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पश्चिम बंगालः मैदान में नदारद

केरल में दुश्मनी, बंगाल में गलबहियां—क्या राहुल और प्रियंका गांधी वामदलों के साथ इन दोहरे रिश्तों के कारण ही ममता के खिलाफ चुनाव अभियान में शामिल होने से परहेज कर रहे?

केरल पर जोर मन्नतवाडी में राहुल गांधी का रोड शो
केरल पर जोर मन्नतवाडी में राहुल गांधी का रोड शो
अपडेटेड 15 अप्रैल , 2021

कांग्रेस के दो स्टार प्रचारकों-राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव परिदृश्य से अनुपस्थिति ने राज्य में पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. बंगाल की 294 विधानसभा सीटों के लिए आठ चरणों में चुनाव हो रहे हैं. 135 सीटों के लिए पहले चार चरणों का मतदान 10 अप्रैल तक समाप्त हो जाएगा. फिर भी, गांधी परिवार के किसी भी सदस्य ने अब तक राज्य में एक भी रैली को संबोधित नहीं किया है.

यह दूसरे चार राज्यों असम, केरल, तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में पार्टी के चुनाव अभियानों के विपरीत है. बीते दो महीनों में राहुल ने अपना अधिकांश समय तमिलनाडु और केरल में बिताया जबकि प्रियंका ने पति रॉबर्ट वाड्रा के कोविड संक्रमित पाए जाने के कारण 2 अप्रैल को सेल्फ-आइसोलेशन में जाने से पहले असम, तमिलनाडु और केरल में रैलियों को संबोधित किया था.

कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि गांधी परिवार ने सोची-समझी रणनीति के तहत बंगाल के पहले चार चरणों के मतदान के लिए चुनाव प्रचार नहीं किया. बंगाल में कांग्रेस का वाम दलों के साथ गठबंधन है, जबकि केरल में उसकी वामपंथी डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के साथ कांटे का मुकाबला हो रहा था. केरल में चुनाव प्रचार के दौरान, राहुल ने वामपंथियों की तुलना भाजपा से की थी. राहुल ने कहा था, ''वाम मोर्चा भाजपा की तरह ही विभाजनकारी ताकत है. यह दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री रोज कांग्रेस-मुक्त भारत की बात करते हैं. लेकिन मैंने उन्हें कभी भी वाम मोर्चा-मुक्त भारत या केरल कहते नहीं सुना.'' राहुल की तरह ही वाम और भाजपा को एक ही पलड़े पर रखते हुए कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य तथा महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इंडिया टुडे से कहा कि केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की धोती में मोदी (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) हैं.

कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि राहुल के बंगाल में वामपंथी नेताओं के साथ प्रचार करने से केरल में पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचता. वे तर्क देते हैं कि यही कारण था कि गांधी परिवार ने फरवरी में वामदलों की तरफ से कोलकाता की ब्रिगेड परेड में आयोजित रैली में भाग लेने का कांग्रेस की बंगाल इकाई का अनुरोध ठुकरा दिया था. वे जाहिर तौर पर वाम दलों के साथ मंच साझा करते हुए नहीं दिखना चाहते थे.

साथ ही, गांधी परिवार एलडीएफ पर अपने हमलों को लेकर बंगाल कांग्रेस इकाई को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था. इसलिए, कांग्रेस के अधिकांश राष्ट्रीय नेता 6 अप्रैल तक बंगाल से दूर रहे. केरल में 6 अप्रैल को मतदान संपन्न हुआ. बंगाल में कांग्रेस के अध्यक्ष तथा लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी कहते हैं, ''निश्चित रूप से, एक राज्य में वामपंथियों के साथ हाथ मिलाने और दूसरे में उसके खिलाफ लड़ने के इस द्वंद्व के कारण हमारे शीर्ष नेतृत्व के लिए दुविधा की स्थिति बनी है. मुझे यकीन है कि वे आगे के चरणों के मतदान में बंगाल में चुनाव प्रचार करेंगे.''

भाजपा ने इसे उछालने में देर नहीं की. विजयन ने टिप्पणी कि थी कि कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, उसे ही मुद्दा बनाकर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मार्च में ट्वीट किया कि माकपा का बंगाल में उसी कांग्रेस के साथ गठबंधन क्यों है.

