सर्वोच्च न्यायालय के देश के संरक्षित वनों के लिए एक किलोमीटर के बफर जोन बनाने पर 3 जून के फैसले के खिलाफ फिर से केरल में सार्वजनिक विरोध शुरू हो गया है. 14 जिलों में से कई में किसान संगठन तो आक्रोशित हैं ही, सत्तारूढ़ माकपा, विपक्षी कांग्रेस और उसके सहयोगियों के साथ-साथ इलाके के प्रभावशाली कैथोलिक चर्च भी इसका विरोध कर रहे हैं.
शिक्षाविद् और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के अलावा बहुत कम लोग ही सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सहमत नजर आते हैं. फैसले के साथ खड़े लोगों का मानना है कि पूरे राज्य में फैले पश्चिमी घाट पर बड़ा संकट मंडरा रहा है और केरल ने 2018 के बाद से लगातार आ रही बाढ़ से कोई सबक नहीं लिया है. वनभूमि के ह्रास से जलवायु परिवर्तन के साथ तेज बारिश में मिट्टी का बड़े पैमाने पर क्षरण हो रहा है और इस कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन हो रहा है. पर्यावरणविदों का मानना है कि नेताओं का वर्तमान रुख वोट बैंक को खुश करने के लिए अपनाया गया अवसरवादी रुख है. वहीं चर्च पहाड़ों पर अपने और अपने लोगों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए आगे आया है.
वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी अपनी तीन दिवसीय यात्रा (1-3 जुलाई) में इन विरोध-प्रदर्शनों में शामिल हुए. पहाड़ी निर्वाचन क्षेत्र वायनाड दो वजहों से कांग्रेस का गढ़ है—पहली है अल्पसंख्यकों की अधिकता और दूसरी, जंगलों से सटे क्षेत्रों में रहने वाला कृषक समुदाय जो कांग्रेस का साथ देता है. यह केरल की एकमात्र सीट भी है जो 2024 में राहुल के लिए लोकसभा सीट सुनिश्चित कर सकती है. इसलिए पार्टी को चर्च, मुसलमानों और किसानों के समर्थन की यहां जरूरत है.
लेकिन माकपा यह बात जोर-शोर से उठा रही है कि पश्चिमी घाट में 12 किमी का बफर जोन बनाने का निर्देश 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने ही दिया था और आज की समस्या के बीज तभी पड़ गए थे. कांग्रेस ने पलटवार करते हुए दावा किया कि 2019 के चुनाव में वाम मोर्चे की प्रदेश की 20 लोकसभा सीटों में से 19 पर हार के बाद, पिनराई विजयन की कैबिनेट ने केंद्र को सूचित किया था कि वन क्षेत्रों के चारों ओर 1 किमी ईएसजेड (ईको सेंसिटिव जोन) की जरूरत है.
बेशक, वाम मोर्चा सरकार उस फैसले पर पछता रही और भूल सुधार के प्रयास कर रही है. वन एवं पर्यावरण मंत्री ए.के. ससींद्रन कहते हैं, ''राज्य सरकार ईएसजेड का ध्यान रखने के साथ किसानों के हितों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभा रही है. हम एक किमी बफर जोन के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में संशोधन याचिका दायर करेंगे.'' राज्य के महाधिवक्ता (ए-जी) के. गोपालकृष्ण कुरुप ने सुझाव दिया कि राज्य की भौगोलिक विशेषताओं को देखते हुए केरल बफर जोन पर 0-1 किमी की छूट के लिए इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है कि ऐसी छूट मुंबई में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान और चेन्नै में गिंडी नेशनल पार्क से सटे क्षेत्रों में भी दी जा चुकी है. राज्य में 119 गांव (सभी का जनसंख्या घनत्व 250 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से अधिक है) और यहां तक कि शहर भी वनों से सटे हैं (भारत के नक्शे में देखें तो केरल एक लंबी पट्टी जैसा है और इसकी अधिकतम चौड़ाई महज 120 किमी या उससे थोड़ी अधिक है).
ए-जी ने जिन दो कारकों का उल्लेख किया है, उनकी भी बड़ी भूमिका है—केरल देश का तीसरा सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाला राज्य है. किसान संघ के एक प्रतिनिधि कहते हैं कि यह ''सीआरजेड (तटीय विनियमन क्षेत्र) और ईएसजेड के नियमों के बीच फंस गया है.'' केरल में 11,521 वर्ग किमी वनक्षेत्र भी है जिसमें 24 वन्यजीव अभयारण्य हैं जो 'संरक्षित क्षेत्रों' में आते हैं.
साल 2018 की भीषण बाढ़ के बाद केरल वन अनुसंधान संस्थान के एक अध्ययन से पता चला है कि पारिस्थितिक रूप से कमजोर पश्चिमी घाट में बेतहाशा खनन के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ. अगर ईएसजेड बफर जोन नियम लागू होते हैं तो सिर्फ क्षेत्र के लोग ही प्रभावित नहीं होंगे. राज्य के एक छोर से दूसरे छोर को जोड़ने वाली हाइ स्पीड रेल लाइन परियोजना सिल्वर लाइन (के-रेल) और 1,332 किमी लंबे मलयोरा हिल हाइवे (एसएच-59) जैसी पिनराई सरकार की परियोजनाएं भी ठप हो सकती हैं.