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अकेले पड़ते एकनाथ

महाराष्ट्र में अजित पवार के सत्तारूढ़ गठबंधन में आते ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे दबाव में आते दिख रहे हैं

घटती ताकत महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे
घटती ताकत महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे
अपडेटेड 28 जुलाई , 2023

धवल कुलकर्णी

जून 2022 में जो हुआ, उसके बारे में शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा. एकनाथ शिंदे की बगावत ने शिवसेना को दो-फाड़ कर दिया और पार्टी नेता उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) को सत्ता से बाहर होना पड़ा. ओटो वॉन बिस्मार्क के इस कथन, कि कुछ भी संभव होने की कला ही राजनीति है, को चरितार्थ करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शिंदे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया. देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री बनाए गए, जबकि 2014-19 में फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में शिंदे महज एक मंत्री थे.

लेकिन, एक साल बीतते-बीतते शिंदे असुरक्षित और चौतरफा घिरे नजर आ रहे हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को तोड़ना और नेता विपक्ष अजित पवार के नेतृत्व वाले इस गुट को गठबंधन का हिस्सा बनाना कहीं न कहीं यही दिखाता है कि भाजपा को अब शिंदे के नेतृत्व और 2024 के लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की उनकी क्षमता पर भरोसा नहीं रहा है. अजित पवार बीती 2 जुलाई को अपने आठ अन्य पार्टी सहयोगियों के साथ सरकार में शामिल हुए और उपमुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए.

शिंदे और उनके वफादारों ने जब शिवसेना में बगावत की थी तो इसके लिए पवार और एनसीपी को जिम्मेदार ठहराया था. उनका कहना था कि एमवीए सरकार में उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री अजित पवार फंड आवंटन में एनसीपी मंत्रियों और विधायकों पर मेहरबान रहते हैं और शिवसेना मंत्रियों-विधायकों की अनदेखी करते हैं. 

अब, पवार और एनसीपी के उनके खेमे के गठबंधन का हिस्सा बन जाने से शिंदे और उनके विधायक खासे निराश हैं. एनसीपी वित्त जैसे अहम विभागों पर अड़ी रही—सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उनसे इसका वादा किया था—और शिंदे की शिवसेना इसका विरोध करती रही. इस वजह से विभागों के आवंटन में करीब दो हफ्ते देरी हुई और इसकी घोषणा 14 जुलाई को की गई.

आखिरकार, एनसीपी ही भारी पड़ी और उसे वित्त, सहकारिता, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति और चिकित्सा शिक्षा जैसे मलाईदार मंत्रालय मिल गए. वहीं, शिंदे के जो दो मंत्री संजय राठौड़ और अब्दुल सत्तार अपनी कार्यशैली और विवादों में घिरने की वजह से भाजपा के निशाने पर थे, उनके पर कतरकर कम महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी दे दी गई. राठौड़ से खाद्य एवं औषधि प्रशासन मंत्रालय छीनकर मृदा एवं जल संरक्षण मंत्रालय दे दिया गया. वहीं, अब्दुल सत्तार को कृषि से अल्पसंख्यक विकास विभाग भेज दिया गया. शिंदे खेमा चाहता था कि कैबिनेट में 14 अन्य रिक्तियों को भी भरा जाए, लेकिन विस्तार फिलहाल टाल दिया गया है, जिससे मंत्री पद की उम्मीद लगाए विधायकों में निराशा है.

शिंदे के लिए मुसीबतें और भी हैं. महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने 8 जुलाई को अयोग्यता याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए शिवसेना के दोनों गुटों के विधायकों को नोटिस जारी किए. इनमें शिंदे और उनके खेमे के 39 और प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट के 14 विधायक शामिल हैं. पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण सहित कई अन्य दिग्गज भी मान रहे हैं कि पवार आने वाले समय में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शिंदे की जगह ले सकते हैं. सीधे-सीधे कहें तो शिंदे अब सत्ता के शीर्ष पर तो हैं लेकिन ताकत उनके हाथ से फिसलती जा रही है.

