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'वाइब्रेंट गुजरात' हुआ ग्लोकल

स्थानीय छोटे कारोबारियों की इस समिट में कभी भी पूरी भागीदारी नहीं हुई है: यह स्थिति बदलेगी

राज्य की प्रदर्शनी साल 2019 में गांधीनगर में वाइब्रेंट गुजरात समिट
राज्य की प्रदर्शनी साल 2019 में गांधीनगर में वाइब्रेंट गुजरात समिट
अपडेटेड 28 जुलाई , 2023

असल में दो साल में एक बार होने वाला वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट (वीजीजीएस) कोविड के कारण चार साल के अंतराल के बाद अगले साल फिर होगा. इस अंतरराष्ट्रीय समिट की अवधारणा 2003 में गुजरात को निवेश का आकर्षक ठिकाना बनाने के मकसद से गढ़ी गई थी. समिट की वापसी चुनावी साल में हो रही है और बाहरी निवेशकों को लुभाने से कहीं ज्यादा दांव लगे हैं. यह सरकार की उपलब्धियों और नीतियों को उसके मूल वोट बैंक यानी मध्यवर्गीय कारोबारी समुदायों के सामने पेश करने का जरिया भी होता है.

अगले साल 11 से 13 जनवरी के बीच होने वाले इस आयोजन की उलटी गिनती उद्योग महकमे में शुरू हो चुकी है. राजधानी गांधीनगर में होने वाले इस समिट के लघु संस्करण आने वाले महीनों में उत्तर गुजरात, दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के औद्योगिक नगरों में आयोजित होंगे. सरकारी अफसरों के साथ, इलाके के कारोबारी प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करेंगे. वे अपने क्षेत्र के संभावित कारोबारी अवसरों की नुमाइश करके निवेशकों को गांधीनगर के बड़े सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करेंगे. प्रस्तुतियां काफी कुछ उन सरकारी योजनाओं और कारोबारी बुनियादी ढांचे पर केंद्रित होंगी जिनमें रोजगार पैदा करने वाला निवेश आकर्षित करने की क्षमता है. गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (जीसीसीआइ) के हाल तक अध्यक्ष रहे पथिक पटवारी कहते हैं, ''स्थानीय उद्योगपतियों और एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग) ने शुरुआत से ही वाइब्रेंट समिट में हिस्सा लिया, पर वे शहरी इलाकों के कुछेक बड़े कारोबारी घराने थे. एमएसएमई को समिट से कोई तत्काल लाभ होता नहीं दिखता, पर लंबे वक्त में बहुत ज्यादा फायदे हैं. बड़े निवेशों के फायदे रिसकर एमएसएमई तक पहुंचे हैं.''

दो दशक पहले, जब नरेंद्र मोदी ने गुजरात की कमान संभाली थी, उनका प्राथमिक लक्ष्य राज्य को निवेश का सबसे आकर्षक स्थान बनाना था. उन्होंने देश के शीर्ष उद्योगपतियों की मेजबानी की और राज्य में बुनियादी ढांचे की संभावनाएं, क्षमता, रणनीतिक खूबियां और नीतियां सामने रखीं. बाद में विभिन्न देशों को समिट से जोड़ा गया. जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन आदि भागीदार देशों की सूची में जुड़ गए. उद्योग केंद्रित सेमिनार, बी2बी सम्मेलन और क्षेत्र केंद्रित व्यापार प्रदर्शनियां मुख्य आकर्षण होती थीं. पर सबसे ज्यादा आकर्षण दस्तखत किए गए मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) की संख्या,  निवेश और रोजगार होते थे. इन आंकड़ों को बढ़ाते जाना प्रशासन का केंद्र बिंदु बन गया.

मोदी जब प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली चले गए, यह अहमियत खो बैठा. 2014 के बाद तीन वीजीजीएस 2015, 2017 और 2019 में आयोजित हुए. पर यह अपना मर्म खो बैठा. लिहाजा इसे नए सिरे से ईजाद करना जरूरी था. भाजपा के एक दिग्गज नेता कहते हैं, ''भाजपा ने अपनी सियासी स्थिति बरकरार रखी है, पर हम सत्ता-विरोधी भावना से बेखबर नही हैं. हमें चुनाव से पहले एमएसएमई को एकजुट करने की जरूरत है, जो 'रर्बन' (अर्धशहरी) इलाकों का मध्य वर्ग है.''

इसके लघु संस्करणों को कम विकसित इलाकों में ले जाकर इसका विस्तार किया जा रहा है. दरअसल, औद्योगिक गतिविधियां शहरी इलाकों और उनके आसपास केंद्रित हैं. इससे ऐसे हर इलाके के संसाधनों पर दबाव आ जाता है और दुकान डालने की लागत बढ़ जाती है. गैर-कृषि नौकरियां भी इन्हीं चुनिंदा 3-4 इलाकों तक सीमित हैं, जिससे पलायन और अन्य मसले पैदा हो रहे हैं. पटवारी कहते हैं, ''हमने सरकार से गुजरात औद्योगिक नीति के तहत तालुकाओं को नए सिरे से वर्गीकृत करने का अनुरोध किया है. पिछड़े तालुकाओं में निवेश के लिए प्रोत्साहन लाभ दिए जा सकते हैं और बुनियादी ढांचा विकसित किया जा सकता है.''

राज्य में औद्योगिक क्लस्टर बन गए हैं, पर समान वितरण पर ध्यान न देने से वे शहरी केंद्रों के आसपास सिमटे हैं. मसलन, दक्षिण गुजरात में सूरत हीरे तराशने और कपड़ों का केंद्र है, पर इस क्षेत्र के आदिवासी इलाकों को कोई फायदा नहीं मिला. इसी तरह मध्य गुजरात में भरूच और अंकलेश्वर केमिकल मैन्युफैक्चरिंग के केंद्र हैं. अहमदाबाद और उसके आसपास के इलाकों को विभिन्न औद्योगिक गतिविधियों का लाभ मिलता है. उत्तरी इलाका ऑटो कलपुर्जों की मैन्युफैक्चरिंग के मुख्य केंद्र में बदल रहा है. राजकोट में हेवी इंजीनियरिंग है, तो जामनगर पीतल के कलपुर्जों की मैन्युफैक्चरिंग एवं ट्रेडिंग का और मोरबी सिरैमिक्स उद्योग का केंद्र है. मगर मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा से लगे आदिवासी जिलों तथा महाराष्ट्र से सटे जिलों में भी औद्योगिक मौजूदगी कम है.

अब जब गुजरात अगले ग्लोबल बिजनेस समिट की तैयारी कर रहा है, उम्मीद की जा सकती है कि सरकार यह हकीकत समझेगी कि राज्य को औद्योगिक विकास के ज्यादा समान और न्यायसंगत नजरिए की जरूरत है. 

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