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देसी सुपरफूड की वापसी

संयुक्त राष्ट्र की अपील पर वर्ष 2023 को विश्व मिलेट ईयर के रूप में मनाया जा रहा है. खाद्य सुरक्षा अभियान में 14 राज्यों में मिलेट्स को शामिल कर लिया गया

ऊर्जा का जबरदस्त स्रोतः चेना-बर्रे (पोर्सो मिलेट)
ऊर्जा का जबरदस्त स्रोतः चेना-बर्रे (पोर्सो मिलेट)
अपडेटेड 24 जनवरी , 2023

सदियों पुराने ज्वार, बाजरा, रागी जैसे भारत के देसी सुपरफूड यानी मिलेट्स तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं. पौष्टिकता और बीमारियों से दूर रखने की खूबियों के चलते इन मोटे अनाजों का दौर फिर वापस आया है. भारत में 1960 के दशक में हरित क्रांति से पहले खाद्यान्न उत्पादन में मिलेट्स की हिस्सेदारी 40 फीसद थी लेकिन हरित क्रांति में गेहूं और धान को प्रमुखता दी गई जिससे मोटे अनाज पिछड़ गए और हिस्सेदारी 20 फीसद हो गई. 2018 को भारत मिलेट वर्ष के रूप में मना चुका है और संयुक्त राष्ट्र की अपील पर वर्ष 2023 को विश्व मिलेट ईयर के रूप में मनाया जा रहा है. खाद्य सुरक्षा अभियान में 14 राज्यों में मिलेट्स को शामिल कर लिया गया है. राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और हरियाणा शीर्ष मिलेट उत्पादक राज्य हैं. 

क्यों खाएं 
मिलेट से शरीर में ग्लूकोज चावल आदि के मुकाबले अपेक्षाकृत धीमी गति से खून में जाता है. इसकी थोड़ी मात्रा ही पेट भरने या तृप्ति का एहसास करा देती है. ये ग्लूटेन फ्री होते हैं. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट रिसर्च (आइआइएमआर) हैदराबाद की डायरेक्टर डॉ. सी.वी. रत्नावती बताती हैं कि मिलेट में माइक्रोन्यूट्रेंट्स अच्छी मात्रा में होते हैं. इसे खाकर डायबिटीज की बीमारी को टाला जा सकता है. यह हाइपरटेंशन और हृदय रोग को भी दूर रखने में सहायक है.

कैसे खाएं 
इन पोषक अनाजों की खिचड़ी, नमकीन, इनके आटे से रोटी, पराठे, समोसे, चॉकलेट, केक, रसगुल्ले, इडली, डोसा, ढोकला तक दर्जनों व्यंजन बनाए जा सकते हैं. मल्टीग्रेन आटा खाया जा सकता है. इनकी विधि आइआइएमआर की वेबसाइट में बुकलेट के तौर पर उपलब्ध है.  

खरीदने के एहतियात 
मिलेट उत्पादों को एफएसएसएआइ एगमार्क से सत्यापित करता है, इसलिए एगमार्क देख लें. मिलेट उत्पादों में अगर किसी तरह की असहज गंध आए तो न खरीदें. स्वाद में कड़वापन लगे तो न खाएं. ठ्ठ

किसान क्यों उगाएं 

मोटे अनाजों को ज्यादा सिंचाई, खाद की जरूरत नहीं होती, ये सूखे इलाकों में भी आसानी से उगाए जा सकते हैं. इनका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी गेहूं, धान से ज्यादा है, जैसे 2022-23 में ज्वार हाइब्रिड का एमएसपी 2,970 रु. प्रति क्विंटल है. मिलेट पर कीटों के आक्रमण का असर नहीं होता. दो इंच से ज्यादा गहराई पर इनकी बुआई नहीं होती.

अनाज है, नहीं भी
रामदाना/राजगीरा (एमरेंथ)
वनस्पति शास्त्र में इसे अनाज का दर्जा हासिल नहीं है लेकिन अब सरकार ने इसे मिलेट्स में शामिल कर लिया है. यूपी, बिहार में इसे रामदाना और गुजरात में राजगीरा कहते हैं. आसानी से पचने वाले राजगीरा में एमिनो एसिड, फैटी एसिड और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है. लड्डू, खीर और चिक्की में बहुतायत में इस्तेमाल होता है. उपवास रखने वाले खाते हैं.

कुट्टू (बकव्हीट)
यह भी अनाज नहीं, अनाज जैसा है. साढ़े चार हजार साल पहले चीन में इसके होने के प्रमाण मिले. अवध क्षेत्र में कुट्टू के आटे के व्यंजन बहुतायत में खाए जाते हैं. प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और खनिजों से भरपूर.

प्रमुख मिलेट 

ज्वार(सॉर्गम)
विश्व के सूखे क्षेत्रों की फसल और दुनिया में पांचवां सबसे ज्यादा पैदा किया जाने वाला अनाज
रागी/मंडुआ
(फिंगर मिलेट)
दक्षिण भारत का 
अनाज है, सालभर इसका उत्पादन हो सकता है. सूखे क्षेत्रों की फसल, एमिनो एसिड, विटामिन ए, बी और फॉस्फोरस से भरपूर

बाजरा (पर्ल मिलेट)
सहारा के आसपास करीब 5,000 साल पहले इसकी खेती शुरू हुई और फिर यह एशिया आया. मैग्नीशियम, कॉपर जिंक आदि से भरपूर

कोदों 
(कोडो मिलेट)
तीन हजार साल पुराना अनाज, सबसे ज्यादा फाइबर वाला मिलेट है. विटामिन बी से भरपूर, नर्वस सिस्टम को मजबूत करता है.

छोटे मिलेट

कंगनी/काकुम (फॉक्सटेल मिलेट) 
चीन में 6,000 साल पहले उगाया गया. उत्तराखंड में इसे कौणी भी कहते हैं. चार-पांच दशक पहले मूल आहार में शामिल था. कोलेस्ट्रॉल व शुगर नियंत्रित करता है, अखरोट जैसा मीठे स्वाद का.

कोदों 
(कोडो मिलेट)
तीन हजार साल पुराना अनाज, सबसे ज्यादा फाइबर वाला मिलेट है. विटामिन बी से भरपूर, नर्वस सिस्टम को मजबूत करता है.

चेना/बर्रे (पोर्सो मिलेट)
ऊर्जा का जबरदस्त स्रोत, यानी सुबह खा लिया तो शाम तक बिना थके काम कर सकते हैं. ग्लूटन फ्री, कैल्शियम से भरपूर. लाल चने और मक्के के साथ इसकी खेती होती है.

सांवा (बार्नयार्ड मिलेट)
प्रोटीन का जबरदस्त स्रोत है. ग्लूटन से होने वाले सेलिएक रोग से पीड़ित लोगों के लिए मुफीद, फैटी एसिड से भरपूर.

कुटकी (लिटिल मिलेट)
पूरे भारत में पैदावार, आम तौर पर चावल की जगह इसे खाया जाता है. फाइबर से भरपूर, बच्चों के प्रोसेस्ड फूड में इसका बहुत इस्तेमाल होता है.

स्रोत : आइआइएमआर, एफएसएसएआइ

आहार के अलावा ज्वार और इसके स्टेम से बायोफ्यूल बनाना संभव हो चुका है. इसका पायलट प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है. चीनी मिलों में इस बायोफ्यूल का उत्पादन संभव है.

डॉ. सी.वी. रत्नावती
डायरेक्टर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट रिसर्च, हैदराबाद

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