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प्रधान संपादक की कलम से

टीवी के पर्दे से लेकर खाने की मेजों तक भारतीय युवाओं की पसंद पर दिख रही कोरियाई छाप की यह कहानी सीनियर एसोसिएट एडिटर प्रतीक्षा ने इस बार की आवरण कथा में बयान की है

छाई लहर कोरियाई
छाई लहर कोरियाई
अपडेटेड 8 दिसंबर , 2023

-अरुण पुरी

कोविड की लहर वाले दो साल—2020 और 2021, पूरी दुनिया और खासकर भारत के लिए कई मोर्चों पर तबाही वाले साबित हुए. लाखों लोगों ने अपनों को खोया, करोड़ों के रोजी-रोजगार छिने और पूरे देश की अर्थव्यवस्था ठप सी पड़ गई. हालांकि इन भयावह स्थितियों में कुछ ऐसे काम भी हुए, जो महामारी बीत जाने की सांत्वना से बड़े थे.

मसलन, देश के हेल्थ सेक्टर में आइटी आधारित क्रांतिकारी सुधार या फिर शिक्षा क्षेत्र में बदलाव करने वाली एडटेक कंपनियों का तेजी से उभार. लेकिन नापजोख वाले इन बदलावों से इतर इस दौरान दबे पांव ऐसा कुछ भी हुआ, जिसके नतीजों के बारे में हम अभी कोई अनुमान नहीं लगा सकते.

हम बात कर रहे हैं, कोविड की लहर के बीच भारत की किशोरवय और युवा पीढ़ी को गिरफ्त में लेने वाली कोरियाई सांस्कृतिक लहर की. विशेषज्ञ इसे 'हाल्यू’ (कोरियन संस्कृति का बहाव) कहते हैं, जिसमें कोरियन सिनेमा, टीवी शो, ओटीटी कॉन्टेंट, खाना, ब्यूटी प्रोडक्ट्स के साथ साथ अन्य सांस्कृतिक पहलू शामिल हैं.

ऐसा नहीं है कि भारतीय युवा कोरियाई संस्कृति से बीते दो-तीन साल में ही परिचित हुए हों. भारत में एलजी और ह्यूंडई जैसे ब्रांड लाने वाले दक्षिण कोरिया के इस नए निर्यात की शुरुआत देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में ’90 के दशक के अंत तक हो चुकी थी. तब विद्रोही गुटों के चलते पूर्वोत्तर में भारत और हिंदी विरोधी भावनाएं पूरे जोर पर थीं.

जेएनयू में कोरियन भाषा पढ़ाने वाले सत्यांशु श्रीवास्तव के मुताबिक, इस इलाके के भारतीयों के तिब्बती-मोंगोलाइड फीचर, खान-पान और पारंपरिक मान्यताओं में समानता ने इसमें अहम भूमिका निभाई. इस बीच दूरदर्शन और कुछ दूसरे चैनलों ने हिंदी और तमिल में कोरियन ड्रामा का प्रसारण शुरू किया लेकिन शेष भारत के लिए अभी भी दक्षिण कोरिया बाकियों की तरह एक विदेश ही था.

फिर 2012 में आया कोरियाई पॉप यानी के-पॉप स्टार 'साय’ का गीत 'गंगनम स्टाइल’. भारत में 'गंगनम स्टाइल’ हनी सिंह के 'ब्राउन रंग’ के बाद साल 2012 का दूसरा सबसे देखा जाना वाला वीडियो बना. तब शेष भारत पहली बार के-पॉप शब्द से परिचित हुआ हालांकि के-पॉप और के-ड्रामा के फैन अगले कुछ साल तक पूर्वोत्तर में ही सिमटे रहे. 

लेकिन बाकी भारत में थमी हुई कोरियाई लहर को कोविड लॉकडाउन में छाने का बड़ा मौका मिला. तब देश ने एंटरटेनमेंट के एक नए काल में कदम रखा. उस वक्त कोरियन इंडस्ट्री ने भी क्रैश लैंडिंग ऑन यू जैसे हाइ क्वालिटी ड्रामा प्रोड्यूस किए.

2021 में नेटफ्लिक्स पर आया स्क्विड गेम का पहला सीजन 28 हफ्तों तक नेटफ्लिक्स पर भारत में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले शोज की लिस्ट में शीर्ष पर बना रहा. ऑल ऑफ अस आर डेड, बिजनेस प्रपोजल और ट्रू ब्यूटी जैसे कोरियन शो भी भारत में नेटफ्लिक्स की टॉप 10 लिस्ट में शामिल रहे.

के-ड्रामा ने लोगों की दिलचस्पी के-पॉप की तरफ और बढ़ाई और कोरिया का सबसे लोकप्रिय बैंड बीटीएस का जादू भारतीयों के सिर चढ़ने लगा. दुनिया भर के आंकड़ों का हिसाब-किताब रखने वाली वेबसाइट स्टेटिस्टा की मानें तो साल 2022 में बीटीएस के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर आने वाले व्यूज में से 77.8 करोड़ भारत से थे.

