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क्या महुआ मोइत्रा अब और मजबूत होकर उभरने वाली हैं?

महुआ मोइत्रा के प्रति टीएमसी के समर्थन ने इन अटकलों पर विराम लगा दिया है कि अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा

निशाने पर टीएमसी सांसद महुआ मोइत्र
निशाने पर टीएमसी सांसद महुआ मोइत्र
अपडेटेड 28 नवंबर , 2023

नवंबर की 13 तारीख को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने स्पष्ट सियासी संदेश के साथ महुआ मोइत्रा को पश्चिम बंगाल में उनके लोकसभा क्षेत्र कृष्णानगर (नादिया उत्तर) का जिला अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. लोकसभा की आचार समिति की सिफारिश के आधार पर अयोग्य करार दिए जाने की पूरी संभावना के बीच अपनी सांसद को यह प्रभार सौंपकर पार्टी ने जता दिया कि 2024 के आम चुनाव में उसका क्या रुख रहेगा. उनकी पदोन्नति इस बात से और खास हो जाती है कि मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी से सार्वजनिक तौर पर फटकार के बाद मोइत्रा को 2021 में यह पद गंवाना पड़ा था.

सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि लोकसभा में दिग्गज कारोबारी गौतम अदाणी के खिलाफ सवाल पूछने के लिए कथित तौर पर पैसे लेने की आरोपी मोइत्रा का संभावित निष्कासन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की ओर से विपक्षी दलों को एक संदेश है. संदेश यह कि वे भाजपा, खासकर मोदी की आलोचना करते समय 'लक्ष्मण रेखा' पार न करें. आचार समिति की रिपोर्ट अब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के पास जाएगी और संभवत: दिसंबर में शीतकालीन सत्र में इसे लोकसभा में मतदान के लिए पेश किया जाएगा.

निचले सदन में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के बहुमत को देखते हुए मोइत्रा के निष्कासन के प्रस्ताव का पारित होना कोई हैरानी की बात नहीं होगी. इस मामले में चुप्पी साधे रहा टीएमसी नेतृत्व अब अपनी सांसद के साथ खड़ा दिख रहा है. उन्हें संगठनात्मक प्रभार देकर टीएमसी ने उन अटकलों पर विराम लगा दिया कि पार्टी उन्हें अगले लोकसभा चुनावों में टिकट नहीं देगी.

उसने महुआ के इन दावों पर भी भरोसा जताया है कि अयोग्य घोषित हो जाने पर भी वे कृष्णानगर सीट दोबारा जीतेंगी, वह भी दोगुने अंतर के साथ. कुछ दिन पहले मोइत्रा ने संभवत: टीएमसी के इसी समर्थन के भरोसे एक्स पर टिप्पणी की थी, ''मिस्टर अदाणी हर किसी से यह कहने में समय बर्बाद न करें कि महुआ का टिकट काट दिया जाएगा.'' ममता बनर्जी के भतीजे और टीएमसी में दूसरे नंबर के नेता की हैसियत रखने वाले अभिषेक बनर्जी ने भी जांच जारी होने के बावजूद उन्हें अयोग्य ठहराने की आचार समिति की सिफारिश पर सवाल उठाया था.

मोइत्रा के खिलाफ कार्रवाई भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के इस आरोप के बाद शुरू हुई कि उन्होंने लोकसभा में अदाणी समूह को निशाना बनाने के लिए रियल एस्टेट से लेकर ऊर्जा क्षेत्र तक में सक्रिय हीरानंदानी समूह के सीईओ दर्शन हीरानंदानी से रिश्वत ली थी. अक्तूबर में बिरला को लिखे एक पत्र में दुबे ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहाद्राई—जो मोइत्रा के मुताबिक उनके जिल्टेड एक्स हैं—ने मोइत्रा और हीरानंदानी के बीच 'पैसों के लेन-देन के अकाट्य साक्ष्य' साझा किए हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि मोइत्रा ने हीरानंदानी के साथ बतौर सांसद लोकसभा पोर्टल के इस्तेमाल के लिए अपना लॉगइन और पासवर्ड भी साझा किया ताकि हीरानंदानी सीधे उनकी ओर से सवाल पोस्ट कर सकें. देहाद्राई ने सीबीआइ के समक्ष अलग से दर्ज कराई एक शिकायत में मोइत्रा पर हीरानंदानी से दो करोड़ रु. नकद लेने का आरोप लगाया, और यह भी कहा कि मोइत्रा की ओर से लोकसभा में पूछे गए 61 सवालों में से 50 अदाणी समूह के खिलाफ थे.

