scorecardresearch

क्या राजे को कमान मिलेगी?

पार्टी के दूसरी कतार के नेता, जो राजे को अगुआई करने देना नहीं चाहते, कहते हैं कि वे उनके बगैर भी आराम से जीत जाएंगे

आगे की तैयारी : जयपुर के एक कार्यक्रम में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ वसुंधरा राजे और राज्य इकाई के प्रमुख सीपी जोशी
आगे की तैयारी : जयपुर के एक कार्यक्रम में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ वसुंधरा राजे और राज्य इकाई के प्रमुख सीपी जोशी
अपडेटेड 28 जुलाई , 2023

राजस्थान पर भाजपा का ध्यान बराबर बना हुआ है. इसी साल चुनाव में जाने वाले इस राज्य में आला कमान जिस तरह मामले अपने हाथ में ले रहा है, उससे भी यह काफी साफ है. मगर संगठन से जुड़े कदमों की हलचल भरी घोषणाओं के बावजूद उसकी रणनीति के केंद्र में खाली एक शून्य छोड़ दिया गया है. वह है नेतृत्व का सवाल. इसके इर्द-गिर्द अनिर्णय में चक्कर लगाते हुए पार्टी इस साल के आखिर में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दूसरी जीत हासिल करने से रोकने के लिए वह सब कर रही है जो वह कर सकती है. पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने 16 जुलाई को जयपुर में कार्यकर्ताओं की रैली को संबोधित किया. यह तीन हफ्तों से कम वक्त में उनकी दूसरी रैली थी. इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष बीकानेर, उदयपुर और सवाई माधोपुर में कार्यक्रमों में शामिल रहे.

इसी के साथ, भाजपा दिसंबर में होने वाले चुनावी मुकाबले के सुर-ताल दुरुस्त कर रही है. गहलोत सरकार को टक्कर देना उसकी रणनीति के केंद्र में सबसे आगे है. तंज भरा प्रचार गीत 'गहलोत जी, कोनी मिले वोट जी' चारों तरफ छाया है. जब नड्डा जयपुर की रैली को संबोधित कर रहे थे, 'नहीं सहेगा राजस्थान' नारा सारे दिन सोशल मीडिया पर ट्रेंड करता रहा. वहीं मोदी ने 8 जुलाई को अपनी बीकानेर रैली में राहुल गांधी की एक पंक्ति को अदल-बदलकर कांग्रेस की हुकूमत को 'लूट की दुकान और झूठ का बाजार' करार दिया.

संयोग से राजस्थान में यह नौ महीनों में उनकी सातवीं रैली थी. हरेक अलग-अलग इलाकों में आयोजित की गई. विकास पर जोर देने के साथ इसका मकसद खास जातिगत भौगोलिक क्षेत्रों—गूजर-आदिवासी जुड़ाव के लिए आबू रोड और भीलवाड़ा, मीणाओं से नाता जोड़ने के लिए दौसा, राजपूत और जाटों के लिए सीकर—का ध्यान रखना था. संगठन के रूप-रंग पर भी जाति की छाप है. पूर्व राजकुमारी और महासचिव दीया कुमारी राजपूत चेहरा हैं और उपाध्यक्षों में बाबा बालक नाथ भगवाधारी नाथ महंत, सुखबीर सिंह जौनपुरिया गूजर, सी.आर. चौधरी जाट और अजय पाल सिंह सिख हैं. बीकानेर में प्रधानमंत्री ने टीम गहलोत की बखिया उधेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी, यहां तक कि छोटी से छोटी बातों पर भी तीखे हमले किए. मोदी ने कहा, ''यहां तक कि उनके मंत्री और विधायक भी तबादलों और तैनाती में उनके हिस्से का कमिशन खा जाने का आरोप एक दूसरे पर लगा रहे हैं.'' प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को याद दिलाया कि किस तरह कांग्रेस 10 दिनों में कर्ज माफ करने के 2018 के अपने वादे से मुकर गई. उन्होंने जल जीवन मिशन (जेजेएम)—जिसमें राज्य फिसड्डी है—सरीखी केंद्रीय योजनाओं को ठीक ढंग से लागू करने में नाकामी और भर्ती परीक्षाओं के परचे लीक होने के लिए भी राज्य सरकार की खिंचाई की. 

