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बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के सामने चुनौतियों का नया समंदर, कैसे पार लगेगी कश्ती?

भारत के साथ, शेख हसीना द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाती रहेंगी, जिससे पूर्वी क्षेत्र में आर्थिक प्रगति, कनेक्टिविटी और स्थिरता आ सकती है

अपनी चुनावी जीत के बाद ढाका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शेख हसीना
अपनी चुनावी जीत के बाद ढाका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शेख हसीना
अपडेटेड 31 जनवरी , 2024

अपने पांचवें कार्यकाल की शुरुआत के साथ बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना इतिहास रचने को तैयार हैं. दरअसल, वे बांग्लादेश में सबसे लंबे समय तक की प्रधानमंत्री होंगी. मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के बहिष्कार के बाद बांग्लादेश के 12वें आम चुनाव तो महज औपचारिकता भर रह गए थे. वहीं, छिटपुट हिंसक घटनाओं के अलावा चुनाव मोटे तौर पर स्वतंत्र और निष्पक्ष थे, हालांकि 42 फीसद मतदान से लोगों में उदासीनता दिखी.

बीएनपी ने नतीजों पर प्रतिक्रिया देशव्यापी आम हड़ताल का आह्वान करके दी. बीएनपी ने साल 2014 में हसीना सरकार पर बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाकर चुनाव का बहिष्कार किया था, लेकिन साल 2018 में वह बुरी तरह नाकाम रही थी. इस बार, उसने हड़तालों और हिंसक घटनाओं के जरिए सरकार पर दबाव बनाने की पूरी कोशिश की. लेकिन, ये रणनीतियां हसीना सरकार को रोकने में नाकाम रहीं. वैसे, बीएनपी के बहिष्कार की एक वजह पार्टी में नेतृत्व का टकराव है, जिससे उसके निर्वासित उपाध्यक्ष तारिक रहमान का नियंत्रण कमजोर हो जाएगा. हालांकि बीएनपी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकती. उसकी सहयोगी जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा हुआ है, जो साल 1971 में कत्लेआम में पाकिस्तानी फौज की सहयोगी थी.

चुनाव से पहले हसीना पर पश्चिमी देशों का भारी दबाव था, जहां से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए सार्वजनिक बयान जारी किए गए थे. इस मामले में अमेरिका सबसे अधिक मुखर था और उसने बांग्लादेश के आतंकवाद विरोधी संगठन रैपिड ऐक्शन बटालियन के वरिष्ठ अधिकारियों को काली सूची में डाल दिया था. उसने यह भी घोषणा की थी कि चुनाव प्रक्रिया में धांधली में शामिल किसी भी व्यक्ति को वीजा देने से इनकार कर दिया जाएगा. ढाका में अमेरिकी राजदूत प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने के लिए विपक्षी दलों और सरकार विरोधी गैर-सरकारी संगठनों को लामबंद करने के प्रयास में थे. लेकिन दृढ़ हसीना और बीएनपी के बहिष्कार के सामने यह रणनीति नाकाम रही.

दूसरी तरफ, चीन और रूस ने खुलकर अमेरिकी दखलअंदाजी का विरोध किया. भारत ने भी निजी तौर पर वाशिंगटन से अपनी आपत्तियां दर्ज कराईं. कयास यह लगा कि हसीना को चीन के बहुत करीब न जाने की चेतावनी देने के लिए अमेरिकी दबाव डाला गया था. अमेरिका यह भी चाहता था कि बांग्लादेश उसकी हिंद-प्रशांत रणनीति में शामिल हो और सैन्य सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर करे. बीआरआई (बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव) और उदार कर्ज के साथ बीजिंग की रणनीतिक गुटबंदी या किसी भी गुट में बांग्लादेश शामिल होने को अनिच्छुक रहा है, जिससे मालदीव और श्रीलंका जैसे देश गहरे कर्ज में डूब गए. उसने सभी देशों खासकर भारत और चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित किया है.

