अरुण पुरी
बॉलीवुड भारतीय सिनेमा पर तभी से राज करता आया जब से चलचित्र यहां आया. लोकप्रिय फिल्म सितारे घर-घर में जाने-पहचाने नाम हो गए. अभी हाल तक इसके स्टार ऐक्टर—खान त्रिमूर्ति, अक्षय कुमार, ऋतिकरोशन, रणबीर कपूर, रणवीर सिंह और अन्य—निर्विवाद रूप से भारतीय लोकप्रिय सिनेमा के सम्राट थे.
और बाकी सब इलाकाई जागीरों के क्षत्रप, अपने आप में खुश. उनमें ऐसा कुछ नहीं था कि वे सल्तनत के लिए खतरा बन सकें. मगर अब टॉलीवुड, कॉलीवुड, मॉलीवुड और चंदन की तरह महकते तमाम किस्म के 'वुड’ अचानक उस पर धावा बोलने लगे हैं. इस फौज की अगुआई वे अदाकार कर रहे हैं जिनके नाम आपने, अगर आप हिंदी फिल्मों के ही दीवाने रहे हों, तो कुछेक साल पहले तक शायद ही सुने हों—प्रभास, अल्लू अर्जुन, यश (चोपड़ा नहीं), राम चरण, जूनियर एनटीआर, विजय देवेराकोंडा...
यही ऐक्टर अब धमाल मचा रहे हैं. पिछले साल एक तेलुगु फिल्म अचानक न जाने कहां से आई और उसने रणवीर सिंह की मौजूदगी से सजी 83 की लंका लगा दी, जैसा कि भारत ने 1983 के विश्व कप में किया था. यह तेलुगु फिल्म दर-दर की ठोकरें खाते आवारा से तस्कर बने एक ऐसे किरदार के बारे में थी जिसके पास ठोड़ी की तरफ हाथ घुमाने की अदा और झुके/उठे कंधे से ज्यादा कुछ न था.
उम्मीद की जा रही थी कि हौसला बढ़ाने वाली 83 बॉलीवुड के लिए कोविड-19 की दुश्वारियों से उबरने का रास्ता बनेगी. इसके बजाए अल्लू अर्जुन की पुष्पा: द राइज—पार्ट 1 साल 2021 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई. क्या यह असल बुनियादी बदलाव था? यह तेलुगु फिल्म अखिल भारतीय फेनोमेना बन गई. फिल्म के कई भाषाओं में डब संस्करण हिंदी इलाकों सहित हर जगह दिखाए गए और महामारी से कराहते सिंगल-स्क्रीन सिनेमाघरों को अकेले अपने दम पर खुशहाली के रास्ते पर ले आए.
इसके गानों को अरबों व्यू मिले और मिल रहे हैं. अचानक हर कोई पहचान बन चुकी उन कंधे झटकती और रपटती नृत्य मुद्राओं की नकल कर रहा था जिन्हें अल्लू अर्जुन ने ईजाद किया और अपने नाम का ठप्पा लगा दिया. 40 वर्षीय अभिनेता ने हमसे कहा, ''इरादा पूरे देश को प्रभावित करने का नहीं था. आपके स्थानीय दर्शक प्रभावित होते हैं तो वह ऊर्जा अपने आप ट्रांसफर होती है और असर फैलता जाता है.’’
पुष्पा ने अंतत: देश भर से 323 करोड़ रुपए बटोरे, वह भी उस वक्त जब सिनेमाघरों में आधी सीटें ही भरने की इजाजत थी. इसके हिंदी संस्करण ने ही 108 करोड़ रुपए जुटाए. और रणवीर की 83 ने? मिलिट्री मीडियम पेस से गेंदबाजी की और 260 करोड़ रुपए के अनुमानित बजट के मुकाबले देश भर में उम्मीद से बहुत कम कुल 103 करोड़ रुपए ही बटोरे.
पुष्पा के बाद दो जबरदस्त हिट फिल्में आईं जिन्होंने और भी ज्यादा शान-शौकत से पूरे देश में धूम मचाई. मार्च 2022 में एस.एस. राजमौलि की आरआरआर आई, जो 550 करोड़ रुपए के बजट से बनी तब तक की सबसे महंगी भारतीय फिल्म थी. दो असल स्वतंत्रता सेनानियों के कल्पित किरदारों को परदे पर जीवित करने वाले राम चरण और जूनियर एनटीआर ने उस बोझ को हल्का कर दिया.
फिल्म ने दुनिया भर से करीब 1,111 करोड़ रुपए और भारत से 902 करोड़ रुपए जुटाए, जिसमें से 275 करोड़ रुपए हिंदी संस्करण से आए. अगले ही महीने केजीएफ: चैप्टर 2 ने ये रिकॉर्ड भी तोड़ दिए. इस बार दक्षिण में सबसे मजबूत नहीं मानी जाने वाली कन्नड़ इंडस्ट्री की एक फिल्म, जो यश के ऐक्शन दृश्यों से भरी कोलार गोल्ड फील्ड्स की महागाथा है, भारत की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई. देश भर में हंगामा मचाते हुए यह 992 करोड़ रुपए बटोर ले गई. इसमें से करीब आधे 427 करोड़ रुपए अकेले हिंदी संस्करण ने जुटाए.