हीरानंदानी समूह ने शुरू में आरोपों को निराधार बताया. पर, बाद में दर्शन यह कहते हुए सरकारी गवाह बन गए कि मोइत्रा ने पीएम मोदी को 'बदनाम' करने के लिए अदाणी को निशाना बनाया. आचार समिति को भेजे हलफनामे में उन्होंने अदाणी के खिलाफ सवाल पूछने के लिए लोकसभा पोर्टल पर मोइत्रा का लॉगइन-पासवर्ड इस्तेमाल करने की बात स्वीकार की. उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि मोइत्रा उनसे लगातार 'डिमांड करती रहती' थीं, जिसमें ''लग्जरी आइटम, दिल्ली में उन्हें आवंटित बंगले के नवीनीकरण में मदद, यात्रा और छुट्टियों पर होने वाला खर्च शामिल है.'' वैसे, हलफनामे में 'दो करोड़ रुपए' लेने का जिक्र नहीं है. यही नहीं, मोइत्रा के पूछे गए कुल 61 सवालों में से सिर्फ नौ का अदाणी समूह से सीधा संबंध था. मोइत्रा ने खुद माना कि उन्होंने अपना लॉगइन-पासवर्ड साझा किया, पर इसके बदले में उन्होंने कोई नकदी नहीं मांगी. इंडिया टुडे से बातचीत में उन्होंने कहा कि हीरानंदानी से उन्हें उपहार के तौर पर केवल 'एक स्कार्फ, लिपस्टिक और आई शैडो' मिला था.

दुबे का कहना है कि लॉगइन-पासवर्ड साझा करना आइटी अधिनियम का उल्लंघन है. कई विपक्षी नेताओं ने मोइत्रा का समर्थन करते हुए कहा कि लोकसभा नियमावली या आइटी अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो पासवर्ड साझा करने से रोकता हो. आचार समिति के विपक्षी सदस्यों दानिश अली और गिरधारी यादव ने इंडिया टुडे को बताया कि सवालों का मसौदा तैयार करना और उन्हें सबमिट करने का काम अक्सर सांसदों के सहयोगी करते हैं, और जब कोई और लॉगइन करता है, तो सांसद के सेलफोन पर एक ओटीपी आता है. मोइत्रा का कहना है कि जब वे ब्रिटेन और स्विट्जरलैंड जैसे देशों की यात्रा पर थीं, तब उन्होंने सवाल तैयार करने में दोस्तों-रिश्तेदारों की मदद ली.

पर आचार समिति पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हुई और उसने 9 नवंबर को अपनी 500 पेज की मसौदा रिपोर्ट स्वीकार कर ली, जिसमें 'अनैतिक आचरण' और 'गंभीर उल्लंघन' के लिए उन्हें निष्कासित करने की सिफारिश की गई. रिपोर्ट में बताया गया है कि मोइत्रा के मेंबर पोर्टल को जुलाई 2019 से अप्रैल 2023 के बीच संयुक्त अरब अमीरात से '47 बार ऑपरेट' किया गया, और साथ में गृह मंत्रालय का एक नोट भी लगा है कि लॉगइन-पासवर्ड साझा करने से 'संवेदनशील जानकारी लीक' होने का खतरा था.

यह रिपोर्ट हंगामे के बाद सामने आई है. 2 नवंबर को समिति के समक्ष मोइत्रा के बयान की कार्यवाही अचानक बीच में खत्म हो गई, जब समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद विनोद सोनकर के कथित अनुचित सवालों पर भड़की मोइत्रा और विपक्षी दलों के सदस्य बैठक छोड़कर चले गए. मोइत्रा ने बिरला को यह तक लिखा कि समिति के अध्यक्ष ने उनकी यात्राओं, होटल में ठहरने और टेलीफोन कॉल के संबंध में सवाल पूछकर एक तरह से उनका मौखिक चीरहरण किया.

बसपा सांसद दानिश अली ने कहा कि हीरानंदानी से पूछताछ तक नहीं की गई. अंतत: एक हफ्ते बाद, जब समिति ने मसौदा रिपोर्ट को स्वीकार किया तो छह सांसदों ने इसके पक्ष में मतदान किया. इसमें पांच भाजपा के थे और एक कांग्रेस की परनीत कौर रहीं. वे पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं जो अब भाजपा के साथ हैं. विपक्ष के चार सदस्यों—बसपा के दानिश अली, कांग्रेस के वी. वैथीलिंगम, माकपा के पी.आर. नटराजन और जद (यू) के गिरधारी यादव—ने इस पर असहमति नोट पेश की. विपक्षी सदस्यों का कहना है कि इस पर कोई चर्चा तक नहीं हुई. उनका कहना है कि रिपोर्ट 8 नवंबर की शाम को सामने आई और अगले दिन सीधे मतदान के लिए रख दी गई. एक सदस्य ने कहा कि मोइत्रा की ओर से सवाल पूछे जाने और बदले में पैसे लेने के बीच कोई संबंध स्थापित नहीं किया जा सका है.

