जनवरी की 30 तारीख को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने 30 जनवरी को रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी) के पूर्व अध्यक्ष सतेंद्र मोहन शर्मा और नौ अन्य लोगों को 2010 के परीक्षा लीक मामले में पांच साल की सख्त सजा सुनाई. शर्मा और अन्य की गिरफ्तारी कोई अकेला मामला नहीं था. वर्ष 2024 के पहले महीने में भी परीक्षा लीक के ऐसे ही कम से कम तीन मामलों में गिरफ्तारियां हुईं.
परीक्षाओं में नकल भारत की एक बड़ी समस्या है. चाहे वह बिहार में पुलिस कांस्टेबलों की भर्ती परीक्षा हो (जिसमें 18 लाख आवेदक थे) या राजस्थान में शिक्षक पात्रता परीक्षा हो, पिछले पांच साल में कम से कम 15 राज्यों में प्रश्नपत्र लीक होना एक अभिशाप सरीखा है.
वास्तव में, इस तरह की लीक ने नौकरी के लिए इच्छुक 1 करोड़ से अधिक उम्मीदवारों की संभावनाओं को धूमिल किया है. विभिन्न राज्यों ने अपने-अपने दायरे में नकल विरोधी कानून पारित किए हैं. इनमें उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और ओडिशा शामिल हैं. हालांकि इस समस्या पर काबू पाने के लिए एक केंद्रीय कानून का लंबे समय से इंतजार था.
5 फरवरी को केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने इस कमी को दूर करते हुए सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक 2024 पेश किया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी और सरकार ने 12 फरवरी को इसकी अधिसूचना जारी कर दी.
इस कानून का मकसद 'प्रश्न पत्र या आंसर की (उत्तर पत्र) लीक होना', 'उम्मीदवार की प्रत्यक्ष या परोक्ष मदद करना' और कंप्यूटर नेटवर्क से छेड़छाड़' जैसे गलत तरीकों पर रोक लगाना है. इसमें इस तरह के सभी अपराधों को संज्ञेय, गैर जमानती और गंभीर श्रेणी में रखा गया है. नए कानून के दायरे में वे सभी परीक्षाएं आएंगी जिन्हें संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सनेल सेलेक्शन, केंद्रीय मंत्रालय या विभाग और उनसे जुड़े और अधीनस्थ कार्यालय, राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी और ऐसे कोई भी प्राधिकरण कराते हैं जिन्हें केंद्र ने अधिसूचित किया है.
इसके दायरे में सभी सेवा प्रदाता, संगठन और कार्मिक, आएंगे जिन्हें सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण ने परीक्षाएं संचालित करने के लिए रखा है. इस कानून में जुर्माना भी भारी है, कम से कम तीन वर्ष की जेल और एक करोड़ रुपए तक का दंड का प्रावधान है.
व्यापक जाल
परीक्षाओं में लीक कोई नई घटना नहीं है. बात बस इतनी है कि पिछले कुछ वर्षों में इसके तौर-तरीके काफी उन्नत हो गए हैं तथा पैमाने और दांव काफी व्यापक हो गए हैं. इसके साथ ही अपराधियों को पकड़ना तकरीबन नामुमकिन हो गया है. आरआरबी परीक्षा मामले में सीबीआई ने सितंबर 2010 में आरोप पत्र दायर किया था. दोषी ठहराए जाने में लगभग डेढ़ दशक का समय लगा है.
आरआरबी की वह परीक्षा 1,936 सहायक स्टेशन मास्टरों और सहायक लोको पायलटों की भर्ती के लिए हुई थी. सीबीआई के अनुसार, शर्मा के आदमियों ने नौकरी के इच्छुक अभ्यार्थियों को निजी एजेंटों के जरिए जाल में फंसाया. उनसे एडवांस लेने के बाद चुनिंदा उम्मीदवारों को गोवा, सोलापुर और नागपुर शिफ्ट किया गया, जहां उनको लीक हुए प्रश्न पत्र से पढ़ाया गया. सीबीआई ने 36.9 लाख रुपए नकद बरामद किए.
आरआरबी का यह केस ऐसे कुछ मामलों में एक है जहां जांच एजेंसी किसी को सजा दिलाने में सफल हुई है (हालांकि अभियुक्त अभी भी अपील कर सकते हैं). ऐसे कई मामले हैं जिनमें जांच किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी. असल में, परीक्षा माफिया कई स्तर पर अपने काम को अंजाम देता है और उसके कई सिरे होते हैं जो एक दूसरे से मिलकर काम करते हैं.
इसी तरह के एक मामले में, ओडिशा में जूनियर इंजीनियरों की कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की परीक्षा का मास्टरमाइंड पटना का निवासी था और वह अपने शहर से बाहर निकले बगैर परीक्षा का पेपर हासिल करने में कामयाब रहा. पश्चिम बंगाल में प्रश्नपत्र छप रहा था और वहां का एक कर्मचारी उसकी मदद कर रहा था.
आखिरकार, जुलाई 2013 में ओडिशा पुलिस ने पटना में महालेखाकार कार्यालय के पूर्व लेखाकार 35 वर्षीय विशाल चौरसिया को उस मामले में गिरफ्तार किया. पुलिस सूत्रों ने बताया कि उसने बंगाल प्रेस के एक कर्मचारी वीरेंद्र सिंह पासवान को एक लाख रुपए देकर पेपर हासिल कर लिया था. बाद में एसएससी परीक्षा रद्द करनी पड़ी.
