अमिताभ श्रीवास्तव
अक्तूबर की 31 तारीख को चिराग पासवान 40 साल के हुए तो उन्हें सबसे पहले बधाई देने वालों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल थे. माना जा रहा है कि शाह का चिराग को फोन करना बधाई देने के अलावा उन्हें धन्यवाद देने के लिए भी था. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) नेता चिराग ने एक दिन पहले ही बिहार में 3 नवंबर के उपचुनाव के लिए भाजपा उम्मीदवारों को समर्थन देने की घोषणा की थी.
यह समर्थन अहम साबित हुआ और भाजपा ने उपचुनाव में दो विधानसभा सीटों में से एक, गोपालगंज, पर जीत हासिल कर ली. अगस्त में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके जनता दल (यूनाइटेड) के छोड़कर चले जाने के बाद यह उपचुनाव भाजपा के लिए अपनी ताकत की पहली परीक्षा जैसा भी था.
शाह का चिराग को फोन करना इस बात का बड़ा संदेश है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व फिर दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे के पक्ष में है. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को बांटकर चिराग से अलग हुए उनके चाचा केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस पर तलवार लटक रही है क्योंकि अब शायद भाजपा के लिए उनकी उपयोगिता खत्म हो गई है. इस घटनाक्रम ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा-चिराग गठबंधन को औपचारिक रूप लगभग दे दिया है.
यह सौदा चिराग के लिए नए जीवन जैसा है. लालू प्रसाद यादव और नीतीश के नेतृत्व में मजबूत जद (यू)-राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन के मुकाबले भाजपा भी बिना साझेदार के थी. भाजपा की 2024 के आम चुनाव से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं के मद्देनजर 40 लोकसभा सीटों वाला बिहार अहम है.
चिराग की नीतीश के साथ तनातनी से भाजपा की उपेक्षा का शिकार होने के बाद उनके चाचा पारस ने पार्टी को बांट दिया और छह में से पांच सांसदों को अपने साथ ले गए थे. फिर मार्च में जब उन्हें उनके दिवंगत पिता को आवंटित 12, जनपथ स्थित बंगले से बेदखल किया गया तब लगा था कि चिराग की कहानी खत्म हुई. मगर भाजपा से नीतीश के अलग होने के बाद सब कुछ बदल गया.
चिराग के साथ लोजपा का केवल एक गुट है, पर बहुत से लोग उन्हें ही रामविलास की विरासत (बिहार में 5-6 फीसद पासवान वोटों) के असली उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं. बिहार के कुल वोटों में दलितों की हिस्सेदारी 15-16 फीसद है, पर इसमें आने वाली 22 उपजातियों में बहुत कम एकता है. ऐसे में चिराग को अहम बनाने वाली बात यह है कि पासवान मतदाताओं को 'हस्तांतरणीय' समूह माना जाता है.
ऐसे में चिराग निश्चित रूप से दोनों हाथ में लड्डू रखने सरीखी स्थिति में हैं, वैसे यह अभी देखना बाकी है कि वे भगवा अभियान में कितना योगदान कर सकेंगे.