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बहन वाई.एस. शर्मिला के कांग्रेस में जाने से जगनमोहन रेड्डी के सामने क्या हैं चुनौतियां?

जगन के सामने बहिन शर्मिला की चुनौती है जिन्होंने अपने दिवंगत पिता वाईएसआर की राजनैतिक विरासत पर हक जमाने के लिए अब कांग्रेस का दामन थाम लिया है.

राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ 4 जनवरी को वाई.एस. शर्मिला
राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ 4 जनवरी को वाई.एस. शर्मिला
अपडेटेड 31 जनवरी , 2024

जनवरी की 4 तारीख को जब अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे संयुक्त आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की बेटी वाई.एस. शर्मिला का पार्टी के तिरंगे की छाप वाली शॉल ओढ़ाकर स्वागत कर रहे थे तो उस दिन उनके भाई और राज्य के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी हैदराबाद में भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव का हाल-चाल पूछ रहे थे.

राव से उनकी बातचीत करीब दो घंटे हुई. राव की भारत राष्ट्र समिति हाल में तेलंगाना में हुए संघर्षपूर्ण विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई. संभव है कि जगनमोहन रेड्डी उनसे नई चुनौतियों और उनकी गलतियों के बारे में पूछ रहे हों. 

भाई-बहन की लड़ाई अब वाईएसआर की राजनैतिक विरासत में दरार डाल रही है. जगन ने वर्षों के जबरदस्त संघर्ष के बाद यह विरासत हासिल की थी. अपने नेतृत्व में कांग्रेस को लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जितवाने के कुछ समय बाद ही वाईएसआर की सितंबर 2009 में हेलिकॉप्टर हादसे में मृत्यु हो गई थी जिसके बाद परिवार का भी रास्ता अलग हो गया था.

जगन ने वर्ष 2011 में अपना राजनैतिक संगठन खड़ा कर लिया और कांग्रेस का कुछ आधार भी हथिया लिया. उसके बाद 2014 में आंध्र प्रदेश का पुनर्गठन हुआ और तेलंगाना बना. सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस औंधे मुंह गिरी और वह एक भी सीट नहीं जीत सकी. उसे 2014 के चुनाव में महज 2.4 फीसद वोट मिले (शायद इसलिए कि राज्य के विभाजन के लिए मतदाताओं ने उसे जिम्मेदार माना). 2019 के चुनाव में उसका मत प्रतिशत और गिरकर 1.2 फीसद रह गया (नोटा को मिले वोटों से भी कम वोट). 

पिछले साल की शुरुआत में दक्षिण में कांग्रेस को तब उम्मीद की किरण दिखी जब उसे पहले कर्नाटक में विजय हासिल हुई और उसके बाद तेलंगाना में भी जीत दर्ज की जहां कांग्रेस ने केसीआर की दो बार की सरकार को परास्त किया. पार्टी अब आंध्र प्रदेश में अपने लिए उम्मीदों के अवसर देख रही है और वाईएसआर की विरासत को उनकी बेटी के जरिये छीनने की उम्मीद कर रही है.

शर्मिला के कांग्रेस में आने से न केवल उनका राजनैतिक भविष्य आकार लेगा बल्कि जगन की पार्टी-वाईएसआरसीपी-के लिए भी इसके निहितार्थ होंगे. वाईएसआरसीपी के लिए वे एक दशक से अभियान चला रही थीं. कांग्रेस भी उनके नेतृत्व में पार्टी के पुनर्जीवन को लेकर उत्साहित है. असल में उनकी घर वापसी का जश्न मनाने के लिए पार्टी इस महीने मंडल और जिला परिषदों के नेताओं की बैठकें करने की योजना बना रही है.

2014 की करारी हार के समय प्रदेश कांग्रेस प्रमुख रहे कांग्रेस कार्यसमिति सदस्य एन. रघुवीर रेड्डी का कहना है, "मूड उत्साहजनक है. कुछ महीने पहले जो बेहद मुश्किल लक्ष्य दिख रहा था, अब लगता है कि उसे हासिल कर लेंगे. माहौल सकारात्मक है. हम वाईएसआरसीपी के उन नेताओं से बात कर रहे हैं जो पार्टी छोड़ कांग्रेस में आना चाहते हैं." 

