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प्रधान संपादक की कलम से

ताज से नवाजे गए नए मुख्यमंत्रियों की उम्र के खाके से यह भले पीढ़ीगत बदलाव न मालूम देता हो, पर यह है. साय 59 वर्ष के हैं, यादव एक साल छोटे, शर्मा तीन साल छोटे, और रेड्डी अभी महज 54 साल के हुए हैं

नए चेहरों पर लगाया दांव
नए चेहरों पर लगाया दांव
अपडेटेड 23 दिसंबर , 2023

-अरुण पुरी

यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैली के अनुरूप ही है कि असली आश्चर्य चुनावों के दौरान नहीं, उनके बाद आते हैं. एग्जिट पोल के बाद भाजपा का हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में फतह हासिल करना काफी कुछ संभावनाओं के दायरे में था. हालांकि उसके बाद जो पूरा सफाया हुआ, उससे पार्टी के बड़े वफादार सिपहसालार भी आंख मलते रह गए. तस्वीर वाकई दमदार है. स्थापित सियासतदानों का एक पूरा तबका कम से कम अभी तो अपना मूल्य गंवा बैठा है. हमारे सामने टकसाल से सीधे ढलकर आए नए चेहरों की एक दीर्घा है, दुर्लभ और विशिष्ट शाही गलियारों में दाखिल होती, जिसका सपना देखने की जुर्रत शायद उन्होंने भी नहीं की होगी. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सियों पर ऐसे लोग बैठे होंगे जिन्हें गुमनामी की क्यारियों से तोड़कर लाया गया है, विष्णु देव साय, मोहन यादव और भजनलाल शर्मा. तेलंगाना में ए. रेवंत रेड्डी, जिन्होंने राज्य में कांग्रेस में नई जान फूंकने की अगुआई की, 2017 में तेलुगु देशम से पार्टी में आए और अभी 2021 में राज्य अध्यक्ष बनाए गए. मिजोरम में पहले भी दो कार्यकाल सरकार चला चुके मौजूदा मुख्यमंत्री जोरमथंगा की सत्ता ललदुहोमा ने उलट दी, जो पहले कभी इस पद पर नहीं रहे. इस सबको जोड़ लें तो दिसंबर के महीने का राजनैतिक भूदृश्य पूरा का पूरा ताजगी से जगमगा जाता है.

ताज से नवाजे गए नए मुख्यमंत्रियों की उम्र के खाके से यह भले पीढ़ीगत बदलाव न मालूम देता हो, पर यह है. साय 59 वर्ष के हैं, यादव एक साल छोटे, शर्मा तीन साल छोटे, और रेड्डी अभी महज 54 साल के हुए हैं. 1949 में जन्मे ललदुहोमा को अलग कर दें, जो पुरानी पीढ़ी के हैं और अपने आइपीएस के दिनों में इंदिरा गांधी की सुरक्षा सेवा के प्रभारी थे, तो हमारे सामने यह 1950 के दशक की पौध है. कभी बुजुर्गियत में सहजता से धंसी भारतीय राजनीति की दुनिया में यह सचमुच युवा है. याद रखिए, कांग्रेस की 'नई लहर' की अगुआई राहुल गांधी कर रहे हैं, जो 53 साल के हैं.

लेकिन इसे आने वाले लोकसभा चुनाव के संदर्भ में रखें तो इसमें महज उम्र से कहीं ज्यादा दमदार तर्क है. भाजपा ने पूरे मनोयोग से अपने जाति गुणा-भाग पर काम किया. तीनों राज्यों को एक साथ रखें और हर राज्य को मिले दो-दो उप-मुख्यमंत्रियों को भी मिला लें, तो आप रुबिक्स क्यूब के सभी खाने बिल्कुल सटीक ढंग से मिलते देखते हैं. साय आदिवासी हैं. दरअसल, वे छत्तीसगढ़ के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री हैं, जो खास तौर पर आदिवासियों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बनाए गए अलग राज्य ने अपने 23 साल के वजूद में पहली बार बनते देखा. शर्मा और यादव, जैसा कि उनके जातिसूचक उपनामों से पता चलता है, ब्राह्मण और ओबीसी कसौटियों पर खरे उतरते हैं—यादव की तो उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों में व्यापक भूमिका है.

हर राज्य में समीकरणों को संतुलित किया गया है. साय के साथ उप-मुख्यमंत्री के तौर पर विजय शर्मा और अरुण साव हैं, यानी ब्राह्मण-ओबीसी का एक और जोड़. मध्य प्रदेश में यादव के साथ यही सम्मान दलित जगदीश देवड़ा और एक तीसरे ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला को मिला है. उधर जयपुर में शर्मा के सिंहासन के बगल में राजपूत दीया कुमारी की शक्ल में पूर्व स्थानीय राजघराना और दलित प्रेम चंद बैरवा मौजूद हैं. एहतियात से संजोया गया यह इंद्रधनुष पक्का करता है कि मोदी की हुकूमत को सभी वंचित तबकों के सियासतदानों को ताकतवर बनाते देखा जाए, पर उसके मूल आधार को भी न जाने दें. ये सभी भगवा घुड़साल से आते हैं और यह बताता है कि पार्टी कितनी मेहनत से सामजिक गठजोड़ का ताना-बाना बुन रही है.

