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प्रधान संपादक की कलम से

अपने साथ ही समाज और देश की तकदीर गढ़ने वाले ऐसे लोगों को विभिन्न स्थानों से चुना गया है. जोश-जुनून और जज्बे से लबरेज प्रत्येक की कहानी पाठकों को मुश्किल हालात से निबटने और कामयाबी हासिल करने के लिए प्रेरित करेगी

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जीरो से हीरो
अपडेटेड 13 दिसंबर , 2023

अरुण पुरी

एक यहूदी कहावत है: अगर आप अपने सपने को साकार करना चाहते हैं तो सोइए मत. अपने हालात बदलने के जोश और जज्बे से प्रेरित लोगों ने इस कहावत को आदर्श वाक्य बना लिया है. हालांकि कई लोगों को इस मशहूर कहावत के बारे में मालूम तक नहीं है, फिर भी कुदरत ने हर इंसान को जोश और जज्बे की खूबियों से नवाजा है. ये खूबियां इंसान को उसके हालात बदलने में मदद करती हैं. बेहद गरीबी या सामान्य परिवार में जन्मे लोग भी इन्हीं की वजह से अपनी तकदीर बदल लेते हैं. देश के विभिन्न इलाकों, खासकर उत्तर भारत में ऐसे काफी लोग हैं जिन्होंने अपनी मेहनत, लगन और सूझबूझ से बड़ा कारोबार खड़ा कर दिया. इंडिया टुडे की 37वीं वर्षगांठ के अवसर पर हमने ऐसे ही 20 लोगों का चयन किया है, जिन्होंने अपनी लगन के बूते संपदा का सृजन किया और अपने साथ ही वे दूसरे लोगों की जिंदगी को भी आसान बना रहे हैं.

अमीर बनने का सपना तो लगभग हर इंसान देखता है, ज्यादातर लोगों के सपने हकीकत की तल्ख रोशनी में धुल जाते हैं. वे फिर से रोजमर्रा के कामकाज में लग जाते हैं और उसी में पिसते रहते हैं. वे अपनी तकदीर को बदलने के लिए कोई तदबीर नहीं करते या फिर उनके पास जुगत भिड़ाने का शऊर नहीं होता. ऐसे में आश्चर्य नहीं कि देश के एक फीसद अमीरों के पास 40.5 फीसद से ज्यादा संपत्ति है. पिछले साल ऑक्सफैम की रिपोर्ट सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी के मुताबिक, देश के गरीबों के पास जिंदा रहने के लिए बुनियादी चीजें नहीं हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2012 से 2021 के दौरान सृजित संपत्ति का 40 फीसद हिस्सा 1 फीसद लोगों के पास गया और मात्र तीन फीसद नीचे के 50 फीसद लोगों के पास. यही नहीं, 64 फीसद माल और सेवा कर नीचे की 50 फीसद आबादी से जमा किया गया और ऊपर के 10 फीसद लोगों से मात्र चार फीसद. सबसे अमीर 10 फीसद लोगों के पास 72 फीसद संपत्ति और पांच फीसद लोगों के पास 62 फीसद है, जो कोविड पूर्व के वर्षों के मुकाबले ज्यादा है. सबसे अमीर एक फीसद लोगों के पास नीचे की आधी आबादी के मुकाबले 13 गुना ज्यादा संपत्ति है. यानी इसमें भयंकर विषमता है.

