धवल कुलकर्णी
फरवरी 2021 में महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले बनाए गए तो उम्मीद की जा रही थी कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मुकाबला करने में पस्त देश की सबसे पुरानी पार्टी के पश्चिमी राज्य के नेताओं-कार्यकर्ताओं में जोश भर उठेगा. वजह यह कि पटोले बेहद आक्रामक हैं. वे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आते हैं. यह खासियत उन्हें खास बनाती है. लेकिन दो साल बाद पटोले की कथित 'मनमौजी' शैली ने कांग्रेस में उथल-पुथल मचा दी है.
कांग्रेस विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट के इस्तीफे से कलह खुलकर सामने आ गई है. थोराट आठ बार के विधायक हैं, महाराष्ट्र विकास अघाडी (एमवीए) गठबंधन सरकार में राजस्व मंत्री रह चुके हैं और कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य हैं. थोराट ने इस्तीफा अपने भतीजे और महाराष्ट्र युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सत्यजित तांबे की बगावत के बाद दिया. तांबे विधान परिषद चुनाव में नासिक स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ निर्दलीय के रूप में खड़े हो गए हैं. तांबे ने आरोप लगाया कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी में सक्रिय ताकतों ने उन्हें पार्टी की उम्मीदवारी से वंचित करने की साजिश की. थोराट ने कहा कि वे 'व्यथित' हैं. हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन यह स्पष्ट था कि वे पार्टी के वरिष्ठ नेता पटोले का जिक्र कर रहे हैं.
भाजपा ने थोराट को खुला न्योता दिया है, लेकिन कांग्रेस नेताओं का दावा है कि वे पुराने कांग्रेसी नेता हैं, पार्टी नहीं छोड़ेंगे. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी थोराट का इस्तीफा नामंजूर कर दिया है. इस बीच, इस अप्रिय घटना के कारण पूर्व विधायक आशीष देशमुख जैसे पटोले के विरोधियों ने उनसे इस्तीफे की मांग कर डाली है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता तथा पूर्व मंत्री कहते हैं, ''यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि जब पटोले को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, तो वे हर तरह के पूर्वाग्रहों से परे थे. उन्हें खुदमुख्तार माना जाता था और वे स्थापित नेताओं के किसी गुट का हिस्सा नहीं थे. लेकिन उन्होंने सबसे बातचीत और टीम वर्क से दूर रहकर अपने लिए हालात मुश्किल कर लिए हैं. उनकी कार्यशैली को मनमौजी माना जाता है.''
पटोले की कार्यशैली से पहले ही पार्टी में उथल-पुथल होती रही है. फरवरी 2021 में प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पटोले ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था. तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने एमवीए सरकार के अनुरोध पर कोई फैसला नहीं किया तो विधानसभा अध्यक्ष का पद खाली पड़ा रहा. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने कहा है कि पटोले ने जल्दबाजी दिखाई थी. अगर वे स्पीकर पद पर डटे रहते, तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार बच जाती क्योंकि वे एकनाथ शिंदे और उनके 39 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर सकते थे.
पटोले ने कहा कि पद छोड़ने का निर्णय तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सलाह पर किया गया था. प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पटोले ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और शिवसेना को यह कहकर नाराज कर दिया था कि कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी. उन्होंने पार्टी के सहयोगी नितिन राउत की जिम्मेदारी वाले ऊर्जा विभाग में अनियमितताओं की भी शिकायत की. दिसंबर, 2021 में, पटोले ने भंडारा जिले में घोषणा की थी कि वे मोदी को 'हरा' या 'धूल चटा' सकते हैं. इससे नाराज भाजपा कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए. तब पटोले ने दावा किया कि वे एक स्थानीय गुंडे का जिक्र कर रहे थे, जो प्रधानमंत्री का हमनाम है.
हालांकि पटोले को हटाने की मांग के बावजूद उनके पद पर कायम रहने की ही संभावना है. उन्हें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय महासचिव के.सी. वेणुगोपाल का समर्थन हासिल है. वे बागी मिजाज के नेता माने जाते हैं. वे भंडारा के लखनदुर से 1999 और 2004 में कांग्रेस विधायक थे, लेकिन 2009 में उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस-राकांपा सरकार की धान किसानों की समस्याओं को दूर करने में नाकामी पर विद्रोह कर दिया था. उसी साल वे भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े और जीते. फिर, 2014 में वे राकांपा नेता तथा तत्कालीन केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल को हराकर लोकसभा में पहुंचे. लेकिन 2017 में कृषि संकट को लेकर मोदी की आलोचना करने के बाद उन्होंने भाजपा और लोकसभा सीट छोड़ दी. वे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के खिलाफ नागपुर से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए.
वैसे, पटोले इससे इनकार करते हैं कि पार्टी में अंदरूनी कलह है. थोराट के इस्तीफे पर उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ''मुद्दा अब खत्म हो गया है.'' पटोले के करीबियों का कहना है कि उन्होंने महाराष्ट्र में कांग्रेस में जान डालने की कोशिशें शुरू कर दी हैं. इस महीने पार्टी ने नागपुर शिक्षक और अमरावती स्नातक निर्वाचन क्षेत्रों से दो महत्वपूर्ण विधान परिषद चुनाव जीते. उनके एक करीबी नेता कहते हैं, ''आखिरकार, पार्टी का भविष्य ही मायने रखता है, न कि नेताओं का अपना भविष्य. नानाभाऊ राजनैतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से नहीं है; इसलिए पार्टी के भीतर वंशवादी नेता उनके उत्थान से परेशान हैं.'' देखना होगा कि क्या कांग्रेस के भीतर संगठनात्मक मुद्दे पटोले बनाम थोराट प्रकरण से आगे निकलते हैं या नहीं.