स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर
यह परिवहन की नई परिकल्पना है—दक्ष, टिकाऊ और सुरक्षित. बुनियादी ढांचे को ही उत्तरदायी, लचीला और जीवंत बनाया जा रहा है. यह मोबिलिटी का भविष्य है, और काम शुरू हो चुका है.
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 23 दिसंबर, 2021 को राष्ट्रीय राजधानी से 60 किमी दूर उत्तर प्रदेश के डासना में ईस्टर्न पेरिफरल एक्सप्रेसवे पर भारत का पहला इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आइटीएस) लॉन्च किया.
इस 135 किमी लंबे एक्सप्रेसवे पर अब हाइवे ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (एचटीएमएस) है, जो वीडियो इंसीडेंट डिटेक्शन, ओवरस्पीडिंग चेक, पेवमेंट मैनेजमेंट और ऐसे ही दूसरे कामों के लिए स्मार्ट उपकरणों के संयोजन से बना है. इसके जरिए जो जानकारी इकट्ठी की जाती है, उसे कंट्रोल रूम के सेंट्रल सर्वर पर भेजा जाता है. यह सर्वर इस सारे इनपुट के आधार पर खतरे के संकेत भेजता है और एक्सप्रेसवे के साथ लगे एलईडी डिस्प्ले पर चेतावनी के संदेश चमकाता है.
> यह गेमचेंजर क्यों है
स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर आधुनिक बुनियादी ढांचे और उसमें जोड़ी गई कई टेक्नोलॉजी का मेल है. इसका इस्तेमाल जनोपयोगी चीजों के उपभोक्ता दक्ष और त्वरित फैसला लेने के लिए कर सकते हैं. स्मार्ट हाइवे ऐसी पट्टियां हैं जहां यातायात की आवाजाही, दुर्घटनाओं, जाम, और भूस्खलन व जल जमाव सरीखी जलवायु से जुड़ी दिक्कतों का डेटा हासिल करने के लिए डिजिटल सेंसर या संवेदक लगाए जाते हैं. इस सबसे ड्राइवरों को वास्तविक समय में सारी जानकारी मिलती रहती है, उनकी सुरक्षा पक्की होती है, और एक दूसरे छोर पर यातायात की बेहतर समझ और साज-संभाल हासिल होती है. यही नहीं, आइटीएस की तैनाती से सुरक्षित और चुस्त-दुरुस्त मालढुलाई में भी आसानी हो सकती है और इस तरह आपूर्ति शृंखलाओं के कामकाज में सुधार आ सकता है.
रिसर्च, कंसल्टिंग और डेटा एनालिटिक्स फर्म मार्कएनटेल एडवाइजर्स के मुताबिक, भारत के आइटीएस बाजार के 2022 और 2027 के बीच करीब 16 फीसद की सीएजीआर या चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ने का अनुमान है. उसकी जुलाई 2022 की एक रिपोर्ट यह भी कहती है, ''बाजार आगे बढ़ रहा है. लोगों की माली हालत और वाहनों की निजी मिल्कियत के प्रति उनके झुकाव से... जो बढ़ते सड़क हादसों के पीछे प्रमुख कारक भी है. ऐसी संभावनाओं को कम से कम करने के लिए यह आइटीएस की मांग को बढ़ा रहा है.''
पिछले कुछ सालों में भारत ने आधुनिक मशीनों से लैस करीब 9,000 किमी राजमार्ग बनाए. वित्त वर्ष 2023-24 के अंत तक लक्ष्य 10,000 किमी का है. राज्य सरकारें भी इस दिशा में काम कर रही हैं. मसलन, तमिलनाडु में राजमार्ग महकमा चेन्नै की सात अंदरूनी सड़कों को वाइफाइ के खंभों, सीसीटीवी कैमरों, इन्फॉर्मेशन किओस्क वगैरह के साथ स्मार्ट सड़कों में बदल रहा है. इसका मकसद सड़कों को बिना मोटर वाले परिवहन के लिए सुरक्षित बनाते हुए दुर्घटना और भीड़-भाड़ को कम करना है.
> महारत हासिल करने के लिए भारत क्या करे
भारत के पास राष्ट्रीय राजमार्गों का करीब 1,45,000 किमी लंबा नेटवर्क है, जो अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा नेशनल हाइवे नेटवर्क है. ऐसे में सरकार के लिए आइटीएस नेटवर्क का विस्तार करना और भी जरूरी हो जाता है. मगर इन स्मार्ट समाधानों को सस्ता, अमल में आसान और न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत वाला होना चाहिए, तभी इन्हें व्यापक रूप से अपनाया जा सकता है.
अलबत्ता लागत में औनी-पौनी बढ़ोतरी अब भी भारत में कई परियोजनाओं का अभिशाप बनी हुई है. फिर किस्म-किस्म के डेटा के अंबार हमेशा एकीकृत नहीं होते और उनके विश्लेषण और समय रहते हस्तक्षेप के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की जरूरत होती है. अन्य चुनौतियों में डेटा की निजता व गोपनीयता से निबटना और लोगों को नई टेक्नोलॉजी स्वीकार करने के लिए राजी करना है. मसलन, ऑटोमैटिक टोल शुल्क वसूली के लिए फास्टैग 2016 में शुरू हुआ, पर अनिवार्य उसे 2021 में बनाया गया. धीरे भले हो, पर तरक्की तो बेशक हो रही है.
बदलाव के अगुआ
1. एनएचएआइ
> भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण 7 लाख करोड़ रुपए की ग्रीनफील्ड परियोजनाओं को जमीन पर उतार रहा है, जिसमें दुर्घटना प्रबंधन, आपाताकालीन प्रतिक्रिया, इलेक्ट्रिॉनिक टोल भुगतान आदि के लिए राजमार्गों को स्मार्ट टेक्नोलॉजी से लैस किया जा रहा है
10,000 किमी
लंबे राजमार्गों को 2023-24 के आखिर तक इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम से लैस करने की योजना बनाई है भारत सरकार ने
2. राज्य सरकारें
> मध्य प्रदेश में उज्जैन से लेकर तमिलनाडु में चैन्नै तक राज्य सरकारें यातायात का बेहतर प्रबंधन करने और प्रदूषण में कमी लाने के लिए स्मार्ट सड़कें बनवा रही हैं