
जिन खेल आयोजनों में किसी देश की भागीदारी योग्यता के आधार पर कम और भूगोल या साझा औपनिवेशिक अतीत के कारण ज्यादा तय होती है, उन्हें ओलंपिक के मुकाबले अक्सर कम साख हासिल होती है. फिर भी एशियाई खेलों को अनदेखा करना मूर्खतापूर्ण होगा.
राष्ट्रमंडल खेलों के विपरीत, जहां वह लगातार अच्छा प्रदर्शन करता रहा है, भारत को एशियाई खेलों की पदक तालिका के शीर्ष पांच में आने के लिए भी जूझना पड़ा है. बैडमिंटन, टेबल टेनिस, मुक्केबाजी, भारोत्तोलन, कुश्ती और तीरअंदाजी सरीखे खेलों में भारतीय एथलीट दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों का सामना करते हैं, और यह 10 महीने बाद होने वाले पेरिस ओलंपिक के लिए आदर्श तैयारी है.
सोनी स्पोर्ट्स, जिसने प्रसारण और स्ट्रीमिंग अधिकार हासिल किए हैं, 'इस बार, सौ पार' नारे के साथ प्रचार अभियान चला रहा है. उल्लास और उत्साह से भरा यह नारा पिछले चार खेलों में भारत के प्रदर्शन को देखते हुए बहुत ज्यादा आशावादी लग सकता है. देश ने सबसे अच्छा प्रदर्शन 2018 में किया जब उसने 16 स्वर्ण पदक सहित कुल 70 पदक जीते और तालिका में आठवें पायदान पर रहा.
अब हांग्जो (23 सितंबर-8 अक्तूबर) में हो रहे खेल के 19वें संस्करण में 45 देशों के 12,500 अधिक एथलीट 40 खेलों में हिस्सा ले रहे हैं. इनमें ब्रिज, जिसमें भारत ने 2018 में सोना जीता था, और कबड्डी, वुशु, कुराश, जू-जित्सु और सेपक टकरा, जिसमें सचमुच देश की नुमाइंदगी है, सरीखे एशिया के मनमाफिक खेल भी हैं. ई-स्पोर्ट पदक वाले मुकाबले के तौर पर पदार्पण कर रहे हैं, जिनमें भारत ने 15 गेमर भेजे हैं. टी-20 क्रिकेट की भी एंट्री हो रही है, वैसे ज्यादा फायदेमंद ओडीआइ विश्व कप को तवज्जो मिलने के कारण पुरुषों की टीम से सुपरस्टार नदारद हैं.
भारत के जत्थे में 620 एथलीट हैं, जिसमें से करीब आधी लड़कियां और कई काफी युवा हैं. हम यहां तीन- अदिति गोपीचंद स्वामी (तीरअंदाजी), रुद्रांक्ष पाटील (निशानेबाजी), जस्विन एल्ड्रिन (एथलेटिक्स)- के बारे में बता रहे हैं. ओलंपिक और विश्व चैंपियन नीरज चोपड़ा भी पसंदीदा हैं, पर सिर्फ वही नहीं हैं.
दो बार की विश्व चैंपियन मुक्केबाज निकहत जरीन और दुनिया की नंबर-2 बैडमिंटन जोड़ी चिराग शेट्टी और सात्विकसाईराज रेड्डी से भी काफी उम्मीदें हैं. रेड्डी ने इस प्रतिस्पर्धा की अहमियत के बारे में इंडिया टुडे से बात की. हम यहां स्टीपलचेज की महारथी पारुल चौधरी और टोक्यो में जरा से फर्क से पदक चूक गई गोल्फर अदिति अशोक पर भी रोशनी डाल रहे हैं.
सौ पार हों या न हों, पर एशियाई खेल क्रिकेट के प्रति जुनून से भरे देश में एथलीटों का हौसला बढ़ाते हैं. कम-से-कम अगले दो हफ्ते तमाम नजरें उन्हीं पर होंगी.
मुक्केबाजी में दिखेगा निकहत जरीन का दम
निकहत जरीन की जिंदगी नाटकीयता से इस कदर भरी है कि उस पर बायोपिक बन सकती है. इसकी शुरुआत तब हुई जब 13 बरस की यह टॉमबॉय निजामाबाद के केकलेक्टर ग्राउंड में गई और वहां लड़कियों को मुक्केबाजी के अलावा सारे खेल खेलते देखा. यहीं से वे दस्ताने पहनने को प्रेरित हुईं. इसमें उन्हें पिता का सहारा मिला, पर लोगों की दकियानूसी सोच से लड़ना भी पड़ा.
