओं को अनियमितताओं और गड़बड़ियों से मुक्त करना होगा.
मंत्रालय ने अपने पहले 100 दिनों के लिए पहले से ही कुछ प्राथमिकताएं तय की हैं—ब्लॉक स्तर तक स्कूलों की प्रभावी निगरानी के लिए डिजिटलीकरण अभियान, ड्रॉप आउट स्तरों की जांच के लिए स्कूल बोर्डों में मानक मूल्यांकन प्रणाली, कौशल विकसित करने के लिए नए पाठ्यक्रम और विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ ज्यादा सहयोग.
इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने की कुंजी शिक्षकों को एनईपी की जरूरतों के मुताबिक प्रशिक्षित करना, बुनियादी ढांचा जोड़ना, टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को सुविधाजनक बनाना और नियमित रूप से पाठ्यक्रमों को अपग्रेड करना होगा. इसके अलावा, सरकारी स्कूल अभी भी कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिससे विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि के छात्रों के बीच की खाई और भी गहरी हो गई है.
उच्च शिक्षा के बुनियादी ढांचे में विकास की सापेक्षिक गति के बावजूद, एनईपी के लॉन्च होने के चार साल बाद भी बड़े सुधारों का इंतजार है. इस बीच, एनईपी की सबसे महत्वपूर्ण सिफारिश कि शिक्षा पर बजटीय आवंटन जीडीपी के लगभग छह प्रतिशत तक पहुंचना चाहिए, अभी भी पूरी नहीं हुई है.
क्या किया जाना चाहिए
एनईपी को लागू करना
प्रमुख शिक्षाविदों के मुताबिक, एनईपी का केंद्रीय उद्देश्य नौकरशाही के दलदल में खो गया है, जिससे मैकेनिकल और अनुत्पादक काम हो रहा है. इसे तेजी से लागू करते हुए ज्ञान और कौशल को एक ही सिक्के के दो पहलू माना जाना चाहिए.
शिक्षकों का प्रशिक्षण
ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि शिक्षकों का सही शिक्षण पद्धति के उपयोग में सामूहिक प्रशिक्षण जल्द ही शुरू किया जाना चाहिए.
समान मानक
प्रमुख शिक्षाविदों का कहना है कि स्कूली शिक्षा में एकरूपता लाने की फौरी जरूरत है, ताकि देश का हरेक विद्यालय कम से कम अपने संसाधनों और शासन प्रणाली में केंद्रीय विद्यालयों के बराबर हो
रिक्तियों के लिए मनाही
आईआईटी और आईआईएम जैसे शीर्ष संस्थानों में संकाय रिक्तियों के प्रति शून्य सहिष्णुता होनी चाहिए. एनईपी द्वारा परिकल्पित, भारत के उच्च शिक्षा आयोग का गठन किया जाना चाहिए
धर्मेंद्र प्रधान, 54 वर्षः भाजपा, केंद्रीय शिक्षा मंत्री
शुरुआत - धर्मेंद्र प्रधान का जन्म 1969 में ओडिशा के तालचेर में हुआ था और वे छात्र जीवन में ही एबीवीपी के कार्यकर्ता बन गए थे. उन्होंने उत्कल विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में पीजी की डिग्री प्राप्त की है और 2004 में लोकसभा के लिए चुने गए थे.
शानदार चुनावी प्रदर्शन - वे 15 साल बाद लोकसभा में लौटे हैं. 2012 से राज्यसभा सदस्य रहे प्रधान ने ओडिशा में भाजपा की 20 लोकसभा सीटें जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
अनुभवी नेता - प्रधान ने पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, शिक्षा और कौशल विकास मंत्रालयों को संभाला है. उनके पिता देबेंद्र प्रधान 1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में राज्य मंत्री थे
शिक्षा सुधार - प्रधान ने शिक्षा मंत्री के रूप में अपने अंतिम कार्यकाल में विशेष रूप से उच्च शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधारों की देखरेख की, जैसे कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) और विदेशी उच्च शिक्षा संस्थान (एफएचईआई) नीति जो विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर स्थापित करने की अनुमति देती है. प्रधानमंत्री मोदी को उम्मीद है कि वे 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से शुरू किए गए सुधार एजेंडे को जारी रखेंगे
गरीबों के लिए एलपीजी - पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री के रूप में उन्होंने प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की देखरेख की, जो मोदी की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है.
सुकांत मजूमदार, राज्यमंत्री, 44 वर्षः भाजपा
पदोन्नति का मार्ग - पश्चिम बंगाल के गौर बंगा विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर मजूमदार अपने स्कूली दिनों से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे हैं. उन्होंने 2019 में पहली बार बालुरघाट से लोकसभा में प्रवेश किया. लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उत्तर बंगाल में भगवा पार्टी के बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए मजूमदार को सितंबर 2021 में राज्य भाजपा इकाई का अध्यक्ष बनाया गया था. लगातार दूसरी बार लोकसभा में जीत के बाद सरकारी कर्मचारी और स्कूल शिक्षक के बेटे को अब राष्ट्रीय जिम्मेदारी दी गई है
जयंत चौधरी, 45 वर्ष 7 रालोद, रालोद के राज्यसभा सांसद; साथ ही, कौशल विकास मंत्रालय के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
विशेषज्ञ की राय
प्रो. आर. गोविंदा, पूर्व कुलपति, राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान
"परीक्षाओं की विश्वसनीयता को कदाचार से मुक्त किया जाना चाहिए. आकलन और मूल्यांकन में हमारे भरोसे में गिरावट आई है".