- अरुण पुरी
नवीन पटनायक को मैंने हमेशा ही भारतीय राजनीति का कुछ चमत्कार जैसा माना है. अलबत्ता उनके पिता, ओडिशा के दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक कद्दावर राजनैतिक शख्सियत थे, लेकिन नवीन की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी.
वे किताबें लिखने, देशाटन करने और जैकलीन कैनेडी ओनासिस तथा रॉक-स्टार मिक जैगर जैसे अंतरराष्ट्रीय सितारों के साथ मेलजोल और गुफ्तगू करने में ज्यादा रस लेते थे. उनकी पढ़ाई-लिखाई एलीट स्कूलों में हुई, खूब सुविधा-संपन्न जिंदगी जी रहे थे, राजनीति की धूल-धक्कड़ से काफी दूर.
इसलिए, जब उन्होंने 1997 में अपने पिता के निधन के बाद उनकी विरासत को संभालने का मन बनाया, तो शक होता था कि ये भला ओडिया राजनीति की जोड़तोड़ में कैसे पारंगत हो पाएंगे. स्थानीय भाषा भी वे टूटी-फूटी ही बोल पाते थे. इसलिए, जब नवीन ने मार्च 2000 में 53 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली तो ऐसा लगा कि नाकामी उनके दरवाजे पर दस्तक दे रही है.
मगर किसी चमत्कार की तरह वे 24 साल बाद भी न सिर्फ बदस्तूर गद्दी पर कायम हैं, बल्कि चुनावी महानता के शिखर पर हैं. लगातार पांच बार के मुख्यमंत्री नवीन को पूरी उम्मीद है कि वे अपनी पार्टी, बीजू जनता दल (बीजद) और खुद के लिए लगातार छठी बार जीत हासिल करके सभी रिकॉर्ड तोड़ देंगे. अगर वे ऐसा कर पाते हैं, तो नवीन अगस्त तक देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के मामले में सिक्किम में पवन चामलिंग के 24 साल और 165 दिनों के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ देंगे. लेकिन जीत नहीं पाते हैं तो शायद 77 वर्षीय नवीन का यह आखिरी चुनाव होगा. वे इतिहास बनाने या इतिहास बनने के कगार पर खड़े हैं.
निस्संदेह, यह नवीन के लिए अब तक की सबसे मुश्किल चुनावी जंग है. ओडिशा में 21 लोकसभा सीटों और 147 विधानसभा सीटों के लिए एक साथ चुनाव हो रहे हैं. दोनों के राजनैतिक गणित अलग-अलग हैं, मगर एक-दूसरे में गुंथे हुए हैं. खासकर इसलिए कि मुख्य दावेदार एक ही हैं.
नवीन के बीजद के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली दुर्जेय और लोकप्रिय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) है. 2014 में बीजद ने विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज की और मोदी लहर के बावजूद 21 लोकसभा सीटों में से 20 पर जीत हासिल की. लेकिन 2019 में नवीन को कड़ी टक्कर का एहसास होना शुरू हुआ.
नवीन ने दो-तिहाई बहुमत से विधानसभा में अपनी सीटें बरकरार रखीं, लेकिन भाजपा 21 संसदीय सीटों में से आठ जीत गई. उसका वोट शेयर 38 फीसद हो गया, जो बीजद से सिर्फ पांच फीसद कम था. लेकिन विधानसभा में यह अंतर अधिक था. फिर भी, भाजपा 32 फीसद वोट पा गई, जबकि बीजद को 45 फीसद वोट मिले.
इस बार 2024 के चुनाव में नवीन सकारात्मक एजेंडे के साथ आगे बढ़ रहे हैं. इसके उलट, भाजपा उनकी सेहत को लेकर उन पर व्यक्तिगत हमले करते हुए अफवाहों को तूल दे रही है. संभव है, नवीन सार्वजनिक मंचों पर ज्यादा न दिखते हों, लेकिन सत्ता में अपने 24 वर्षों में उन्होंने कई सफलताएं अर्जित की हैं.
जब उन्होंने कुर्सी संभाली थी, तब ओडिशा देश के सबसे गरीब राज्यों में था, जहां 2006 में भी 63.8 फीसद आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी. आज, यह आंकड़ा 11.07 फीसद है. शायद देश में कहीं भी गरीबी में इतनी तेज गिरावट नहीं देखी गई. फिलहाल ओडिशा की प्रति व्यक्ति आय 1.6 लाख रुपए है जो उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे अन्य पिछड़े राज्यों से अधिक है.
