मोदी 2.0 ने महामारी के आर्थिक प्रभावों से निबटने का काम सफलता के साथ किया, खैरात पर जरूरत से ज्यादा खर्च करने की आतुरता नहीं दिखाई और खर्च के तय किए लक्ष्य तक ही खुद को सीमित रखा. इस दौरान लगातार मजबूत भूमिका में रहीं निर्मला सीतारमण को अब नई धुरी पकड़नी पड़ सकती है. उनको सुस्त क्षेत्रों को पटरी पर लाने के साथ-साथ आम हताशा भी दूर करनी है. जुलाई में उनके आगामी बजट में सामाजिक खर्च और पूंजीगत व्यय पर ज्यादा आवंटन की उम्मीद कर सकते हैं. यह चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि वैश्विक मंदी अभी कम होना शुरू ही हुई है और बढ़ती बेरोजगारी दूर करने का कोई तात्कालिक उपाय नहीं है. उनको बैंकिंग प्रणाली में फंसे कर्जों की वापसी के डर के बीच महंगाई को भी सहन करने लायक स्तर पर लाना है.
क्या किया जाना चाहिए
- बजट पर लगाम कसना - लक्षित राहत के बावजूद महामारी के दौरान अधिक खर्च के कारण राजकोषीय घाटा इस दशक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया. हालांकि वित्त वर्ष 24 में यह घटकर 5.6 फीसदी पर आ गया. लक्ष्य इसे घटाकर वित्त वर्ष 26 तक 4.5 फीसदी तक लाना है. ऊंची कीमतों के कारण ग्रामीण हताशा और कम नौकरियां भाजपा को अपने बहुमत पर भारी पड़ी दिखती हैं. सामाजिक खर्च भी बढ़ सकता है जबकि बुनियादी ढांचे पर पूंजीगत खर्च जारी रह सकता है. मई में रिजर्व बैंक ने 2.11 लाख करोड़ रुपए की जो अधिशेष राशि भेजी है, उससे मदद मिलेगी. साथ ही जीएसटी का जोरदार संग्रह भी मददगार होगा.
- उपभोग बढ़ाना - मोदी 2.0 की शुरुआत में कार्पोरेट करों में कटौती, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के बावजूद निजी निवेश लगातार पिछड़ा रहा है. मांग में कमी को जिम्मेदार मान सकते हैं जिसके लिए सरकार को दो चीज करनी होगी - आयकर दरों को तर्कसंगत बनाना और कर दरों को कम करना या कर दरों के लिए मौजूदा स्लैब बढ़ाना जिससे कि लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा आए या जीएसटी की दरों में कमी करना जिससे कि अहम जिंसों पर परोक्ष कर कम हो सके.
- महंगाई पर लगाम - खाद्य महंगाई जनता को चोट पहुंचा रही है जैसा कि इस चुनाव में जमीनी रिपोर्टों से पता चला. इसे कम करने का एक तरीका ईंधन की कीमतों को घटाना है, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में चुनाव को देखते हुए यह संभव है.
- कर ढांचे को तर्कसंगत बनाना - कर के कई स्लैब, उनका अनुपालन, देर से रिफंड और तकनीकी दिक्कतें जीएसटी के लिए बहुत बड़ा अवरोध रही हैं, मुख्य दरों को चार से घटकर दो किया जाए.
- अहम सुधारों को जमीन पर लाना - यह उम्मीद करना तो वैसे व्यावहारिक न होगा कि भूमि और श्रम सुधार जैसे बड़े कदम उठाए जाएं. लेकिन तेजी से समाधान के लिए अक्षमता और दिवालिया संहिता में सुधार किया जा सकता है. इसी तरह बीमा अधिनियम और भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण में भी सुधार किए जा सकते हैं. डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक के मसौदे पर कंपनी मामलों के मंत्रालय में काम चल रहा है, उस पर भी काम हो सकता है.
किनके सर है जिम्मेदारी?
निर्मला सीतारमण, 64 वर्षः भाजपा
वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री
- शुरुआती जीवन - तमिलनाडु के मदुरै में तमिल आयंगर परिवार में जन्मी निर्मला सीतारमण ने अपनी स्कूली शिक्षा मद्रास और तिरुचिरापल्ली में पूरी की. अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने के बाद वे पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पहुंचीं.
- राजनीतिक सफर - निर्मला 2003 से 2005 तक राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य रहीं. वे 2008 में भाजपा में शामिल हुईं और 2014 तक पार्टी की प्रवक्ता रहीं. जब 2014 में पहली बार मोदी सरकार सत्ता में आई तो उन्हें आंध्र प्रदेश से राज्यसभा सदस्य होने के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया.
- मौजूदा भूमिका वे 2014 में कुछ समय के लिए वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री रहीं. मई 2014 से सितंबर 2017 तक उनके पास वाणिज्य और उद्योग का स्वतंत्र प्रभार रहा. सितंबर 2017 से 2019 के बीच वे रक्षा मंत्री रहीं. उसके बाद उन्हें जब से यह विभाग मिला तब से इस साल अभी तक वे इसी पद पर हैं. वे राज्यसभा में कर्नाटक का प्रतिनिधित्व करती हैं.
राज्यमंत्री
पंकज चौधरी, 59 वर्षः भाजपा
- सियासी सफर - 1989 में गोरखपुर नगर निगम के निर्दलीय पार्षद के रूप में राजनैतिक जीवन शुरू करते हुए चौधरी सात बार से उत्तर प्रदेश के महाराजगंज से सांसद हैं और दूसरी बार वित्त राज्यमंत्री का काम संभालेंगे