प्रयागराज के चौक इलाके में जवाहर स्क्वायर नाम की सड़क अब रेडीमेड कपड़ों के बड़े बाजार के रूप में तब्दील हो गई है. इसी सड़क पर 34 नंबर वाला पुराना भवन कपड़ों के बाजार के बीच छिप गया है. ऊपर छज्जे पर लटक रहे कांग्रेस के चार झंडे और ताले से बंद दरवाजे पर लगी नेम प्लेट से पता चलता है कि यह 'शहर कांग्रेस कमेटी, इलाहाबाद' का दफ्तर है. इस दफ्तर का गौरवशाली इतिहास रहा है. वर्ष 1938 में हीवेट रोड स्थित कांग्रेस कार्यालय को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के चौक में स्थानांतरित कर दिया गया था. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, उनकी पत्नी कमला नेहरू समेत पी.डी. टंडन, कैलाश नाथ काटजू जैसे सियासी दिग्गजों ने शहर कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर इसी कार्यालय को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया था. आजादी के बाद कांग्रेस दफ्तर के आसपास का इलाका जवाहर स्क्वायर के नाम से जाना जाने लगा. किराए के भवन में चलने वाले इस कार्यालय का मासिक किराया पहले 35 रुपए महीने था.
कांग्रेस जब अपनी बुलंदियों पर थी तो पार्टी की राजनीति करने वालों के लिए इलाहाबाद शहर कांग्रेस कार्यालय किसी तीर्थस्थल से कम नहीं था. प्रदेश में जैसे-जैसे पार्टी कमजोर होती गई शहर कांग्रेस का दफ्तर भी गौरव खोता गया. दफ्तर से जुड़ा किराएदारी विवाद कोर्ट की चौखट पर पहुंच गया. वर्ष 2015 में कोर्ट के आदेश से किराया 400 रुपए प्रतिमाह हुआ जो अब बढ़कर 5,400 रुपए प्रतिमाह हो गया है. केंद्र की सत्ता से बाहर कांगेस की माली हालत खराब होने से शहर कांग्रेस दफ्तर का किराया देना भी दूभर हो गया. कोर्ट की फटकार के बाद वर्ष 2020 में तत्कालीन शहर कांग्रेस अध्यक्ष नफीस अनवर ने 50 हजार रुपए जमा कराए. इसके बाद किराया नहीं जमा किया गया. कोर्ट ने नोटिस जारी कर हर हाल में 15 जुलाई तक 3 लाख 45 हजार रुपए का बकाया किराया जमा करने का निर्देश दिया. यही नहीं, बिजली विभाग ने भी एक नोटिस जारी कर 6 लाख 66 हजार रुपए बिजली का बकाया बिल भी जमा करने को कहा.
इसके बाद पार्टी हरकत में आई. पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से चंदा जमा कराया गया. वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने 50 हजार रुपए दिए. प्रयागराज में शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप मिश्र अंशुमान बताते हैं, ''भवन का किराया वर्ष 2025 तक जमा करा दिया गया है. बिजली विभाग की ओटीएस स्कीम के चलते बिजली के बकाया बिल का 4 लाख रुपए माफ हो गया है. अब सिर्फ ढाई लाख रुपए जमा करने हैं. इसमें 50 हजार रुपए जमा करा दिए गए हैं और बाकी जल्द जमा करा दिया जाएगा.''
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पास ऐसा कोई केंद्रीकृत तंत्र नहीं है जो प्रदेश में कांग्रेस की संपत्तियों की देखरेख और निगरानी कर सके. फिलहाल यूपी में कांग्रेस के पास जिला और शहर इकाइयों को मिलाकर कुल 123 दफ्तर हैं जिनमें से सिर्फ 20 फीसद अपने भवन में संचालित हो रहे हैं. बाकी किराए के भवनों में हैं. विडंबना कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में पुनर्जीवन की आस लगाए कांग्रेस के पास सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले गोरखपुर में कोई कार्यालय ही नहीं है. गोरखपुर में कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष भृगुनाथ चतुर्वेदी ने पुर्दिलपुर इलाके में कांग्रेस कार्यालय की स्थापना की थी.
