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इथेनॉल से मिलेगी प्रदेश को गति!

बिहार केंद्र की इथेनॉल नीति के बाद अपनी इथेनॉल नीति तैयार करने वाला पहला राज्य है. इसने 2021 में अपनी इथेनॉल नीति लागू की है

आगाज : पूर्णिया के गणेशपुर में संचालित हो रहा इथेनॉल प्लांट
आगाज : पूर्णिया के गणेशपुर में संचालित हो रहा इथेनॉल प्लांट
अपडेटेड 23 मई , 2022

पुष्यमित्र

इस साल 30 अप्रैल को बिहार के पूर्णिया के गणेशपुर में एक इथेनॉल प्लांट की शुरुआत हुई. इस मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद वहां पहुंचे थे और उन्होंने कहा कि इस प्लांट के जरिए बिहार में उद्योगों का विस्तार हो रहा है. दरअसल, राज्य में 17 इथेनॉल प्लांट शुरू होने वाले हैं. राज्य सरकार को उम्मीद है कि इनके जरिए राज्य में उद्योगीकरण की तस्वीर बदल सकती है. 

पूर्णिया में शुरू हुई इथेनॉल फैक्ट्री को देश का पहला ग्रीन फील्ड ग्रेन बेस्ड इथेनॉल प्लांट बताया जा रहा है. राज्य सरकार ने कहा है कि केंद्र और बिहार सरकार की इथेनॉल उत्पादन नीति के लागू होने के बाद देश में शुरू होने वाली यह पहली इथेनॉल फैक्टरी है. एक पूर्व आइएएस अधिकारी अमिताभ वर्मा की ओर से शुरू की गई इस फैक्ट्री की कुल लागत 105 करोड़ रुपए है. इसके जरिए रोजाना 65 हजार लीटर इथेनॉल उत्पादन होना है. 

इसी क्रम में भोजपुर जिले के देवड़ी में देश की सबसे बड़ी इथेनॉल फैक्टरी शुरू होने वाली है. इसकी उत्पादन क्षमता चार लाख लीटर इथेनॉल प्रति दिन बताई जा रही है. इस प्लांट की लागत 500 करोड़ रुपए है. यह भी बनकर लगभग तैयार है. इसके अलावा गोपालगंज जिले के सिधवलिया और सोनासती में एक-एक इथेनॉल प्लांट बनकर तैयार हैं. 

भोजपुर, पूर्णिया और गोपालगंज के अलावा मुजफ्फरपुर, नालंदा, बक्सर, मधुबनी, बेगूसराय, पूर्वी चंपारण और भागलपुर जिलों में ये प्लांट खुलने वाले हैं. इनके जरिए राज्य में सालाना कुल 35.2 करोड़ लीटर इथेनॉल का उत्पादन होगा. इसके लिए पेट्रोलियम उत्पादन कंपनियों से समझौता भी हो चुका है कि वे इस इथेनॉल को खरीदेंगी.

दरअसल, केंद्र सरकार की इथेनॉल उत्पादन नीति के मुताबिक, सरकार ने 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसद इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य रखा है. सरकार का मानना है कि खराब खाद्यान्नों के जरिये देश में आसानी से लक्ष्य के मुताबिक इथेनॉल तैयार किया जा सकता है. अगर यह लक्ष्य हासिल कर लिया गया तो देश को 30 हजार करोड़ रु. विदेशी मुद्रा की बचत होगी और पर्यावरण को भी लाभ होगा. 

नीतीश कुमार कहते हैं, ''बिहार सरकार 2007 से इथेनॉल उत्पादन के लिए कोशिश कर रही है. हमलोगों ने इसके लिए उस वक्त की केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा था, पर उसे स्वीकार नहीं किया गया. हमलोगों के पास उस समय कई प्रस्ताव भी आए थे. अब केंद्र सरकार ने इसकी अनुमति दे दी है.'' दरअसल, बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से 172 करोड़ लीटर इथेनॉल उत्पादन की इजाजत मांगी थी. बिहार का कहना है कि राज्य के पास 30 हजार करोड़ रुपए की लागत के 151 इथेनॉल प्लांटों का प्रस्ताव आया है. वह चाहे तो आसानी से यह लक्ष्य पा सकती है. पर केंद्र ने बिहार के लिए सिर्फ 35.2 करोड़ लीटर सालाना इथेनॉल उत्पादन का कोटा तय किया है. इसलिए राज्य में सिर्फ 17 प्लांट शुरू हो पा रहे हैं. 

बिहार में इथेनॉल उत्पादन की संभावना इसलिए अधिक है, क्योंकि इसके उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले कृषि उत्पादन, गन्ना, मक्का, टूटे चावल आदि यहां पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. कहा जा रहा है कि इन प्लांटों के खुलने से लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही, साथ-साथ आसपास के किसानों का भी फायदा होगा. बिहार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन कहते हैं, ''इससे किसानों की आय दोगुनी होगी और उन्हें बाजार में भटकना नहीं पड़ेगा.'' 

पूर्णिया के प्लांट में फिलहाल रोजाना 135 टन चावल और धान की खुद्दी का इस्तेमाल हो रहा है. प्लांट के प्रोमोटर विशेष वर्मा बताते हैं कि फिलहाल इनमें से 25 फीसद ही किसानों से खरीदा जा रहा है. शेष 75 फीसद खुद्दी की आपूर्ति स्थानीय राइस मिलर कर रहे हैं, जबकि पूर्णिया मक्का की खेती का हब माना जाता है. दावा किया गया था कि आसपास के किसानों से 150 टन मक्का रोज खरीदी जाएगी. ऐसे में आंकड़े यही बताते हैं कि फिलहाल धरातल पर स्थिति किसानों के पक्ष में नहीं है. दूसरी ओर, राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने इस नीति का यह कहते हुए विरोध किया है कि लोगों के खाने के लिए चावल और गेहूं मिलते ही नहीं हैं, और सरकार इन्हें सड़ाकर इथेनॉल तैयार करने जा रही है.

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