हत्या के अपराध में दिल्ली के तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे बाहुबली और राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन ने अपने 54वें जन्मदिन के नौ दिन पहले 1 मई को दिल्ली के एक अस्पताल में कोविड से दम तोड़ दिया. जैसे ही यह खबर आई, बिहार में बड़ी खामोशी से उन अल्पसंख्यकों के दिल जीतने की होड़ शुरू हो गई जो इस बाहुबली को रहनुमा मानते थे.
हालांकि कई अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी इस बीमारी की दूसरी क्रूर लहर पर लगाम लगाने के लिए पूर्ण लॉकडाउन है, बिहार के अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा साहेब को अपना शोक प्रकट करने के लिए सिवान के प्रतापपुर गांव की ओर दौड़ पड़े. ओसामा भी अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए तैयार हैं.
जन अधिकार पार्टी के प्रमुख राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव संवेदना व्यक्त करने के लिए 7 मई को सिवान पहुंचे तो एक दिन बाद राजद विधायक रीतलाल यादव भी पहुंच गए. रीतलाल ने 9 मई को ओसामा के साथ 30 मिनट की चर्चा की, जिसे राजनीतिक पर्यवेक्षक तेजस्वी यादव की डैमेज कंट्रोल की कोशिश के रूप में देखते हैं. शहाबुद्दीन का परिवार उनके जीवन के अंतिम दिनों में उनके लिए कुछ खास प्रयास नहीं करने की वजह से राजद से नाराज बताया जा रहा था. पप्पू यादव की प्रतापपुर यात्रा को भी डॉन के परिवार की राजद के साथ अनबन का फायदा उठाने की कोशिश के रूप में देखा गया. पिछले तीन लोकसभा चुनाव राजद के टिकट पर लड़ीं और हारीं शहाबुद्दीन की विधवा हिना शहाब राजद समेत किसी भी पार्टी के नेता से नहीं मिल रही हैं.
राजद से बुरी तरह चिढ़े पप्पू यादव कथित तौर पर शहाबुद्दीन के समर्थकों को राजद से तोड़ने का जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने शहाबुद्दीन को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में बताया जो लालू प्रसाद यादव के प्रति पूरी तरह वफादार रहे और संकट की उस घड़ी में भी राजद सुप्रीमो के पीछे खड़े रहे, जब तेजस्वी माता-पिता की गोद में खेलने वाले बच्चे थे.
पप्पू यादव जानते हैं कि मुसलमानों में शहाबुद्दीन के लिए जबरदस्त सहानुभूति है. इसलिए उनकी मौत के बाद वे एक समानांतर मुस्लिम-यादव धुरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
संयोग से पप्पू यादव और रीतलाल यादव भी बाहुबली कहे जाते हैं. पांच बार लोकसभा सांसद रहे पप्पू पहले लालू यादव के साथ हुआ करते थे, लेकिन साल 2014 में जब उन्होंने लालू यादव की विरासत पर दावा करने की कोशिश की तो पार्टी ने उन्हें बाहर का दरवाजा दिखा दिया था. दूसरी ओर, रीतलाल यादव अब तेजस्वी यादव के विश्वासपात्र बनकर उभरे हैं. जब भी विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा परिसर में जब भी मीडिया को संबोधित करते हैं, रीतलाल यादव को उनके बगल में खड़ा देखा जा सकता है.
रीतलाल न तो शहाबुद्दीन के पुराने साथी रहे हैं और न ही उनके समकालीन, फिर भी डॉन के परिवार से संवेदना प्रकट करने उन्हें भेजे जाने की घटना को पप्पू यादव जैसे राजनीतिक विरोधी के शहाबुद्दीन के परिवार को राजद से दूर करने के प्रयासों को बेअसर करने की तेजस्वी यादव की कोशिश के रूप में देख रहे हैं. रीतलाल पर भी एक दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं. रीतलाल दानापुर से भाजपा की उम्मीदवार के पति सत्यनारायण सिन्हा की हत्या के भी आरोपी हैं, जिन्हें रीतलाल ने 2020 के विधानसभा चुनाव में हराया था.
यह कहना जल्दबाजी होगी कि शहाबुद्दीन की मौत से बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का प्रभाव कम होगा, लेकिन यह साफ देखा जा सकता है कि दो बाहुबली—पप्पू यादव और रीतलाल यादव—डॉन की विरासत को हथियाने की खींचतान में लग गए हैं.