आगे उन्होंने कई ऊंचाइयों को छुआ-युवा विश्व चैंपियन बनीं और फिर दो बार सीनियर विश्व खिताब जीता- तो कई उतार भी आए. इनमें टोक्यो ओलंपिक के क्वालिफायर मैच में कंधे की चोट के कारण मैरी कॉम से हारना शामिल है. मगर जरीन की प्रेरक कहानी का खुशगवार अंत अभी आना है. एक खिताब है जिसके लिए वे लालायित हैं-ओलंपिक चैंपियन.
इस लिहाज से एशियाई खेलों ने नई अहमियत अख्तियार कर ली है, क्योंकि जरीन की पेरिस 2024 की जीत की कोशिश में हांग्जो अहम पड़ाव है. अगर वे एशियाई स्वर्ण पदक जीत लेती हैं, तो अपने पहले ओलंपिक के लिए क्वालिफाइ कर लेंगी. तैयारी में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसमें रूस और फिलीपींस के मुक्केबाजों के साथ अभ्यास, तीन हफ्ते के राष्ट्रीय शिविर के लिए चीन में प्रशिक्षण, और भारतीय मुक्केबाजी महासंघ के डायरेक्टर ऑफ हाइ परफॉर्मेंस बर्नार्ड ड्यूने के हाथों अपने लिए तैयार योजना का पालन शामिल है.
करियर के शुरुआती दौर में जरीन मैरी कॉम की छाया में रहीं, जिनका फ्लाइवेट श्रेणी में करीब एक दशक एकछत्र बोलबाला रहा. टोक्यो के बाद जब कॉम रिटायर हो गईं, जरीन ने रोशनी में आने का मौका झपट लिया. अब उनसे वही उम्मीदें हैं जो सबसे अव्वल खिलाड़ी से होती हैं. वे कहती हैं, "सबसे पहले मुझे अपने लिए अच्छा करना था क्योंकि मैं अपनी क्षमताओं को जानती थी. जब खिलाड़ी एक निश्चित स्तर तक पहुंच जाता है तो जिम्मेदारी दबाव में बदलने लगती है और कई लोग अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते. कई दफे मैं दबाव में और निखरकर आती हूं. यह कम से संतुष्ट नहीं होने के लिए जोर डालता है."
बचपन से उनमें यही जुनून रहा है. तब उनके साथी खिलाड़ी लड़के होते थे. वे कहती हैं, "यह निर्भीक और 'करना ही है' रवैया मुझे उन्हीं से मिला." लड़की होना बचपन से उन्हें कभी रुकावट नहीं लगा. शुरू में, जब वे धाविका थीं, इसे 'चुल' यानी एक किस्म की बेचैनी कहती थी, ताकि "लोगों के सामने साबित कर सकें कि लड़कियां मजबूत होती हैं और वे भी मुक्केबाजी को अपना सकती हैं." रिंग में तो उन्होंने वाहवाही बटोरी ही, रिंग के बाहर अपने नतीजों के असर से और खुश हैं. वे कहती हैं, "विश्व चैंपियनशिप जीतने के बाद मुझे फोन आने लगे कि हैदराबाद कब लौटूंगी क्योंकि मुक्केबाज बनने की इच्छुक लड़कियां मुझसे मिलना चाहती थीं."
यह भारतीय खेल के लिए अच्छी बात है कि जरीन की चुल बरकरार है. यही वजह है कि वे एक साल में फ्लाइवेट से लाइट फ्लाइवेट में आ सकीं और उसमें भी विश्व चैंपियन बन सकीं. वे कहती हैं, "दो किलो कम करना छोटी बात लगती है, पर रफ्तार और ताकत बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता है." उस बदलाव के लिए आहार पर ज्यादा आत्मनियंत्रण जरूरी था, पर कार्बोहाइड्रेट और शक्कर का 'बलिदान' इस लिहाज से अच्छा रहा कि इसके बूते वे देश की नुमाइंदगी और उसे गौरवान्वित कर सकीं.