भारत बीटीएस को देखने वालों की इस लिस्ट में दूसरे स्थान पर था. पहले स्थान पर जापान 91.8 करोड़ व्यूज के साथ बना हुआ था. बीटीएस की दीवानगी भारतीय युवाओं में किस कदर पसरी है, इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस बैंड का गीत 'बटर’ (2021) म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप स्पॉटिफाइ पर देश में सबसे बड़ी ओपनिंग वाला गीत बना.

के-पॉप और के-ड्रामा के जरिए लिखी जा रही मोहब्बत की कहानियों का असर सीधा बाजार में भी दिखता है. भारतीय के-फैन्स अब कोरियन खाना चाहते हैं, अपने प्रिय कोरियन आइडल की तरह कपड़े पहनना चाहते हैं, वैसे ही दिखना चाहते हैं, वैसे ही 'सोजू’ (कोरियाई शराब) पीना चाहते हैं. 

बचपन में ही भारत आए सांग हून ली आज दिल्ली में अपनी कोरियन रेस्तरां चेन के मालिक हैं. उनके मुताबिक, टीवी में कोरियन खाने का सेकंड हैंड एक्सपीरियंस पाने के बाद लोग फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस भी चाहते हैं इसलिए वहां जाकर कोरियन खाना ऑर्डर करना चाहते हैं.

अमेजॉन इंडिया के कोर कन्ज्यूमेबल्स डिपार्टमेंट के डायरेक्टर निशांत रमण भी कुछ ऐसी ही बात कहते हैं. वे बताते हैं कि साल-दर-साल भारत में कोरियन नूडल की बिक्री में 150 फीसद की ग्रोथ देखी जा रही है. भारत में खास कोरियन प्रोडक्ट्स को समर्पित ईकॉमर्स प्लेटफॉर्म कोरीकार्ट के डायरेक्टर मंजीत सिंह कहते हैं कि कोविड के दौर में, यानी 2020 के बाद से उनके कारोबार ने 300 फीसद की ग्रोथ देखी.

सभी कोरियन खाने से इतर कोरियन राम्यन या रामन (कोरियन नूडल्स) आम भारतीय युवा में सबसे ज्यादा मशहूर हुआ. कोरियन ड्रामाज के रोमैंटिक सीनों में इतनी बार प्रेमी जोड़ों को रामन खाते देखा गया है कि ''वाना हैव रामन विद मी’’ कोरियन भाषा में ठीक 'नेटफ्लिक्स ऐंड चिल’ जैसा द्विअर्थी वाक्य बन गया है. हालांकि भारत में कोरियन नूडल की बढ़ती खपत का सिर्फ  एक ही अर्थ है कि भारतीयों ने कोरियन ड्रामा और संगीत से अपना प्रेम कोरियन प्रोडक्ट्स खरीदकर जाहिर करना उचित समझा है.

टीवी के पर्दे से लेकर खाने की मेजों तक भारतीय युवाओं की पसंद पर दिख रही कोरियाई छाप की यह कहानी सीनियर एसोसिएट एडिटर प्रतीक्षा ने इस बार की आवरण कथा में बयान की है. इसमें वे यह भी बता रही हैं कि जुबानों के सिर्फ जायके ही नहीं बदल रहे बल्कि हाल्यू की बदौलत जुबानें भी बदल रही हैं. भारत में बीते कुछ सालों में कोरियाई भाषा सीखने वालों की तादाद तेजी से बढ़ी है.

दिल्ली स्थित कोरियाई सांस्कृतिक केंद्र साल 2020 में 2,264 छात्रों को कोरियन सिखा रहा था जबकि आज 9,000 से ज्यादा भारतीय उसके जरिए कोरियन सीख रहे हैं. यह संख्या सिर्फ उन लोगों की है जो कोरियन दूतावास के इस सांस्कृतिक केंद्र से भाषा सीख रहे हैं. कॉलेज, यूनिवर्सिटी, स्कूल और प्राइवेट ट्यूटर्स को मिला दें तो मालूम नहीं यह संख्या कहां ठहरेगी.

कोरियाई संस्कृति की इस लहर को बनाए रखने में मदद करता कोरियाई सांस्कृतिक केंद्र भारत में समय-समय पर ईवेंट कराता रहता है. बीते सितंबर दिल्ली में आयोजित 'ऑल इंडिया के-पॉप कॉन्टेस्ट 2023’ में 11,000 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था. वहीं पिछले साल आयोजित 'रंग दे कोरिया’ ईवेंट में 1,20,000 लोग मौजूद थे.

भारत कई संस्कृतियों का देश है. एक लंबे समय तक कोरिया के जानकारों को लगता रहा कि इस बहुसांस्कृतिक परिवेश में शायद एक और संस्कृति की जगह न हो. लेकिन आज कोरियाई लहर ने इसे गलत साबित किया है. फिलहाल यही संकेत मिल रहे हैं कि यह लहर देश में लंबे वक्त तक टिकने के लिए आई है.

- अरुण पुरी, प्रधान संपादक और चेयरमैन (इंडिया टुडे समूह)

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