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जेएनयू : नहीं है कोई सानी

आला दर्जे की पढ़ाई, नए कोर्सेज, इंटरनेशनल रिसर्च कोलैबोरेशन और समावेशी कैंपस की बदौलत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने साल दर साल अपना अव्वल मकाम बरकरार रखा

जेएनयू की वीसी शांतिश्री पंडित विद्यार्थियों के साथ (फोटो: राजवंत रावत)
जेएनयू की वीसी शांतिश्री पंडित विद्यार्थियों के साथ (फोटो: राजवंत रावत)
अपडेटेड 18 अगस्त , 2023

जनरल (सरकारी) यूनिवर्सिटी -

साल 2022 की शुरुआत में शांतिश्री पंडित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) की कुलपति (वी-सी) बनी थीं. तब उन्हें विरासत में 130 करोड़ रुपए का फंड घाटा, आक्रोशित छात्र संघ और एक ऐसा कैंपस मिला था जहां शैक्षणिक और बुनियादी ढांचे की कई परियोजनाएं करीब दो साल से रुकी पड़ी थीं. लेकिन पिछले साल से उनका ध्यान न केवल स्टुडेंट्स, फैकल्टी और प्रशासन में सामान्य स्थिति बहाल करने, बल्कि फंड तथा कैंपस के नवीनीकरण को फिर से शुरू करने पर भी है.

राजस्व को बढ़ाने के लिए यूनिवर्सिटी प्राइवेट संस्थानों और पूर्व छात्र-छात्राओं को शामिल करने से लेकर क्षेत्रीय भाषा केंद्रों को स्थापित करने सरीखे कई विकल्पों पर विचार कर रही है. पिछले साल दिसंबर में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने तमिल अध्ययन केंद्र की स्थापना के लिए 10 करोड़ रुपए मंजूर किए. संभावनाएं हैं कि अन्य राज्य भी इसका अनुसरण करेंगे. ई-लर्निंग को जेएनयू की शैक्षणिक गतिविधियों को व्यापक ऑडिएंस तक ले जाने और नया राजस्व जुटाने के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है. पंडित कहती हैं, ''हमने सहयोग के लिए कई विदेशी यूनिवर्सिटीज के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं और इससे मिलने वाले धन के लगभग 5-10 फीसद का इस्तेमाल स्टुडेंट्स की फील्ड विजिट के फंडिंग में किया जाएगा.’’

जेएनयू ने हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी से 500 करोड़ रुपए के लोन के लिए भी आवेदन किया है. इसे शिक्षा मंत्रालय से इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस टैग का भी इंतजार है जिससे 1,000 करोड़ रुपए का अनुदान मिलता है. इन नए फंडों की जरूरत न केवल परिसर में पुरानी इमारतों के पुनर्निर्माण, बल्कि नए पाठ्यक्रमों और विभिन्न सेंट्र्स की नई इमारतें स्थापित करने के लिए भी है.

सरकारी यूनिवर्सिटी में अव्वल

यूनिवर्सिटी नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के साथ तालमेल बैठाने पर भी काम कर रही है. जेएनयू मुख्य रूप से मास्टर्स कराने वाला कैंपस है, लेकिन यहां विभिन्न भाषाओं में बीए प्रोग्राम भी उपलब्ध है जो जल्द ही चार साल का मास्टर्स प्रोग्राम बन जाएगा. इंटरनेशनल कोलैबरेशंस के डायरेक्टर प्रो. पी.आर. कुमारस्वामी कहते हैं, ''कई स्पेशलाइज्ड मास्टर्स प्रोग्राम्स भी शुरू किए जाएंगे. मसलन, स्किल डेवलपमेंट बहुत महत्वपूर्ण होता जा रहा है और महज अपने नाम के साथ एक डिग्री जोड़ लेना काफी नहीं है. रोजगार के लिए स्टुडेंट्स के पास कई तरह के स्किल होने चाहिए और हमें उन्हें कैंपस में सीखने के ऐसे अवसर प्रदान करने की जरूरत है.’’

स्किल, आंत्रप्रेन्योरिशप और इनोवेशन को एक साथ जोड़ने को लेकर सहयोग के लिए यूनिवर्सिटी ने पहले ही सेंचुरियन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी ऐंड मैनेजमेंट के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. कुमारस्वामी बताते हैं कि ऐसी साझेदारियां दुनियाभर के संस्थानों के साथ की जा रही हैं और इसका मकसद स्टुडेंट्स तथा फैकल्टी को विदेशी सहयोग में भाग लेने का मौका मुहैया कराना है. मसलन, पब्लिशिंग हाउस स्प्रिंगर नेचर के साथ एक समझौते से अब फैकल्टी सदस्यों को अपने रिसर्च प्रकाशित करने और उसे व्यापक ऑडिएंस तक पहुंचाने का मौका मिल रहा है. चार से पांच किताबों के प्रकाशन पर काम चल रहा है और पहली किताब के इस साल के अंत तक आ जाने की संभावना है.

कुमारस्वामी कहते हैं, ''हम दुनिया में सोशल साइंसेज के टॉप 50 यूनिवर्सिटीज में शामिल हैं. और, हमारी सस्ती ट्यूशन फीस की वजह से हम भारत के सबसे अधिक समावेशी स्टुडेंट्स आबादी में से एक हैं. हमारे यहां उपलब्ध अनुभवों की विविधता के कारण आप एक अलहदा शख्स बनकर जेएनयू से निकलते हैं.’’ इस मकसद पर खरा उतरते हुए, यूनिवर्सिटी विभिन्न हेल्थ प्रोग्राम के जरिए स्टुडेंट्स और फैकल्टी सदस्यों की तंदरूस्ती पर भी ध्यान दे रही है. और, परिसर में किसी भी प्रस्तावित नवीनीकरण में जेएनयू को विकलांग-अनुकूल बनाने का नजरिया अपनाया जा रहा है. कुमारस्वामी बताते हैं, ''हम फैकल्टी के प्रमोशन को मंजूरी देने और सभी खाली फैकल्टी पदों को जल्द से जल्द भरने पर भी काम कर रहे हैं. हमारे पास अपने-अपने क्षेत्र के कुछ बेहतरीन शिक्षक हैं और उन्हें प्रेरित करने तथा आगे बढ़ाने पर हमारा खास ध्यान है.’’

साल 2019 का उथल-पुथल भरा समय अब पहले ही गुजरे जमाने की बात लगता है. पंडित को उम्मीद है कि जिस फंड घाटे से उन्होंने शुरुआत की थी, वह यहां से जाने से पहले उसे भारी सरप्लस में तब्दील कर देंगी. और, जो राजस्व वह जुटा रही हैं उससे न केवल बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, बल्कि यूनिवर्सिटी में ज्यादा रिसर्च सहयोग, सीखने के अवसर और विविधता लाने की भी योजना है. समग्र विकास पर इस तरह के जोर के साथ, पहला स्थान बरकरार रखना इस कैंपस के लिए कोई दूर की कौड़ी नहीं है. 

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