मध्य हिमालय में अब जब बर्फ पिघलना शुरू हो गई है तो इन गर्मियों में हिमाचल प्रदेश का राजनैतिक तापमान भी बढ़ने लगा है. यह शुरू हुआ राज्यसभा की सीट पर हर्ष महाजन की चौंकाने वाली भाजपा की जीत से, जो कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के घनिष्ठ सहयोगी रहे हैं.
उन्होंने पिछली 27 फरवरी को कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों की मदद से यह सीट जीती थी. इस घटनाक्रम ने उत्तर भारत में कांग्रेस के शासन वाले इकलौते राज्य में लोकसभा चुनाव के अभियान को हवा दे दी. हालांकि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के खिलाफ शुरुआती बगावत को वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने मेल मिलाप करवाकर खत्म करा दिया और सुक्खू कुर्सी पर बने रहे. लेकिन इस शर्मनाक घटना ने पार्टी का मनोबल हिला दिया.
हिमाचल प्रदेश लोकसभा के लिए चार सांसद भेजता है. कांग्रेस मंडी सीट बचाने के लिए लड़ रही है, जहां से प्रदेश इकाई की प्रमुख और वीरभद्र की प्रतिभा सिंह ने नवंबर 2021 में उपचुनाव जीता था. अन्यथा, 2014 और 2019 में भाजपा ने 4-0 के हिसाब से सीटें जीतकर राज्य में कांग्रेस का सफाया कर दिया. हिंदुत्व के भारी प्रचार पर सवार भाजपा ने 2019 में अपने वोटों में 16 प्रतिशत का इजाफा करके इन्हें 70 फीसद तक पहुंचा दिया.
हालांकि दिसंबर, 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा की चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना किया और 68 सदस्यों वाली विधानसभा में 40 सीट जीत लीं. कांग्रेस एकजुट होकर लड़ी और उसने भाजपा के हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा का मुकाबला सरकार की कमियों को उभार कर किया.
1 जून को चार लोकसभा सीटों (शिमला, हमीरपुर, कांगड़ा और मंडी) के साथ-साथ हिमाचल की छह विधानसभा सीटों के लिए भी उपचुनाव होना है. इन सभी छह सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे जिन्होंने राज्यसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी के खिलाफ और महाजन के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की. उन्होंने सुक्खू सरकार को खतरे में डाल दिया था. लिहाजा, उनको निलंबित कर दिया गया.
बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए. 68 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के पास 25 विधायक और तीन निर्दलीय हैं. यह माना जा रहा है कि अपनी कुर्सी बचाने के लिए सुक्खू को लोकसभा की चारों सीटों के साथ-साथ विधानसभा की छह में से कम से तीन सीटें जीतने की जरूरत होगी. उपचुनाव में जीत से विधानसभा में उनका बहुमत हो जाएगा जबकि संसदीय सीटों पर जीत से आला कमान की नजर में उनका कद बढ़ जाएगा. फिलहाल, सुक्खू 2022 के मुकाबले को दोहराने के लिए जी-जान से लगे हुए हैं और अपने विरोधी खेमे की ओर से प्रचारित राम मंदिर निर्माण जैसी 'उपलब्धि’ का असर रोकने के लिए स्थानीय मुद्दों पर ही टिके रहने की कोशिश कर रहे हैं.
भाजपा भी चीजों को हल्के में नहीं ले रही है - उसने 24 मार्च को अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी, इस तरह उन्हें प्रचार के लिए पर्याप्त समय दे दिया. जैसा कि पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर ने स्पष्ट किया, भाजपा के सभी चारों उम्मीदवार प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और करिश्मे के भरोसे रहेंगे. ठाकुर दावा करते हैं, "प्रधानमंत्री मोदी बड़ा फैक्टर है. वे अगली सरकार बनाएंगे. भाजपा का लक्ष्य 400 सीट जीतने का है, इनमें से चार हिमाचल से आएंगी."