जैसा कि होना ही था, धर्म की राजनीति भी इस अफसाने में घुसी चली आई. 30 जून को उदयपुर की रैली में शाह और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पिछले साल इसी शहर में दो मुस्लिम उन्मादियों के हाथों दर्जी कन्हैया लाल की निर्मम हत्या का मुद्दा उठाया. मगर मोदी ने मुख्यमंत्री पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाकर गहलोत के इस दावे को सिर के बल उलट दिया कि भाजपा बांटने के एजेंडे के आसरे है. लफ्फाजी के इस मुकाबले में शिरकत करते हुए गहलोत और राज्य कांग्रेस के प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा ने केंद्र पर आरोप लगाया कि वह कर्जों के निबटारे के मामले में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ बातचीत नहीं कर सकी, जबकि कर्ज नहीं चुकाने वाले उद्योगपतियों के मामले में उसने ऐसा किया था. जेजेएम के मामले में कम अंकों का बचाव करते हुए डोटासरा ने कहा कि दोष ढीले-ढाले अमल का नहीं बल्कि इस योजना में राजस्थान के ''बहुत कम कवरेज'' का है. दोनों ने पूर्वी राजस्थान नहर के मामले में मोदी की चुप्पी पर भी सवाल उठाया. गहलोत चाहते हैं कि इस नहर को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाए. 

आगे की तरफ देखें तो कुछ सवाल अब भी लटके हैं. सत्तारूढ़ सरकार को वोट के जरिए हटा देने के राजस्थान के गहरे धंसे रुझान का फायदा भाजपा को मिलता दिखाई देता है, पर क्या वह इस भावना को और भड़काने के लिए राज्यव्यापी यात्रा निकालेगी, जैसा उसने 2003 और 2013 में किया था? 

अब ऐसा करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं रह गया है. लेकिन अगर यात्रा की योजना बनाई जाती है, तो उसकी अगुआई कौन करेगा? नेताओं का समूह करेगा, या आखिरकार राजे को ही यह गौरव हासिल होगा? भाजपा पर हर चर्चा किसी न किसी तरह उन्हीं पर आकर ठहर जाती है. उदयपुर में शाह ने खुद हस्तक्षेप करके कहा कि राजे उनसे पहले बोलें, और बाद में जब नेता विपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ उन्हें बुलाने से चूक गए तो उनसे अपने साथ कार में चलने का अनुरोध किया. हालांकि मोदी ने मंच पर किसी से बातचीत नहीं की, शायद यह संकेत देने से बचने के लिए कि उनका हाथ किसकी पीठ पर हो सकता है. क्या राजे चुनाव समिति की प्रमुख बनाई जाएंगी, जो अकेला अहम पद खाली बचा है? बीते दो साल में उनकी अपनी रैलियों ने, जिन पर अक्सर निजी आयोजन होने का पर्दा डाल दिया जाता है, भाजपा के शीर्ष प्रदर्शनों को भी फीका कर दिया. 2 जुलाई को कोटा में हुई उनकी रैली भी अलग नहीं थी. 

पार्टी के दूसरी कतार के नेता, जो राजे को अगुआई करने देना नहीं चाहते, कहते हैं कि वे उनके बगैर भी आराम से जीत जाएंगे. ऐसे वक्त जब कांग्रेस ने नेतृत्व की कलह को गहलोत के पक्ष में सुलझा लिया है, भाजपा के कार्यकर्ता साफ दिशा के अभाव में कुछ तय नहीं कर पा रहे हैं. 

Advertisement
Advertisement