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व्यापम 2.0?

परीक्षा में टॉपर एक लड़की का एक इंटरव्यू भी चर्चा में है, जिसमें वह बुनियादी सवालों, जैसे टेस्ट के विषयों के नाम तक नहीं बता पाती

मझधार : पटवारी परीक्षा में चयनित उम्मीदवार भोपाल में प्रदर्शन करते हुए
मझधार : पटवारी परीक्षा में चयनित उम्मीदवार भोपाल में प्रदर्शन करते हुए
अपडेटेड 28 जुलाई , 2023

मध्य प्रदेश में हाल ही में घोषित एक भर्ती परीक्षा के नतीजों की वजह से ऐन विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नैया डगमगाती नजर आने लगी है. इसमें एक के बाद एक कई ऐसे 'संयोग' सामने आए, जिसने विपक्षी दल कांग्रेस को सरकार पर हमलावर होने का मौका दे दिया. 

मामला ज्यादा बिगड़ने की एक वजह यह भी रही कि जिस एजेंसी ने परीक्षा आयोजित की थी वह कोई और नहीं बल्कि व्यापम - व्यावसायिक परीक्षा मंडल - है. इसका नाम 2013 में राज्य को हिलाकर रख देने वाले करोड़ों रुपए के नौकरी घोटाले में सामने आया था. अब इसका नाम बदलकर कर्मचारी चयन बोर्ड (ईएसबी) किया जा चुका है, हालांकि इस विवाद ने पुरानी यादों को फिर से ताजा तो कर दिया है.

ईएसबी ने 30 जून को ग्रुप-2 सब-ग्रुप-4 परीक्षा के नतीजे घोषित किए थे, जो 8,617 अभ्यर्थियों की भर्ती के लिए आयोजित एक सामान्य परीक्षा थी. इसमें 3,555 पटवारी शामिल थे. पटवारी राजस्व विभाग के वे कर्मचारी होते हैं जिनके जिम्मे मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में भूमि दस्तावेजों के प्रबंधन और जमीनों के नाप-जोख का काम होता है.  

परीक्षा में कुल 13 लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया और इनमें से 9,50,000 ने परीक्षा दी. एक पखवाड़े बाद जब एक पारदर्शी पहल के तहत उत्तर पुस्तिका और दस्तावेज उपलब्ध कराए गए तो इस हंगामे की शुरुआत हुई. सरकारी भर्तियों पर नजर रखने वाले समूह राष्ट्रीय शिक्षित युवा संघ (एनईवाइयू) ने कथित गड़बड़ियों की तरफ ध्यान दिलाया. एनईवाइयू की कोर कमेटी के सदस्य रणजीत किसानवंशी ने दावा किया कि इस परीक्षा के 10 टॉपर में से आठ ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं और इनमें से सात ने यह परीक्षा ग्वालियर स्थित एनआरआइ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग ऐंड मैनेजमेंट से दी है. यह कॉलेज भिंड से भाजपा विधायक संजीव कुशवाहा का है. 

दूसरी तरफ, कांग्रेस ने इस बात को उछाला कि टॉपर्स ने अपनी एग्जाम शीट पर हस्ताक्षर तो हिंदी में किए हैं, लेकिन अंग्रेजी भाषा से जुड़े सवाल-जवाबों में उनका स्कोर बहुत अच्छा रहा. वहीं, सवालिया निशान लगने की एक और वजह यह भी रही कि टॉपर्स ने परीक्षा में उन्हीं सवालों के 'गलत' विकल्प चुने जिन्हें ईएसबी ने अपनी उत्तर कुंजी में गलत चिन्हित किया था. और खासे हंगामे के बाद सवाल वापस ले लिए गए थे. यह सिलसिला और आगे भी बढ़ा. पिछले दिनों टॉपर्स में शामिल एक परीक्षार्थी पूनम राजावत का एक इंटरव्यू भी वायरल हुआ. द लल्लनटॉप की तरफ से लिए गए इस इंटरव्यू में राजावत परीक्षा से जुड़े कुछ बुनियादी सवालों के जवाब नहीं दे पाईं. इसके अलावा पूनम इसके आठ विषयों के नाम तक नहीं बता पाई थीं, जिनकी परीक्षा पास कर वे टॉपर बनी हैं.

