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महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में नई सज-धज के साथ और क्या बदलेगा?

केंद्र और गुजरात सरकार ने महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम के लिए साझा तौर पर एक पुनर्विकास योजना शुरू की है

साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी की एक प्रतिमा
अपडेटेड 26 मार्च , 2024

नरेंद्र मोदी सरकार ने दो साल पहले महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम का जीर्णोद्धार करने की घोषणा की थी. अब वह पुनर्विकास योजना का पहला ब्लूप्रिंट लेकर आई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च को अहमदाबाद में गांधी आश्रम स्मारक और परिसर पुनर्विकास परियोजना के मास्टरप्लान का अनावरण किया.

ठीक 94 साल पहले इसी दिन गांधी ने दांडी यात्रा शुरू की थी, जिसकी अगुआई उन्होंने अपने आश्रम से की थी. प्रधानमंत्री ने नई सजधज से तैयार कोचरब आश्रम का भी उद्घाटन किया, जो 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर महात्मा का पहला निवास स्थान था. साबरमती नदी के किनारे बने आश्रम में गांधी 1917 में आए थे. 

2021 में जब 1,200 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से साबरमती आश्रम के पुनर्विकास की घोषणा की गई थी, गांधीवादियों और आम जनता के एक तबके ने चिंताएं जाहिर की थीं कि आश्रम के शांत परिसरों को ''गांधी थीम पार्क'' में बदल दिया जाएगा. मगर, इंडिया टुडे ने जिन लोगों से बात की, उनका कहना है कि तब से इस नियोजित जीर्णोद्धार के बारे में और कम से कम निर्मित ढांचे के बारे में छन-छनकर जो जानकारियां आती रही हैं, उनसे वे सारी आशंकाएं दूर हो गई मालूम देती हैं.

विस्तृत योजना अभी आनी है पर नए आश्रम परिसर में महात्मा गांधी के जीवन के बारे में प्रस्तुत किए जाने वाले आख्यान को लेकर आशंकाएं बनी हुई हैं. फिलहाल साबरमती आश्रम सुरक्षा और स्मृति न्यास (एसएपीएमटी) कैंपस में स्मारक और संग्रहालय की देखरेख करता है. महात्मा गांधी साबरमती आश्रम स्मारक न्यास (एमजीएसएएमटी) का गठन पुनर्विकास परियोजना के अंग के तौर पर किया गया है.

साबरमती आश्रम 1917 से 1930 तक यानी 13 साल गांधी का निवास स्थान रहा था. मौजूद अभिलेखों के मुताबिक, तब आश्रम 120 एकड़ में फैला था. आज सैलानी केवल पांच एकड़ तक जा सकते हैं जिनमें गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा का निवास स्थान हृदय कुंज, संग्रहालय और प्रदर्शनी क्षेत्र शामिल हैं, जिनकी अभिकल्पना 1963 में चार्ल्स कोरिया ने की थी. इस सबकी देखरेख एसएपीएमटी करता है.

इसके अलावा आश्रम परिसरों से ही पांच और न्यास संचालित होते थे—साबरमती हरिजन आश्रम ट्रस्ट, साबरमती आश्रम गौशाला ट्रस्ट, गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल, खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति और गुजरात हरिजन सेवक संघ—जो साबरमती में गांधी की तरफ से शुरू किए गए कामों को आगे बढ़ा रहे हैं. जीर्णोद्धार योजना के हिस्से के तौर पर इन्हें दूसरी जगहों पर ले जाया गया है. योजना के तहत उन 250 परिवारों का पुनर्वास भी किया गया जो आश्रम परिसरों में आकर रहने लगे थे.

केंद्र और गुजरात सरकार की तरफ से साझा तौर पर शुरू की गई पुनर्विकास योजना का इरादा आगंतुकों को यहां गांधी के रहने के दौरान उनकी जिंदगी का दिलचस्प और गहरा अनुभव और समझ देना है. डिजाइन टीम के एक सदस्य ने इंडिया टुडे से कहा, ''वास्तुशिल्प की भाषा में निरंतरता बनाए रखने की खातिर जीर्णोद्धार और पुनर्प्रस्तुति के लिए केवल आश्रम के निर्माण के वक्त मौजूद टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ही किया जाएगा.''

जानकार सूत्रों ने बताया कि जीर्णोद्धार के बाद तैयार आश्रम भारत और विदेशों में महात्मा के काम से लेकर उनकी तरफ से चलाए गए जनांदोलनों, उनकी दिनचर्या और जिंदगी की अहम घटनाओं तक और खुद साबरमती आश्रम के बारे में आख्यानों तक महात्मा के जीवन की प्रदर्शनियों के स्थल का काम भी करेगा. परिसर का मास्टरप्लान वास्तुकार बिमल पटेल की फर्म एचसीपी डिजाइन तैयार कर रही है, जिसने पिछले दिनों उद्घाटित संसद का नया भवन भी डिजाइन किया था. वास्तविक आश्रम के चारों ओर 322 एकड़ का इलाका भी साबरमती आश्रम के लोकाचार के अनुरूप नए सिरे से विकसित किया जाएगा.

न्यास के प्रबंधक न्यासी कार्तिकेय साराभाई बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के हाथों जारी पुनर्विकसित आश्रम का मास्टरप्लान ''मोटे तौर पर एसएपीएमटी की तरफ से तैयार कॉन्सेप्ट नोट पर आधारित है.'' आश्रम के प्रबंधन के बारे में बात करते हुए साराभाई ने कहा, ''हम अब एक नए दौर में दाखिल हो रहे हैं.'' एसएपीएमटी के सूत्रों ने भी कहा कि न्यास के पास महात्मा के बारे में साहित्य का विस्तृत भंडार है और वह पुनर्निमित आश्रम में प्रदर्शित वस्तुओं और विषय सामग्री को क्यूरेट करने की उम्मीद करता है.

सरकार की तरफ से ''एसएपीएमटी को बाइपास करके'' जीर्णोद्धार किए जाने के बारे में गांधीवादी समुदाय की तरफ से जाहिर चिंताओं को दूर करते हुए आश्रम के एक सूत्र ने कहा, ''विस्तारित कैंपस में कई अनधिकृत ढांचे खड़े हो गए थे जिनका आश्रम की गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं था, न ही ये इसके सौंदर्यशास्त्र के अनुरूप थे. आगंतुकों के अनुभव में इजाफा करने के लिए इन ढांचों को ढहाना पड़ा, सार्वजनिक जमीन और सड़कें अधिग्रहीत करनी पड़ीं और परिवारों का पुनर्वास करना पड़ा. यह सरकार की सक्रियता के बिना संभव नहीं था.

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