एयर राइफल शूटिंग
रुद्रांक्ष पाटील ने 12 बरस के बालक के तौर पर 2016 में पहली बार शूटिंग रेंज में कदम रखा था. उनके पिता बालासाहेब पाटील ठाणे के डिप्टी पुलिस कमिशनर थे, जब उन्हें द्रोणाचार्य शूटिंग रेंज के उद्घा टन समारोह का न्यौता मिला. कोच स्नेहल कदम ने रुद्रांक्ष के माता-पिता से पूछा कि क्या वह निशानेबाजी में आना चाहेगा. पिता बालासाहेब और महाराष्ट्र के ट्रांसपोर्ट महकमे में अफसर तथा रुद्रांक्ष की मां हिमांगिनी ने कहा कि उनके बेटे में निशानेबाजी की तरफ झुकाव नहीं दिखाई दे और इसके बजाए वह फुटबॉल खेलने को उत्सुक है.
फिर भी रुद्रांक्ष को एक ओपन साइट एयर राइफल दी गई, जो उनके खेल 10 मीटर एयर राइफल प्रतिस्पर्धा का सबसे शुरुआती हथियार है. शुरुआत में इस खेल के विरामों और धीमी रफ्तार से उन्हें अपना मन बुझता-सा लगा और वे फुटबॉल में लौटना चाहते थे. मगर कुछ ऐसा हुआ कि वे इसी में बने रहे. इसका फायदा भी हुआ. 2016 में रुद्रांक्ष ने ठाणे के जिलास्तर के मुकाबले में पदक जीतकर पहली मान्यता हासिल की, और फिर इंदौर में स्कूल स्तर के राष्ट्रीय खेलों में भी पदक जीता. बालासाहेब कहते हैं, "शुरुआती उम्र से ही उसकी कदकाठी अच्छी थी और हमने सोचा कि वह राइफल का वजन संभाल पाएगा."
रुद्रांक्ष फिर ज्यादा प्रतिस्पर्धी पीप साइट मुकाबलों में आ गए और राज्य तथा राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में उनके पदकों का सिलसिला कायम रहा. 2019 का साल निर्णायक मोड़ रहा जब पाटील दंपति ने तय किया कि अगर रुद्रांक्ष उसी साल यूरोप में शूटिंग ग्रां प्री जीत लेते हैं तो वे खेल में पूर्णकालिक करियर जारी रखेंगे. रुद्रांक्ष ने वह शूटिंग ग्रां प्री जीत ली. 2022 में उन्होंने काहिरा विश्व चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीतकर और पेरिस ओलंपिक में भारत की जगह पक्की करके अपनी काबिलियत फिर साबित की.
रुद्रांक्ष को चुनौती कहां से मिलने की उम्मीद है? उनका कहना है, "चीनी मुख्य प्रतिस्पर्धी हैं." अपनी पीढ़ी के ज्यादातर निशानेबाजों की तरह उनके आदर्श भी अभिनव बिंद्रा हैं, जिन्होंने भारत के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक मेडल जीता था. रुद्रांक्ष वाल्थर राइफल से प्रशिक्षण लेते हैं और खाली वक्त अपने खेल के बारे में रिसर्च करते हुए बिताते हैं. बालासाहेब कहते हैं, "मैकेनिक्स में हमेशा रुद्रांक्ष की रुचि रही और वह अपने हथियारों का पुर्जा-पुर्जा जानता है. वह इसे अलग-अलग करके तेजी से फिर जोड़ सकता है."
वह क्या बात है जो उन्हें दूसरों से अलग करती है? पूर्व निशानेबाज और 10 मीटर एयर राइफल प्रतिस्पर्धा की चीफ कोच सुमा शिरूर कहती हैं, "रुद्रांक्ष चैंपियन की मानसिकता से लैस है. संकट की स्थितियों में अपनी क्षमताओं के भंडार से शक्ति हासिल करने की काबिलियत भी उसमें है. वह कड़ी मेहनत करता है और ब्योरों पर बहुत गहराई से ध्यान देता है."
कंपाउंड तीरअंदाजी
साल 2021 की शुरुआत में अदिति स्वामी ने, जो तब 15 बरस की थीं, अपने तीरअंदाजी कोच प्रवीण सावंत की हिदायत मानकर महाराष्ट्र के सतारा में अपने घर की दीवार पर चार लक्ष्य लिख लिए. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि सीनियर खेलने के अपने पहले साल 2023 में वे इनमें से दो पूरे कर लेंगी: जुलाई में युवा विश्व चैंपियनशिप जीतना और फिर अगस्त में युवा सीनियर विश्व चैंपियन बनना. यह पहली बार है जब किसी तीरअंदाज ने एक ही साल में दोनों श्रेणियों में जीत दर्ज की. अदिति की उस फेहरिस्त में तीसरा लक्ष्य एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक है.
