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क्यों कांप रही है सौराष्ट्र की धरती

दक्कन प्लेट में कई दरारें हैं जिनकी वजह से यहां छोटेमोटे भूकंप आते रहते है

गुजरातः हिलती-डुलती जमीन
गुजरातः हिलती-डुलती जमीन
अपडेटेड 14 जुलाई , 2023

अमूमन सौराष्ट्र की धरती को सूखा इलाका माना जाता है लेकिन पिछले दो दशकों में यह इलाका हरा-भरा हो उठा है. अच्छी बरसात की वजह से खेती लहलहाई और जंगलों में फिर से जान आ गई. हालांकि काठियावाड़ को यह उम्मीद कतई नहीं थी कि यह वरदान आखिरकार इस क्षेत्र के लिए एक तरह का अभिशाप बन जाएगा. पिछले दो वर्षों में यहां के कई क्षेत्रों में भूकंप के झटके लग रहे हैं. रिक्टर पैमाने पर 3.4 से कम तीव्रता वाले कई छोटे भूकंप बार-बार आते रहते हैं. इन कम तीव्रता वाले झटकों से यहां के लोगों के मन में घबराहट है. 

गांधीनगर में भूकंप शोध संस्थान (आइएसआर) के एक अध्ययन के मुताबिक, जरूरी नहीं कि ये हल्के झटके किसी बड़े भूकंप के पूर्व-संकेत हैं लेकिन टेक्नोलॉजी में भारी प्रगति के बावजूद भूकंप की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है. आइएसआर के निदेशक डॉ. सुमेर चोपड़ा बताते हैं कि गुजरात और आसपास के राज्य ''दक्कन चट्टानों'' पर स्थित हैं, जो लंबी कठोर चट्टान है और उसमें कई दरारे हैं. वे कहते हैं,  ''प्लेट अपने टेक्टोनिक सेटअप के कारण हाइड्रोलॉजिकल लोडिंग (धरती में पानी के रिसाव) से जूझ रही है. मसलन, अमरेली में पिछले कुछ वर्षों से औसत से अधिक बारिश हो रही है.'' चोपड़ा बताते हैं, ''इस क्षेत्र में 3 से 24 किमी की गहराई के भीतर मध्यम और कम तीव्रता वाले भूकंप आने का खतरा है.''

पिछले अध्ययन से पता चला है कि जामनगर में भूकंप के झटके मानसून के मौसम में महसूस किए गए थे. भारी बारिश के बाद जल स्तर 24 मीटर तक बढ़ गया था, जिससे दबाव 2.0 बार तक बढ़ गया था. तनाव परिवर्तन से हल्के झटके आ सकते हैं. 

कोई सोच सकता है कि पानी पृथ्वी के गर्भ में जलती ज्वाला को शांत कर देगा, लेकिन ऐसा नहीं है. दक्कन चट्टान कठोर है, क्योंकि यह अपेक्षाकृत कम उम्र की है. यह लगभग 20 लाख वर्ष पुरानी है, जबकि हिमालयी प्लेट लगभग 1-1.5 करोड़ वर्ष पुरानी है. दक्कन चट्टान ज्यादा सख्त है इसलिए कई बार टूट जाती है और इसमें दरारें उभर आती हैं. जब पानी इनमें रिसता है, तो दबाव बनाता है.

अमरेली जिले के ही कुछ हिस्सों में 2021 और 2022 के बीच लगभग 400 हल्के झटके आए और यह सिलसिला जारी है. अन्य क्षेत्र जैसे गिर सोमनाथ में तलाला, सौराष्ट्र में भावनगर और जामनगर जिलों के कुछ हिस्से, दक्षिण गुजरात में नवसारी, मध्य प्रदेश के पश्चिमी हिस्से और महाराष्ट्र में नासिक और पालघर के पास के क्षेत्र 2006 के आसपास से इसी तरह के भूकंपीय झटकों का अनुभव कर रहे हैं. सौराष्ट्र के कुछ हिस्सों जैसे कलावड, लालपुर, भावनगर और राजकोट क्षेत्रों में इससे पहले 2001 और 2004-2005 में झटके अनुभव किए गए थे. 