मामला सामने आने भर की देरी थी, राजनैतिक स्तर पर कीचड़ उछाला जाना शुरू हो गया. सोशल मीडिया पर अभ्यर्थियों के ऐसे फर्जी वीडियो भी वायरल होने लगे, जिनमें दावा किया गया कि उन्हें पैसे के बदले चयन की पेशकश की गई. भाजपा ने जहां कांग्रेस पर फेक वीडियो वायरल कराने का आरोप लगाया, वहीं विपक्ष 'कई अजब संयोगों' का हवाला देकर सीबीआई जांच की मांग कर रहा है. पूर्व सांसद अरुण यादव ने कहा, ''परीक्षा कराने वाली संस्था का नाम व्यापम से बदलकर ईएसबी करने के बावजूद जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं आया है.'' कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी ट्वीट करके कहा, ''भाजपा ने मध्य प्रदेश के युवाओं से हमेशा कुछ न कुछ चुराया ही है. पटवारी परीक्षा घोटाला व्यापम 2.0 है, जो लाखों युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ है.''

शुरू में तो ईएसबी के शीर्ष अधिकारियों ने किसी भी तरह की गड़बड़ी से साफ इनकार किया. सरकार ने भी एक स्पष्टीकरण जारी करके कहा कि सभी 10 टॉपर्स ने अलग-अलग तारीखों में परीक्षा दी थी. साथ ही बताया गया कि इनमें छह ने एग्जाम शीट पर हिंदी में हस्ताक्षर किए थे और किसी ने भी अंग्रेजी में पूरे 25 अंक हासिल नहीं किए हैं, जैसा कि कांग्रेस नेता दावा कर रहे हैं. स्पष्टीकरण के मुताबिक, वास्तविकता यह है कि टॉपर्स ने अंग्रेजी में 13 से 23 अंक के बीच स्कोर किया. सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि जिन 78 केंद्रों पर 15 मार्च से 26 अप्रैल के बीच परीक्षा हुई, उनमें एनआरआइ कॉलेज से केवल 114 अभ्यर्थी चुने गए, जबकि अन्य केंद्रों में से प्रत्येक में 29 से 321 के बीच अभ्यर्थियों का चयन हुआ. हालांकि, इन स्पष्टीकरणों से भर्ती परीक्षा पर सवाल उठाने वालों की शंकाओं का कोई समाधान नहीं हुआ.

संभवत: यह महसूस करते हुए कि यह मुद्दा आगे चलकर एक बड़ा विवाद खड़ा कर सकता है, 13 जुलाई को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जांच होने तक परिणामों और नियुक्तियों पर रोक लगाने की घोषणा कर दी. हालांकि, इसके खिलाफ अभ्यर्थियों ने मोर्चा खोल दिया है. विरोध प्रदर्शन पर उतरे अभ्यर्थियों का कहना है कि नियुक्तियां समयबद्ध तरीके से की जाएं.

वैसे, यह कोई पहला मौका नहीं है, जब मध्य प्रदेश ऐसे घोटालों के कारण सुर्खियों में है. इससे पहले 2020 में ईएसबी की तरफ से आयोजित कृषि विस्तार अधिकारी प्रवेश परीक्षा के दौरान भी धांधली के आरोप लगे थे. और अंतत: नतीजे रद्द करने पड़े थे. उसी वर्ष, यह खुलासा हुआ कि राज्य नर्सिंग काउंसिल ने कई 'फर्जी' नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता दे रखी है जो कि केवल कागजों पर मौजूद हैं. मूल व्यापम घोटाले की सीबीआइ जांच भी चल रही है और इस मामले में अब तक कई लोगों को दोषी करार दिया जा चुका है.

वैसे यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि ताजा विवाद क्या मोड़ लेता है. हालांकि, एक बात तो एकदम तय है कि जो कुछ हुआ है वह मौजूदा समय को देखते हुए सत्तारूढ़ भाजपा के लिए मुफीद तो साबित नहीं होने वाला है.

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