जबकि एनसीपी में बगावत से कुछ हफ्ते पहले तक तो शिंदे शक्ति प्रदर्शन में जुटे थे और उनके समर्थक विज्ञापन जारी कर उनके फडणवीस से ज्यादा लोकप्रिय होने का दावा कर रहे थे. कुल मिलाकर शिंदे अब चौतरफा घिरे दिखाई दे रहे हैं. उन्हें न सिर्फ भाजपा और एनसीपी (पवार गुट) की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि महीनों से मंत्रिमंडल विस्तार की बाट जोह रहे अपने विधायकों का असंतोष भी झेलना पड़ रहा है. विधायक बच्चू कडू, जिनकी प्रहार जनशक्ति पार्टी के दो विधायक हैं, ने सत्तारूढ़ गठबंधन में असंतोष की बात स्वीकारी है. एमवीए सरकार में मंत्री रहे कडू ने बगावत में शिंदे का साथ दिया था, लेकिन राज्य मंत्रिमंडल में जगह पाने का उनका इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है.

महाराष्ट्र में कोंकण और मराठवाड़ा सहित कुछ अन्य क्षेत्रों में सियासी दबदबे को लेकर शिवसेना और एनसीपी में जोर-आजमाइश किसी से छिपी नहीं है. यह राज्य की पूर्ववर्ती एमवीए सरकार में ही नहीं, बल्कि मौजूदा सरकार में भी दोनों पक्षों के बीच कड़वाहट का सबब बनी हुई है. उदाहरण के तौर पर, रायगढ़ के महाड से शिवसेना विधायक भरतशेत गोगावले ने अजित पवार गुट की एनसीपी मंत्री अदिति तटकरे को जिले की प्रभारी मंत्री बनाए जाने की अटकलों के बीच उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. 2021 में बगावत में शिंदे का साथ देने वाले रायगढ़ जिले के दो अन्य शिवसेना विधायकों की तरह ही गोगावले का अदिति और उनके पिता सुनील तटकरे के साथ लंबे समय से मतभेद रहा है. तटकरे को अजित पवार का करीबी सहयोगी माना जाता है और वे रायगढ़ से एनसीपी सांसद हैं. गोगावले राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री पद के साथ-साथ रायगढ़ जिले का प्रभार पाने के भी इच्छुक थे. उन्होंने एनसीपी को वित्त विभाग सौंपने के फैसले के खिलाफ आपत्ति जताने की भी बात स्वीकारी है.

शिंदे गुट के एक लोकसभा सांसद ने माना, ''पार्टी में असंतोष है.'' हालांकि, यह भी कहा, ''चीजें नियंत्रण में हैं.'' वे बताते हैं, ''हमारे साथ मौजूद (10 निर्दलीय सहित) 50 विधायकों में से कुछ की बेचैनी बढ़ रही है, क्योंकि एनसीपी के सरकार में शामिल होने से सत्ता में हमारी हिस्सेदारी घट गई है.'' शिवसेना (यूबीटी) के एक सांसद ने कहा कि शिंदे के कमजोर पड़ने से शिवसेना के उद्धव खेमे (यूबीटी) को फायदा होगा, क्योंकि इससे पार्टी नेता पाला बदलने का फैसला करने से पहले सौ बार सोचेंगे. 

वहीं, भाजपा नेताओं का कहना है कि अजित पवार को सरकार में शामिल करने का फैसला आगामी लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन सुनिश्चित करने के मद्देनजर किया गया है. 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और अविभाजित शिवसेना ने राज्य की 48 सीटों में से 41 पर कब्जा जमाया था. केंद्र में तीसरी पारी हासिल करने की भाजपा की महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए पार्टी का महाराष्ट्र में शानदार प्रदर्शन करना बेहद अहम माना जा रहा है. शिंदे गुट के नेताओं के इतर, एनसीपी नेता, जिनमें अजित पवार खेमे के सदस्य भी शामिल हैं, स्थानीय क्षत्रप के रूप में देखे जाते हैं, जिनका अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत जनाधार है. ऐसे में वे अपने निष्ठावान मतदाताओं को भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान के लिए प्रेरित कर सकते हैं. इसके विपरीत, शिंदे बड़ी संख्या में शिवसेना कार्यकर्ताओं को अपने पाले में लाने में असमर्थ साबित हुए हैं.

भाजपा ने महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में से 152 पर जीत हासिल करने का लक्ष्य घोषित किया है, जबकि अजित पवार ने अपने लोगों से कहा है कि उनकी पार्टी 90 सीटों पर किस्मत आजमाएगी. ऐसे में सवाल यह उठता है कि शिंदे की पार्टी को कितनी सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा?