वहीं, रिपोर्ट में कहा गया है कि उसके पास लेन-देन के बारे में पता लगाने के लिए कोई तकनीकी साधन नहीं है. साथ ही सरकार से 'कानूनी, संस्थागत और समयबद्ध ढंग से' जांच की सिफारिश की गई है. दूसरी ओर, मोइत्रा के आक्रामक तेवर बरकरार हैं. उन्होंने एक्स पर लिखा, ''संसदीय इतिहास में आचार समिति की तरफ से अनैतिक तरीके से निष्कासित होने वाली पहली सदस्य बनने पर गर्व है, जिसे निष्कासित करने का जनादेश तक हासिल नहीं है...कंगारू कोर्ट, शुरू से अंत तक बंदरबांट.''

आलोचकों का कहना है कि समिति ने बदले की राजनीति के तहत मोइत्रा के निष्कासन की सिफारिश में तत्परता दिखाई है. पर समिति में भाजपा के सदस्य अलग तस्वीर पेश करते हैं. सोनकर कहते हैं, ''समिति का एजेंडा मोइत्रा के कथित अनैतिक आचरण की जांच करना था. और वे इसमें सहयोग करने के बजाय भड़क गईं. उन्होंने समिति के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया और बैठक से चली गईं.'' 

लोकसभा की 36 समितियों में से एक आचार समिति भी है, जो सदस्यों के नैतिक आचरण और अन्य कदाचार से जुड़े मामलों को उसके पास भेजे जाने पर उनकी जांच में अहम भूमिका निभाती है (राज्यसभा में भी इसी तरह की एक समिति है). यह एकमात्र ऐसी समिति है जो सांसदों के विरुद्ध नागरिकों की शिकायतों की जांच करती है. इसके लिए मामला किसी जनप्रतिनिधि की ओर से उठाया जाना होता है और फिर लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति की ओर से इसे समिति को भेजा जाता है. अगर समिति कोई दंडात्मक कार्रवाई की सिफारिश करती है—जैसा इस मामले में हुआ—तो इस पर मतदान के लिए प्रस्ताव लाया जाता है. वैसे, निष्कासित कर दिए जाने की स्थिति में मोइत्रा के पास इसे अदालत में चुनौती देने का विकल्प होगा.

मगर सीबीआइ से की गई शिकायत बड़ा रोड़ा साबित हो सकती है, क्योंकि संभावना है कि मोइत्रा को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत घूसखोरी के लिए आपराधिक मुकदमे का सामना करना पड़े. लोकसभा से निष्कासन उन्हें फिर चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकता, लेकिन कोर्ट में दोषी ठहराए जाने और दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा होने पर मोइत्रा के छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लग जाएगी.

फिलहाल तो यह दूर की बात है. अपनी पार्टी की तरफ से भरपूर समर्थन मिलने से मोइत्रा 2024 के चुनावों को लेकर खासी उत्साहित हैं और एक लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल करने की उम्मीद कर रही हैं. इस बार वे चैलेंजर हैं तो एक पीड़ित भी हैं, और यह दोहरी भूमिका शायद उनके लिए लाभदायक साबित हो जाए.

आचार समिति के सदस्यों की राय :

मोइत्रा ने अपनी तस्वीरों को लेकर सोशल मीडिया पर हुए विवाद और देहाद्राई के साथ अपने रिश्ते सरीखे अन्य व्यक्तिगत मुद्दों के बारे में बात की. जब हमने कहा कि हम उनके निजी जीवन के बारे में नहीं, बल्कि केवल हीरानंदानी को लॉगइन सौंपने को लेकर चिंतित हैं, तो उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्हें सब कुछ स्पष्ट करने की जरूरत है  
राजदीप रॉय, (भाजपा)

हमने गवाही की कार्यवाही का बहिष्कार किया क्योंकि अभद्र और अप्रासंगिक सवाल पूछे गए तथा उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन किया गया. द्रौपदी के चीरहरण पर हम मूकदर्शक नहीं बने रह सकते  
गिरधारी यादव, जद (यू)

समिति का एजेंडा मोइत्रा के कथित अनैतिक आचरण की जांच करना था. सहयोग करने के बजाए, वे क्रोधित हो गईं, समिति के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया और चली गईं 
विनोद सोनकर, (भाजपा), आचार समिति के अध्यक्ष

ढाई मिनट के भीतर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया. कोई चर्चा तक नहीं हुई. शिकायतों पर सवाल उठाने से पहले 26 अक्तूबर को पैनल के सदस्यों के बीच करीब डेढ़ घंटे तक चर्चा हुई थी. वह रिपोर्ट में दर्ज नहीं है 
दानिश अली, (बसपा)

अगर आपके पास महुआ के खिलाफ कोई सबूत नहीं है और यह जांच का विषय है, तो आचार समिति ने निष्कासन की सिफारिश क्यों की?
अभिषेक बनर्जी, टीएमसी महासचिव, 9 नवंबर को

मिस्टर अदाणी, हर किसी से यह कहने में समय बर्बाद न करें कि महुआ का टिकट काट दिया जाएगा...मैं कृष्णानगर से ही लड़ूंगी और जीत के अंतर को दोगुना करुंगी 
महुआ मोइत्रा, लोकसभा सांसद  (10 नवंबर को एक्स पर)

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