फरवरी की 4 तारीख को एक खबर गुजरात के रियल एस्टेट डेवलपरों पर कहर की तरह टूटी. राज्य सरकार ने संपत्ति से जुड़ी सर्कल दरों, जिन्हें यहां जंत्री दरें कहा जाता है, को तत्काल प्रभाव से दोगुनी बढ़ाने का ऐलान कर दिया. इसको एनुअल स्टेटमेंट ऑफ रेट्स (एएसआर) भी कहते हैं. यह न्यूनतम मानक दर है और राज्य में संपत्ति या जमीन का कोई भी लेन-देन इसी दर पर होना चाहिए. हरेक लेन-देन पर 6 फीसद की अनिवार्य दर से सरकार को चुकाई जाने वाली वास्तविक स्टैंप ड्यूटी इसी से तय होती है. 6 फरवरी से सारे लेन-देन नई जंत्री दरों के मुताबिक किए जाने थे. वैसे, मोटे तौर पर दरों में बदलाव की उम्मीद की जा रही थी, पिछला बदलाव 12 साल पहले हुआ था.
मगर जितने अचानक और जितने बड़े पैमाने पर यह किया गया, उसने क्या छोटे और क्या बड़े, हर डेवलपर को चौंका दिया. करीब चार दशकों से उद्योग में काम कर रहे डेवलपर विजय शाह कहते हैं, ''यह अप्रत्याशित झटका था.'' दरों में ऐसी बढ़ोतरी पहले कभी नहीं हुई. सीआरईडीएआइ (कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन) ने राज्य में 100 फीसद की मानक वृद्धि का विरोध किया और इसे गैरवाजिब बताते हुए कहा कि ग्रामीण इलाकों में जमीन की कीमतों में उतनी वृद्धि नहीं हुई हो सकती है जितनी शहरी इलाकों में हुई और आखिरकार लोगों को बाजार दर से ज्यादा रकम चुकानी पड़ सकती है.
बाद का हफ्ता मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के लिए बेहद व्यस्त रहा, जो डेढ़ साल पूर्व मुख्यमंत्री नियुक्त होने से पहले अहमदाबाद के अपने घटलोदिया निर्वाचन क्षेत्र में खुद रियल एस्टेट डेवलपर थे. उन्होंने लगातार उद्योग के नुमाइंदों से मुलाकातें कीं, जिन्होंने 50 फीसद रोलबैक और अमल 1 मई तक टालने की मांग की. थोड़ी-सी राहत 11 फरवरी को मिली जब यह ऐलान किया गया कि जंत्री दरें 15 अप्रैल से लागू होना शुरू होंगी, पर राज्य भर में दरों में दोगुनी बढ़ोतरी बरकरार रही. उद्योग ने पल भर के लिए राहत की सांस ली, वहीं ताकतवर बिल्डर सीएमओ से सीधे अपने दफ्तरों की तरफ भागे ताकि चल रहे सौदों की रजिस्ट्री आनन-फानन करवा सकें.
सरकार के अचानक ऐलान की दोहरी वजह मानी जा रही है. पहला, बाजार में चल रहे काले धन में कमी लाना. गुजरात संपत्ति के हर सौदे में सबसे ज्यादा 'नकद हिस्से' के लिए कुख्यात है. संपत्ति की बाजार दर जंत्री दर से ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर मांगी जाती है और इस अंतर की रकम डेवलपर नकद मांगते हैं. पैसिफिका कंपनीज के एमडी रॉकी इसरानी कहते हैं, ''गुजरात के बहुत सारे डेवलपर छोटे-मोटे बिल्डर हैं, जिससे यह असंगठित बाजार बन जाता है. 90 फीसद लेन-देन जंत्री दरों से ऊपर होता है. नकद लेन-देन पर जीएसटी नहीं चुकाया जाता.''
दूसरी वजह स्टैंप ड्यूटी में वृद्धि करना था, जो सरकार के राजस्व का अहम स्रोत है. राज्य में 2021 से 2022 तक संपत्तियों की रजिस्ट्री में 11 फीसद और स्टैंप ड्यूटी से राजस्व में 19 फीसद की वृद्धि हुई, जो 7,337 करोड़ रुपए से बढ़कर 8,769 करोड़ रुपए पर पहुंच गया. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने घोषणापत्र में भाजपा का एक अहम वादा राज्य की अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाकर 1 ट्रिलियन (81.6 लाख करोड़ रु.) डॉलर यानी मौजूदा 19.4 लाख करोड़ रुपए से चार गुना बढ़ाना था. सर्कल रेट वृद्धि को इसी दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है.
तत्काल तो यह फैसला मध्यम आय समूह के खरीदारों को नुक्सान पहुंचाएगा, जो होम लोन पर निर्भर होते हैं और जिन्हें खासी ज्यादा स्टैंप ड्यूटी अपनी अंटी से ढीली करनी पड़ेगी. जहां तक डेवलपर की बात है, तो फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआइ) खरीदने पर उनका खर्च दोगुना हो गया. एफएसआइ की गणना जंत्री दर के आधार पर की जाती है. स्वाभाविक ही वे यह अतिरिक्त लागत खरीदार पर डाल देंगे.
जंत्री दर पर आधारित संपत्ति कर भी दोगुना हो जाएगा और इसका असर भी मध्यम वर्ग पर पड़ेगा. वैसे डेवलपरों के एक हिस्से का कहना है कि लंबे वक्त के लिए यह अच्छा कदम है. इसरानी कहते हैं, ''इससे गुजरात के बाजार में हाशिये के असंगठित खिलाडिय़ों में उथल-पुथल के साथ सुधार आना शुरू होगा.'' वे यह भी कहते हैं कि मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद राज्यभर में दर का दोगुना होना सही है.