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मुश्किल घड़ी में परिवार के साथ

भारत को संकटग्रस्त श्रीलंका की मदद करते रहना होगा. हमें वहां के लोगों का दिल जीतने के लिए संवेदनशील ढंग से संगठित अभियान चलाते रहना होगा

श्रीलंका: परिवार आखिर परिवार होता है
श्रीलंका: परिवार आखिर परिवार होता है
अपडेटेड 17 मई , 2022

निरुपमा राव

श्रीलंका का इकलौता पड़ोसी भारत है. वह श्रीलंका के घटनाक्रम पर नजर रखता है, खासकर वास्ता श्रीलंकाइयों के दु:ख-तकलीफ से हो तो भारत को फिक्र होती है. दोनों देशों को बांधने वाले रिश्ते इतने अनगिनत हैं कि इस आलेख में गिनाए नहीं जा सकते. इतना कहना काफी है कि श्रीलंकाई, चाहे सिंहली हों या तमिल, केवल पाक जलडमरूमध्य से अलग हुए हमारे बंधु-बांधव ही हैं. भूराजनैतिक दृष्टि से श्रीलंका बेहद महत्वपूर्ण है—वह कॉकपिट जो नौवहन के सबसे प्रमुख रास्तों की रखवाली करता है, जो दक्षिणी हिंद महासागर के विशाल विस्तार पर पास-पड़ोस से नजर रखता है.

इसके उलट श्रीलंका से दक्षिणी भारतीय प्रायद्वीप बालिश्त भर की दूरी पर है, जिसकी वजह से इस द्वीपीय देश के उत्तरी हिस्से में चीनी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की कोई भी चर्चा भारत के लिए सामरिक अभिशाप होती है. कोलंबो से संकट का इशारा भर होते ही भारत ने अपना हाथ बढ़ाया और समय पर की गई हमारी मदद ने चौतरफा घिरे हुए लोगों को कुछ राहत दी. हालांकि इस द्वीपीय देश की राजनैतिक स्थिति ऐसे प्राथमिक सहायता समाधानों के अनुकूल नहीं है.

श्रीलंका का लोकतंत्र हाल के वर्षों में सरकार के शीर्षतम स्तर पर सियासी भ्रष्टाचार, निरंकुशता और उसके साथ गुमराह और गलती करने की संभावनाओं से युक्त राजकाज तथा घोर वित्तीय कुप्रबंधन के कारण कमजोर हुआ है. लोग परेशानियां झेल रहे हैं और तकलीफ इतनी व्यापक है कि 1948 में आजादी के बाद नहीं देखी गई. यहां तक कि खौफनाक गृह युद्ध के वर्षों में भी सरकार के सांस्थानिक कार्यों को इस तरह मटियामेट होते नहीं देखा गया.

श्रीलंका के हालिया इतिहास का पहला उत्तरदाता होने के नाते भारत जाहिरा तौर पर परिवार को छोड़ नहीं सकता. श्रीलंका परिवार है. चीनियों में श्रीलंकाइयों की तकलीफ को कम करने की खातिर संकट को संभालने या समाधान देने की कोई क्षमता नहीं है और वे निचोड़ लेने वाली अपनी अनोखी कूटनीति के लिए अगले मौके का इंतजार कर रहे हैं. सवाल यह है कि अतीत में चीन के प्रति झुकाव जताने वाले सत्तारूढ़ राजपक्षे भाइयों ने भारत को परेशान करने के लिए चीन को रिझाने के साथ अपनी नीतियों और राजकाज की नाकामियों के सबक सीख लिए हैं या नहीं.

उनकी अलोकप्रियता साफ जाहिर है. भारत को आम श्रीलंकाइयों की नजर में इस अलोकप्रिय हुकूमत को, जिसकी वैधता सड़क-चौराहों पर लगातार सवालों के दायरे में है, सहारा देने वाला देश समझे जाने से एहतियात बरतनी चाहिए. विपक्षी एकता वक्त का तकाजा है, पर कहीं दिखाई नहीं दे रही. श्रीलंका के अस्तित्व के मौजूदा संकट का समाधान अंतत: इस द्वीपीय देश के भीतर ही खोजा जाना है. हिंसक गृह युद्ध के बाद की स्थितियों ने भी बंटे हुए राष्ट्र और राजनीति को जोड़ने वाला इलाज मुहैया नहीं किया. बहुसंख्यकवादी राजनीति ने कई वर्षों से श्रीलंका के आदम के लिए कहावत के सांप की भूमिका निभाई. इसने दोषपूर्ण राजकाज और नेतृत्व के साथ मिलकर कभी अकूत संभावनाओं से भरे इस देश को गंभीर नुक्सान पहुंचाया है.

हमारे पास-पड़ोस की कई स्थितियां आज भारत-चीन की प्रतिद्वंद्विता से परिभाषित हो रही हैं जो मुश्किल से ही दबी-छिपी है. हमारे पड़ोसी इसका फायदा उठाते हैं, जिन्होंने जरा होमवर्क नहीं किया कि ताकत की राजनीति को इस कदर बेलगाम बढ़ावा देने के उनके अपने देश के लिए क्या नतीजे होंगे. राजपक्षे भाई इस खेल के उस्ताद थे, पर उनके पंख आज उनकी हेकड़ी और नाकारापन से लहूलुहान हैं. उनका पतन जीता-जागता उदाहरण है कि लोग गरीबी से मुक्ति, आर्थिक स्थिरता और रोजमर्रा की जिंदगी में सुरक्षा का भरोसा देने वाली सरकार चाहते हैं.

श्रीलंकाई अपने चुने हुए नेताओं की गंभीर खामियों की भारी कीमत चुका रहे हैं. उनकी तकलीफों का शमन छोटे वक्त में नहीं होगा. आइएमएफ का बेलआउट पैकेज सख्त शर्तें और खर्चों पर कड़ी पाबंदियां लेकर आएगा. भारत को मदद का हाथ बढ़ाते रहना होगा. हमें लोगों का दिल जीतने का संगठित अभियान चलाते रहना होगा. गृह युद्ध के कठोर वर्षों में भारत ने जातीय विभाजन के दोनों ओर रहने वाले श्रीलंका के लोगों से खुद को काट लिया था. अब सावधानी से नपी-तुली और संवेदनशील ढंग से जन कूटनीति के जरिए उन शिकायतों को दूर करने का मौका हाथ लगा है. पर श्रीलंकाइयों के दिमाग में ऐसी कोई भी धारणा, चाहे वह कितनी भी निराधार क्यों न हो, बनने देने से बचना होगा कि भारत अत्यंत अलोकप्रिय नेतृत्व को टेक लगा रहा है. भारत की श्रीलंका नीति के लिए यह अग्निपरीक्षा है. इसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं, क्योंकि श्रीलंका छोटा देश होते हुए भी हमारे सामरिक हितों के लिहाज से इतना बड़ा है कि उसे नाकाम होते नहीं देखा जा सकता.

परिवार आखिर परिवार होता है. श्रीलंकाई परिवार हैं.

(लेखिकापूर्व विदेश सचिव हैं जो श्रीलंका में भारत की उच्चायुक्त रह चुकी हैं. वे पेंगुइन वाइकिंग से 2021 में प्रकाशित दि फ्रैक्चर्ड हिमालया: 
इंडिया तिब्बत चाइना 1949 टू 1962 की लेखिका हैं )

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