पार्टी के एक पदाधिकारी बताते हैं, ''पुर्दिलपुर में किराए के मकान में खुले कार्यालय को खाली कराने के लिए वर्ष 1977 में मकान मालिक ने मुकदमा कर दिया था. वर्ष 1988-89 के बीच एक समय मकान मालिक सुलह को तैयार हो गए थे. 40 हजार रुपए में बात बन जाती, पर कांग्रेस नेताओं के रुचि न लेने से यह अवसर हाथ से निकल गया था.'' इसके बाद मुकदमा चलता रहा लेकिन ठीक से पैरवी न करने पर अंतत: अप्रैल 2017 को गोरखपुर शहर कांग्रेस कमेटी को कार्यालय खाली करना पड़ा. इसके बाद चारूचंद्रपुरी में शहर कांग्रेस का अस्थायी कार्यालय खोला गया जो अब बंद हो चुका है. गोरखपुर के एक व्यवसायी ने कांग्रेस को भालोटिया मार्केट में 33 हजार वर्ग फिट जमीन दान में दी थी. उसपर भी कब्जे की जंग कोर्ट में लड़ी जा रही है.
लखनऊ के मॉल एवेन्यू के सामने यूथ कांग्रेस के पुराने भवन को लेकर भी कब्जेदारी की जंग कोर्ट में है. यह जमीन कांग्रेस को नगर निगम से लीज पर मिली थी. लीज खत्म होने के बाद यह जमीन वापस एक बिल्डर के पास चली गई. उसके बाद यह जमीन कानूनी दांव-पेंच में फंस गई है. इस बीच यूथ कांग्रेस का दफ्तर यूपी कांग्रेस कमेटी के मुख्य भवन में शिफ्ट हो गया है. यूथ कांग्रेस के पुराने भवन में अब पार्टी की सोशल मीडिया इकाई का कार्यालय है. संपत्तियों की पर्याप्त देखरेख न होने से लखनऊ के मॉल एवेन्यू स्थित प्रदेश कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय (नेहरू भवन) भी अगस्त 2017 में विवादों में आ गया था जब स्थानीय व्यवसायी मनीष अग्रवाल ने कार्यालय भवन पर अपना मालिकाना हक जताया. नगर निगम ने मनीष के दावे के मुताबिक, जब अपने रिकॉर्ड खंगाले तो पता चला कि वर्ष 1986 से प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय भवन का हाउस टैक्स ही नहीं जमा किया गया है. जांच में पता चला था कि वर्ष 1986 में संपत्ति के दस्तावेज में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष मोहसिना किदवई का नाम दर्ज किया गया था, पर इस संबंध में दाखिल-खारिज की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थी और न ही मामले में दूसरे पक्ष राम स्वरूप अग्रवाल और पद्मावती अग्रवाल को कोई नोटिस जारी किया गया था. संपत्ति के दाखिल-खारिज से जुडे कागजात नगर निगम में न होने से मनीष के दावे को बल मिला था.
मनीष का आरोप था कि नगर निगम के कर्मचारियों ने गड़बड़ी करके फर्जी ढंग से प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय के भवन के केयर टेकर के रूप में किदवई का नाम दर्ज किया था. अगस्त, 2017 में कांग्रेस मुख्यालय के हाउस टैक्स के तौर पर किदवई पर 51.49 लाख रुपए बकाया है. इसके बाद नगर निगम ने किदवई को नोटिस जारी किया. कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद जमीन के कागजात से जुड़ी कानूनी प्रक्रिया पूरी कराई गई और फौरन बकाया हाउसटैक्स जमा कराया गया. प्रदेश कांग्रेस के एक नेता बताते हैं, ''वह तो भगवान का शुक्र था कि मोहसिना किदवई जीवित हैं, इसलिए उनकी ओर से सारे जवाब नगर निगम को मुहैया कराए गए. अन्यथा प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय का भवन भी पार्टी के हाथ से निकल जाता.'' नगर निगम को सौंपे दस्तावेज के अनुसार, यूपी कांग्रेस मुख्यालय का भवन पार्टी ने 1979 में नीलामी में खरीदा था. प्रदेश में कांग्रेस की संपत्तियों से जुड़ी समस्याओं के निस्तारण के लिए यूपी कांग्रेस कमेटी में संपत्तियों के प्रभारी शिव पांडेय के प्रयास जारी हैं. शिव बताते हैं, ''पार्टी की संपत्तियों की निगरानी के लिए एक टीम गठित की गई है. किराया और बिजली बिल से जुड़े विषयों को हल किया जा रहा है. प्रदेश के सभी जिलों में कांग्रेस का खुद का कार्यालय खोलने की दिशा में भी प्रयास जारी हैं.''
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस यूपी विधान परिषद के 135 वर्ष के इतिहास में पहली बार शून्य पर पहुंच गई है. यहां से उठ खड़े होने के लिए उसे हर जिले में ऐसे कार्यालयों की भी जरूरत पड़ेगी जो पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए ऊर्जा केंद्र के रूप में कार्य कर सकें. यहीं से पार्टी की एक नई शुरुआत होगी.