आठ साल पहले जब उनके पिता और गणित के अध्यापक गोपीचंद उन्हें सतारा के साहू स्टेडियम में ले गए ताकि वे अपने लिए कोई खेल चुन लें, अदिति को तीरअंदाजी के बारे में पता नहीं था. क्रिकेट, वॉलीबॉल और अन्य खेल थे, पर उनका ध्यान उस खेल ने खींचा जो एक कोने में हो रहा था-सावंत लकड़ी के तीर-धनुष से बच्चों को निशाना लगाना सिखा रहे थे. वे कहती हैं, "तीरअंदाजी का अनुसरण करना आसान था. आप जितना ज्यादा ध्यान केंद्रित करेंगे, उतनी ही ज्यादा उत्कृष्टता हासिल करेंगे. मैंने 15 दिन आजमाया और मेरी दिलचस्पी बढ़ती गई." अभी अदिति सावंत की दृष्टि आर्चरी एकडेमी में अपने हुनर को सान पर चढ़ा रही हैं.
तीरअंदाजी महंगा खेल है और गोपीचंद ने शुरुआत में उनके लिए धनुष खरीदने की खातिर 10 लाख रुपए का कर्ज लिया. अदिति कहती हैं, "मैं मध्यमवर्गीय परिवार से हूं, इसलिए खर्चों को लेकर एहतियात बरतनी पड़ती है." 2021 में खेलो इंडिया में सोना जीतने के बाद अदिति ने छात्रवृत्ति हासिल की, जिससे चीजें आसान हो गईं. वे कहती हैं, "उससे मुझे यात्रा के खर्चों और उपकरणों के मामले में भी कुछ मदद मिल रही है."
लाल बहादुर शास्त्री कॉलेज में विज्ञान की छात्रा अदिति अपना वक्त तीरअंदाजी और पढ़ाई में बांटती हैं. देश के प्रभावशाली कंपाउंड आर्चरी जत्थे की 'बालिका' के तौर पर उन्हें अपनी आदर्श विश्व नंबर-2 ज्योति सुखी वेनम के साथ खेलने का मौका मिलता है, जो उनकी सबसे मुश्किल प्रतिद्वंद्वियों में से एक होंगी. अदिति कहती हैं, "अगर हम विश्व चैंपियनशिप और विश्व कप का अपना प्रदर्शन दोहराते हैं, तो हम स्वर्ण पदक जरूर जीतेंगे." अगर अदिति अपना तीसरा लक्ष्य पूरा करती हैं, तो उनकी फेहरिस्त में पहला काम अपने 'सर' और 'पापा' को पदक दिखाना है और फिर दर्शन के लिए पंढरपुर मंदिर जाना है.
लंबी कूद में 'उछाल' की उम्मीद
तब महज 17 बरस के जस्विन एल्ड्रिन तमिलनाडु के मुदलूर से कर्नाटक के विजयनगर स्थित इंस्पायर इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट (आईआईएस) पहुंचे, तो उन्हें लगा कि वे अपने पसंदीदा मंगा चरित्रों में से एक-वन पीस के लफी-की तरह हैं. वे कहते हैं, "उनका लक्ष्य ज्यादा आजाद होना और अपना मनचाहा करना है." आईआईएस में यह देखने के लिए मॉम और पापा नहीं थे कि वे एनिमे देखते हुए कितना वक्त बिताते हैं.
आखिरकार उन्हें मोबाइल मिल गया, जिससे वे पबजी खेल सकते थे और फिल्में देख सकते थे. वे कहते हैं, "मेरे घर में बहुत सख्ती हुआ करती थी. यहां आकर मैं खुश था." इसका यह मतलब नहीं कि आईआईएस में उन्हें खुली छूट मिल गई. अपने अनुशासित रहन-सहन के कारण ही वे लंबी कूद में भारत की सबसे उज्ज्वल संभावनाओं में से एक बनकर उभरे.
इस साल बुडापेस्ट में विश्व एथलेटिक चैंपियनशिप में अंतिम 12 में जगह बनाने के अलावा एल्ड्रिन ने एशियाई इनडोर चैंपियनशिप में नए राष्ट्रीय इनडोर रिकॉर्ड के साथ रजत पदक जीता. मार्च में बेल्लारी में नेशनल जम्प्स कॉम्पीटिशन में उन्होंने 8.42 मी की छलांग लगाई और हमवतन मुरली श्रीशंकर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा. इस बड़े सुधार का श्रेय वे "पिछले सीजन के मुकाबले समग्र मानसिकता" में आए बदलाव को देते हैं. वे कहते हैं, "हर चीज—ध्यान, तकनीक, शक्ति और रफ्तार-में सुधार आया है." वे एशियाई खेलों में एक और दावेदार श्रीशंकर से अपनी प्रतिस्पर्धा पर कहते हैं, "हम दोनों सर्वश्रेष्ठ होना चाहते हैं."