बाहर से भले ही बेफिक्र दिखें, लेकिन जगन के लिए यह चिंता की बात हो सकती है. वाईएसआरसीपी के कई नेता पहले से ही पार्टी टिकट नहीं मिलने की आशंका से कांग्रेस की तरफ जा रहे हैं. भले ही जगन वाईएसआरसीपी का नेतृत्व कर रहे हों लेकिन वे कांग्रेस नेताओं से अछूते नहीं रह सकते क्योंकि उनके मंत्रिमंडल के 25 सदस्यों में से 18 पुराने कांग्रेसी हैं. अब उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए 38 नए समन्वयकों के नामों की घोषणा की है. 

कांग्रेस को पुनर्जीवन?

पार्टी शर्मिला के शामिल होने के समय से रोमांचित है. शर्मिला ऐसे समय शामिल हुई हैं जब सरकार विरोधी भावनाएं वाईएसआरसीपी की संभावनाओं को धूमिल कर सकती हैं. राज्य के प्रभारी माणिकम टैगोर कहते हैं, "यह बदलाव का क्षण है, और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की वापसी का प्रारंभिक बिंदु है." अपेक्षाकृत नए चेहरे ए. रेवंत रेड्डी को तेलंगाना में उस समय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया जब टैगोर वहां के प्रभारी थे और उन्होंने दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी की जबरदस्त चुनावी जीत के लिए सफलता के साथ प्रबंध किया. 

लेकिन शर्मिला जहां महत्वाकांक्षी और परिश्रमी हैं, वहीं वे तेलंगाना में रेवंत जितनी आक्रामक नहीं हैं. विरोध के बावजूद दोनों भाई-बहन ने सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के खिलाफ कुछ नहीं कहा है. कुछ लोग उन्हें ऐसी बेचैन राजनेता बताते हैं जो अपने भाई द्वारा हाशिए पर किए जाने का बदला ले सकती हैं.

यह पूछने पर कि उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने का फैसला क्यों किया, वे बताती हैं, "चूंकि मैं अल्पसंख्यक हूं (वाईएसआर परिवार ईसाई धर्म का अनुयायी है) मणिपुर की हिंसा ने मुझे झकझोरा. कांग्रेस सभी समुदायों को एकजुट करती है और देश में सबसे अधिक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है. मेरे पिता का सपना राहुल गांधी को प्रधानमंत्री देखना था. हम इसके लिए काम करेंगे." बता दें कि शर्मिला ने अपनी दो साल पुरानी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी का भी कांग्रेस में विलय कर लिया है. 

लेकिन आंध्र प्रदेश का राजनैतिक धरातल तेलंगाना की तुलना में एकदम अलग है. लोगों के पार्टी छोड़ने के बावजूद वाईएसआरसीपी मजबूत ताकत है और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) उसकी तगड़ी प्रतिद्वंद्वी है. हैदराबाद विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के ई. वेंकटेशु कहते हैं, "अगर शर्मिला कांग्रेस का मत प्रतिशत बेहतर करती हैं, जिसकी उम्मीद है तो यह वाईएसआरसीपी के लिए काफी महंगा साबित होगा."

दूसरे लोग इतने पक्के तौर पर यह नहीं कहते. हैदराबाद के नलसार विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले हरति वागीशन कहते हैं, "आंध्र प्रदेश में कांग्रेस नेता के रूप में शर्मिला का कुछ असर हो सकता है. लेकिन यह पार्टी के समन्वित प्रयासों पर निर्भर करेगा क्योंकि राज्य में पार्टी अच्छी हालत में नहीं है." 

सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी उनकी चुनौती को खारिज करती है. वाईएसआरसीपी के नेता और मंत्री पेडीरेड्डी रामचंद्र रेड्डी कहते हैं "जो कोई भी जगन के खिलाफ काम करेगा वह हमारा विरोधी होगा." जगन के सलाहकार (सार्वजनिक मामले) सज्जला रामकृष्ण रेड्डी शर्मिला के कांग्रेस में शामिल होने को नायडू की साजिश के रूप में देखते हैं.

रामकृष्ण रेड्डी जोर देकर कहते हैं, "उस पार्टी (कांग्रेस) के बारे में बात करने का मतलब नहीं है जिसे पिछले चुनाव में नोटा से भी कम वोट मिले." वे जगन को हराने के लिए टीडीपी और कांग्रेस (यहां तक कि भाजपा) के मिले-जुले गेम प्लान की ओर इशारा करते हैं. वे कहते हैं कि हाल में नायडू और कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच बेंगलूरू एयरपोर्ट पर हुई मुलाकात और शर्मिला और उनके पति का कांग्रेस में शामिल होने के लिए भाजपा के राज्यसभा सदस्य सी.एम. रमेश के निजी विमान से दिल्ली जाना यही इशारा करता है. 

