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तेलंगाना फतह के बाद ही दाढ़ी बनवाएंगे उत्तम कुमार रेड्डी!

2018 के विधानसभा चुनाव से पहले तेलंगाना कांग्रेस प्रमुख बनाए गए उत्तम कुमार रेड्डी ने करारी हार के बाद कुछ ऐसी ही भावना के साथ घोषणा की थी कि वे तब तक दाढ़ी नहीं बनाएंगे जब तक ग्रैंड ओल्ड पार्टी देश के सबसे युवा राज्य की सत्ता फिर हासिल नहीं कर लेती

लेकिन राजनीति के मैदान में दाढ़ी को अभी भी त्याग-तपस्या से जोड़कर ही देखा जाता है

विधानसभा चुनाव 2023

भारतीय क्रिकेट टीम में इसे भले ही आक्रामकता का प्रतीक माना जाए, लेकिन राजनीति के मैदान में दाढ़ी को अभी भी त्याग-तपस्या से जोड़कर ही देखा जाता है. 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले तेलंगाना कांग्रेस प्रमुख बनाए गए उत्तम कुमार रेड्डी ने करारी हार के बाद कुछ ऐसी ही भावना के साथ घोषणा की थी कि वे तब तक दाढ़ी नहीं बनाएंगे जब तक ग्रैंड ओल्ड पार्टी देश के सबसे युवा राज्य की सत्ता फिर हासिल नहीं कर लेती. इन सालों में न तो कांग्रेस के उभरने की कोई गुंजाइश रही और न उन्होंने अपने चेहरे पर बढ़ते बालों की कोई परवाह की, और उनकी दाढ़ी एक हार का प्रतीक बनी रही. हां, समय-समय पर काट-छांट तो हुई लेकिन उसने दाढ़ी बढ़ाने के मायने को किसी भी अर्थ में कमजोर नहीं पड़ने दिया. वे अपनी प्रतिज्ञा पर पूरी तरह अडिग रहे, और टीआरएस/बीआरएस की तरफ से भूरे भालू से तुलना किए जाने से भी विचलित नहीं हुए. अब, तेजतर्रार नेता रेवंत रेड्डी के कमान संभालने से चुनावी पंडित अनुमान लगा रहे हैं कि सत्ताधारी पार्टी की राह आसान तो नहीं होगी. प्रचार अभियान में बमुश्किल एक हफ्ते का समय बचा है, और उत्तम रेड्डी पूरी तरह आश्वस्त हैं कि उन्हें अपनी साफ-सुथरी शक्ल दिखाने का मौका मिलेगा. वे इस कदर आश्वस्त हैं कि अब हार की स्थिति में सन्यास लेने की प्रतिज्ञा कर बैठे हैं.

चौहान के लिए मकान?

शिवराज सिंह चौहानः रहने के लिए जगह की कमी नहीं

शिवराज सिंह चौहान क्या अभी से किसी शानदार बंगले के लॉन में उगी घास को निहारते हुए रिटायरमेंट के बाद वाले जीवन की कल्पना करने लगे हैं? वैसे, यह सब कांग्रेस की खुराफात है, जो चाहती है कि आप इस पर भरोसा करें और वे बहुत उत्साह के साथ बताते हैं कि सबसे लंबे समय तक मध्य प्रदेश पर राज करने वाले मुख्यमंत्री ने इस पेंटिंग...माफ कीजिएगा, दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ लिया है. सबूत? भोपाल के 74 बंगले इलाके को नया रंग-रूप दिया जा रहा है. यह काम पिछले कुछ महीनों से चल रहा है, लेकिन हाल में इसमें काफी तेजी आई है और पुराने बंगले की बदलती सूरत पर अफवाह का नया रंग चढ़ाने में हर्ज ही क्या है? यह बंगला चौहान को तब आवंटित किया गया था जब वे विदिशा से सांसद थे और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे. लेकिन इसे अपने लिए भाग्यशाली मानते हुए शिवराज ने बतौर सीएम अपना पूरा कार्यकाल यहीं बिताया. मगर इसके नवीनीकरण के लिए सामान्य से अधिक सक्रियता ने कांग्रेस का ध्यान खींचा. यही वजह है कि उसने इसे 'चौहान का सेवानिवृत्ति आवास' करार देने में समय नहीं गंवाया. बंगला, बी-8 बुधनी से विधायक के तौर पर चौहान को मिला था, जबकि वे श्यामला हिल्स में सीएम के लिए नामित भवन में रहते हैं. कुछ महीने पहले बगल में खाली पड़े बी-9 बंगले को भी बी-8 परिसर के साथ जोड़ दिया गया. अगर वे जीतते हैं, तो उनके पास तीन घर होंगे. न भी जीते तो भी रहने के लिए जगह की कमी नहीं होगी.