वे प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक नेता की छवि का जिक्र करते हुए कहते हैं, "इसका मतदाताओं पर बड़ा असर होगा." वे भाजपा की 'उपलब्धियां’ गिनाते हैं - धारा 370 का खात्मा, राम मंदिर का निर्माण, संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण और भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनना. क्या गुटों में बंटी हिमाचल कांग्रेस इस चुनौती का मुकाबला कर सकती है?
मुख्यमंत्री सुक्खू को यकीन है कि वह निपट सकती है. वे कहते हैं, "हमने पुरानी पेंशन योजना लागू की, लीकेज बंद कर राजस्व बढ़ाया, लालफीताशाही कम की, सरकार लोगों के लिए काम करने को प्रतिबद्ध है." उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर पिछले साल की बाढ़ के बाद पुनर्वास काम के लिए अपर्याप्त धन देने का आरोप लगाया. भाजपा के खिलाफ गुस्से की दूसरी वजह फरवरी में राज्यसभा चुनाव में हुई हार है. सुक्खू इंडिया टुडे से कहते हैं, "उन्होंने राज्यसभा सीट मुझसे चुरा ली. मैं लोगों से सभी चार लोकसभा सीटों के लिए वोट मांग रहा हूं."
अग्निवीर और सेब
कांग्रेस कांगड़ा और हमीरपुर में अग्निवीर योजना को मुद्दा बनाकर भाजपा से मुकाबला कर रही है. ये दोनों क्षेत्र सेना में युवाओं की अधिक भर्ती के क्षेत्र के रूप में जाने जाते हैं. हिमाचल में करीब सवा लाख पूर्व सैनिक हैं और 1,15, 000 सेना में कार्यरत हैं. सिर्फ 25 फीसद अग्निवीरों को ही सेना में रखने का नियम अलोकप्रिय है.
वहीं शिमला, मंडी और कांगड़ा की सेब पट्टी में फल किसान अमेरिका से हो रहे सस्ते आयात के कारण कीमतें गिरने से नाराज हैं. केंद्र सरकार के इन पर ज्यादा ऐंटी डंपिंग शुल्क न लगाने से भी वे खफा हैं. मुख्यमंत्री सुक्खू कहते हैं, "मैं सेब उत्पादकों के साथ खड़ा हूं. बाढ़ के दौरान मैंने यह सुनिश्चित किया कि सड़क संपर्क बहाल किया जाए जिससे कि वे अपने उत्पाद बाजार भेज सकें." कांग्रेस ने कांगड़ा से पूर्व वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा को खड़ा किया है जिन्हें लेकर भाजपा कह रही है कि शर्मा ने बतौर केंद्रीय मंत्री विश्व व्यापार संगठन (डबल्यूटीओ) में इस शुल्क की दर 50 फीसद तक रखने की प्रतिबद्धता जताई थी.
शर्मा के खिलाफ भाजपा ने राजीव भारद्वाज को खड़ा किया है. वे निवर्तमान सांसद कृष्ण कपूर की जगह आए हैं, जिन्होंने कैंसर का पता चलने पर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. इस तरह उनके सलाहकार और पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के प्रभाव पर हिमाचल में पर्दा गिर गया. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर हमीरपुर से फिर से मैदान में हैं जबकि भाजपा के पूर्व राज्य प्रमुख सुरेश कश्यप को शिमला से टिकट मिला है. कांग्रेस ने कसौली के अपने विधायक विनोद सुल्तानपुरी को कश्यप के मुकाबले खड़ा किया है. पूर्व विधायक सतपाल रायजादा हमीरपुर से उसके उम्मीदवार हैं.