पिछले साल उसकी जीडीपी वृद्धि दर 7.8 फीसद थी, जो राष्ट्रीय औसत 7 फीसद से अधिक थी. ओडिशा अनोखे वित्तीय प्रबंधन वाला दुर्लभ राज्य भी है, जिसका कर्ज-जीडीपी अनुपात 13.1 है, जो देश में सबसे कम है. उसका राजस्व अधिशेष 43,471 करोड़ रुपए है. इसका अधिकांश हिस्सा नीतियों में बदलाव से आता है, जिसके जरिए राज्य के विशाल खनिज संसाधनों की नीलामी को मंजूरी दी गई.
इस नकद अधिशेष से नवीन कल्याणकारी कार्यक्रमों पर भारी खर्च कर पाए हैं. इससे राज्य के हाईस्कूलों में डिजिटल ब्लैकबोर्ड मुहैया कराए गए और अत्याधुनिक खेल सुविधाओं का निर्माण किया गया. दरअसल, ओडिशा अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हॉकी का केंद्र बन गया है. नवीन ने अस्पतालों को नया रूप देने पर भी फोकस किया और बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना (बीकेएसवाई) शुरू की, जो केंद्र की आयुष्मान भारत से आगे की है.
बीकेएसवाई कार्ड से निजी अस्पतालों में प्रति व्यक्ति 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज होता है. महिला सशक्तीकरण के मामले में उन्होंने 2011 में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 फीसद आरक्षण लागू किया था. फिर, स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिला उद्यमियों के लिए मिशन शक्ति योजना से 70 लाख से अधिक महिलाओं की जिंदगी बदल गई है.
ये सभी कामयाबियां नवीन की दो-टूक, साफ-सरल, न्यूनतम बयानबाजी और अधिकतम कामकाज की कार्यशैली की वजह से संभव हो पाई हैं. वे ओडिशा में ही रहे और अपने राज्य के विकास पर फोकस किया, शायद ही कभी दिल्ली या विदेश की यात्रा की और अपने विजन को लागू करने के लिए मुख्य रूप से प्रमुख नौकरशाहों पर निर्भर रहे, जबकि अपनी पार्टी के नेताओं पर कड़ी लगाम लगाई. भाजपा उनकी इन अनूठी खूबियों को उनकी सबसे बड़ी कमजोरी के तौर पर पेश कर रही है. उसका आरोप है कि गैर-ओडिया आईएएस अधिकारी राज्य को चला रहे हैं और नवीन नकारा, भुलक्कड़ हैं. ज्यादातर आलोचना के निशाने पर उनके पूर्व प्राइवेट सेक्रेटरी वी. कार्तिकेय पांडियन हैं. पांडियन ने अक्तूबर 2023 में आईएएस से इस्तीफा दे दिया, बीजद में शामिल हो गए.
उन्हें कैबिनेट रैंक का दर्जा देकर राज्य के प्रमुख '5टी' कार्यक्रम का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. मोदी ने भी हाल में एक चुनावी रैली में पांडियन की इशारे में आलोचना की और कहा, "ओडिशा में एक सुपर सीएम है जिनका दबदबा लोकतांत्रिक रूप से चुने गए सीएम और विधायकों पर चलता है."
भाजपा ने ओडिया 'अस्मिता' बहाल करने को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया है और तमिल मूल के पांडियन जैसे 'बाहरी लोगों' को राज्य पर नियंत्रण करने से रोकने का संकल्प लिया है. ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा ने इस बेहद अहम चुनावी लड़ाई का अक्स भांपने के लिए ओडिशा का दौरा किया.
राज्य के लिए चुनावी युद्ध तेज हो गया है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने ऐलान किया है कि भाजपा अगली राज्य सरकार बनाएगी और लोकसभा में अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने की आक्रामक कोशिश में जुटी है. सबसे दिलचस्प यह है कि यह लड़ाई दो बेहद लोकप्रिय नेताओं के बीच है—एक राष्ट्रीय और दूसरा क्षेत्रीय.
- अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)