अनौपचारिक बातचीत में कांग्रेस के कुछ नेताओं का कहना है कि ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के खिलाफ वामपंथी दलों के साथ हाथ मिलाने के राज्य इकाई के फैसले से दुखी होकर राहुल ने बंगाल से दूरी बना रखी है. उनका दावा है कि राहुल, भाजपा विरोधी वोटों में बंटवारे को रोकने के लिए टीएमसी के साथ गठबंधन के इच्छुक थे. चौधरी इस तरह की अटकलों को खारिज करते हैं. वे कहते हैं, ''राहुल गांधी सहित कांग्रेस आलाकमान ने राज्य इकाई को बंगाल में चुनावी रणनीति तय करने का पूरा अधिकार दिया. उन्होंने कोई हस्तक्षेप नहीं किया और हमेशा हमारे फैसलों का समर्थन किया.''

सुरजेवाला भी पार्टी में वामपंथियों के साथ गठबंधन को लेकर किसी तरह भ्रम की स्थिति से इनकार करते हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पहले चार चरणों में बंगाल में चुनाव प्रचार नहीं किया क्योंकि इन चरणों में पार्टी केवल कुछ ही सीटों पर चुनाव लड़ रही थी. कांग्रेस जिन 91 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उनमें से केवल 20 पर ही पहले चार चरणों में वोट पड़े. राहुल गांधी जल्द ही बंगाल में चुनाव प्रचार शुरू करेंगे. सुरजेवाला कहते हैं, ''हम जिन विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें से अधिकांश पर वोट बाद के चरणों में हैं.'' मालदा, मुर्शिदाबाद, मध्य बंगाल और उत्तर बंगाल जहां पार्टी के लिए बेहतर माहौल और अच्छी संभावनाएं दिखती हैं, वहां आगामी चरणों में चुनाव होने वाले हैं.

महत्वपूर्ण यह भी है कि गांधी परिवार उन राज्यों में अधिक समय दे रहा है, जहां कांग्रेस के लिए सत्ता में आने की बेहतर संभावना दिखती है. असम और केरल में सत्ताधारी दलों के सामने कांग्रेस ही मुख्य चुनौती है. तमिलनाडु में, पार्टी द्रमुक (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के नेतृत्व वाले मुख्य विपक्षी गठबंधन की छोटी साझेदार भर है. कांग्रेस के एक महासचिव पूछते हैं, ''राहुल गांधी के लिए बंगाल में समय बर्बाद करने का क्या मतलब है, जहां कांग्रेस के लिए सबसे अच्छी संभावना यही हो सकती है कि वह राज्य की तीसरी बड़ी पार्टी बन जाएगी?''

पार्टी कार्यकारिणी के एक सदस्य के अनुसार, राहुल के कार्यालय ने पार्टी की बंगाल इकाई को राज्य में चुनाव प्रचार के लिए तारीखों और स्थानों के बारे में जानकारियां भेजने के लिए कहा है. पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के अंतिम दो या तीन चरणों में प्रचार करने की संभावना है. लेकिन पार्टी के एक लोकसभा सांसद के अनुसार, यह योजना भी बदल सकती है. वर्तमान विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त रणनीति बनाने के लिए सोनिया गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं को लिखे ममता बनर्जी के पत्र के मद्देनजर गांधी परिवार राज्य में चुनाव प्रचार से पूरी तरह दूरी बनाए रख सकता है.

ममता के साथ सोनिया गांधी के व्यक्तिगत समीकरण के कारण, गांधी परिवार बंगाल की मुख्यमंत्री और उनकी सरकार पर किसी भी सार्वजनिक हमले से बचना चाहता है. राष्ट्रीय जनता दल, शिवसेना, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सहित कई विपक्षी दलों ने कांग्रेस से दूरी बनाते हुए बंगाल में ममता का समर्थन किया है.

इन परिस्थितियों में, गांधी परिवार के सदस्यों के लिए बंगाल में प्रचार करना मुश्किल होगा, जहां वामपंथी और स्थानीय कांग्रेस नेताओं की तरफ से ममता सरकार पर जमकर निशाना साधा जा रहा है. अब तक, बंगाल कांग्रेस के नेता ममता सरकार पर हमलों के कोई मौके नहीं छोड़ रहे हैं. चौधरी ने माना कि ममता का सोनिया को पत्र, केंद्रीय नेतृत्व की दुविधा बढ़ाने वाला सकता है. यानी इसका मतलब हो सकता है कि गांधी परिवार खुद को पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रचार से पूरी तरह दूर रखे.

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