आखिर यह हो क्या रहा है? डिप्टी एडिटर सुहानी सिंह हमारी आवरण कथा में बता रही हैं कि हम सिनेमा—और उसके स्टार ऐक्टर्स—के हमारे बीच चक्कर लगाने के तरीके में ऐतिहासिक बदलाव देख रहे हैं. 2020-21 में 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई करने वाली 10 फिल्मों में छह दक्षिण की थीं. उनमें चार तेलुगु थीं, जिनमें पुष्पा ने जैकपॉट मारा. 2022 में सेल्यूलॉइड के इतिहास पर यह पैटर्न और भी गहरा होता दिख रहा है.
दक्षिण के सम्राट उत्तर को फतह कर रहे हैं तो बॉलीवुड के बुढ़ाते सम्राट अपना साम्राज्य छिनते देख रहे हैं. अक्षय कुमार की सम्राट पृथ्वीराज ऐसे डूबी कि कुछ पता ही न चला. उनकी कॉमिक फिल्म बच्चन पांडेय भी कोई राहत न दे सकी. इस साल बस तीन हिंदी फिल्मों ने 100 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार किया: द कश्मीर फाइल्स, गंगूबाई काठियावाड़ी और भूल भुलैया 2. तीनों लीक से हटकर फिल्में थीं—पहली अपनी राजनैतिक थीम की वजह से, दूसरी आलिया भट्ट के कंधों पर टिकी नारी-केंद्रित फिल्म के रूप में और तीसरी हॉरर कॉमेडी होने के नाते.
इनमें दरवाजे तोड़ता, पोस्टर फाड़कर उड़ता और भारतीय जनता को प्यार के गानों से रिझाता कोई छैला-छबीला नहीं था. यह काम फिलहाल दक्षिण के बांकों को सौंप दिया गया है, उन सिनेमाई तमाशों में, जिनमें पटुआ के पत्तों और गुंटूर की मिर्ची के मसालों का तगड़ा तड़का लगा होता है. यश की केजीएफ फ्रेंचाइजी अभी खत्म नहीं हुई है.
अल्लू अर्जुन पुष्पा राज के किरदार में अपनी भूमिका दोहरा रहे हैं. सुहानी कहती हैं, ''पुष्पा में उनका काम आला दर्जे का है जिसमें उन्होंने किरदार में करिश्मा और बारीकियां पिरो दीं. फिर हैरानी क्या कि हिंदी के आला अदाकार सात महीने बाद भी उनके कसीदे पढ़ रहे हैं. पुष्पा 2: द रूल 2023 की अब तक की सबसे उक्वमीदों भरी फिल्म है.’’
अहमियत महज आंकड़ों में नहीं, बल्कि उनके इलाकाई फैलाव में है—दक्षिण के नायकों की सीमा-पार कामयाबी असल कहानी है. जहां तक पॉप संस्कृति की बात है तो बॉलीवुड और दक्षिणी सिनेमा की समूची वीडियो लाइब्रेरी तकरीबन एक-सी है. सरसरी तौर पर देखने वाले विदेशी दर्शक को दोनों में फर्क के बजाए समानताएं ज्यादा दिखेंगी: हीरो और हीरोइन का बारी-बारी से शर्माकर वही बनावटी ढंग से मुस्कराना और शोखियां बिखेरना, प्रतिशोध और ऐक्शन का वही मिला-जुला सलाद और नाच-गानों के प्रति वही लगाव.
फिर भी दोनों ने मनोवैज्ञानिक और भाषाई खाई के दोनों तरफ अपना-अपना वजूद बनाए रखा. साउथ के सिनेमा ने पहले भी हिंदी पर छाप छोड़ी—पर वे रीमेक फिल्में होती थीं. तेलुगु फिल्म के जीन ने ’80 के दशक में जितेंद्र-श्रीदेवी की फिल्मों के जरिए बॉलीवुड पर राज किया.
मगर तमिल की धमाकेदार फिल्म या मलयालम कहानी हिंदी में लाए जाने पर अभिनेता को बदलना ही पड़ता था. यहां तक कि रजनीकांत और कमल हासन सरीखे सितारों के लिए भी बॉलीवुड में पैर जमाना उतना शानदार न था. फर्क अब यह है कि दक्षिण के हीरो बॉलीवुड में आकर राजतिलक नहीं करवा रहे. वे अपने साम्राज्यों की राजधानियों से ही हिंदुस्तान पर राज कर रहे हैं.