विडंबना यह है कि तीन करोड़ रुपए की चल-अचल संपत्ति वाला व्यक्ति भी एक फीसद में शामिल है. यहां यह समझ लेना चाहिए कि दिल्ली में कोई व्यक्ति अपने चार करोड़ रु. के पुश्तैनी मकान में रहता है लेकिन उसे रोजमर्रा के मामूली घरेलू खर्च के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है तो वह संपत्ति उसके लिए ऐसेट नहीं, लायबिलिटी है. अगर वह उसे बेच दे और उससे सस्ते मकान में या किराए पर रह ले और बाकी पैसे को निवेश कर दे तो वही रकम उसका ऐसेट है. ऐसे में बहुत सारे लोग अपनी ओर से थोपी गई गरीबी में रहते हैं. लेकिन कई लोगों के पास इतनी भी सुविधा नहीं कि वे कुछ बेच सकें. इस अंक के ज्यादातर अमीरों के साथ ऐसे ही हालात थे. उन्होंने न केवल अपने लिए संपत्ति का निर्माण किया, बल्कि अपने परिवार और कारोबार से जुड़े लोगों के लिए जिंदगी आसान बनाई.

मिसाल के तौर पर मेट्रो हॉस्पिटल्स के 69 वर्षीय डॉ. पुरुषोत्तम लाल को लें. उन्होंने पंजाब के एक गरीब परिवार में आंखें खोलीं. पिता की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान पर काम किया. बिजली का करेंट लगने से पिता की मौत की वजह से परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. लेकिन उन्होंने मेहनत-मजदूरी के साथ ही पढ़ाई जारी रखी. मेडिकल में दाखिले के बाद नौकरी का ऑफर मिले बगैर अमेरिका चले गए, वहां दर-दर की ठोकरें खाई, फिर भी हिम्मत नहीं हारे. वहां से आगे की पढ़ाई की और दिल की बीमारियों का इलाज शुरू किया. उसके बाद भारत लौटे और मेट्रो हॉस्पिटल्स की चेन शुरू की. आज उनके दस अस्पतालों में दस हजार से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं, जिनमें 700 से ज्यादा डॉक्टर हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित परिवार में जन्मे फकीर चंद मोघा की गुरबत का यह आलम था कि कुपोषण की वजह से उनके दो भाइयों की बचपन में ही मौत हो गई. जाति के चलते लोन का कोई गारंटर नहीं मिला, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. अपने जुनून और जोश के बूते आखिरकार मोरवेल ट्यूब्स प्रा. लि. की स्थापना की और आज हॉन्डा, बजाज, मारुति समेत बड़ी-बड़ी कंपनियां उनकी ग्राहक हैं. दृष्टि आइएएस कोचिंग के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति, सवानी हेरिटेज कंजर्वेशन के संस्थापक राम सवानी और हैकिंगफ्लिक के संस्थापक गौतम कुमावत जैसे सभी उद्यमियों में एक खूबी है: उन्होंने अपने सपने को मरने नहीं दिया.

इन उद्यमियों में से ज्यादातर एमएसएमई (लघु, छोटे और मंझोले उपक्रम) की श्रेणी में आते हैं. यह क्षेत्र देश में सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा करता है. ताज्जुब नहीं कि इस सेक्टर में 12 करोड़ लोग काम कर रहे हैं. परोक्ष रूप से जुड़े लोगों की संख्या इससे भी ज्यादा है. देश के विभिन्न इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स में ऐसे उद्यमियों की वजह से आम लोगों के बीच आय में विषमता कम होती है. बाजार की मांग के अनुरूप निरंतर बदलने वाला यह क्षेत्र माल एवं सेवा मुहैया कराता है. इसके लिए इसे टेक्नोलॉजी में बदलाव के अनुरूप ढलना होता है ताकि नई-पुरानी समस्याओं का समाधान हो सके. यही नहीं, ये बड़े उपक्रमों के सहायक के रूप में काम करते हैं और अपने नेटवर्क के जरिए उन्हें जरूरी फीडबैक भी देते हैं. देश के सतत विकास के लिए ये बेहद महत्वपूर्ण हैं.

अपने साथ ही समाज और देश की तकदीर गढ़ने वाले ऐसे लोगों को विभिन्न स्थानों से चुना गया है. जोश-जुनून और जज्बे से लबरेज प्रत्येक की कहानी पाठकों को मुश्किल हालात से निबटने और कामयाबी हासिल करने के लिए प्रेरित करेगी.

- अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)

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