एल्ड्रिन मिठाई की दुकान चलाने वाले परिवार से आते हैं. बचपन में खेलते हुए बिताए गए वक्त को सार्थक नहीं माना जाता था. एल्ड्रिन अपने अंकल साइमन आइजैक और पूर्व कोच एंटनी याइच को इस बात का श्रेय देते हैं कि उन्होंने उनके जुनून को बढ़ावा दिया और उनके माता-पिता को भी यही करने के लिए मनाया. लंबी कूद भारतीय एथलेटिक्स में भाला फेंक की तरह ही लोकप्रिय खेल की तरह उभर रही है. एल्ड्रिन कहते हैं, "ओलंपिक्स में सिर्फ दो जा सकते हैं, पर अगली विश्व चैंपियनशिप में तीन जा सकते हैं और फाइनल्स में हो सकते हैं, तथा मैं और श्री पोडियम पर हो सकते हैं. हम यही लक्ष्य लेकर चल रहे हैं." उससे पहले हांग्जो एशियाई खेल हैं जहां एल्ड्रिन को एक कूद से दो लक्ष्य हासिल होने की उम्मीद है.
अगर वे 8.27 मी से ज्यादा लंबी छलांग लगाते हैं और फासले से ऐसा करते हैं, तो वे न केवल पदक जीतेंगे बल्कि अपने पहले ओलंपिक का टिकट भी हासिल कर लेंगे. वे कहते हैं, "मेरा मुख्य फोकस चोटिल होने से बचने, सेहतमंद रहने और प्रशिक्षण लेने पर होगा. अगर मैं इतना कर लेता हूं, तो एशियाई खेलों में अच्छा रहूंगा."
गोल्फ-व्यक्तिगत और टीम
अदिति अशोक ने पिछली बार जब एशियाई खेलों में हिस्सा लिया, तब वे 17 वर्षीया शौकिया गोल्फर थीं. बेंगलूरू की यह लड़की अब 48वीं वर्ल्ड रैंकिंग के साथ हांग्जो पहुंची है. दो साल पहले टोक्यो में अपने बेहतरीन प्रदर्शन की बदौलत अदिति ने पूरे देश का ध्यान खींचा था. वहां वे मामूली अंतर से पदक जीतने से चूक गई थीं. वे भारत के सात सदस्यीय खेल दल का हिस्सा हैं, जिनमें पांच खिलाड़ी कर्नाटक से हैं. 21 हफ्ते में 17 टूर्नामेंट खेलने वाली अदिति एलपीजीए टूर सर्किट पर अच्छी फॉर्म में नजर आ रही हैं. वे कहती हैं, "इस सीजन में कुछ हफ्ते मेरे लिए बहुत अच्छे रहे हैं और उम्मीद है कि मेरी तैयारी और प्रैक्टिस पोडियम फिनिश के लिए चार राउंड अच्छी तरह खेलने में मददगार साबित होगी."

महिला गोल्फ एक खास प्रतिस्पर्धी प्रतियोगिता होगी, जिसमें दुनिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ दक्षिण कोरियाई और चीनी खिलाड़ी अपना दम दिखाएंगे. अदिति न तो खिलाड़ियों से मिलने वाली चुनौतियों से विचलित हैं और न ही एक बड़ी प्रतियोगिता होने के मौके को अपने ऊपर हावी होने देना चाहती हैं. टोक्यो खेलों में 200वीं रैंक पाने वाली अदिति कहती हैं, "गोल्फ ऐसा खेल है जिसमें नतीजों का रैंकिंग से कोई बहुत ज्यादा लेना-देना नहीं होता है. कोई भी गोल्फर एक साथ चार अच्छे राउंड की बदौलत जीत हासिल कर सकता है, चाहे वह शौकिया हो या फिर पेशेवर, उसकी रैंक बहुत ऊंची हो या फिर कम. मेरा लक्ष्य है कि इसे किसी भी अन्य गोल्फ टूर्नामेंट की तरह खेलूं और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूं."
