भारत की विकास गाथा विरोधाभासों से भरी है. मानव विकास संस्थान (आईएचडी) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की ओर से संयुक्त रूप से प्रकाशित 'भारत रोजगार रिपोर्ट 2024' में पाया गया कि बेरोजगारी का ग्राफ जहां नीचे आ रहा है और श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, वहीं गुणवत्तापूर्ण और उत्पादक रोजगार की कमी चिंता बढ़ा रही है.
भारतीय श्रम बाजार खास तौर पर 'अनौपचारिक क्षेत्र' पर टिका हुआ है, जिसमें 81 फीसद लोग असंगठित क्षेत्र से जुड़े हैं और 90 फीसद से अधिक अनौपचारिक तौर पर काम कर रहे हैं. कुल बेरोजगार आबादी में बेरोजगार युवाओं की भागीदारी अविश्वसनीय ढंग से 82.9 फीसद होने के बीच रिपोर्ट यह सवाल भी उठाती है कि क्या भारत अपनी विशाल आबादी के फायदे को गंवा रहा है.
साल 2022 तक के हालिया डेटा पर आधारित यह रिपोर्ट बताती है कि 2000 से 2019 के बीच श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी घट रही थी, मगर अब इसमें सुधार होने लगा है. ऊपरी तौर पर यह तथ्य उम्मीद भरा नजर आता है, मगर अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि यह बदलाव दर्शाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में गिरती घरेलू कमाई के चलते काम करना महिलाओं की मजबूरी बनता जा रहा है.
इसमें, ज्यादातर बढ़ोतरी उन महिलाओं के की वजह से हुई, जिन्होंने खुद ही बतौर श्रमिक (जो न भुगतान कर रहीं और न वेतन ले रही हैं) और अवैतनिक पारिवारिक श्रमिकों के साथ मिलकर स्वरोजगार की शुरुआत की. श्रम अर्थशास्त्री और एमडीआई, गुरुग्राम में एडजंक्ट प्रोफेसर के.आर. श्यामसुंदर कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक, जब तक लोगों को सैलरी नहीं मिलती ऐसा नहीं माना जा सकता कि वे नौकरी कर रहे हैं. मगर भारत में ऐसा नहीं है.
वहीं, डेटा यह भी बताता है कि अनौपचारिक श्रम में महिलाओं की संख्या घटी है लेकिन औपचारिक रोजगार में उस अनुपात में उनकी भागीदारी नहीं बढ़ी है. असल में करीब 62.8 फीसद महिलाएं किसानी से जुड़ी हैं. स्वरोजगार, जिसमें काम करने वाला और काम देने वाला एक ही है और परिवार के लोग ही घरेलू बिजनेस में बिना कोई पैसा लिए सहायक के तौर पर शामिल होते हैं, देश में रोजगार के प्राथमिक रूपों में एक है, जिसमें 2023 में 57.3 फीसद लोग काम कर रहे थे. फिर 21.8 फीसद भागीदारी के साथ अनौपचारिक श्रम का नंबर आता है.
सिर्फ 20.9 फीसद श्रम बल ही नियमित रोजगार में है. श्यामसुंदर कहते हैं, "श्रम अर्थशास्त्र का मूल सिद्धांत यही कहता है कि वेतन और भत्तों पर आधारित नौकरियां बढ़नी चाहिए और स्वरोजगार, मसलन, सब्जी विक्रेता, चाय की दुकान चलाने वाले आदि, में कमी आनी चाहिए क्योंकि लोग कोई और उपाय न देखकर ही स्वरोजगार को अपना लेते हैं."
यह रुझान खासकर देश के युवाओं (15-29 वर्ष की आयु) के बीच स्पष्ट नजर आता है. पिछले दो दशकों के आंकड़ों पर गौर करें तो युवा बेरोजगारी दर वर्ष 2000 में 5.6 फीसद की तुलना में बढ़कर 2019 में 17.5 फीसद हो गई. वैसे 2022 में गिरावट के साथ यह आंकड़ा 12.4 फीसद रह गया. विडंबना कि शिक्षा जितनी ज्यादा बढ़ी, बेरोजगारी बढ़ने की संभावना उतनी ही ज्यादा है. शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी करीब दोगुनी बढ़कर 2000 में 18 फीसद की तुलना में 2022 में 35 फीसद हो गई. मगर इसी अवधि में आर्थिक गतिविधियों में शामिल युवाओं की संख्या 52 फीसद से घटकर 37 फीसद रह गई है.
इस रिपोर्ट में योगदान देने वाले रोजगार अध्ययन केंद्र, आईएचडी के निदेशक रवि श्रीवास्तव बताते हैं कि मौजूदा हालात डिमांड और सप्लाई की चुनौतियों की वजह से पैदा हुए हैं. अगर डिमांड की बात करें युवाओं की उम्मीद के हिसाब से उनको नौकरी या रोजगार नहीं मिल पा रहा है. वहीं अगर सप्लाई की बात करें तो युवा शिक्षित तो रहे हैं, पर उनके पास बाजार के हिसाब से कौशल नहीं है, जिससे भी उनको नौकरी खोजने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
जैसा कि रिपोर्ट दिखाती है, नौकरीपेशा युवाओं में भी स्वरोजगार का रुझान काफी बढ़ा है. भारत में स्वरोजगार में बड़े तौर पर किराने की छोटी-मोटी दुकान संभालना या पटरी पर दुकान लगाने जैसे काम शामिल होते हैं, न कि वकील और एकाउंटेंट जैसे पेशेवर बनना. 2022 में 58.5 फीसद वयस्कों की तुलना में 47.5 फीसद युवा स्वरोजगार से जुड़े थे.
यह चिंता वाली बात है क्योंकि भारत उन कुछ देशों में शुमार है जहां कामकाजी उम्र की आबादी (15 से 59 वर्ष) की हिस्सेदारी ज्यादा है. इनका आंकड़ा 2011 में 59 फीसद से बढ़कर 2021 में 63 फीसद पर पहुंच गया और अगले 15 वर्ष तक इसके स्थिर रहने के आसार हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो रिपोर्ट यह कहती है कि अब वह आखिरी दौर चल रहा है जब भारत अपनी इतनी बड़ी आबादी का फायदा उठा सकता है. ऐसे में यह भी जरूरी हो जाता है कि सरकार भी अपनी पॉलिसी को ऐसे बनाए जिससे कि नौकरियां या रोजगार पैदा हो सके.
साथ ही लोगों की उम्मीद और अच्छी सैलरी वाली नौकरियों या रोजगार और खेती-किसानी से इतर हट कर रोजगार को बढ़ावा दे. इसके अलावा सरकार को चाहिए कि वह लोन में सब्सिडी और टैक्स छूट जैसे कदमों को भी बढ़ाए. किसानी छोड़ने वालों के लिए छोटे, लघु और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. आखिरकार, भारत की कुल आबादी में युवाओं की हिस्सेदारी 27 फीसद है, जिसमें हर साल 1.2 करोड़ लोग कामकाजी उम्र की आबादी में शामिल हो जाते हैं. और उन्हें उत्पादक नौकरियों मुहैया कराना बेहद जरूरी है.