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आरबीआई के इस कदम से सरकार के खजाने में हुई धन की बारिश

भारतीय रिजर्व बैंक की एक घोषणा ने अगले वित्त मंत्री को आर्थिक मोर्चे पर बहुत बड़ी राहत दी है

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया/फाइल फोटो
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया/फाइल फोटो
अपडेटेड 12 जून , 2024

भारतीय रिजर्व बैंक के एक कदम ने अगले वित्त मंत्री को आर्थिक मोर्चे पर बहुत बड़ी राहत दी है. केंद्रीय बैंक ने 22 मई को घोषणा की कि वह वित्त वर्ष 24 के लिए सरकार को 2.11 लाख करोड़ रु. की अधिशेष रकम ट्रांसफर करेगा. यह रकम अगस्त 2019 में स्थानांतरित की गई पिछली रिकॉर्ड राशि 1.76 लाख करोड़ रु. से 62 फीसद ज्यादा है और वित्त वर्ष 23 में दी गई 87,416 हजार करोड़ रु. का करीब ढाई गुना है.

केंद्र ने अंतरिम बजट में बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लाभांश सहित 1.02 लाख करोड़ रु. की प्राप्तियों का अनुमान लगाया था. लेकिन केंद्रीय बैंक का इससे दोगुना धन प्रवाह चुनाव के दौरान घबराहट के शिकार शेयर बाजारों के लिए बड़ी राहत लेकर आया. इस घोषणा के बाद 23 मई को बेंचमार्क बीएसई सेंसेक्स 1196.98 अंक या 1.61 फीसद बढ़कर अपने अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 75,418.04 पर बंद हुआ. 

हालांकि इस अधिशेष भुगतान का विवरण तभी पता चल पाएगा जब रिजर्व बैंक वित्त वर्ष 24 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट सार्वजनिक करेगा. विशेषज्ञ कहते हैं कि यह अधिशेष वैश्विक के साथ घरेलू प्राप्तियों (यील्ड) में बढ़ोतरी से ज्यादा ब्याज आय और रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफे से हुआ होगा. रिजर्व बैंक ने कहा कि इस सरप्लस की गणना 26 अगस्त, 2019 को केंद्रीय बैंक से स्वीकृत आर्थिक पूंजी ढांचे के आधार पर की गई. इस ढांचे की सिफारिश डॉ. विमल जालान समिति ने की थी. समिति ने निर्धारित किया था कि सरकार को अधिशेष स्थानांतरित करते समय रिजर्व बैंक को अपनी बैलेंस शीट के 5.5 से 6.5 फीसद के दायरे में आकस्मिक जोखिम बफर (सीआरबी) रखना होगा. वित्त वर्ष 24 के लिए केंद्रीय बैंक ने यह बफर 6.5 फीसद पर बरकरार रखा है.

बैंक ऑफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के अनुसार, तीन स्रोतों की आय के कारण रिजर्व बैंक ने यह राशि दी होगी. इनमें एक वेरिएबल रेपो दर नीलामी है जो बैंकों को अधिक रकम मुहैया कराने के लिए की जाती है. रिजर्व बैंक से अधिसूचित राशि के लिए बोली लगाकर बैंक नीलामी में भाग लेते हैं. इससे केंद्रीय बैंक को बैंकों द्वारा उधार ली गई राशि पर 6.5 फीसद से ज्यादा आय हुई होगी. वे कहते हैं, "दूसरा कारण रिजर्व बैंक का विदेशी मुद्रा परिचालन होगा. इसके तहत मुद्रा स्थिर रखने के लिए रिजर्व बैंक नियमित रूप से डॉलर की खरीद और बिक्री करता है." खरीद और बिकवाली दोनों ही तरीकों से रिजर्व बैंक को आय हुई होगी जो इस पर निर्भर करती है कि उसने उस समय किस दर पर डॉलर खरीदा या बेचा. सबनवीस समझाते हैं, "वित्त वर्ष '23 में भी इसका बड़ा हिस्सा था और वित्त वर्ष '24 में कुल खरीद-फरोख्त 338 अरब डॉलर (28 लाख करोड़ रुपए) की रही जो इससे पिछले वर्ष 399 अरब डालर (33.2 लाख करोड़ रुपए) थी."

आय का तीसरा जरिया विदेशी मुद्रा भंडार से रिटर्न रहा होगा. इस भंडार में पिछले साल करीब 60 अरब डॉलर (5 लाख करोड़ रुपए) का इजाफा हुआ है. सबनवीस कहते हैं, "570 अरब डॉलर (47.3 लाख करोड़ रुपए) के विदेशी मुद्रा भंडार ने करीब 4 फीसद का रिटर्न दिया होगा. फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में तेज इजाफा करने से वित्त वर्ष 23 में यह यील्ड (आय) बढ़कर 3.73 फीसद हो गई थी जो वित्त वर्ष '22 में 2.11 प्रतिशत थी."

विशेषज्ञ कहते हैं कि रिजर्व बैंक के बजट में अनुमानित राशि से ज्यादा लाभांश ट्रांसफर करने से राजकोषीय मजबूती के सरकार के प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा. 1 फरवरी को पेश अंतरिम बजट में सरकार ने राजकोषीय घाटा (आय और खर्च के बीच अंतर) वित्त वर्ष '25 में कम करके जीडीपी के 5.1 फीसद तक लाने का लक्ष्य रखा था जो कि वित्त वर्ष '24 में 5.8 फीसद था. इतना ही नहीं, सरकार अब बाजार उधारी पर अपनी निर्भरता घटा सकती है.

बैंक ऑफ बड़ौदा की रिसर्च टीम के नोट में कहा गया है कि सरकार अधिक खर्च के लिए भी अतिरिक्त संसाधन का उपयोग कर सकती है, प्राथमिक रूप से पूंजीगत खर्च के लिए. सरकार वित्त वर्ष 25 के लिए पूंजीगत खर्च पहले ही बढ़ाकर 11.1 लाख करोड़ रु. या जीडीपी का 3.4 फीसद कर चुकी है. भारी भरकम लाभांश भुगतान से सरकार की विनिवेश कार्यक्रम पर निर्भरता घटने की उम्मीद है.

इससे कैसे मदद मिलेगी

> नई सरकार का वित्तीय बोझ घटेगा

> इसकी मदद से सरकार अधिक पूंजीगत व्यय कर सकेगी

> राजकोषीय घाटा कम करने में मदद मिलेगी

> बाजार की उधारियों पर सरकार की निर्भरता कम होगी

> धीमी गति से चल रहे विनिवेश कार्यक्रम पर दबाव घटेगा

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