टोक्यो खेलों की सफलता ने अदिति की लोकप्रियता बढ़ाकर उनकी राह थोड़ी आसान कर दी है. इसी वजह से इस बेहद महंगे खेल के लिए उन्हें रेडिसन होटल्स अमेरिका और हुंडई इंडिया जैसे स्पॉन्सर मिलने लगे हैं. हांग्जो के वेस्ट लेक इंटरनेशनल कोर्स में उतरने के दौरान अदिति जूनियर खिलाड़ी के तौर पर शुरुआत करने के समय का तरीका ही अपनाएंगी, जिसमें उनके माता-पिता में से ही कोई उनका कैडी रहा है. इस बार, बैग के साथ उनके पिता अशोक मौजूद रहेंगे. अदिति बताती हैं, "मेरी अपने डैड के साथ शॉट पर काफी चर्चा होती है क्योंकि वे मेरे खेल को अच्छी तरह जानते हैं और इससे मुझे काफी मदद मिल सकती है." देश को भी पूरी उम्मीद है कि अदिति इस बार टोक्यो से कहीं बेहतर प्रदर्शन करेंगी.
स्टीपलचेज में पारुल से पदक की उम्मीद
पारुल चौधरी ने कभी सोचा भी नहीं था कि वे दौड़ को अपना करियर बनाएंगी. लेकिन इसकी शुरुआत मेरठ के इकलौता गांव के स्कूल से तब हुई, जब 16 वर्षीय पारुल अपनी पहली 800 मीटर दौड़ जीतकर लौटीं. वह नतीजा और पारुल की खेल प्रतिभा को लेकर फिजिकल ट्रेनर का भरोसा ही उनके किसान पिता कृष्ण पाल सिंह के लिए उन्हें ट्रेनिंग के लिए मेरठ भेजने पर तैयार होने के लिए काफी था.
हर दिन 20 किमी यात्रा के दौरान बेटी अकेली न रहे, यह सोचकर उन्होंने अपनी बड़ी बेटी प्रीति को भी साथ भेजने का फैसला लिया. पारुल कहती हैं, "वे बस यही चाहते थे कि उनकी लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हों और नौकरी पाएं." प्रीति अब सीआईएसएफ में नौकरी करती हैं, वहीं पारुल स्टीपलचेज में कमाल दिखा रही हैं.
पारुल ने इस साल एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और हाल में बुडापेस्ट में वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के फाइनल में जगह बनाई. वहां वे भारत के ब्रेकआउट एथलीटों में एक रहीं. पारुल ने हीट में व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया ही, फाइनल के लिए भी क्वालीफाई किया. उन्होंने चार सेकंड से अधिक समय से नेशनल रिकॉर्ड तोड़ा और साथ ही ओलंपिक 2024 के लिए क्वालीफाई भी कर लिया.
बेंगलूरू स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) केंद्र से बात करते हुए पारुल ने बताया कि वे बुडापेस्ट में अपने प्रदर्शन से खुद हैरान थीं. उनके मुताबिक, "मैं दो किमी तक तेजी से दौड़ी क्योंकि मैं फाइनल में पहुंचने को लेकर उत्साहित थी, मुझे विश्वास था कि मैं ओलंपिक क्वालीफाइंग मार्क (9:27) तक पहुंच जाऊंगी. लेकिन मैंने सोचा भी नहीं था कि मैं यह दूरी मात्र 9:15 मिनट में पूरी कर लूंगी. लेकिन जब दिन आता है तो ऐसे ही हो जाता है." बुडापेस्ट से पहले, उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 9:29.51 रहा था, जो मई में अमेरिका में एक इवेंट में दर्ज किया गया था.
पारुल और अविनाश साबले जैसे एथलीट यह उम्मीद जगाते हैं कि भारत भी मध्यम दूरी की प्रतिस्पर्धाओं में अपने धावकों को उतार सकता है, जिसमें खासकर इथियोपिया, केन्या और मोरक्को जैसे देशों का बोलबाला है. एशियाई खेलों में पारुल का लक्ष्य निर्धारित है जो कि 3,000 मीटर स्टीपलचेज और 5,000 मीटर दौड़ दोनों में हिस्सा लेंगी.
वैसे उनका ज्यादा ध्यान 3,000 मीटर स्टीपलचेज पर केंद्रित होगा, जिसमें वाटर जंप में वे ज्यादा सहज महसूस करती हैं. पारुल कहती हैं, "इसमें पदक की पूरी संभावना है और मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगी." वे इसमें इस साल सबसे बेहतर समय निकालने के मामले में दूसरी एशियाई एथलीट हैं. इसमें सबसे तेज दौड़ का रिकॉर्ड विश्व चैंपियन और केन्या में जन्मी बहरीन की एथलीट विन्फ्रेड म्यूटाइल के नाम है.