बड़े भूकंपों के झटकों का मूल दायरा 60-70 किमी तक होता है, जबकि हल्के झटके करीब 10 किमी तक ही होते हैं. चोपड़ा कहते हैं, ''इससे गैस और हाइ चार्ज कण निकलते हैं, जिससे दबाव बना रहता है. लेकिन गैसों के रेडियोलॉजिकल अध्ययनों से राहत मिली है कि बड़े भूकंप का संकेत देने वाली रेडॉन गैस नहीं निकल रही है.'' 

जहां भी झटके आते हैं, वहां दरारें गहरी हो जाती हैं. कच्छ को छोड़कर, गुजरात का अधिकांश भाग भूकंपीय गतिविधि के मामले में जोन 3 में आता है. यहां मध्यम तीव्रता के झटके आते हैं और कोई बड़ी फॉल्टलाइन नहीं है. कच्छ उच्च भूकंपीय जोखिम जोन 5 में है, क्योंकि यहां एक सक्रिय फॉल्टलाइन है. इसके कारण 2001 में बड़ा भूकंप आया था. साल 1819 में इसी वजह से अल्लाह बांध भूकंप आया था, जिसने क्षेत्र की भू-रचना को पूरी तरह बदल दिया. कच्छ भारतीय और यूरेशियाई टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव बिंदु से लगभग 300 किमी दूर है, जो सक्रिय फॉल्टलाइन बनी हुई है. 

अगर यह भूकंपीय गतिविधि किसी बड़े भूकंप का संकेत नहीं देती है, तो आइएसआर अध्ययन पर इतना खर्च क्यों कर रहा है और इसकी इतनी बारीकी से निगरानी क्यों कर रहा है? चोपड़ा बताते हैं, ''भूकंपीय स्थितियों को समझना विकास योजनाओं के लिए बुनियादी बात है. बंदरगाह, बांध, शहर, ऊंची इमारतों या औद्योगिक इकाइयों का निर्माण उस क्षेत्र के भूकंपीय व्यवहार पर निर्भर करता है. यह निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री के प्रकार, इमारतों की ऊंचाई और भार वहन को निर्धारित करता है.'' 2001 के भुज भूकंप के बाद गठित आइएसआर के पास गुजरात में 200 निगरानी स्टेशनों और देश के बाकी हिस्सों में 150 स्टेशनों का सघन कवरेज है. 

सौराष्ट्र के ग्रामीणों की घबराहट बीच-बीच में आने वाले हल्के झटकों से ही नहीं है, बल्कि ये झटके भारी गड़गड़ाहट के साथ आते हैं. ये 20-40 किलो हटर्ज की तेज सुनाई पडऩे वाली फ्रीक्वेंसी से जुड़े हैं. जामनगर के खानकोटदा और मतवा गांवों के लोग बताते हैं कि झटके भारी गड़गड़ाहट के साथ आते हैं. चोपड़ा बताते हैं, ''गड़गड़ाहट संकेत है कि यह कमजोर भूकंप है क्योंकि टेक्टोनिक गतिविधि 2-3 किमी की गहराई पर हो रही है.'' 

अमरेली में इन झटकों के केंद्र मितियाला गांव के सरपंच मनसुख मोलारिया कहते हैं, ''गड़गड़ाहट से लोग बेहद परेशान हैं. वैज्ञानिकों, जिला कलेक्टर और विधायक के आश्वासन के बाद हममें से कुछ लोगों को थोड़ी दिलासा मिली कि ये किसी बड़े भूकंप का संकेत नहीं हैं.'' अब भी कुछ परिवार डर के मारे खुले में सोना पसंद करते हैं. लेकिन यह भी जोखिम से भरा है क्योंकि गांव की सीमा जंगल से लगती है और शेर इस इलाके में घूमते हैं. मोलारिया कहते हैं, ''महिलाएं और बच्चे शेर से ज्यादा भूकंप से डरते हैं.''

चोपड़ा कंधे उचकाते हुए कहते हैं, ''आप भूकंप से बच नहीं सकते. हमें यह समझना होगा कि इससे कैसे निपटना है.'' 

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