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पुजारी बन गए पर पूजा में रोड़ा

दस साल पहले पुजारी पदों को भरने के लिए परीक्षा हुई थी. 2022 में जाकर नियुक्तियां हुईं पर दलित, महिला पुजारियों को अब भी हक के लिए लड़ना पड़ रहा

नई रीत जयपुर के आनंद कृष्ण बिहारी मंदिर के पुजारी मादाराम मेघवाल
नई रीत जयपुर के आनंद कृष्ण बिहारी मंदिर के पुजारी मादाराम मेघवाल
अपडेटेड 14 जुलाई , 2023

आनंद चौधरी

रविवार, 25 जून की दोपहर एक बजे का वक्त था. जयपुर के चांदनी चौक स्थित आनंद कृष्ण बिहारी मंदिर में 100 श्रद्धालुओं का जत्था अमरनाथ की यात्रा पर रवाना होने की तैयारी कर रहा था. पंडे-पुजारी जैसा वहां कोई दिख नहीं रहा था. तभी सफेद पैंट-शर्ट पहने एक शख्स सकुचाया-सा भीड़ से थोड़ा अलग खड़ा नजर आया. मंदिर के पुजारी मादाराम के बारे में पूछे जाने पर उसने तपाक से कहा, ''मैं ही मादाराम हूं, बताइए क्या काम है?'' अनजान लोगों को देखकर मादाराम पहले इतने डर गए थे कि उनके मुंह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी. डर की भी वजह थी. पिछले एक अरसे से सवर्णों के कुछ संगठन राजस्थान के मंदिरों में दलित पुजारी लगाए जाने का विरोध कर रहे हैं.

आनंद कृष्ण बिहारी मंदिर राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग का है और मादाराम इस मंदिर के पहले दलित पुजारी हैं जो प्रदेश सरकार की सीधी भर्ती से चयनित होकर आए हैं. बाकायदा प्रशिक्षण के बाद उन्हें पुजारी नियुक्त किया गया. नागौर जिले की जायल तहसील से आने वाले मादाराम ने यहां तक पहुंचने के लिए कम पापड़ नहीं बेले. 2004 में उन्होंने बीएड कर लिया था. उसके बाद से ही वे प्रदेश में शिक्षक भर्ती की और दूसरी परीक्षाओं में भी लगातार बैठते आए थे लेकिन कामयाबी दूर ही दूर रही. 2014 में जब उन्होंने पुजारी पद के लिए इम्तिहान दिया तब नौकरी की उम्मीद जगी थी. लेकिन नौ साल तक रिजल्ट रुका रहा तो वह उम्मीद भी सांस तोड़ने लगी. 2022 में जाकर उसका रिजल्ट आया, पर नियुक्ति में फिर भी देरी होती रही. उसके बाद मंदिर में उन्हें नियुक्ति मिली तो सर्व ब्राह्मण महासभा जैसे कुछ संगठनों को इसमें सवर्ण पुजारियों का पुश्तैनी पेशा खतरे में पड़ता दिखा. वे इसके विरोध में लामबंद हो गए. मादाराम यहां अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हैं, ''जब मैं 8वीं कक्षा में था तभी से मेरी भगवान में आस्था है. मैं जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करता हूं. शाम छह बजे के बाद न खाना खाता हूं, न पानी पीता हूं. मेरा पूरा परिवार भजन-कीर्तन करता है. फिर भी न जाने क्यों लोग मेरी नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं.''

मादाराम ही क्यों, योग्यता साबित करके पुजारी बने उन जैसे कई दूसरे दलितों को भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. देवस्थान विभाग के मंदिरों में पुजारियों के खाली पदों को भरने के लिए दस साल पहले राजस्थान लोक सेवा आयोग ने परीक्षा ली थी. 2022 में जैसे-तैसे उनकी नियुक्तियां तो हो गईं लेकिन दलित और महिला पुजारियों को तभी से अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है. 10 साल के लंबे इंतजार के बाद उन्हें मंदिरों में पूजा-अर्चना कराने का अधिकार तो मिला, पर सुकून और सहारा नहीं. सवर्ण पंडे-पुजारियों और उनकी बिरादरी के संगठनों ने इसे अपने 'पुश्तैनी विशेषाधिकारों' पर चोट माना.