लेकिन, इससे पारुल के इरादे डिगने वाले नहीं हैं. वे ओलंपिक और विश्व चैंपियन नीरज चोपड़ा से प्रेरित हैं जिन्होंने अपने खेल से साबित कर दिया है कि भारत इलीटों से न केवल मुकाबला कर सकता है बल्कि उन्हें हरा भी सकता है. वे कहती हैं, "नीरज का ओलंपिक पदक देश में एथलेटिक्स प्रोफाइल को बढ़ावा देने में काफी मददगार साबित हुआ है. अगर हम इसी रास्ते चलते रहे तो और बेहतर ही होगा."
दम दिखाएगी शेट्टी-रेड्डी की जोड़ी
शटलर चिराग शेट्टी और सात्विकसाईराज रेड्डी के पास उसी तरह का जोश और जुनून है, जिसने कभी लिएंडर पेस और महेश भूपति उर्फ इंडियन एक्सप्रेस की जोड़ी को एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया था. उनकी जोड़ी इसका जीता-जागता सबूत है कि जोड़ी में शामिल दो लोग कैसे एक-दूसरे के पूरक बन जाते हैं.
शेट्टी मुंबई के रहने वाले हैं और उन्हें अंतरराष्ट्रीय व्यंजनों का स्वाद लुभाता है; वहीं रेड्डी आंध्र प्रदेश के अमलापुरम से हैं और स्पर्धा के लिए विदेश में होने के दौरान भी भारतीय रेस्तरां तलाशते रहते हैं. शेट्टी को जीत की खुशी में शर्ट उतारकर लहराना पसंद है तो रेड्डी को अपने डांस मूव्ज दिखाना. कोर्ट पर खेलते समय शेट्टी अधिक आक्रामक नजर आते हैं और खुद को विराट कोहली की तरह अजेय तेवरों के साथ दिखाना पसंद करते हैं.
शेट्टी कहते हैं, "जब मैं पूरी आक्रामकता के साथ कोर्ट में उतरता हूं तो बहुत अधिक सहज महसूस करता हूं. अपने स्ट्रोक को लेकर आत्मविश्वास से लबरेज रहता हूं और काफी बेहतर प्रदर्शन भी करता हूं." दूसरी तरफ, 'सहज और शांतचित्त' रहना रेड्डी की खासियत है. वे कहते हैं, "मैं सिर पर किसी तरह का बोझ नहीं लादता." रेड्डी-शेट्टी का ऐसा विरोधाभासी व्यक्तित्व ही उन्हें पुरुष बैडमिंटन की सबसे मजबूत जोड़ियों में से एक बनाता है.
शेट्टी और रेड्डी पिछले सात साल से साथ खेल रहे हैं लेकिन 2023 उनके लिए सबसे सफल वर्ष रहा है. वे चार खिताब पहले ही अपनी झोली में डाल चुके हैं, जिनमें एशियाई चैंपियन होने के अलावा इंडोनेशियाई ओपन भी शामिल है, जो एक तरह से बैडमिंटन ग्रैंड स्लैम प्रतियोगिता है.
शानदार फॉर्म ने उन्हें वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर-2 पर पहुंचा दिया है, जो किसी भी भारतीय जोड़ी- पुरुष या महिला- के लिहाज से सर्वोच्च रैंकिंग है. अगर वे हांग्जो में भी इसी फॉर्म को बरकरार रखते हैं तो उनका पोडियम पर पहुंचना तय है, जो 1982 के एशियाई खेलों के बाद पहला ऐसा मौका बन सकता है. उस समय भारत ने पुरुष युगल में पदक (कांस्य) जीता था. इसका आखिरी पुरुष पदक 1986 में टीम स्पर्धा में आया था. हर किसी ने हांग्जो में इतिहास दोहराए जाने की उम्मीद लगा रखी है.