हसीना पर निरंकुश बर्ताव का आरोप लगता है. उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल में हर तरह की असहमति पर रोक लगा दी थी. हालांकि, उनके नेतृत्व में बांग्लादेश अभूतपूर्व आर्थिक विकास की ओर बढ़ा है. कोविड महामारी के पहले तक बांग्लादेश सबसे तेजी से बढ़ती एशियाई अर्थव्यवस्था था. बांग्लादेश की जीडीपी, निर्यात, विदेशी मुद्रा भंडार और प्रति व्यक्ति जीडीपी आज पाकिस्तान से अधिक है. वहीं, भारत के साथ उसके संबंध मजबूत हैं; बांग्लादेश उपमहाद्वीप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है और उसे भारत से विकास सहायता की मद में 10 अरब डॉलर से अधिक मिले हैं. फिलहाल बांग्लादेश में मौजूदा आर्थिक मंदी से महंगाई बढ़ रही है और वंचित लोगों की जिंदगी संकट में है, लेकिन, फिर भी हसीना के नए कार्यकाल में आर्थिक बहाली होगी.

हालांकि हसीना के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनमें अर्थव्यवस्था की चुनौती सबसे बड़ी है. वहीं, इस्लामवादियों की लगातार पैठ बढ़ने से मजहब के प्रति नजरिया बदल गया है. जब देश पूर्वी पाकिस्तान था, उसकी तुलना में आज बुर्का और हिजाब पहनने वाली अधिक महिलाएं हैं. मदरसे फल-फूल रहे हैं और ऐसी शिक्षा दी जा रही है, जिससे उग्रवाद को बढ़ावा मिलता है. हिंदुओं पर छिटपुट हमले, उनकी संपत्तियों की लूट, धार्मिक आयोजनों और मंदिरों पर हमले कम नहीं हुए हैं. अपराधियों को शायद ही कभी सजा मिलती है. हिंसक इस्लामवादियों पर नकेल कसने का हसीना का रिकॉर्ड सराहनीय रहा है लेकिन उन्होंने इस्लामी पार्टियों के साथ समझौता भी किया है. 

विदेशी मामलों में प्रधानमंत्री हसीना सकारात्मक तटस्थता की नीति अपनाएंगी. इसलिए, हम सभी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित करने की बांग्लादेश की नीति के जारी रहने की उम्मीद कर सकते हैं. असल में, बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ों के निर्यात के लिए पश्चिमी बाजार महत्वपूर्ण हैं. ऐसे में अमेरिकी घोषणाओं और वीजा प्रतिबंधों से पैदा हुई झुंझलाहट के बावजूद उसके साथ द्विपक्षीय रिश्ते जारी रहेंगे.

भारत के साथ हसीना द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाती रहेंगी, जिससे पूर्वी क्षेत्र में आर्थिक प्रगति, कनेक्टिविटी और स्थिरता आ सकती है. भारत को तीस्ता से शुरुआत करके नदी जल के उचित बंटवारे पर बांग्लादेश की अपेक्षा को पूरा करना होगा. भारत को व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए आयात बढ़ाने, गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करना होगा, और बेहतर सीमा प्रबंधन करना होगा, तथा खुफिया और सुरक्षा सहयोग और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सहयोग बढ़ाना होगा. भारत को बांग्लादेश की खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा और जन-केंद्रित विकास सहायता के लिए अपना समर्थन जारी रखना चाहिए और जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी संवेदनशीलता को कम करना चाहिए. द्विपक्षीय संबंधों की आगे की राह उम्मीद के साथ-साथ चुनौतीपूर्ण भी है.

पिनाक रंजन चक्रवर्ती- विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव और बांग्लादेश के पूर्व उच्चायुक्त हैं. वे थिंकटैंक डीपस्ट्रैट के संस्थापक निदेशक हैं

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