राजस्थान लोक सेवा आयोग की ओर से सितंबर, 2013 में देवस्थान विभाग के मंदिरों में 65 पदों के लिए सीधी भर्ती निकाली गई थी. इनमें 47 पुजारी, 11 सेवागीर और सात मैनेजर शामिल थे, जिनका वेतनमान 5,200 से 20,200 रुपए के बीच तय था. पद के लिए योग्यता संस्कृत विषय में वरिष्ठ उपाध्याय (बारहवीं के बराबर) तय थी पर ज्यादातर पुजारी उससे कहीं ज्यादा बीएड, शिक्षा शास्त्री और आचार्य की योग्यता रखते हैं.

उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय को इन भर्तियों की जिम्मेदारी दी गई थी. 12 फरवरी, 2014 में हुई परीक्षा के लिए 8,792 आवेदन आए और 6,804 अभ्यर्थी परीक्षा में बैठे. उसके बाद से प्रदेश में तीन सरकारें बन चुकीं लेकिन परीक्षा का रिजल्ट नहीं निकला. इस दौरान देवस्थान विभाग के पांच मंत्री बदल गए. परीक्षा के 8 साल, बाद 13 सितंबर, 2022 को रिजल्ट आया. दस्तावेजों की पड़ताल के बाद 37 अभ्यर्थी पुजारी पद के लिए चुने गए. इनमें 26 पुजारी सामान्य वर्ग के तथा 7 अनुसूचित जाति और 4 अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं. इनमें 11 महिला पुजारी भी शामिल हैं. दलित और पिछड़े समुदाय से आने वाले पुजारियों में छह ऐसे हैं जो बीएड, एमएड और डॉक्टरेट (पीएचडी) की योग्यता रखते हैं.

राजस्थान के देवस्थान विभाग के अधीन करीब 59,000 मंदिर आते हैं. करीब डेढ़ सौ मंदिर यूपी, महाराष्ट्र समेत पांच राज्यों में ऐसे हैं जिनकी देखरेख इसी के पास है. रियासतों के विलय के बाद 390 मंदिर ऐसे हैं जिनका पूरा मालिकाना और प्रबंधन देवस्थान विभाग के पास है. ये प्रत्यक्ष प्रभार श्रेणी के मंदिर कहलाते हैं. 203 मंदिर आत्मनिर्भर श्रेणी के हैं जिनमें पुजारियों की नियुक्ति और दूसरे खर्चे यह विभाग ही देखता है. 10,000 मंदिर सरकारी सहायता प्राप्त श्रेणी के हैं जिनमें पूजा-पाठ और अन्य खर्चे देवस्थान विभाग उठाता है.

राजस्थान के ही जालौर जिले के कानीवाड़ा हनुमान मंदिर में वर्षों से दलित समाज के पुजारी पूजा-अर्चना का काम संभाल रहे हैं. पिछली 10 पीढ़ियों से दलित समुदाय के चार पुजारी परिवारों के वंशज इसे संभालते आए हैं. ये पुजारी खुद को आचार्य गर्ग की संतान मानते हैं. मगर इसी राज्य में जब देवस्थान विभाग ने चयनित पुजारियों की मंदिरों में नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की तो कई संगठन विरोध में आ गए. सर्व ब्राह्मण महासभा और विप्र फाउंडेशन जैसे संगठन इसमें शामिल हैं. इन संगठनों ने सरकार को ज्ञापन देकर मांग की है कि मंदिरों में पूजा-पाठ ब्राह्मणों को ही करने दिया जाए. उन्होंने तो धमकी दी है कि सरकार ने अगर किसी अन्य समुदाय को इस काम की जिम्मेदारी दी तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

राजस्थान सर्व ब्राह्मण महासभा के उपाध्यक्ष दिनेश कुमार शर्मा कहते हैं, ''मंदिरों में पूजा-अर्चना का काम शुरू से ही ब्राह्मणों का रहा है. राजस्थान सरकार ने हमारा पैतृक काम छीनने की कोशिश की है. दलित, महिला और पिछड़ी जाति के लोगों को मंदिरों में पूजा का काम सौंपना शास्त्रों के विपरीत है. हम इसका संसद से सड़क तक विरोध करेंगे.''

