अगर कोई ऐसा किला है जिसे भाजपा अब तक भेद नहीं पाई है, तो वह है कर्नाटक को छोड़कर विंध्य के नीचे का देश का भाग. पर 2023 में तेलंगाना में एक अन्य संभावना खुल जाएगी. तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव कुछ वक्त से अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को पुष्ट कर रहे हैं. लेकिन, उन्हें घरेलू मोर्चे पर उलझाए रखने को काफी कुछ है. साल 2014 में आंध्र प्रदेश के पुनर्गठन के बाद से वे राज्य में शीर्ष पर रहे हैं, पर अब वे सत्ता-विरोधी लहर के बोझ तले दब जाएंगे. संभावनाओं को भांपते हुए भगवा खेमा राज्य में लगातार अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है. निजाम के शहर में 2 और 3 जुलाई को विजय संकल्प सभा नामक विशाल रैली करने का फैसला और राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की हालिया बैठक के लिए हैदराबाद का चुनाव इसी रणनीति का हिस्सा है.
भाजपा ने भी तेलंगाना जीतने की अपनी मंशा को छुपाया नहीं है. साल 2019 में भाजपा सांसद बनने और मार्च 2020 में राज्य भाजपा अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद से बंडी संजय राज्य के कस्बों और गांवों का दौरा कर रहे हैं. विजय संकल्प सभा की कामयाबी से उत्साहित, कई केंद्रीय नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों को पार्टी को बढ़त दिलाने के लिए फिर से दौरे करने हैं. इनमें से कुछ नेताओं और मंत्रियों को राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक से पहले 119 में से कई विधानसभाओं में नियुक्त किया गया है.
पार्टी ने इसे संसद प्रवास योजना (पीपीवाइ) नाम दिया है और इसके हिस्से के रूप में राज्य के 17 लोकसभा क्षेत्रों को चार व्यावहारिक समूहों में बांटा है, जहां केंद्रीय मंत्रियों को दौरा करना होगा. वे तीन दिन लोगों और बूथ स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करेंगे तथा यह सुनिश्चित करेंगे कि केंद्र सरकार के विकास और कल्याणकारी कार्यक्रमों का संदेश हर घर तक पहुंचे. भाजपा नेता डी. प्रदीप कुमार कहते हैं, ''शुरुआत में पीपीवाइ अभियान दो महीने में एक बार, फिर दो हफ्तों में एक बार होगा. पहले चरण में भाग लेने वाला कोई प्रवासी मंत्री दूसरे चरण में फिर उसी निर्वाचन क्षेत्र में नहीं जाएगा.'' राज्य के नेता टीआरएस सरकार के कामकाज पर निशाना साधेंगे और बाइक रैलियों का आयोजन करेंगे.
टीआरएस के लिए फिक्र की अन्य वजहें भी हैं. पार्टी मशीनरी के निर्माण के अलावा, भाजपा तेलंगाना में भी उस रणनीति को लागू कर रही है जिसका उसे उत्तर में काफी फायदा पहुंचा है—अन्य पार्टियों के असरदार नेताओं को अपने पाले में करना. भाजपा का ध्यान केवल कुछ समुदायों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीतने की क्षमता वाले वाले किसी भी विचार के नेताओं का पार्टी में स्वागत है.
एटाला राजेंद्र को केसीआर ने अपने मंत्रिमंडल से हटा दिया था और वे भाजपा के टिकट पर उपचुवाव जीतने निकल पड़े थे. अन्य दलों के नेताओं के अपने खेमे में लाने के लिए बनी सात सदस्यीय पैनल के अध्यक्ष राजेंद्र ही हैं. इनमें से पांच बमुश्किल तीन साल पहले भाजपा में शामिल हुए हैं. न केवल पार्टी में आने वाले संभावित नेताओं के लिए समन्वय समिति गठित की गई है, बल्कि एक वित्त तथा एक अन्य टीआरएस शासन की कमियों और लोगों की शिकायतों का अध्ययन करने के लिए भी समिति बनाई गई है. एक बार उनका पता लगा लेने के बाद, भाजपा को उम्मीद है कि वह उन कमियों को उजागर करके अपना आधार बना पाएगी और उसकी के अनुसार चुनावी वादे करेगी.
इसके साथ ही, पार्टी कई संपर्क कार्यक्रमों के जरिए बूथ स्तर पर अपना आधार मजबूत कर रही है. एक-दूसरे से जुड़े रहने के लिए कई व्हॉट्सऐप ग्रुप बनाए गए हैं और हर ग्रुप में 200 सदस्य हैं. मतदाता सूची के पन्ना प्रभारी यानी पन्ना प्रमुख बूथ पर पार्टी की पकड़ बनाने की रणनीति में अहम बने रहेंगे—कुल 34,000 में से 28,000 पन्ना प्रमुखों को नियुक्त किया जा चुका है. संजय बताते हैं, ''जमीनी स्तर के नेताओं को जब उनकी पसंद की समर्पित टीम दी जाती है तो वे सशक्त महसूस करते हैं और अधिक जिम्मेदारियां लेते हैं तथा उन्हें महत्वपूर्ण काम सौंपे जा सकते हैं.''
सियासी पर्यवेक्षक इस रणनीति में काफी संभावना देखते हैं. हैदराबाद विश्वविद्यालय के डी. वीरबाबू कहते हैं, ''शहरी से अर्ध-शहरी और ग्रामीण इलाकों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. तीन दशकों से अधिक समय तक तेलंगाना में दक्षिणपंथी विचारधारा की जड़ें मजबूत रही हैं. भाजपा के चुनावी इतिहास में, उसके पहले दो सांसदों में से एक सी. जंगा रेड्डी इसी इलाके से चुने गए थे. और, 1998 में अविभाजित आंध्र प्रदेश में पार्टी के 12 विधायक थे और पार्टी की वोट हिस्सेदारी 17 फीसद थी. इसलिए, अगर पार्टी ग्रामीण इलाकों में अपने कॉडर को मजबूत करती है तो उसके पास सरकार बनाने का शानदार मौका है.''
टीआरएस सरकार पर निशाना साधना तेलंगाना में भाजपा की रणनीति का एक और हिस्सा है. संजय कहते हैं, ''आरटीआइ (सूचना का अधिकार) के जरिए केसीआर के वादों पर 100 सवाल उठाकर हम टीआरएस सरकार को परास्त कर देंगे.'' अन्य बातों के अलावा, वे पता लगाएंगे कि 2 जून, 2014 से 2 जून 2022 तक अपने जिला दौरों और अन्य बैठकों के दौरान केसीआर ने जो वादे किए थे, जिन्हें दोनों सदनों के पटल पर रखा था, उनमें से कितने पूरे हुए हैं. भाजपा को उम्मीद है कि वह अन्य राज्यों में नियमित या चार्टर उड़ानों से केसीआर के दौरों, सरकारी गेस्ट हाउस या प्राइवेट गेस्ट हाउस में उनके ठहरने और पिछले आठ साल में उन्होंने जो वेतन हासिल किया है, उन सब पर सवाल उठाने में सफल होगी.
बदले में, टीआरएस भी अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ कुछ सवालों के साथ इसे आरटीआइ जंग में बदलने की योजना बना रही है. यह सत्ता विरोधी लहर पर काबू पाने की उम्मीद में, आलोचनाओं का जोरदार मुकाबला कर रही है. अगर वह इसमें सफल होती है तो पार्टी लगातार तीसरी बार राज्य का चुनाव जीतेगी.