धवल कुलकर्णी
उस्मानाबाद और औरंगाबाद का नाम क्रमश: धाराशिव और छत्रपति संभाजीनगर करने की केंद्र की मंजूरी ने महाराष्ट्र में शहरों और क्षेत्रों के नाम बदलने की मांग को बढ़ा दिया है. इनमें से कुछ स्थानों के लिए एक से अधिक दावे भी दिख रहे हैं. इससे प्रतिस्पर्धी पहचान की राजनीति और सामाजिक तनाव का एक नया दौर शुरू हो सकता है, खासकर जब अगले दो साल में स्थानीय निकायों, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक के बाद एक होने वाले हैं. वैसे, एक छोटा और मुखर समूह ऐसा भी है जो इसे एक नया इतिहास गढ़ने की कोशिश मानते हुए इसका विरोध कर रहा है. उनके अभियान को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से बल मिला है जिसमें उसने भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका को खारिज कर दिया. उसमें उपाध्याय ने ऐसे स्थानों के मूल नाम का पता लगाने के लिए केंद्र से एक 'नामकरण आयोग' स्थापित करने की मांग की थी जिनके नाम वर्तमान में 'विदेशी आक्रमणकारियों' के नाम पर हैं.
घटनाओं में कुछ मोड़ विडंबनापूर्ण हैं क्योंकि औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने का फैसला जून 2022 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के आखिरी फैसलों में से एक था. छत्रपति शिवाजी के पुत्र और स्थानीय देवी धरासुर मर्दिनी के नाम पर क्रमश: इन शहरों के नाम रखने का प्रस्ताव उद्धव सरकार की हिंदुत्व समर्थक वोटों को भुनाने की आखिरी कोशिश थी. बाद में शिवसेना (एकनाथ शिंदे)-भाजपा सरकार ने सत्ता संभाली और पिछली सरकार के फैसले की पुष्टि की तथा औरंगाबाद के लिए प्रस्तावित नाम को विस्तारित करते हुए 'छत्रपति संभाजीनगर' कर दिया. 1689 में औरंगजेब की सेना ने मराठा राजा संभाजी को पकड़ लिया और मार डाला था. औरंगाबाद और उस्मानाबाद नाम मुगल बादशाह औरंगजेब तथा हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्मान अली खान के नाम पर रखे गए थे. उद्धव के नेतृत्व वाली शिवसेना और शिंदे के गुट, दोनों अब नाम बदलने का श्रेय लेने के दावे कर रहे हैं. संयोग से, यह दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे थे जिन्होंने मई 1988 में औरंगाबाद में एक जनसभा में पहली बार इस शहर का नाम 'संभाजीनगर' करने की मांग की थी.
औरंगाबाद से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के लोकसभा सांसद इम्तियाज जलील ने शहर का नाम बदलने का विरोध करते हुए कहा कि इस बदलाव से पहले जिले के निवासियों से सलाह नहीं ली गई. वे कहते हैं, ''आप इतिहास की किताबों से पन्नों को फाड़ सकते हैं, पर आप इतिहास बदल नहीं सकते...उनके लिए यह औरंगाबाद था, है और हमेशा रहेगा.'' उनका कहना है कि पानी की कमी और किसान आत्महत्या जैसे अहम मुद्दों की अनदेखी करते हुए सरकार सिर्फ 'भावनात्मक मुद्दे' उठा रही है. केंद्र का फैसला भी ऐसे समय आया जब मामला विचाराधीन है. जलील राज्य सरकार से पूछते हैं कि मुंबई, कोल्हापुर, नागपुर और पुणे जैसे शहरों का नाम क्रमश: छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति राजर्षि शाहू महाराज, डॉ. बी.आर. आंबेडकर और सावित्रीबाई फुले के नाम पर क्यों नहीं रखा जा रहा?
वहीं, ज्योतिबा फुले और आंबेडकर की विचारधारा के साथ मार्क्सवाद का एक मिला-जुला विचार देने वाले ख्यातिप्राप्त विद्वान दिवंगत शरद पाटिल चाहते थे कि औरंगाबाद का नाम बदलकर निजामशाही के सिपहसालार मलिक अंबर के नाम पर 'मलिक अंबराबाद' कर दिया जाए. हब्शी गुलाम अंबर, जो आगे चलकर निजामशाही के सेनापति बन गए थे, ने न केवल खड़की गांव में वर्तमान शहर की नींव रखी थी, बल्कि मध्ययुगीन काल में इसे शाही दिल्ली के खिलाफ खड़ा होने वाला दक्कन का पहला कोट बनाया था. मराठों ने महाराष्ट्र के इन इलाकों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी दिल्ली सल्तनत को चुनौती दी और इतिहास में उनके नाम प्रमुखता से दर्ज हुए लेकिन यहां से सबसे पहले दिल्ली की सल्तनत को चुनौती देने वाले मलिक अंबर इतिहास में गुम हो गए हैं.