2023 का पुरुष दल टीम स्पर्धा का मजबूत दावेदार है, खासकर इसलिए भी क्योंकि इसमें वही खिलाड़ी शामिल हैं जिन्होंने पिछले साल थॉमस कप जीता था. वह भारत के लिए एक उत्साह भरा क्षण था. पुरुष टीम के विश्व चैंपियन होने के असर के बारे में पूछे जाने पर शेट्टी कहते हैं, "पूरी टीम ने व्यक्तिगत स्पर्धाओं में भी बेहतर ढंग से खेलना शुरू कर दिया. इसने हमें सिखाया है कि नाजुक मौकों पर कैसे बेहतर खेल का प्रदर्शन करें, इससे हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ा है."
शेट्टी-रेड्डी के कई प्रतिस्पर्धाएं जीतने की एक बड़ी वजह, उन्हें युगल कोच माथियास बो का मार्गदर्शन भी है जो पुरुष युगल में ओलंपिक पदक विजेता हैं. बो ने उनकी दिनचर्या को बहुत हद तक अनुशासित किया है. चेहरे पर बच्चों जैसी मुस्कान के साथ रेड्डी बताते हैं, "वे (हम पर) काफी सख्ती करते हैं." शेट्टी इसमें जोड़ते हैं, "वे हमेशा अभ्यास के दौरान 200 फीसद नतीजे के लिए प्रेरित करते हैं. उन्होंने हमें अपना शेड्यूल बनाने में मदद की और साथ ही यह निर्धारित करना भी सिखाया कि आखिर हम हासिल क्या करना चाहते हैं."
लक्ष्य सिर्फ एशियाई खेलों में पदक जीतना नहीं है, इसमें ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीतना, विश्व खिताब (इसमें उनके पास कांस्य है) और ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले पुरुष शटलर बनना भी शामिल है. इस जोड़ी ने हांग्जो में मैदान फतह करने के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया है, जहां इसका मुकाबला दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कोरियाई, चीनी, इंडोनेशियाई, मलेशियाई और जापानी जोड़ियों के साथ होना है. उम्मीद है कि वे अपना लोहा मनवाकर ही लौटेंगे.
अन्य खेलों पर भी टिकी नजरें
कुश्ती
विनेश फोगाट के चोटिल होने के बाद, अब पूर्व डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों का चेहरा बने पहलवानों में से एक बजरंग पूनिया अपना खिताब बचाने के लिए मैदान में उतरेंगे.
शतरंज
चेस वर्ल्ड कप में उपविजेता रहे रमेशबाबू प्रज्ञानानंद और क्वावर्टर फाइनल में पहुंचने वाले गुकेश डी. अर्जुन एरिगासी और विदित गुजराती जैसी युवा प्रतिभाओं के साथ भारत की पुरुष टीम प्रतिस्पर्धा में प्रबल दावेदार है.
तलवारबाजी
2023 में एशियाई फेंसिंग चैंपियनशिप में कांस्य जीतने वाली पहली भारतीय फेंसर सी.ए. भवानी देवी इतिहास रचने के इरादे से मुकाबले में उतरना चाहेंगी. वे एशियाई खेलों में देश को इस प्रतिस्पर्धा का पहला पदक दिलाना चाहती हैं.
टेबल टेनिस
टेबल टेनिस में चीन भले ही शीर्ष पर है, लेकिन मिश्रित युगल स्पर्धा में मनिका बत्रा और जी. साथियान की जोड़ी पर पूरी उम्मीदें टिकी हैं, जो वल्र्ड रैंकिंग में आठवें स्थान पर हैं.
टेनिस
यूएस ओपन पुरुष युगल में फाइनलिस्ट रहे 43 वर्षीय रोहन बोपन्ना ने इस साल काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, और वे वर्ल्ड रैंकिंग में अभी 7वें स्थान पर हैं. बोपन्ना एशियाई खेलों में पुरुष और मिश्रित युगल दोनों में स्वर्ण पदक अपनी झोली में डालने के इरादे से हिस्सा लेंगे.
महिला क्रिकेट
पुरुष टीम के एकदिवसीय विश्व कप में हिस्सा लेने के कारण क्रिकेट में यहां सारी उम्मीदें महिला टीम पर टिकी हैं. उनसे स्वर्ण पदक के साथ लौटने की अपेक्षा की जा रही है, क्योंकि इससे कम एक तरह से झटका ही माना जाएगा.
ई-स्पोर्ट्स
ई-स्पोर्ट्स पहली बार इस प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बन रहा है और भारत को पदक दिलाने का सारा दारोमदार 20 वर्षीय फीफा ऑनलाइन-4 के महारथी चरणजोत सिंह पर टिका है. उन्होंने इस खेल के सीडिंग इवेंट्स में भी शीर्ष स्थान हासिल किया है.