हमीरपुर से चार बार के सांसद अनुराग ठाकुर को उपचुनाव में भाजपा टिकट पर लड़ रहे कांग्रेस के दलबदलुओं इंद्र दत्त लखनपाल (बरसर), देवेंदर भुट्टो (कुटलेहर), राजेंद्र राणा (सुजानपुर) और चैतन्य शर्मा (गगरेट) की भी जीत सुनिश्चित करनी है. ये सभी विधानसभा क्षेत्र उनके संसदीय क्षेत्र में आते हैं. फरवरी में क्रॉसवोटिंग करने वाले कांग्रेस के दो दलबदलू नेता रवि ठाकुर और सुधीर शर्मा हैं जो लाहौल स्पीति (मंडी लोकसभा सीट) और धर्मशाला (कांगड़ा) से चुनाव लड़ रहे हैं.
हालांकि हमीरपुर भगवा गढ़ है लेकिन भाजपा 2022 के चुनाव में गुटबाजी के कारण यहां 17 विधानसभा सीटों में से 12 सीट हार गई थी. इस बार उसे उम्मीद है कि राष्ट्रीय एजेंडे और अनुराग की सक्रियता की मदद से उसे सीटें बरकरार रखने में मदद मिलेगी. मुख्यमंत्री सुक्खू (नादौन) की विधानसभा सीट भी हमीरपुर का हिस्सा है. कांग्रेस मतदाताओं को बता रही है कि भाजपा स्थानीय व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद से हटाने की साजिश में लगी हुई है. शिमला में कांग्रेस उम्मीदवार सुल्तानपुरी इसे कांग्रेस का गढ़ बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, जैसा कि उनके पिता के समय था. 2022 में यहां की 17 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 13 में जीत मिली थी.
‘क्वीन’ बनाम 'किंग’
मंडी में अभिनेत्री कंगना रनौत को खड़ा करना भाजपा के पक्ष में अच्छा काम कर रहा है. अपने आक्रामक और स्टार पावर की बदौलत वे मतदाताओं के साथ तुरंत संपर्क बना लेती हैं. मंड्याली बोली में पारंगत होने से भी उनको मदद मिल रही है. दरअसल, मंडी और कुल्लू जिलों में उनका व्यक्तित्व ऐसी स्थानीय लड़की का है जिसने बॉलीवुड में नाम रोशन किया है.
भाजपा ने जयराम ठाकुर को उनका अभियान संभालने के लिए लगाया है. पूर्व मुख्यमंत्री दावा करते हैं, "2021 के उपचुनाव में हम बहुत कम अंतर से हार गए थे. अब कोई सहानुभूति लहर (कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की मृत्यु के बाद) नहीं है." ठाकुर का मंडी में प्रभाव है और 2022 में भाजपा की विधानसभा सीटों में से आधी यहीं से मिली थीं. उनके लिए दांव ऊंचे हैं क्योंकि वे जानते हैं उनके फिर से मुख्यमंत्री बनने के अवसर अनुकूल नतीजों पर निर्भर करते हैं.
कंगना का मुकाबला विक्रमादित्य सिंह से है जो प्रतिभा सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र हैं और यह उनका पारिवारिक क्षेत्र है. रामपुर बुशहर के छोटे 'राजा’ विक्रमादित्य लो प्रोफाइल अभियान चला रहे हैं. फरवरी में वे भी बागियों के साथ आ गए थे और यह कहते हुए सुक्खू कैबिनेट छोड़ दी थी कि सरकार ने उनके पिता की विरासत को संरक्षित करने के लिए कुछ नहीं किया. बाद में उन्हें बने रहने के लिए मनाया गया. विडंबना यह है कि सुक्खू जहां कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए यह कहकर वोट मांग रहे हैं कि भाजपा उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है, वहीं विक्रमादित्य अपने परिवार की विरासत को बचाने के लिए वोटरों से कह रहे हैं.
इन लड़ाइयों के बीच कांग्रेस के लिए बड़ी लड़ाई यह है कि उसकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करे. लोकसभा की कुछ सीटें भी मिल जाएं तो वह उसे अच्छा ही मानेगी.