महाराष्ट्र अपने सांस्कृतिक और राजनैतिक प्रतीकों को गंभीरता से लेता है. 1978 में शरद पवार के नेतृत्व वाले प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट गठबंधन ने औरंगाबाद स्थित मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम आंबेडकर के नाम पर रखने का फैसला लिया. इस कदम से राज्य के प्रमुख मराठा समुदाय में काफी नाराजगी देखी गई और क्षेत्र में दलितों के खिलाफ प्रतिक्रिया हुई. 1994 में अंतत: विश्वविद्यालय का नाम बदलकर 'डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय' कर दिया गया और मराठवाड़ा मुक्ति आंदोलन के नायक स्वामी रामानंद तीर्थ के नाम पर नांदेड़ में एक नया विश्वविद्यालय बनाया गया.
नाम बदलने के लिए शुरू हुए 'नामांतर' आंदोलन ने राज्य में केंद्रीय राज्यमंत्री और रिपब्लिक-पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआइ) के प्रमुख रामदास अठावले और पूर्व सांसद जोगेंद्र कवाडे जैसे दलित नेताओं को उभारा. इसने प्रमुख जातियों के खिलाफ लामबंदी का भी नेतृत्व किया, जिसके नतीजतन शिवसेना को मराठवाड़ा में सियासी जमीन प्राप्त हुई. यह मुंबई-ठाणे क्षेत्र के बाहर शिवसेना की पहली राजनैतिक जमीन थी. मराठवाड़ा क्षेत्र में डेढ़ दशक लंबे आंदोलन के कारण जो सामाजिक दरार पैदा हुई, वह आज भी कायम है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के 'संभाजीनगर' के फैसले के बाद अब शहरों और यहां तक कि रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने की मांग फिर शुरू हो गई है. भाजपा एमएलसी और धनगर समुदाय के नेता गोपीचंद पाडलकर चाहते हैं कि अहमदनगर जिले का नाम 18वीं शताब्दी की योद्धा रानी अहिल्यादेवी होल्कर के नाम पर 'पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी नगर' रखा जाए. इसका नाम फिलहाल 15वीं शताब्दी में निजामशाही राजवंश और इस शहर की स्थापना करने वाले अहमद निजामशाह के नाम पर है. धनगर (चरवाहा या गड़रिया) समुदाय प्रमुख मराठा-कुनबी जाति समूह के बाद दूसरी सबसे बड़ी जाति है और वह अहिल्यादेवी को पूजनीय मानती है.
इस बीच, शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना चाहती है कि दक्षिण मुंबई में चर्चगेट रेलवे स्टेशन का नाम आरबीआइ के दिवंगत गवर्नर सी.डी. देशमुख के नाम पर किया जाए. देशमुख ने नेहरू सरकार की ओर से मराठी भाषियों की मुंबई को अपनी राजधानी के साथ महाराष्ट्र राज्य बनाने की मांग को मानने से मना करने के विरोध में 1956 में केंद्रीय वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. वे देशमुख को मराठी गौरव का प्रतीक मानते हैं. मुंबई की पूर्व नगरसेवक और शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना की प्रवक्ता शीतल म्हात्रे कहती हैं, ''हमने मांग की है कि चर्च गेट स्टेशन का नाम बदलकर सी.डी. देशमुख, जिन्होंने महाराष्ट्र के गठन में प्रमुख भूमिका निभाई थी, के नाम पर किया जाए.'' वैसे, इस मांग का उन लोगों ने विरोध किया है जो याद दिलाते हैं कि चर्चगेट स्टेशन पिछले 150 वर्षों से शहर के इतिहास और संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है. उन्होंने इस कदम के खिलाफ एक ऑनलाइन अभियान भी शुरू किया है.
दो और रेलवे स्टेशनों—दादर और मुंबई सेंट्रल—के नाम बदलने की ऐसी मांग दलित समूहों ने की है. पूर्व मंत्री और आरपीआइ नेता अविनाश महातेकर कहते हैं, ''हम चाहते हैं कि मुंबई सेंट्रल का नाम डॉ. आंबेडकर के नाम पर रखा जाए. संविधान के मसौदे पर काम करने के दौरान, बाबासाहेब इसी स्टेशन से दिल्ली जाने के लिए ट्रेन लेते थे.'' वे यह भी चाहते हैं कि दादर स्टेशन का नाम बदलकर स्टेशन के समीप स्थित आंबेडकर स्मारक के नाम पर 'चैत्यभूमि' कर दिया जाए. महाराष्ट्र विधानसभा ने 2020 में मुंबई सेंट्रल के नाम को परोपकारी जगन्नाथ 'नाना' शंकरशेठ के नाम पर करने के एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी जिन्होंने औपनिवेशिक युग में बॉम्बे के विकास में अहम भूमिका निभाई थी.