इस फसल को काटते हुए भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह सरीखे नामों और उन्हें हासिल राजकाज के समूचे अनुभव को तिलांजलि देना चुना. क्रमश: 64, 70 और 71 साल की उम्र में ये तीनों अभी उतने बूढ़े नहीं हैं और हम तीनों को मिलाकर मुख्यमंत्री पद के 41 साल के अनुभव की बात कर रहे हैं जिसका पार्टी इस्तेमाल कर सकती थी. तपे-तपाए और आजमाए हुए नेताओं को जाने देकर उसने साहसी जोखिम मोल लिया है. ठीक उस किस्म का जोखिम जिससे कांग्रेस 2018 में उस वक्त कतरा गई थी जब उसके पास भी पीढ़ीगत बदलाव लाने का मौका था. वहीं अप्रत्याशित कर दिखाने के प्रति अपने झुकाव के अनुरूप मोदी ने भगवा खेमे के नए चेहरों पर दांव लगाना चुना. जब इन चेहरों की सामाजिक प्रोफाइल देखते हैं, तो यह तमाम जातिगत खानों से पार्टी को मिले चुनावी समर्थन का शुक्रिया अदा करने से कहीं ज्यादा है. यह आम चुनाव में पूरे और चौतरफा दबदबे की पटकथा है. 

इस हफ्ते की आवरण कथा में हमारा काम अनजान को जाना-पहचाना बनाना और यह समझाना है कि वह इस तरह अचानक चकाचौंध में आ धमका क्यों मालूम दे रहा है. सीनियर डिप्टी एडिटर अमरनाथ के. मेनन और डिप्टी एडिटर अनिलेश एस. महाजन टीम मोदी की कायापलट की रणनीति पर रोशनी डाल रहे हैं. एग्जीक्यूटिव एडिटर कौशिक डेका, जयपुर में डिप्टी एडिटर रोहित परिहार, भोपाल/रायपुर में राहुल नरोन्हा और हैदराबाद में मेनन पांच नए मुख्यमंत्रियों, उनके राजनैतिक सफर, सिद्धांतों और विश्वासों, और सबसे ज्यादा उनके सामने मौजूद विकट चुनौतियों के शब्दचित्र पेश कर रहे हैं. ये मामूली नहीं हैं: रेड्डी और भाजपा के तीनों मुख्यमंत्रियों को राजकोषीय तंदरुस्ती बनाए रखते हुए खैरात के विशाल पिटारे के वादे पूरे करने हैं.

वे जमीनी स्तर पर देश की सियासी जिंदगी की दिलचस्प कतरनें भी पेश करते हैं. साय राजनैतिक परिवार से हैं: उनके चाचा पुराने जनसंघी थे, जो दो बार विधायक और 1977-80 की जनता सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे. लेकिन साय ने वनवासी कल्याण आश्रम में काम करते हुए वस्तुत: जमीनी स्तर से उड़ान भरी, 1989 में पंच चुने गए, फिर 'घर वापसी' के प्रणेता दिलीप सिंह जूदेव की छत्रछाया में आए और सांसद, केंद्रीय मंत्री और फिर राज्य भाजपा प्रमुख बनने की ऊंचाई पर पहुंचे. मध्य प्रदेश में आला कमान का घूमता हुआ चक्र जब यादव के नाम पर आकर रुका, वह राज्य की राजनीति के तमाम बड़े-बड़े नामों को पीछे छोड़कर आया था. उज्जैन के मूल निवासी को वस्तुत: पीछे की बेंचों से उठकर आगे आना पड़ा. भजिए और पोहे की दुकान के मालिक का यह बेटा भाजपा के रंग-ढंग में रंगा-ढला है, एबीवीपी के सदस्य के तौर पर छात्र राजनीति के हुल्लड़ में ककहरा सीखने के बाद उसने आरएसएस को अपनी ताकत से मजबूत बनाया और धीरे-धीरे औपचारिक राजनीति की अपनी राह गढ़ ली. उनका वजनदार अकादमिक रिकॉर्ड (बी.एससी., एलएलबी, एमबीए, पीएच.डी.) 2020 में उच्च शिक्षा मंत्री के तौर पर उनकी नियुक्ति में सहारा बना. सभी वृतांत यही बताते हैं कि अपने इस मंत्री काल के दौरान वे अतिउत्साही और मेहनती थे. सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक राजस्थान के शर्मा थे, पर संघ की उनकी साख अचूक और बेदाग है.

लिहाजा बदलाव की बयारें निरंतरता के प्रबल झोंके के साथ आई हैं. इसे 2024 के आम चुनाव के आकुल आह्वान की तरह देखिए.

- अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)

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