9 मई को शहाबुद्दीन के घर गए जद (यू) के एमएलसी राधाचरण शाह ने जोर देकर कहा था कि यह उनका व्यक्तिगत दौरा था और इसके कोई राजनीतिक निहितार्थ नहीं हैं. शाह पूर्व राजद नेता हैं जो जून 2020 में चार अन्य एमएलसी के साथ जद (यू) के हो गए थे. उन्होंने कहा, ''यह राजनीतिक चर्चा का समय नहीं था.''
शहाबुद्दीन अपने पीछे उतार-चढ़ाव वाली विरासत छोड़ गए. अपने उत्कर्ष के दिनों में वे सिवान का निर्विवादित साहेब थे. यह भी एक विडंबना है कि यही जिला भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्मस्थान है. लालू यादव और राबड़ी देवी के 15 साल के शासनकाल में इस डॉन का सिवान में आतंक था और उन्होंने यहां एक बेताज बादशाह की तरह राज किया.
जिले में आने वाले नौकरशाह और पुलिस अधिकारी उन्हें रिपोर्ट किया करते थे तो उनके विरोधी चुनाव के दौरान अपने पोस्टर लगाने की भी हिम्मत नहीं कर पाते थे. डॉक्टरों और ट्रांसपोर्टर्स को फरमान जारी किया गया था कि वे 'साहेब' की तय की गई राशि से अधिक शुल्क किसी से नहीं लेंगे. उन दिनों कोई शहाबुद्दीन के खिलाफ सार्वजनिक बयान देने की हिम्मत नहीं कर पाता था.
लालू यादव ने कभी भी शहाबुद्दीन के साथ अपने संबंधों को छुपाने की कोशिश नहीं की. यहां तक कि लालू यादव ने सिवान जेल में जाकर उन्हें अपना 'छोटा भाई' कहकर संबोधित किया था. शहाबुद्दीन को सजा हो गई तो लालू यादव ने तीन बार लोकसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार के रूप में उनकी पत्नी हिना को मैदान में उतारा.
शहाबुद्दीन बिहार की राजनीति में अंदर तक पैठ बना चुके उन अपराधियों का प्रतीक थे जिनका सिक्का बिहार की राजनीति पर चलता था. थोड़ा गैंगस्टर, थोड़ा समुदाय का रहनुमा, थोड़ा राजनेता और थोड़ा रॉबिनहुड, शहाबुद्दीन ने उस राजनीतिक परिदृश्य में बेखौफ मनमानी की जहां राजनेता और अपराधी को अलग करने वाली रेखा धुंधली पड़ चुकी थी.
शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसना नवंबर 2005 में शुरू हुआ जब नीतीश कुमार की सरकार ने सत्ता संभाली. नीतीश ने आपराधिक छवि वाले नेताओं के खिलाफ मुकदमों की त्वरित सुनवाई पक्की की, जिसके कारण शहाबुद्दीन को दोषी ठहराया गया और बाद में चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया. हालांकि सजा के बावजूद साहेब के वर्चस्व में कोई कमी नहीं आई. 2016 में उन पर सिवान के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या की साजिश रचने के आरोप लगे. इससे पहले, उन्हें एक दोहरे हत्याकांड में दोषी ठहराया गया था जिसमें रंगदारी न देने के कारण सिवान में अगस्त 2004 में दो सगे भाइयों को तेजाब से जलाकर मार दिया गया था. पीड़ितों के तीसरे भाई राजीव रोशन की भी कुछ साल बाद अदालत में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.
विडंबना कि 1 मई को शहाबुद्दीन की मौत हुई, उसी दिन उनके सियासी गुरू लालू यादव को नई दिल्ली ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) से छुट्टी मिली. उन्हें तीन साल से ज्यादा की न्यायिक हिरासत के बाद अप्रैल में जमानत मिली थी. लालू यादव ने शहाबुद्दीन की मौत को 'व्यक्तिगत क्षति' बताया, वहीं तेजस्वी ने 'दुखदायी' और पार्टी के लिए अपूरणीय क्षति बताया.
कहा जाता है कि शहाबुद्दीन के जीवन के अंतिम कुछ दिनों में उनके बेटे ओसामा अपने पिता के लिए बेहतर चिकित्सा उपचार सुनिश्चित कराने के लिए अकेला संघर्ष कर रहे थे. लेकिन, शहाबुद्दीन की मौत के बाद राजनेताओं में उनको लेकर सहानुभूति जताने की होड़ मची है.