विशाल का यह इस तरह का पहला घोटाला नहीं था क्योंकि वह केंद्रीय पुलिस संगठन के सब इंस्पेक्टर (एसआई) और सहायक सब इंस्पेक्टर (एएसआई) की भर्तियों से जुड़े पेपर लीक के मामले में भी शामिल था. केंद्रीय पुलिस संगठन केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत सभी संगठनों के लिए भर्ती करता है. यह परीक्षा एसएससी ने 2013-14 में करवाई थी.
पुलिस सूत्रों ने माना कि ज्यादातर रैकेट का पता तभी चलता है जब आरोपियों में से एक या ज्यादा लोग लालची हो जाते हैं तथा पैसा बनाने के लिए और भी डील करने लग जाते हैं या उम्मीदवार प्रश्नपत्र हासिल करने में खर्च किए गए पैसे की कुछ भरपाई के लिए अधिक लोगों को प्रश्न पत्र दे देते हैं.
पूरी रकम हासिल हो जाए और मामला भी नहीं खुले, यह सुनिश्चित करने के लिए परीक्षा माफिया उम्मीदवारों के मूल दस्तावेज अपने पास रख लेता है. वहीं, जब परीक्षा खत्म होती है और प्रश्नपत्र मैच कर जाते हैं तो उम्मीदवारों को आधा पैसा देने को कहा जाता है. बाकी का आधा पैसा परिणाम घोषित होने के बाद लिया जाता है. पूरे भुगतान के बाद ही प्रमाण पत्र लौटाए जाते हैं.
इस तरह पैसा हासिल करना आसान होता है क्योंकि सरकारी नौकरी के लिए कुछ भी करने को इच्छुक उम्मीदवारों की कोई कमी नहीं है. इसलिए हर कोई, चाहे वह व्यवस्था का हिस्सा हो या उससे बाहर, पैसे कमाने के लिए इन मामलों में शामिल होने के लिए तैयार रहता है. सीबीआई ने जम्मू-कश्मीर में जल शक्ति विभाग के लिए जूनियर इंजीनियरों (सिविल) की भर्ती की लिखित परीक्षा में कथित अनियमितताओं पर 1 जनवरी को 15 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया जिनमें सात सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं.
आरोपियों में जम्मू-कश्मीर का पूर्व सहायक सब इंस्पेक्टर, सीआरपीएफ का एक पूर्व हेड कांस्टेबल और सेना का एक पूर्व सिपाही शामिल हैं. एक अन्य मामले में, केंद्रीय एजेंसी ने नौ रेलवे कर्मियों और अंधेरी की एक निजी फर्म के अधिकारियों को 9 जनवरी को पेपर लीक केस में गिरफ्तार किया.
वह मामला 2021 में पश्चिम रेलवे की ओर से आयोजित कनिष्ठ लिपिकों और टाइपिस्टों की सामान्य विभाग प्रतियोगी परीक्षा से जुड़ा था. वहीं, 11 फरवरी को जनरल ग्रेजुएट क्वालिफाइड कंबाइंड कंपीटिशन के प्रश्नपत्र के लीक मामले में 14 लोग गिरफ्तार किए गए जिसमें झारखंड विधानसभा का अंडर सेक्रेटरी मोहम्मद शमी और उसके दो बेटे शामिल थे. झारखंड एसएससी को 28 जनवरी को उस परीक्षा की तीसरी शिफ्ट रद्द करनी पड़ी.
लंबे समय से दरकार
पेपर लीक और परीक्षाओं में हेराफेरी ने सरकारी नौकरियों के योग्य ऐसे हजारों दावेदारों के अवसरों को नष्ट किया है जो परीक्षाएं रद्द होने और अंतहीन मुकदमेबाजी के शिकार हुए. जो समय और अवसर उन्होंने खोया, उसकी कहीं से कोई भरपाई नहीं हो सकती, खास तौर पर ऐसे समय में जब सरकारी नौकरियों की संख्या घट रही है तथा छात्रों को प्रतियोगी परीक्षा के लिए महीनों और वर्षों तक तैयारी करनी पड़ती है.
असल में पेपर लीक ऐसा संवेदनशील मसला बन गया है कि राजस्थान में पिछली सरकार को राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम के उपाय) अधिनियम 2023 में संशोधन करना पड़ा और इसमें शामिल लोगों के लिए अधिकतम सजा बढ़ाकर उम्रकैद करनी पड़ी. इसके बाद भी मामला उबलता रहा और नवंबर 2023 के राज्य के चुनाव में यह बड़ा चुनावी मुद्दा था.
कोटा में एक आमसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि पेपर लीक में जो कोई भी शामिल होगा, उसे सजा मिलेगी. वह वादा अब पूरा होता लग रहा है. विभिन्न राज्यों ने नकल रोकने के लिए कानून पारित किए हैं, मगर वे कारगर होते नहीं नजर आ रहे. वे अब शायद अपने यहां नकल के इस खतरे से छुटकारा पाने के लिए व्यापक केंद्रीय कानून से उम्मीद कर सकते हैं.