संभाजी ब्रिगेड जैसे मराठा समूहों ने भी महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' पुणे का नाम बदलकर शिवाजी की मां राजमाता जीजाबाई के नाम पर 'जीजौनगर' करने की मांग की है. 17वीं शताब्दी में आदिलशाही सिपहसालार मुरार जगदेव की ओर से शहर को नष्ट किए जाने के बाद इसे फिर से बसाने में उनकी अहम भूमिका रही है.
इस तरह की मांगों ने सरकार को बैकफुट पर ला दिया है. मसलन, एमवीए सरकार को ग्रीनफील्ड नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम बाल ठाकरे के नाम पर रखने का फैसला बदलना पड़ा था. अगस्त 2022 में, राज्य विधानमंडल ने हवाई अड्डे का नाम पीजेंट्स ऐंड वर्कर्स पार्टी के पूर्व लोकसभा सांसद डी.बी. पाटिल के नाम पर करने का प्रस्ताव पारित किया क्योंकि पाटिल ने 1970 के दशक में नवी मुंबई के विकास के लिए आगारियों जैसे स्थानीय खेतिहर समुदायों से अधिग्रहीत की गई जमीन का उचित मुआवजा दिलाने के लिए संघर्ष किया था.
लेखक-एक्टिविस्ट संजय सोनवानी नाम बदलने की अंधभक्ति की तुलना भ्रम के गुबार से करते हैं. वे कहते हैं, ''नाम बदलने के पीछे मुख्य कारक जातिगत गौरव तथा पहचान और हिंदू बनाम मुस्लिम के सियासी नैरेटिव हैं. दुर्भाग्य से, लोग नहीं समझ रहे कि उनकी असल जरूरतें क्या हैं...धार्मिक और जातिवादी पहचान के मुद्दे तेजी से हावी हो रहे हैं, जिससे मांगों को आक्रामक धार मिल रही है.'' उनके जैसे कार्यकर्ताओं के लिए, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी एक राहत के रूप में आई होगी. उपाध्याय की याचिका को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा, ''किसी भी देश का इतिहास किसी देश की वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को इस हद तक परेशान नहीं कर सकता कि भावी पीढिय़ां अतीत की बंदी बन जाएं...आप यहां क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं? क्या आप देश में माहौल को लगातार गर्म रखना चाहते हैं?'' यह देखा जाना बाकी है कि कोर्ट की टिप्पणी नाम बदलने की होड़ में आगे चल रहे महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में क्या लहर पैदा करेगी.
नाम पर राजनीति
16 साल तक चले आंदोलन के बाद, 1994 में औरंगाबाद के मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम बदलकर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय कर दिया गया. लेकिन दरारें अभी भी पूरी तरह भरी नहीं हैं
तत्कालीन शिवसेना-भाजपा सरकार की ओर से बॉम्बे का नाम बदलकर मुंबई (1995) किया गया जो सबसे महत्वपूर्ण नामकरण था. बाद में, प्रतिष्ठित विक्टोरिया टर्मिनस (वीटी) स्टेशन और हवाई अड्डे का नाम छत्रपति शिवाजी के नाम पर रखा गया
मुंबई के एलफिन्स्टन रोड रेलवे स्टेशन का नाम प्रभादेवी (2018) और महिलाओं तथा गैर-ब्राह्मणों को शिक्षित करने में महात्मा ज्योतिबा और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के योगदान के लिए पुणे विश्वविद्यालय का नाम सावित्रीबाई फुले के नाम पर (2014) रखा गया
महाराष्ट्र के इकलौते मुस्लिम मुख्यमंत्री ए.आर. अंतुले ने 1980 के दशक की शुरुआत में कुलाबा जिले का नाम बदलकर रायगढ़ कर दिया था. रायगढ़ शिवाजी की राजधानी थी
...नई मांग
पुणे का जीजौनगर
अहमदनगर का पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी नगर
औरंगाबाद एयरपोर्ट का छत्रपति संभाजी के नाम पर
चर्चगेट रेलवे स्टेशन का सी.डी. देशमुख के नाम पर
मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन का डॉ. आंबेडकर या जगन्नाथ नाना शंकरसेठ के नाम पर
दादर रेलवे स्टेशन का चैत्यभूमि