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संगम गुजरात में निशाने पर तमिलनाडु

भाजपा ने गुजरात के सोमनाथ में आयोजित सौराष्ट्र तमिल संगम को काफी अहमियत दी, लेकिन पार्टी को तमिलनाडु में इससे कितना फायदा हो सकता है

संस्कृति की राजनीति सौराष्ट्र तमिल संगम कार्यक्रम का समापन समारोह
संस्कृति की राजनीति सौराष्ट्र तमिल संगम कार्यक्रम का समापन समारोह
अपडेटेड 5 मई , 2023

हमारे पूर्वज सदियों पहले सौराष्ट्र से चले गए थे. उसके बाद से हम तमिलनाडु के ही होकर रह गए. पहले हम अपने स्तर पर यहां सोमनाथ और द्वारका दर्शन करने तो आते थे लेकिन हमारा पूरा समाज इस तरह से पहले कभी अपने पूर्वजों की धरती पर नहीं आया. सौराष्ट्र तमिल संगम सरकार के लिए हो सकता है कि सिर्फ एक आयोजन हो लेकिन हमारे लिए यह एक भावनात्मक अवसर है.''

ये बातें तमिलनाडु में मदुरै की रहने वाली टी. सुमति ने सोमनाथ मंदिर परिसर में कहीं. 60 साल की सुमति यह बात कहते हुए भावुक हो जाती हैं और उनके साथ उपस्थित दर्जनों लोग भी इस पर अपनी सहमति जताते हैं. 

सुमति और उनके जैसे कई लोग 17 अप्रैल से गुजरात के सोमनाथ में आयोजित सौराष्ट्र तमिल संगम में शामिल होने पहुंचे थे. यह आयोजन 27 अप्रैल तक चला. भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार 2015 से 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' कार्यक्रमों को आयोजित करती आ रही है. सरकार का कहना है कि इन कार्यक्रमों से देश के अलग-अलग राज्यों और संस्कृतियों को आपस में जोड़ने का काम किया जा रहा है. सौराष्ट्र तमिल संगम इन्हीं कार्यक्रमों की शृंखला में एक कड़ी है. केंद्र सरकार, गुजरात सरकार और निजी क्षेत्र की भागीदारी से यह आयोजन किया गया. 

इस कार्यक्रम के संदर्भ में यह सहज सवाल उठता है कि गुजरात के सौराष्ट्र का सुदूर तमिलनाडु से क्या संबंध? यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि सोमनाथ के शिव मंदिर पर कई बार विदेशी आक्रमणकारियों ने हमले किए. मोहम्मद गजनी ने जब सन 1026 में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया तो न सिर्फ मंदिर की संपत्ति लूटी बल्कि काफी हिंसा भी की. उसके बाद इस क्षेत्र के लोगों का पलायन शुरू हो गया. सोमनाथ और आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या बुनकरों और मछुआरों की थी. इनमें से बुनकरों का पलायन अधिक हुआ. पहले ये महाराष्ट्र गए और फिर मध्य प्रदेश के मंदसौर के आसपास के क्षेत्रों में. फिर वहां से नायक शासकों के निमंत्रण पर 16वीं सदी में तमिलनाडु पहुंचे. इस क्षेत्र से पलायन करने वाले लोग तमिलनाडु के मदुरै के अलावा सेलम, तंजोर, डिंडिगुल, परमकुड्डी, कुंबकोणम और त्रिची में भी बसे. तमिलनाडु के विभिन्न जिलों में बसे सौराष्ट्री तमिलों की संख्या आज तकरीबन 25 लाख है.

इसी पृष्ठभूमि में सौराष्ट्र तमिल संगम का आयोजन सोमनाथ में किया गया. इस आयोजन का विचार कैसे आया. इस बारे में कार्यक्रम के संयोजक और केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण और रसायन व उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया बताते हैं, ''प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो 2005 में वे मंदसौर गए. वहां उन्होंने शिलालेखों में इस बात को पढ़ा कि कैसे सौराष्ट्र के लोगों का पलायन आक्रांताओं के कारण हुआ. तब से ही उनके मन में यह विचार था कि तमिलनाडु में रह रहे सौराष्ट्र के लोगों को अपनी जन्मभूमि से जोड़ना है. 2010 में मदुरै में एक ऐसे ही संगम का आयोजन किया गया था जिसमें सौराष्ट्र के लोग तमिलनाडु गए थे. इस बार प्रधानमंत्री ने तय किया कि तमिलनाडु में रह रहे सौराष्ट्र के लोगों को उनके पूर्वजों की भूमि पर बुलाना है.''

केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने जब एक बार तय कर लिया कि यह आयोजन करना है तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने 19 अप्रैल को चेन्नै में एक रोड शो किया. इसके अलावा राज्य के अन्य 10 शहरों में भी रोड शो हुए. इनके जरिए लोगों को इस आयोजन में आमंत्रित किया गया. आयोजकों के मुताबिक तकरीबन 25,000 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराके आने में रुचि दिखाई. इनमें से तकरीबन 3,000 लोगों की यात्रा को आयोजकों ने स्पॉन्सर किया. तमिलनाडु से जो भी लोग आए उनके आने-जाने, रहने-खाने और घूमने का पूरा खर्च आयोजकों ने उठाया. लोगों को आने-जाने में सुविधा हो, इसके लिए एक स्पेशल ट्रेन चलाई गई. गुजरात के अलग-अलग स्टेशनों पर बैंड-बाजे के साथ भाजपा के कार्यकर्ता और कोई न कोई केंद्रीय मंत्री या भाजपा का बड़ा नेता इस ट्रेन के स्वागत में तैनात रहते थे. संगम का उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया और समापन गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. हर दिन यहां किसी न किसी महत्वपूर्ण केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और कुछ राज्यपालों की मौजूदगी रही. इससे पता चलता है कि केंद्र सरकार के लिए यह आयोजन कितना महत्वपूर्ण रहा.

अगर केंद्र सरकार और गुजरात की भाजपा सरकार के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ता इस आयोजन को सफल बनाने में पूरी ताकत से लगे रहे तो जाहिर है कि इस आयोजन के कुछ राजनीतिक लक्ष्य भी होंगे. इस बारे में संगम में आए एक केंद्रीय मंत्री नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, ''हमारा अनुमान है कि तमिलनाडु में सौराष्ट्र से गए हुए लोगों की संख्या आज तकरीबन 25 लाख है. विधानसभा की 40 से 50 सीटें ऐसी हैं, जहां इनकी संख्या 15,000 से 20,000 के बीच है. जाहिर है कि अगर इनका समर्थन पार्टी को मिलता है तो हमारे लिए तमिलनाडु में पैठ बनाना आसान होगा.'' भाजपा नेताओं का दावा है कि इन 25 लाख लोगों के मुद्दों को तमिलनाडु की राजनीति में हाशिये पर रखा जाता है.  

भाजपा के एक केंद्रीय पदाधिकारी भी कुछ इसी तरह की बात दोहराते हैं. साथ ही वे एक और बात की ओर भी ध्यान दिलाते हैं. वे कहते हैं, ''पिछले कुछ समय से यह चर्चा भी चल रही है कि क्या प्रधानमंत्री को दक्षिण भारत की किसी सीट से भी लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहिए. कुछ लोग केरल का सुझाव दे रहे हैं तो कुछ लोग तमिलनाडु का. अगर प्रधानमंत्री तमिलनाडु से चुनाव लड़ते हैं तो इन संगमों के आयोजन का लाभ मिलेगा.'' सौराष्ट्र तमिल संगम के पहले 2022 में काशी तमिल संगम का आयोजन भी उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ है. इसमें भी बड़ी संख्या में तमिलनाडु से लोग आए थे और खुद प्रधानमंत्री ने इस संगम को संबोधित किया था.

भाजपा की इन कोशिशों की झलक इस कार्यक्रम में लगातार दिखी. तमिलनाडु से आने वाले लोगों को सबसे पहले सोमनाथ में दर्शन कराया जाता. इसके बाद जो भी केंद्रीय मंत्री, प्रदेश सरकार के मंत्री या अन्य महत्वपूर्ण लोग आए होते, उनसे उनका संवाद होता था. दोनों जगहों की संस्कृति को झलकाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी हर दिन किया गया. संगम में आने वाले हर बैच के लिए द्वारका में दर्शन कराने के अलावा स्थानीय स्तर पर घूमने का प्रबंध किया था. 

संगम के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सौराष्ट्री तमिल लोगों की तारीफ करते हुए कहा, ''हमें सांस्कृतिक टकराव नहीं, तालमेल पर बल देना है. तमिलनाडु में बसे सौराष्ट्र मूल के लोगों और तमिलगम (तमिलनाडु का पुराना नाम) के लोगों ने इसे जीकर दिखाया है.''

संगम के हासिल के बारे में मनसुख मांडविया कहते हैं, ''इस आयोजन ने दिखा दिया कि भले ही सदियों पहले सौराष्ट्र के लोगों को पलायन के लिए विवश होना पड़ा हो लेकिन आज भी उनका यहां की धरती से मजबूत भावनात्मक संबंध बना हुआ है. इस आयोजन को मैं एक महत्वपूर्ण शुरुआत के तौर पर देखता हूं.''

सांस्कृतिक नजरिए से केंद्रीय मंत्री की बात पूरी तरह सही हो सकती है, लेकिन भाजपा के लिए ऐसे आयोजनों की एक और उपयोगिता अगले साल तब पता चलेगी जब लोकसभा चुनाव होंगे और 2026 में जब तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होंगे.

सौराष्ट्र तमिल संगम में हर दिन किसी न किसी केंद्रीय कैबिनेट मंत्री की मौजूदगी बताती है कि भाजपा के लिए यह आयोजन बेहद अहम था

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