क्लियरेंस सेल

इलस्ट्रेशन: सिद्धांत जुमड़े

भारतीय देवी-देवता थोड़े मनमौजी होते हैं. ऐसे में उपासकों को उनकी कृपा के लिए कभी-कभी लंबा इंतजार करना पड़ता है. लेकिन जी. रविंदर के सब्र का बांध टूट चुका है. उनके आराध्य? कोई और नहीं बल्कि भारत राष्ट्र समिति सुप्रीमो के. चंद्रशेखर राव हैं. रविंदर 'संघर्ष और बलिदान' के दौर में केसीआर के करीबी थे. वे उनसे इस कदर प्रभावित हुए कि 2016 में आदिलाबाद जिले के दांडेपल्ली स्थित अपने घर के सामने उनका मंदिर बना डाला. इसमें उन्होंने केसीआर की मूर्ति स्थापित की और प्रार्थना करने लगे. लेकिन वास्तविक जीवन में अपने आराध्य से मिलने की उनकी सारी कोशिशें व्यर्थ गईं. वे अब इस कदर निराश हो चुके हैं कि मंदिर को बेचना चाहते हैं. और ऐसा करें भी क्यों न? उन्हें तो 'मंदिर के रखरखाव के लिए भी' कोई मदद नहीं मिली, जिसे बनवाने में उन्होंने दो लाख रुपए खर्च कर दिए थे. अब तो वह कोई मुनाफा भी नहीं चाहते, बस कोई लागत मूल्य का कद्रदान ही मिल जाए.

कौन दो?

आप भी राजस्थान कांग्रेस के बारे में अशोक गहलोत और सचिन पायलट से आगे नहीं जानते? शायद उन दो लोगों के बारे में जरूर सुना होगा जिनका जिक्र मोदी-शाह कई बार अपने भाषणों में कर चुके हैं. इनमें एक हैं शहरी विकास मंत्री शांति धारीवाल. हाल ही में 80 वर्ष की उम्र पूरी करने वाले धालीवाल विकास कार्यों से अपने निर्वाचन क्षेत्र कोटा की सूरत बदलकर रख देने के लिए जाने जाते हैं. वे बलात्कार को लेकर अपनी यह राय देकर भी सुर्खियों में रहे कि 'राजस्थान मर्दों का राज्य है.' हालांकि, बाद में माफी मांगना बेमानी साबित हुआ जो कि होना भी चाहिए था. वहीं दूसरे हैं, राजस्थान पर्यटन विकास निगम के प्रमुख धर्मेंद्र राठौड़ जिनकी कड़ी मेहनत के खूब चर्चे होते हैं. दरअसल, वह रोज-ब-रोज की टिप्पणियों को बड़े चाव से अपनी डायरी में लिखा करते थे. लेकिन अफसोस, उनका यह संस्मरण एक असंतुष्ट मंत्री की वजह से जगजाहिर हो गया. भाजपा बार-बार इसी लाल डायरी का जिक्र करती है, जिसमें कथित अवैध वित्तीय लेन-देन का ब्योरा है. इसमें गहलोत के बेटे वैभव की उस टिप्पणी को भी जगह दी गई, जिसमें 2020 की शुरुआत में उन्होंने अपने पिता की करारी हार की भविष्यवाणी की थी. उक्त दोनों नेता आलाकमान के निशाने पर थे क्योंकि पिछले साल ये उस समय नाटकीय बगावत का हिस्सा बने जब पार्टी के शीर्ष नेता गहलोत को एआइसीसी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए मनाने और सचिन पायलट के लिए रास्ता बनाने की कोशिश कर रहे थे. धारीवाल का टिकट तो अंतिम समय कटते बच गया. लेकिन राठौड़ फिलहाल एक बहादुर राजपूत की तरह मुश्किल वक्त से जूझने में लगे हैं.

दूसरों का सहारा

वसुंधरा राजेः मुख्य चेहरा नहीं

वसुंधरा राजे अब भले ही भाजपा का मुख्य चेहरा नहीं रहीं, लेकिन अन्य उम्मीदवारों के लिए अभी भी एकमात्र जाना-माना चेहरा हैं. हालांकि उनके तूफानी राज्य दौरे में केवल उनके पक्ष के लोगों को ही रैली का लाभ दिया जा रहा है (वे 60 पार कर रही हैं). वैकल्पिक मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में आगे बढ़ाए जा रहे अन्य सभी नाम उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित हैं. जैसे नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़. तारानगर की धूमिल शेखावाटी सुंदरता में शरण लेने के बावजूद, राठौड़ अभी भी कड़े मुकाबले में फंसे हैं. ऐसे में राजस्थान की सारी चुनावी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उठा ली है. 2018 में 12 रैलियों की तुलना में इस बार वे जयपुर में एक रोड शो समेत कुल 26 रैलियां कर रहे हैं. उन्होंने 19 नवंबर को तारानगर में रैली कर कई लोगों को हैरत में डाल दिया, जहां राहुल गांधी भी गए थे. इधर, जोधपुर की सरदारपुरा सीट से चुनाव लड़ रहे मुख्यमंत्री गहलोत ने अपनी कट्टर प्रतिद्वंद्वी वसुंधरा राजे की तरह प्रचार का पूरा जिम्मा संभाल रखा है.

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