गौरतलब है कि दक्षिण भारत के राज्यों में हजारों मंदिरों में दलित वर्ग के पुजारी रखे गए हैं. एक दशक पहले तमिलनाडु में करीब 2,500 दलित पुजारी मंदिरों में तैनात किए गए थे. आंध्र प्रदेश के मंदिरों में भी दलित पुजारियों की बड़ी तादाद है. इन राज्यों में धर्म-कर्म में रुचि रखने वाले दलितों को पूरे विधि-विधान से पूजन-अर्चन करने की पद्धति सिखाई जाती है और प्रशिक्षण पूरा होने पर सर्टिफिकेट दिया जाता है. दक्षिण भारत के 5,000 से ज्यादा दलित पुजारियों को आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर से प्रमाणपत्र मिला है. 2018 में केरल में पहली बार गैर-ब्राह्मणों को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया गया. कोचीन देवास्वोम बोर्ड ने 54 गैर-ब्राह्मणों को पुजारी नियुक्त किया जिनमें से सात दलित समुदाय से हैं. इनकी नियुक्ति के लिए परीक्षा और इंटरव्यू हुए. चयन प्रक्रिया में मेरिट और आरक्षण की लिस्ट तैयार की गई थी. बोर्ड ने पुजारी के लिए 70 अभ्यर्थियों का नाम सुझाया.

देवस्थान विभाग के सहायक आयुक्त रतन लाल योगी स्पष्ट करते हैं, ''इन पुजारियों ने बाकायदा प्रशिक्षण लिया है. अरसे से पुजारियों की कमी थी. सेवागीरों से ही हम पूजा-अर्चना का काम करा रहे थे. 1989 के बाद से पुजारियों की भर्ती नहीं हुई थी. नए पुजारी मिलने से अब देवस्थान विभाग के मंदिरों में चारों पहर की पूजा संपन्न कराई जा सकेगी.''  

वहीं, राजस्थान अभाव अभियोग प्रकोष्ठ के सदस्य और दलित चिंतक भंवर मेघवंशी कहते हैं, ''सरकारी मंदिरों में दलित और महिला पुजारियों की नियुक्ति स्वागतयोग्य कदम है. इनका विरोध करने वालों का संवैधानिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं. ये लोग आज भी वर्णव्यवस्था आधारित समाज चाहते हैं. सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों को चिन्हित कर वह उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करे.'' वरना गहरे जातिवादी ढांचे को तोड़ने वाली पुजारियों की नियुक्ति की यह लंबी-चौड़ी प्रक्रिया ही बेमानी होकर रह जाएगी.

परीक्षा पास कर पाई नियुक्ति, फिर बवाल क्यों?

  जयपुर में घाट की गुणी (पुराना घाट) में देवस्थान विभाग का प्राचीन रामेश्वर मंदिर है. यहां के पुजारी दलित समुदाय से आने वाले देशराज वर्मा ने 10 साल पहले ही परीक्षा पास कर ली थी लेकिन नियुक्ति उन्हें अब मिली है. वे विभाग से ट्रेनिंग लेकर आए हैं और मंदिर के पुराने पुजारी कृष्ण मोहन शर्मा से पूजा-अर्चना के गुर सीख रहे हैं. शर्मा कहते हैं, ''जो लोग देशराज जैसे प्रतिभावान युवाओं को पुजारी बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं वे भगवान के असली भक्त नहीं हैं. भगवान जब इंसानों में कोई भेदभाव नहीं करते तो ये लोग कौन होते हैं?''

 जयपुर के हवा महल के ठीक सामने प्राचीन मदन मोहन मंदिर है. रियासतकाल से स्कूल में यह मंदिर चल रहा है. आजादी के बाद सरकार ने इस मंदिर को देवस्थान विभाग के अधीन ले लिया. एक सप्ताह पहले यहां ओबीसी वर्ग से आने वाली पूनम यादव को पुजारी के पद पर लगाया गया है. अलवर शहर की रहने वाली पूनम पहली महिला पुजारी हैं जिन्हें मंदिर में पूजा-पाठ का जिम्मा मिला है. लोगों से डरी हुई पूनम दुपट्टे से मुंह छुपाकर कहती हैं, ''किसी की कृपा से नहीं, सरकार की सीधी भर्ती से हम चुनकर यहां तक पहुंचे हैं.''

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