इसकी शुरुआत कैसे हुई?

बेशक 2009 में वाईएसआर की असमय मृत्यु से. उस अप्रत्याशित और दूरगामी असर डालने वाली घटना से राज्य कांग्रेस में सत्ता संघर्ष छिड़ गया, जब कट्टर वफादारों के समर्थन से जगन ने पिता की विरासत पर दावा किया और कांग्रेस ने वाईएसआर के उत्तराधिकारी के तौर पर उनका अनुमोदन करने से मना कर दिया. झगड़ा दिसंबर 2010 में वाईएसआरसीपी के गठन के साथ खत्म हुआ.

तकरार तब और बढ़ गई जब यूपीए सरकार ने 2011 में अपने पिता के कार्यकाल के दौरान जगन के कथित अवैध ढंग से संपत्ति बटोरने के मामले में सीबीआइ जांच का आदेश दे दिया. 27 मई, 2012 को उनकी गिरफ्तारी के बाद उसी साल अक्तूबर में बहन शर्मिला अपने पिता की तकरीबन दशक पुरानी ऐतिहासिक यात्रा प्रजा प्रस्थानम (जनयात्रा) की तर्ज पर 3,112 किमी की पदयात्रा पर निकल पड़ीं. जगन जेल में थे तब शर्मिला और मां वाई.एस. विजयम्मा ही पार्टी के मामले संभालती थीं.

जगन 16 माह बाद जेल से बाहर आए और वाईएसआरसीपी की कमान संभाली, पर पार्टी की बेहतरीन कोशिशों के बावजूद नायडू की अगुआई वाली टीडीपी को 2014 के खंडित आंध्र प्रदेश की सत्ता पर कब्जा करने से नहीं रोक पाए. इस दौरान शर्मिला 2016 की अपनी ओडार्पू यात्रा और टीडीपी सुप्रीमो के खिलाफ 'बाय बाय बाबू’ नारे के साथ वाईएसआरसीपी के लिए लड़ाइयां लड़ती रहीं. यह अभियान 2019 में रंग लाया, जब वाईएसआरसीपी ने विधानसभा की 175 में से 151 सीटें जीतीं.

अलबत्ता भाई-बहन के बीच आपसी सौहार्द्र को तार-तार होने में एक साल भी नहीं लगा, क्योंकि शर्मिला को उस पार्टी में जगह ही नहीं मिली जिसके लिए उन्होंने दशक भर काम किया था. पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद की भी खबरें आईं. शायद इसी सबके चलते उन्होंने 2021 में अपने पिता की जयंती 8 जुलाई पर वाईएसआर तेलंगाना पार्टी (वाईएसआरटीपी) लॉन्च की, और आंध्र को अपने भाई के हवाले करके तेलंगाना की पदयात्रा पर निकल पड़ीं. मगर जल्द ही तब तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया. तेलंगाना पुलिस ने उन्हें 'नजरबंद’ करके आगे बढ़ने से रोक दिया.

सूत्रों का कहना है कि शर्मिला और कांग्रेस के बीच बातचीत मई से ही चल रही थी, पर तेलंगाना के पार्टी नेता इसका विरोध कर रहे थे. तब खुद पार्टी आलाकमान ने ही सुझाव दिया था कि पार्टी में शामिल होकर वे अपनी ताकत आंध्र में लगाएंगी.

बातचीत में तब तक गतिरोध बना रहा जब तेलंगाना के नामांकनों की पूर्वसंध्या पर शर्मिला ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी वाईएसआरटीपी "कांग्रेस के वोट बंटने से" रोकने के लिए चुनाव से बाहर बैठेगी. उसके बाद शर्मिला का पार्टी में शामिल होना महज वक्त की बात थी. अकेला सवाल अब यह है कि क्या वे पदयात्रा स्तर की अपनी ऊर्जा और ताकत के बूते राज्य की मरणासन्न कांग्रेस को संभाल सकती हैं और उसमें नई जान फूंक सकती हैं.

शर्मिला ने वाईएसआरसीपी के लिए लगातार काम किया और हमेशा नायडू के खिलाफ जंग छेड़ी  लेकिन जगन के जेल से बाहर आते ही एक साल के भीतर दोनों भाई-बहन के बीच का स्नेह नदारद हो गया.

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