भाजपा के एक वरिष्ठ विधायक ने माना कि हालिया घटनाक्रमों से शिंदे खेमे में असंतोष बढ़ा है, लेकिन ''विद्रोह करने की उसकी क्षमता बेहद सीमित है.'' इसके आगे वे यह भी जोड़ते हैं, ''भाजपा के नेतृत्व वाले शासन में अजित पवार एमवीए शासन से अलग होंगे. सत्ता के समीकरण कैसे बदलते हैं, यह बहुत हद तक शिंदे के रुख पर भी निर्भर करेगा, क्योंकि मुख्यमंत्री ही सरकार का मुखिया होता है और उसे वहां झुकना होगा, जहां उसने झुकना चाहिए.''

हालांकि, शिवसेना (यूबीटी) के एक सूत्र ने इससे अलग राय जताई. उसके मुताबिक, ''भाजपा को एहसास हो गया है कि शिंदे एक प्रशासक के तौर पर राज्य नहीं चला सकते. चुनावों के लिए शिंदे को मराठा चेहरे के तौर पर पेश करने का पार्टी का दांव भी नाकाम होता दिख रहा है. भाजपा शिवसेना में फूट डालने के बाद एनसीपी को कमजोर करना चाहती थी... अब वे महाराष्ट्र में अजित पवार को अपने मराठा चेहरे के तौर पर पेश करेंगे.''

लेकिन शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) ने अपने बीच मतभेद की खबरों को खारिज किया है. शिंदे ने कहा, ''जब कोई नया साथी जुड़ता है, तो कुछ तालमेल बैठाना पड़ता है. किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होगा.'' एमवीए में उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में पवार के पिछले आचरण को लेकर अपनी शिकायतों के संदर्भ में शिंदे ने कहा, ''मैं तब मुख्यमंत्री नहीं था. अब मैं मुख्यमंत्री हूं और यह सुनिश्चित करूंगा कि किसी विधायक के साथ अन्याय न हो.'' 

इस सारी खींचतान के बीच देवेंद्र फडणवीस का कद कम होने की बात भी कही जा रही है. जैसा शिवसेना (यूबीटी) के एक नेता कहते हैं, ''पहले तो उन्हें शिंदे के बाद दूसरे नंबर की भूमिका निभाने को मजबूर किया गया और अब उन्हें अपना स्थान दूसरे उपमुख्यमंत्री पवार के साथ साझा करना पड़ रहा है.'' वैसे, फडणवीस अपनी ओर से यही कह रहे हैं कि शिंदे के साथ गठबंधन एक 'भावनात्मक गठबंधन' है—खासकर इस वजह से भी कि भाजपा और सेना 1989 से सहयोगी हैं—और एनसीपी के साथ एक 'राजनैतिक दोस्ती' है. 

दूसरी तरफ, कांग्रेस विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट महाराष्ट्र सरकार को एकदम अनोखी बताते हैं, इसमें एक सीएम है, एक डिप्टी सीएम है और एक कभी सीएम था लेकिन अब डिप्टी सीएम है और सीएम बनना चाहता है! इस राजनैतिक तिकड़ी के अपनी-अपनी ताकतों की आजमाइश करने से ही शिंदे का राजनैतिक भविष्य तय होगा.

चौतरफा घेराबंदी

शिंदे गुट के लोगों ने दावा किया था कि उन्होंने एमवीए सरकार से बाहर निकलना इसलिए चुना क्योंकि एनसीपी और अजित पवार की तरफ से शिवसेना को लगातार दबाया जा रहा था. लेकिन अब उनके विरोधी फिर उसी जगह पर आ गए हैं

महाराष्ट्र के कई हिस्सों में दबदबे के लिए शिवसेना और एनसीपी में कड़ी प्रतिस्पर्धा है. एमवीए गठबंधन में भी यह एक समस्या थी. शिंदे को भी इसी दुविधा से जूझना होगा

पवार को वित्त विभाग का प्रभार मिलने का मतलब है कि सरकारी खजाने पर उनका नियंत्रण रहेगा

एनसीपी से टूटे गुट को शिंदे की शिवसेना से अधिक मजबूत स्थिति में देखा जा रहा है. इससे पवार के लोगों को भाजपा से अपनी शर्तें मनवाने का मौका मिल सकता है, खासकर लोकसभा चुनावों को देखते हुए

शिंदे की तुलना में पवार को बेहतर प्रशासक और अधिक आक्रामक नेता के तौर पर देखा जाता है

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